मेरी प्रिया-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Love Stories in Hindi
Meri Priya

Love Stories in Hindi: गगन एक मध्यम वर्गीय परिवार का लड़का था। पढ़ाई में बहुत ही होशियार था। इसलिए माता पिता को उससे बहुत सी उम्मीदें थीं। उसके पिता सरकारी दफ्तर में क्लर्क के पद पर आसीन थे। किंतु बेटे की पढ़ाई – लिखाई में उन्होंने कोई कमी नहीं छोड़ी थी।
“बेटा, आज तुम्हारे कॉलेज का पहला दिन है। एक बात हमेशा याद रखना कि तुमने इस इंजीनियरिंग कॉलेज तक पहुंँचने के लिए बहुत मेहनत की है। अब इस मेहनत को बेकार मत होने देना। ध्यान केवल पढ़ाई पर ही लगाना।” गगन के पिता ने कहा।
“आप चिंता ना करें पापा। मैं जानता हूंँ कि आपने कितनी मेहनत की है मुझे यहाँ तक पहुँचाने में। मैं आपको कभी निराश नहीं करूँगा।” गगन ने उनके पैर छूते हुए कहा।
गगन कॉलेज में केवल पढ़ाई पर ही ध्यान देता था। उसका कोई फ्रैंड सर्किल नहीं था। वह सारा दिन या तो लेक्चर अटेंड करता था या कॉलेज लाइब्रेरी में बैठ कर नोट्स तैयार करता था। उसका ध्येय वहीं था जो अर्जुन का था- मछली की आंँख।
एक दिन जब वह लाइब्रेरी में अपने लिए किताबें ढूंढ रहा था तब उसे एक लड़की ने पुकारा, “क्या आप मेरे लिए वो ऊपर रखी पुस्तक निकाल कर दे सकते हैं?”
गगन ने पलट कर देखा तो एक सांवले से रंग की, तीखे नैन नक्श वाली, पतली दुबली लड़की व्हील चेयर पर बैठी थी। गगन कुछ पल के लिए शून्य हो गया।
उस लड़की ने उसकी तंद्रा तोड़ते हुए कहा, “क्या आप…प्लीज़।”
“अरे! हाँ, हाँ, क्यों नहीं। कौन सी वाली?” गगन ने सहज होते हुए कहा।
“वी.पी गोयल की, फिजिक्स की।”
“वैसे यदि आप मेरी सलाह मानें तो इस किताब की जगह सोमवीर दत्त की किताब पढ़िए। सारे कॉन्सेप्ट बहुत अच्छे से समझा रखें हैं।” गगन ने राय देते हुए कहा।
उसने वह किताब उस लड़की को उतार कर दे दी।
“मेरा नाम गगन है….आपका?”
“जी, मेरा नाम प्रिया है। आप प्रथम वर्ष के छात्र हैं?”

“जी हांँ, आप …. अक्सर आती हैं यहांँ?”
“जी। मेरा तो अधिकतर समय यहीं गुज़रता है। प्रिया ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया। दोनों एक ही टेबल पर बैठ नोट्स बनाने लगे।
अब अक्सर गगन और प्रिया लाइब्रेरी में मिलते और साथ ही पढ़ाई करते। गगन प्रिया की पढ़ाई में मदद भी करता था। बातों बातों में दोनों को एक दूसरे के घर के वातावरण के बारे में पता चला। दोनों ही मध्यम वर्गीय परिवार से थे और दोनों के माता पिता को उन से बहुत उम्मीदें थीं। प्रिया की माँ को ग्लूकोमा था, काला मोतिया। जिससे उन्हें अब ना के बराबर ही दिखता था। प्रिया घर जाकर ट्यूशन लेती थी जिससे वो अपने कॉलेज की फीस भर सके। उसके पिता आर्मी से रिटायर सिपाही थे। एक जंगल में उनका एक हाथ नहीं रहा। घर उनकी पेंशन से ही चलता था।

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धीरे-धीरे दोनों एक दूसरे के करीब आने‌ लगे। पर प्यार का एहसास शायद‌ अभी नहीं हुआ था उन्हें। दोनों ने बहुत ही अच्छे अंकों से प्रथम वर्ष उत्तीर्ण किया था।

“बहुत बहुत बधाई हो गगन!” प्रिया ने खुशी व्यक्त करते हुए कहा।

“तुम्हें भी बधाई हो प्रिया!”

इस उपलक्ष्य में गगन प्रिया को बाहर‌ खाने पर ले गया। आज उसने सोच रखा था कि वह प्रिया से अपने दिल की बात कह कर रहेगा।

खाना खाने के बाद जब गगन‌ ने प्रिया को अपने दिल की बात कही तो वह हैरान रह गयी।

“गगन, शायद होश में नहीं हो।‌ तुम इतने समझदार होकर‌ ऐसी बातें कर रहे हो?”

“ऐसा …. क्या कह दिया मैंने प्रिया? क्या तुम…मुझे पसंद नहीं करती? या फिर किसी और को पसंद करती हो? मुझे लगा कि हम दोस्त से कुछ ज़्यादा हैं।”

“गगन? ये क्या कह रहे हो? मैं…. भला किसी और को…क्यों पसंद करुँगी?”

“तो फिर क्या बात है जो तुम्हें रोक रही है? मैं तुम्हें दुनिया की हर खुशी दूंँगा प्रिया।” गगन ने पूछा।

“अपने आप को देखो और मुझे देखो। क्या कहीं से भी मैं तुम्हारे लायक लगती हूंँ? तुम इतने हैंडसम हो, सुशील हो, उज्जवल भविष्य है तुम्हारे सामने। और‌ मैं? अपाहिज, बदसूरत। अंधकारमय भविष्य है मेरा। क्यों अपनी ज़िंदगी खराब करना चाहते हो तुम? मैं सिर्फ तुम पर एक बोझ बनकर रह जाऊंँगी। जिसे उठाना तुम्हारे लिए नामुमकिन हो जाएगा।” प्रिया रोते हुए बोली।

“प्रिया, आज तक मैंने तुम्हारे दिव्यांग होने को तुम्हारे और हमारे बीच की दोस्ती में कभी आने नहीं दिया। बल्कि मुझे तो तुम पर गर्व है कि तुम उन अनगिनत लड़के लड़कियों से बहुत सक्षम हो जिनके पास सब है फिर भी वह अपने लिए रास्ते नहीं चुन पाते। और अंधकारमय भविष्य क्यों होगा तुम्हारा? तुम इतनी होनहार हो। इंजीनियरिंग पूरी होते ही नौकरियों की लाइन लग जाएगी। और रही बात कि मैं हैंडसम हूंँ, तुम सांवली हो, तो प्रिया, मेरी नज़रों से देखो अपने‌ आपको। मेरी नज़रों में तुम दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की हो। तुम…सिर्फ मेरी हो। मेरी प्रिया।” गगन ने उसे अपने आगोश में लेते हुए कहा।

प्रिया गहरी सोच में डूब गयी। कुछ पल बाद सोच के सागर से बाहर निकल कर बोली, “गगन, अभी हमारे सामने तीन साल पड़े हैं। इन तीन सालों में हम दोनों दोस्त रहेंगे। और इंजीनियरिंग खत्म होने के बाद यदि तुम तब भी मुझे अपनाना चाहोगे, तो तुम्हारी प्रिया तुम्हारा इंतज़ार करती नज़र आएगी। किन्तु यदि इन तीन सालों में तुम्हें कोई और पसंद आ जाए या तुम अपना इरादा बदल दो तो मैं तुमसे कोई शिक़ायत नहीं करुंँगी।”

गगन ने हामी भरते हुए कहा,”ठीक है, पर जो‌ कुछ तुमने मेरे लिए कहा वही तुम पर भी लागू होता है।”

दोनों ने तीन साल बहुत मेहनत की। अक्सर लाइब्रेरी में मिलते और पढ़ाई करते। आखरी साल उनका मिलना जुलना कम हो गया। पढ़ाई का बहुत बोझ बढ़ गया था। प्रिया कभी – कभी लाइब्रेरी में नोट्स बनाते हुए गगन‌ का इंतज़ार करती थी। पर गगन नहीं आता था। प्रिया ने अपने मन में इस बात को स्वीकार कर लिया था कि गगन उस दिन, जिस दिन उन दोनों ने हमेशा के लिए एक होना तय किया था, गगन उस दिन नहीं आएगा। प्रिया आहत ज़रुर थी, पर उसे पता था कि इसी में गगन की भलाई है।

आखिरकार वह दिन आ ही गया। गगन उसी रेस्टोरेंट में हाथों में फूलों का गुलदस्ता लिए प्रिया का इंतज़ार कर रहा था। घंटों प्रतीक्षा के बाद भी प्रिया नहीं आई। गगन की आंँखों में आंँसू थे। पर जैसा उन्होंने तय किया था, वह प्रिया से‌ सवाल नहीं कर सकता था।

वह रेस्टोरेंट से निकल ही रहा था कि प्रिया की सखी रुपाली दिखी। गगन‌ ने रुपाली से प्रिया के बारे में पूछा तो उसने बताया, “तुम्हें नहीं पता? प्रिया की माँ का कल देहांत हो गया।”

गगन ने और कुछ नहीं सुना और वह प्रिया के घर‌ की तरफ बढ़ा। वहांँ पहुंँचा तो देखा प्रिया फर्श पर बैठी रो रही थी। उसके सामने उसकी स्वर्गीय मांँ की तस्वीर रखी थी। गगन रोआंसा होकर बोला, “बस…इतना भी भरोसा नहीं था अपने दोस्त पर? खबर तक नहीं की?”

प्रिया ने उसकी तरफ देखा और फूट फूटकर रोने लगी। गगन ने फर्श पर बैठ उसे गले से लगाते हुए सांत्वना दी और फिर सहारा देकर उसे व्हील चेयर पर बैठाया।

“मुझे…लगा…तुम बदल …गये हो। अब नहीं आओगे।” प्रिया रोते हुए बोली।

“पगली….याद नहीं मैंने क्या कहा था? तुम…. सिर्फ मेरी हो…..मेरी प्रिया!!!!”

ये कह गगन और प्रिया एक दूसरे के आगोश में छिप‌ गये।

दो माह बाद दोनों की बहुत अच्छी कम्पनी में नौकरी लग गई।

“प्रिया अब तो पूरी तरह से आ जाओ मेरे जीवन में।” गगन ने उसके होंठों पर अपने होंठ रखते हुए कहा।

“तुम्हें अभी भी कोई संदेह है गगन? मैं पूरी तरह तुम्हारी हूँ।” प्रिया ने दोबारा उसके गीले होंठों पर अपने होंठ रखते हुए कहा।

“ऐसे नहीं प्रिया। मैं तुम्हारी मांग में सिंदूर भर, मंगलसूत्र पहनाकर, फेरे लेकर, तारों को साक्षी मानकर तुम्हें अपना बनाना चाहता हूँ।”

“तो ये बात है। सीधे-सीधे बोलो, प्रिया शादी कर लो मुझसे।” प्रिया ने हंँसते हुए कहा।

गगन ने उसे अपनी बाहों में भर लिया और बोला,
“प्रिया, क्या तुम मुझसे शादी करना चाहोगी?”

“पागल हो तुम! प्रिया तो कब से तन-मन-धन से तुम्हारी हो चुकी है। बस अब तुम इस सूनी मांग को अपने प्यार के रंग से भर दो।” प्रिया ने अपनी बाहों को और कसते हुए कहा।


आखिरकार एक हफ्ते बाद दोनों ने‌ बहुत सहज समारोह में, मंदिर परिसर में अपनी शादी रखी।

फेरों के बाद गगन ने प्रिया को मंगलसूत्र पहनाया और मांग में सिंदूर भरा।

प्रिया नम आँखों से गगन की तरफ देख रही थी। गगन के सिंदूर भरते ही प्रिया के पूरे शरीर में एक अलग ही एहसास दौड़ गया। उसे लगा जैसे सिंदूर की उस हल्की सी लाल रेखा ने उसके और गगन के रिश्ते को हमेशा के लिए एक प्यार भरे बंधन में बांध दिया था। एक ऐसा बंधन जिसे वो दोनों कभी तोड़ना नहीं चाहेंगे।

गगन ने बहुत प्यार से उसके चेहरे को अपने हाथों में भरते हुए कहा, “ये सिंदूर इस बात का साक्षी है कि तुम सिर्फ मेरी हो….मेरी प्रिया। और दुनिया की कोई ताकत इस तथ्य को झुठला नहीं सकती।”

प्रिया के पास शब्द ही नहीं थे। उसने अपने आपको गगन के आगोश में छिपा लिया। और फिर दोनों वहाँ से अपने घर की तरफ चल दिए जहाँ उनके परिवारजन उनका इंतज़ार कर रहे थे।