भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
Gandhi Story for Kids: रुक्को को वे दिन याद हैं। गांधी जी इसी गम्हरिया गांव से होकर पैदल गुजरे थे। पूरे जवार के लोग उनके पीछे-पीछे मीलों चल पड़े थे। सब भारत माता की जय, महात्मा गांधी की जय के नारे लगा रहे थे। रुक्को भी उस भीड़ में शामिल थी और उसका पति धोधा महतो भी। धोधा को लोग सनकी और मनमतंगी समझते थे। लेकिन उस दिन उसने गांधी जी और आजादी के बारे में रुक्को को ढेर सारी बातें बतायी थीं। वह हैरान थी कि यह गोबरगणेश आदमी इतना कैसे जान गया। दुनियादारी से जिसे कोई खास मतलब नहीं उसे गांधी जी और आजादी से इतना मतलब कैसे हो गया?
उसने कहा था, “जानती हो रुक्को, गांधी जी की आवाज में ऐसा जादू है कि वे दिल्ली में बोलते हैं तो हिन्दुस्तान के चारों कोने के लोग सुन लेते हैं। हम तो रात में कई बार सोये हुए भी गांधी जी को सुनने लग जाते हैं। उनकी दुबली-पतली लाठी से अंग्रेजों का पूरा तोपखाना थरथरा जाता है और वे जब आँख तरेर देते हैं तो सात समुन्दर पार का ब्रतानी सिंहासन पसीना-पसीना हो जाता है।”
इसी तरह गांधी जी की लंगोटी, चश्मा, बकरी और आश्रम के बारे में भी उसके पास कई कहानियां थीं। आजादी के बारे में वह कहा करता था कि जब तक फिरंगी नहीं जायेंगे हमें खुद को आदमी में नहीं पशु में गिनना होगा, उस पशु में जिसे मालिक मार देता है और चमड़े उतार कर ढोलक बना लेता है।
वह कहा करता था कि अपने गांव में हम गरीबों की कमर में जो लंगोटी है, वे सब गांधी जी के काते हुए सूत से बनी हैं। अपने घर और गांव में जो बकरियां हैं और गांधी जी के आश्रम में जो बकरी है, ये सभी एक ही खांदान और नस्ल की हैं। गांधी जी ने कहा है कि किसी भी कीमत पर इन बकरियों के दूध अथवा इनके मेंमने अंग्रेज सिपाहियों के जबर्दस्ती करने पर भी नहीं देने हैं।
मूड में आ जाने पर धोधा ये सारी बातें गांव के लोगों को भी सुनाया करता था। लोग सुनकर लुत्फ लेते हुए हंस पड़ते थे और मन ही मन यह मानते थे कि इसका सनकीपन और बढ़ गया है।
एक बार गांव में सचमुच ही अंग्रेज सिपाही आ गये और घर-घर से बकरियों को खोलकर ट्रक में भरने लगे। कहा कि कमिश्नर बहादुर के कुछ मेहमान आये हैं, एक-दो महीने ठहरेंगे, हिन्दुस्तानी बकरे का गोश्त इनकी खास पसंद है। इनकी खातिर उन्हें कई सौ बकरे चाहिए।
धोधा इंतजार कर रहा था कि गांव में कई लोग हैं जो अपने को होशियार, साहसी और मातवर कहते हैं, वे इस बुलडोजरी फरमान और कार्रवाई पर चुप नहीं रहेंगे और सिपाहियों की मुखालफत करके मुंहतोड़ जवाब देंगे। लेकिन आश्चर्य कि सभी फन्ने खां दुम दबाकर भीगी बिल्ली बने रह गये। तब जाकर धोधा, जो बुड़बक और सनकी समझा जाता था, बेबर्दाश्त होकर अपनी बकरी देने के खिलाफ अड़ गया।
उसने ललकारते हुए कहा, “तुम्हारे कमिश्नर बहादुर के गोश्तखोर मेहमानों की खास पसंद हिन्दुस्तानी इंसानों का गोश्त होता तो क्या हम सबको ले जाकर काट डालते? ये बकरे-बकरियां तुम्हारे हाकिम की जीभ का जायका-फेरन हो सकती हैं लेकिन हमारे लिए आजीविका के स्रोत हैं। हम छोटे लोग जो गाय-भैंस नहीं रख सकते, दूध के लिए इन्हीं पर आश्रित हैं। जाकर कह देना अपने हाकिम को कि हम एक भी छागल यहां से जाने नहीं देंगे। वे ऐसा न समझें कि हम असहाय और बुड़बक हैं। गांधी जी भले यहां दिखाई नहीं पड़ते, लेकिन वे यहां हैं, इसे याद रखना।”
सिपाहियों ने बिना कोई जवाब दिये तडातड धोधा पर लाठियां बरसा दीं। चाहिए था कि पूरा गांव इस कार्रवाई पर तनकर खड़ा हो जाता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दो-चार लोगों ने जबड़े कसे भी, जो संख्या कम होने की वजह से नाहक पिट जाने के भय से आगे नहीं बढ़ पाये। सिपाही धोधा को धराशायी कर उसके घर घुस गये और पांच-छह बकरे-बकरियां खोल ले गये। आधे घंटे बाद जब वे ट्रक भरकर ले जाने लगे तो गांव के सीवान के पास धुआंधार रोड़ेबाजी होने लगी। सिपाही अचानक हुए इस हमले से सकते में आ गये और जब तक वे फायरिंग शुरू करते तब तक ट्रक के शीशे चकनाचूर हो गये थे तथा ड्राइवर और कई सिपाही बुरी तरह जख्मी हो चुके थे।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’