Hindi Kahani: सर्दियों की गुनगुनी धूप किसे अच्छी नहीं लगती? और मेरा तो अक्सर घंटों इस धूप में बैठने को मन होता था ।
पर ढेर सारी जिम्मेदारियों और कामकाज के चलते कभी इसका ज्यादा लुत्फ उठा ही नहीं पाई।
पर अकसर सामने वाली आंटी को देख कर मन में बहुत जलन होती थी। वो कितने इत्मीनान से घंटो इस गुनगुनी धूप का मजा लेती थी।
नौकर चाय नाश्ता सब उन्हें वहीं लाकर दे दिया करता था ।स्वभाव से वो बहुत प्यारी थी। मुझे वह अच्छी भी बहुत लगती थी । पर उनकी जिंदगी से कभी कभी अपनी जिंदगी की तुलना करती तो ईषया आ ही जाती थी।
वैसे भी ईषया जैसी भावना से पार पाना कहां आसान होता है।
पर जब भी मेरी उनसे बात होती वो अक्सर कहती ‘कितनी खूबसूरत है तुम्हारी जिंदगी, हमेशा व्यस्त रहती हो घर में अक्सर सब तुम्हें ही पुकारते रहते हैं ।’
और मैं मुस्कुरा कर कहती ।’हां वो तो है’ ।
वैसे मुझे अपनी व्यस्तता से कोई शिकायत नहीं थी। पर सामने वाली आंटी की फुर्सते मुझे बहुत लुभाती थी।
परंतु वो मुझे अक्सर कहा करती थी।’बेटा ये गुनगुनी धूप कभी कभी बहुत चुभती हैं ‘
। लेकिन मुझे उनकी ये बात कभी भी समझ नहीं आई ।
उनका इकलौता बेटा विदेश में नौकरी करता थाअंकल भी अपने व्यवसाय में व्यस्त रहते थे। बड़ा खूबसूरत सा घर नौकरों की भीड़ सारी सुख सुविधाएं थी।
उनके पास।
मुझे लगता था इससे भी खूबसूरत क्या जिंदगी हो सकती है?
फिर वक्त पंख लगाकर उड़ा सास ससुर अपनी उम्र के साथ चल बसे ।
फिर सारी दुनिया बेटे के आसपास सिमट गई पति का व्यवसाय बहुत बढ़ गया ,वह भी ज्यादातर समय बाहर रहने लगे। और फिर एक दिन बेटे का भी स्कूल पूरा हो गया।
और उसे बहुत अच्छा कॉलेज मिल गया।
बड़ी खुशी के साथ उसे कॉलेज छोड़ने गए ।
पर जब उसे कॉलेज छोड़ कर आई तब पता चला घर में अकेले रहना क्या होता है।
सुबह सुबह उठकर धूप में बैठी ही थी ।
तभी कामवाली बाई जी ने लाकर चाय पकड़ा दी। अकेले बैठे जैसे ही चाय का पहला घूंट पिया।
तभी महसूस हुआ की गुनगुनी धूप अचानक इतनी जोर से चुभ क्यों रही है ?
और आंटी की बात याद आ गई ‘बेटा कभी कभी गुनगुनी धूप बहुत चुभती है ।’
सच में हमारी सारी जिंदगी फुर्सतो के इंतजार में निकल जाती है। और जब ये फुर्सत मिलती है।
तब पता चलता है इससे कहीं ज्यादा खूबसूरत तो जिंदगी की भागदौड़ थी।
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