गर्मी के मौसम में घर की छत—जब मैं छोटा बच्चा था
Garmi ke Mausam mein Ghar ki Chhat

Short Story in Hindi: गर्मी के मौसम में घर की छत पर गद्दा बिछाकर सोया करते थे।
जब मैं 7-8 साल की थी तब तारों को निहारते हुए परिवार के साथ
छत पर सोना आज भी मिस करती हूं। लेकिन इस दौरान बड़ी
मजेदार बात हुई थी जो मैं आज भी याद करके हंसती हूं। छत पर
सोने खुशी-खुशी जाती थी। तब 8.30 बजे लगभग सभी सो जाते थे।
मुझे नींद भी लग जाती थी लेकिन रात के समय मेरी नींद खुलती थी
और एक आवाज़ से मैं बहुत डर जाती थी। उस आवाज को सुनकर
मुझे लगता था कि ये कोई भूत है। वास्तव में रात के समय
सिक्योरिटी वाले सीटी बजाया करते थे। मुझे यह पता नहीं था कि ये
सीटी की आवाज़ है। मैं डरी-सहमी चद्दर ओढ़ कर सोती थी। जब
सिक्योरिटी पुलिस घर के नीचे से गुज़रते थे तो सीटी की आवाज
पास लगती थी और दूर किसी गली में जाते तो सीटी की आवाज
हल्की-हल्की आती। जब तेज आवाज आती तो मुझे लगता था कि
भूत आसपास है और हल्की आवाज आती तो मैं सोचती थी कि भूत
अभी दूर चला गया है। काफी दिन तक डरी हुई इसी तरह सोचती
थी।
अब डर के मारे मैंने छत पर सोने से इनकार किया तो घरवाले पूछने
लगे कि ऐसा क्यों। मैंने फिर भूत वाली बात बताई। तब पापा ने कहा
कि अच्छा अब ऐसी आवाज आए तो मुझे जगा देना। उस रात मैंने

यही किया। पापा को धीरे से चद्दर के अंदर से ही हिलाया और कहा
कि पापा सुनो भूत की आवाज़ आ रही है। पापा ने सुना और जोर-
जोर से हंसने लगे और मुझे गले लगाकर प्यार करने लगे। उन्होंने
मुझे चद्दर से निकाला और गोदी उठाकर नीचे दिखाया कि देखो,
भूत-बूत कुछ नहीं होता है। ये देखो नीचे.. ये तो सिक्योरिटी वाले
अंकल हैं जो रात में सीटी बजाते हैं।
बस तक जाकर मेरा डर खत्म हुआ लेकिन उसके बाद भी उसे आवाज़
से थोड़ा बहुत तो डर लगता ही था।
आज भी पापा से इस बारे में बात करती हूं तो हम दोनों को खूब
हंसी आती है।

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