जीवन का पचासवां बसंत- गृहलक्ष्मी की कहानियां
Jivan ka Pachasva Basant

Hindi Kahani: आकाश में बादलों के बीच हवाई जहाज में यादों के भंवर में समाता मैं अंशु मिश्रा पूरे दो सप्ताह बाद लौट रहा था, अपनी पत्नी के पास अपने घर। उसके  बिना मेरे यह कुछ दिन कई दशक बीतने पर के समान बीते थे ये मैं ही जानता हूं। 

कॉलेज में प्रवेश करते ही आज के युवा की तरह मुझ पर भी जुनून सवार हो गया था। शादी करनी है तो अपनी पसंद की लड़की से, जिससे मुझे पहली नजर में ही देखते ही प्यार हो जाए। मैं प्रेम विवाह करना चाहता था। जिस लड़की से प्यार ही ना हो उससे शादी करना मेरी समझ से बाहर था। दो अंजान लोग क्या ख़ाक एक दूसरे का साथ जिंदगी भर निभाएंगे। पहले अच्छे से एक दूसरे को जानना समझना चाहिए तब शादी के बंधन में बंधना चाहिए।

मेरी मां के ही बड़े अरमान थे कि वो अपनी पसंद से बड़े खानदान की लड़की को बहू बनाकर लाए।

“अंशु बेटा शादी तो दो दिलों और दो आत्माओं का मिलन है, प्यार अपने आप हो जाता है। तेरे पापा क्या मुझसे प्यार नहीं करते? उन्होंने तो शादी से पहले मेरी फोटो भी नहीं देखी थी।” शर्माते हुए मां ने पास बैठे मेरे बाबूजी को देखते हुए कहा था।

यह बात जग जाहिर थी कि मेरे पापा मेरी मां से अत्यधिक प्रेम करते थे जिस कारण हमारे रिश्तेदार और आस-पड़ोस वाले उन्हें बड़ा चिढ़ाया करते थे कि जब देखो अपनी बीवी के पल्लू से चिपका रहता है।

मां ने पहले बड़े प्यार से समझाया पर जब मैंने ज़िद्द पकड़ी कि पहले ऐसी लड़की तो मिले जिससे मुझे प्यार हो तब ही मैं उससे शादी करूंगा।

मां ने जब देखा मैं अपनी जिद्द पर अड़ गया हूं तब वो अनशन पर बैठ गई कि जब तक शादी के लिए हां नहीं करुंगा वो अन्न का एक दाना भी मुंह में नहीं रखेगी।

मैं ही हार गया मां की ज़िद्द के आगे और मेरी शादी मेरी माँ ही की पसंद की लड़की से हुई।

Also read: सॉफ्ट लैंडिंग-गृहलक्ष्मी की कहानियां

   बीस साल पहले मेरी शादी के लिए जिस लड़की की मुझे फोटो दिखाई गई, उसके पिता ने पहले ही सब बता दिया था कि ,” मेरी बेटी सुंदर नहीं है। उसका रंग थोड़ा दबा हुआ है, आप लोगों जैसी गोरी नहीं है और नैन नक्श भी अच्छे नहीं है। फिर भी बहुत से गुण है उसमें, बड़ों का आदर सत्कार बड़े मन से करती है और घर के सभी काम में निपुण है। उसमें हमने अपने संस्कारों को भरा है। पढ़ने लिखने में भी हमेशा आगे रही है टीचर्स ट्रेनिंग और कम्पयुटर कोर्स किया है अभी पी जी कर रही है। आप चाहे तो उसे देखने आ सकते हैं या मैं ही लेता आऊँगा। अगर आपको ये रिश्ता मंजूर हो तो उसकी परीक्षा के बाद ही शादी की तारीख तय करते हैं।”

 मैं तो सिर्फ माँ की आज्ञा का पालन या उसकी ज़िद्द पूरी कर रहा था।बुझे मन से मैंने तो वो फोटो देखे बिना ही हाँ कर दिया, जो माँ करेगी वो सही होगा। 

  ये बीस साल उसके साथ कैसे बिताऐ ये मैं ही जानता हूँ। पचास साल का होने को हूँ पर पन्द्रह दिन पहले तक भी शर्मिंदगी महसूस होती थी उसे अपने साथ कहीं ले जाने में। एक दिन निकलने से पहले ही पूछा था उससे कि मैं तेरे घर जा रहा हूँ। घर में पूछ के बता मेरे वहाँ चार-पाँच दिन रहने से कोई दिक्कत तो नहीं होगी। वो तब तो कुछ ना बोली  पर कुछ घंटे बाद बस ये पूछा, “मेरी भी टिकट है क्या?”

“नहीं…”

उसको साथ ना लाने के बहुत से कारणों में एक तो यह भी था कि अपनी उसी सोच के कारण कि शादी के बाद कोई प्यार व्यार नहीं होगा मुझे कभी… आज तक उसे पूरे मन से अपना नहीं पाया था। पर इस बात से तो मैं खुद अंजान था कि कब उससे प्यार हो गया था मुझे। उसकी गहरी आंखों में ये दिल कब को गया था। कभी उससे मैंने अपने प्यार का इजहार किया ही नहीं।

उसने भी कभी कोई शिकायत नहीं की। 

पर इन पंद्रह दिनों में हर पल उसे याद किया मैंने…  तब समझ आया कि मैं उससे बहुत प्यार करता हूं। 

   ये बसंत का मौसम और उसका मुझसे दूर रहना पहली बार अखरा। वो समय पर सारी जिम्मेदारियाँ निभाती है,  मुझे क्या पसंद है सब जानती है। मेरी हर जरूरत पूरी करती है समय पर नाश्ता – खाना,  मेरे कपड़े,  मेरे घर परिवार और बच्चों का पूरा ध्यान रखती है। मेरे मन की हर बात जान जाती है। 

अभी हवाई जहाज में बैठा हूँ, बस थोड़ी देर और, उसके बाद वही चेहरा देखने के लिए मन व्याकुल हो रहा है जिसे मैं दिन के उजाले में कभी देखना नहीं चाहता था। ऐसा नहीं कि मैंने कभी कोई कमी छोड़ी हो,  उसकी हर जरूरत पूरा करने की कोशिश करता आया हूँ। 

हाँ प्यार हो गया है अब शादी के  बीस साल बाद, मेरे दो बच्चों की माँ से… इस बसंत,  उससे दूर रहने पर। 

जानता हूँ वो मेरी आवाज सुनने के लिए कभी खुद फोन करती रही तो कभी बेटे से करवाती… उसका फोन स्पीकर पर ही रखा रहता है जब बेटा मुझसे बात करता है। 

  “आपको कोई दिक्कत तो नहीं हो रही? खाना खाया… तबियत ठीक है…” बार – बार इन्हीं सवालों से झल्ला जाता था मन,  पर सच कहूं तो उसकी आवाज सुनने के लिए मैं भी बेचैन रहने लगा हूँ। 

वो मेरी आदत में शामिल हो गई है सच कहूं तो पता ही नहीं चला कब उससे प्यार हो गया। अभी कुछ दिन उससे दूर क्या रहा तब जाना कि प्यार क्या होता है। उसके हर सवालों में मेरी फिक्र करना, मेरे कुछ कहने से पहले ही मेरी बात समझ जाना। समझ तो शायद मैं भी जाता था तभी उसके कहने से पहले ही वो हर चीज ला देता था जिसकी उसे जरूरत पड़ेगी।

जीवन के इस पचासवें बसंत ने मुझ में यह कैसा परिवर्तन ला दिया है। एक किशोर कि भांति मैं वेलेंटाइन डे पर अपनी प्रेमिका से मिलने के लिए बेताब हूं।  

वो इंतजार कर रही होगी मेरा,  और लगा रखा होगा अभी कानों में इयर फोन और  शायद सुन रही होगी वही गाना जो सुनती है हमेशा कपड़े आयरन करते समय या घर संभालते समय..  

पिया बसंती रे..  

काहे सताऐ आजा…. 

या सुन रही होगी कोई प्रेम कहानी। 

पता नहीं उससे आज भी अपने मन की बात कह सकूंगा या नहीं कि मुझे तुझसे प्यार है, तेरा रंग रूप सब स्वीकार है। तेरे मन की खूबसूरती से प्यार है। शादी के बीस साल बाद इस प्यार का एहसास हुआ है।

प्लेन लैंड कर चुका था और मैं जल्द से जल्द घर पहुंचने को उतावला हो रहा था। टैक्सी पकड़ी और अपने मोबाइल ओन किया तो देखा उसका मिस कॉल था। मैंने फोन लगाया उसकी हेलो… कैसे हैं आप कब तक पहुंच रहें हैं…

सुनते ही आई लव यू सुधा… मिस यू टू मच… आधे घंटे में पहुंच जाऊंगा घर… इतना कहकर मैंने फोन रख तो दिया पर दिल की धड़कनें तेज हो उठी थीं। रेड लाइट पर जैसे ही टैक्सी रुकी तो एक लड़का गुलाब और गजरे लिए खिड़की के पास आ गया तो मैंने एक लाल गुलाब और एक मोंगरे के फूलों का गजरा लिया अपनी सुधा के लिए।

शादी के बीस साल बाद पहली बार अपनी पत्नी के लिए फूल और गजरे ले रहा था। आखिर प्यार जो हो गया था उससे बेइंतहा।