Hindi Kahani: आंखों में बसे आंसू टीवी पर चलती खबर को धुंधला रहे थे। टी वी देखने से लगता था मानो कोई बहुत बड़ा समारोह चल रहा है… आलीशान एकदम राजसी। उसकी आंखों में धीमे से छलकते आंसू थे, बदन पर बहुत ही ज़्यादा महंगी साड़ी, ज़ेवर और हाथों में हीरे मोती के कंगन पहने हुए थे। हथेली में उसके सजी थी एक सिंदूर दानी। वह सिंदूर जिसकी हिमानी ने कभी कोई कीमत नहीं समझी। जिसको हमेशा उसने सिर्फ़ एक चेहरे की सजावट का हिस्सा समझा। अगर लगाती भी तो सिर्फ़ फैशन के लिए, उसकी कीमत कभी समझी ही नहीं। जब था तब उसने कदर नहीं करी और जब नहीं मिला तब दूसरों की मांग के सिंदूर ने उसको कीमत समझा दी। डबडबाती आंखों में एक साथ कईं सारे चलचित्र चलने लगे…किसी में शेखर दिखता तो किसी में कुंवर जयदीप।
शेखर, जिससे हिमानी ने मां-बाप की मर्ज़ी से शादी की थी। एक बहुत बड़े व्यापारिक समारोह के दौरान दोनों के पिता का मिलना हुआ था और उनकी अच्छी दोस्ती हो गई थी। दोस्ती इस कदर पहुंची के अक्सर घर परिवार में आना जाना होने लगा। एक दिन शेखर के पिता ने प्रस्ताव रखा, “ क्यों दोस्त! कहो तो इस दोस्ती को एक और नाम दें, संबंधी का। तुम्हारी हिमानी और हमारे शेखर की शादी। क्या विचार है तुम्हारा?
हिमानी के पिता की हामी के साथ शेखर और हिमानी की शादी पूरे रीति रिवाज़ और खुशियों के साथ संपन्न हुई थी। शेखर के परिवार का अपना कारोबार ज़रूर था पर वह बहुत बड़े रईस नहीं थे। उनका लेकिन अच्छा घर था, अच्छे खाते पीते लोग थे।
विदा होकर शेखर के घर में अपना पहला कदम रखते ही हिमानी को थोड़ी निराशा हुई क्योंकि वह सोचती थी कि बहुत बड़ा बंगला होगा। धीरे-धीरे बड़ी गाड़ियों की जगह एक बड़ी गाड़ी, नौकरों की फौज की जगह केवल एक नौकर और खाना बनाने वाली दिखीं। हनीमून पर भी अमेरिका या लंदन की जगह वह एक छोटे पास के देश में घूमने गए थे।
यूं तो किसी आम लड़की के लिए वह एक सुखों से भरा परिवार था। मां-बाप जैसे सास ससुर और बहुत ही ध्यान और इज्ज़त देने वाला पति। लेकिन हिमानी को हमेशा कुछ ना कुछ शिकायतें रहती थीं। हर चीज़ के लिए हर बात पर वह अपनी बहुत अमीर बहनों या दोस्तों से बराबरी करके घर वालों का दिल दुखाती। सबसे ज़्यादा जो बात शेखर का दिल दुखाती थी वह था हिमानी का सिंदूर को लेकर ताना मारना। शेखर हमेशा कहता, “ तुम चाहे जो भी कपड़े पहनो कोई फ़र्क नहीं पड़ता। बस अपनी मांग में सिंदूर लगा लिया करो चाहे थोड़ा सा ही मुझे बहुत अच्छा लगता है। सबसे कीमती ज़ेवर लगता है मुझे तुम पर। “हूं एक चुटकी सिंदूर की क्या कीमत। हीरे मोती से इसकी क्या बराबरी। यह सब तुम्हारे महंगे ज़ेवर ना दिलाने के बहाने हैं” हिमानी बहुत ही रूखे तरीके से मुंह बना कर कहती। शेखर शुरू में तो उसे प्यार से समझाता पर धीरे-धीरे उसने कहना बंद कर दिया था। हिमानी के तेवर दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे थे।
एक दिन उसकी सहेली संजना के घर से शादी की पहली सालगिरह का न्यौता आया। जश्न पहाड़ों पर एक महंगे और बड़े रिसोर्ट में था। हिमानी वहां की शान शौकत देखकर दंग रह गई। उसका मन बहुत बेचैन हो रहा था साथ में कुछ जलन भी थी। वह टेबल पर बैठकर अपना खाना खा रही थी कि एक आवाज़ आई, “ हैलो!” हिमानी ने गर्दन उठा कर देखा तो एक बहुत ही खूबसूरत आदमी उसके सामने खड़ा था। महंगे कपड़े, जूते और घड़ी देखकर हिमानी समझ गई थी कि वह बहुत ही अमीर आदमी है। उसने सकपका कर जवाब दिया, “ जी.. हेलो! आप..?” तभी उसकी सहेली संजना ने उस आदमी का परिचय कराया, “ इनसे मिलो हिमानी, इन पहाड़ों के राजा कुंवर जयदीप। आसपास के कईं एकड़ की ज़मीन, कईं रिसॉर्ट और व्यापारों के मालिक हैं। आप लोग बात करिए मैं अभी आती हूं।” कहकर संजना वहां से चली गई।
कुंवर बहुत शायराना अंदाज़ में हिमानी की तारीफ़ करता है, “ आप बहुत खूबसूरत हैं। पूरी पार्टी में सिर्फ़ एक आप ही दिख रही हैं।” हिमानी मुस्कुरा का धन्यवाद कहती है लेकिन मन ही मन में कुंवर की शान और खूबसूरती की तरफ़ आकर्षित हो रही थी। कुंवर उससे बात करने लग जाता है। हिमानी भी उसका साथ पसंद कर रही थी। कुंवर हिमानी को अपने साथ नाचने के लिए कहता है और दोनों हाथ पकड़ कर बहुत देर तक एक दूसरे के साथ नाचते हैं। बातों बातों में दोनों अपना फ़ोन नंबर एक दूसरे को देते हैं। इसी तरह से बातों का और फिर मिलने का सिलसिला शुरू होता है।
हिमानी को घर में किसी तरह की रोकटोक तो थी नहीं इसलिए वह जब चाहे कुंवर से मिलने चली जाती थी। कुंवर हर बार बड़ी गाड़ी में उसे महंगी जगह ले जाता और महंगे तोहफ़े दिलाता। कितना भी खर्चा हो, कुंवर पैसे निकालते वक्त एक पल के लिए भी नहीं सोचता। उसकी रईसी पर तो हिमानी पहले से फ़िदा थी पर अब उसका लालच ज़िद बनता जा रहा था। शेखर का सबसे पसंदीदा गहना- एक चुटकी सिंदूर तो उसने कब का पहनना छोड़ दिया था लेकिन अब उसको शेखर का साथ भी अखरता था। वो घर में सबसे अलग रहने लगी थी।
एक दिन शेखर के लिए एक चिट्ठी छोड़कर वह कुंवर के साथ उसके घर में आ गई जो कुंवर ने उसके लिए लिया था। पैसे के पीछे इतनी मंत्रमुग्ध हो गई थी एक परिवार वाले शादीशुदा आदमी के साथ के लिए अपनी हसीन दुनिया पीछे छोड़ आई थी। शुरू में तो कुंवर उसके ही साथ रहता था और सिर्फ़ कारोबार के काम से बाहर जाता था। धीरे-धीरे उसके घंटों की अवधि हिमानी के पास घटने लगी। हिमानी को लगा के कारोबार की वजह से वह वक्त नहीं दे पा रहा है।
एक दिन जब वह कुछ काम से बड़े बाज़ार गई तो वहां पास के मंदिर में उसने कुंवर को अपनी पत्नी और बच्चों के साथ खुश होकर जाते हुए देखा। हिमानी घर वापस आई। गुस्से और जलन की वजह से रोने लगी। कुंवर के आने पर वह नाराज़ हुई, “ तुम अपने परिवार के साथ घूम रहे थे। मेरे लिए तुम्हारा वक्त कम हो गया है। ना मेरे साथ रहते हो और ना ही अब हम कहीं घूमने जाते हैं। तुमने मुझे धोखा दिया है।” फालतू की बातें बंद करो” कुंवर ज़ोर से बोला “मीनाक्षी मेरी शादीशुदा पत्नी है मेरे मां-बाप की बहू। अपने सामाजिक और पारिवारिक समारोह और पूजा में उनके साथ ही जाऊंगा ना या तुम्हारे साथ। मैं तुमसे प्यार ज़रूर करता हूं पर वो मेरा परिवार है। समाज में तो मुझे उनके साथ ही रहना है। आज भी मैं अपनी पत्नी के साथ पंडित जी से मिलने गया था अपने परिवार की कुलदेवी की पूजा के लिए। अब आज के बाद मुझसे इस बारे में कोई बात मत करना।” कुंवर बोल कर वहां से चला जाता है। हिमानी अब उस घर में एक तरीके से सोने के पिंजरे में कैद रहने लगी थी। पीछे जाने के सारे रास्ते वह अपने आप बंद कर आई थी।
एक दिन जब वह अपने कमरे में सोफ़े पर बैठी किताब पढ़ रही थी तो घर की नौकरानी ने बताया, “मालकिन कुंवर जी के पिता का निधन हो गया है। वहां रस्में हो रही हैं” “ओह! मैं वहां जाती हूं” हिमानी उठते उठते बोली। “ कोई ज़रूरत नहीं”… दरवाज़े से आई आवाज़ की तरफ़ हिमानी ने देखा तो कुंवर की मां खड़ी थीं। “मांजी.. आप!” कहते हुए हिमानी उनके पैर छूने के लिए बढ़ी ही थी कि उन्होंने हाथ के इशारे से मना कर दिया। “एक बात समझ लो मैं यहां तुमसे मिलने नहीं समझाने आई हूं। बहुत मनमानी कर ली तुमने। कुंवर का कुछ दिनों में राज तिलक है। उसकी ज़िम्मेदारी यह रियासत और परिवार है। उसने तुम्हें घर दिया और जिसके लालच पर तुम यहां आईं, वो पैसा भी तुम्हें मिलता रहेगा लेकिन उसकी ज़िंदगी से अब तुम दूर रहो। वह एक आदरणीय समाज में रहता है जहां उस पत्नी की इज्ज़त होती है जो एक चुटकी सिंदूर की कीमत समझती है न की तुम्हारे जैसी औरत जिसे सिंदूर के अलावा हर चीज़ की कीमत समझ आती है।”कहते हुए वह नौकरानी के हाथों हिमानी की हथेली पर एक सिंदूरदानी रखवा देती हैं।
सुनते ही हिमानी टूटी हुई सी सोफ़े पर बैठ जाती है। एक-एक करके शेखर और उसके मां-बाप का प्यार, सम्मान उसे सब याद आने लगता है। कुछ भी कहीं भी हो हिमानी को सबसे आगे रखा जाता था। सबसे बहुत तारीफों के साथ मिलवाया जाता था। छोटी जगह ही सही लेकिन शेखर उसे कहीं ना कहीं घुमाने अक्सर ले जाता था। जहां भी जाते कुछ ना कुछ उसे दिलवाता। उसकी पढ़ाई और काबलियत को समझते हुए शेखर और उसके पिता हिमानी से हमेशा घर के बिज़नेस से जुड़ने के लिए कहते थे……
उसको सोचता छोड़ नौकरानी कैमरा बंद कर चली जाती है और हिमानी धुंधली आंखों से हाथों में सिंदूर दानी लिए टीवी की तरफ देखती रह जाती है।
