डुंगर को नहलाया-21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियां गुजरात: Moral Story
Dungar ko Nahalaaya

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

Moral Story: अरावली पर्वतमाला के डुंगर के बीच में वनवासियों के छोटे-छोटे गांव थे। वे गांव भी कैसे बिखरे-बिखरे से थे।

दो-चार झोंपड़ियां इधर तो दो-चार झोंपड़ियां उधर।

हर एक के खेत में घर, उसके इर्द-गिर्द में अपने पशुओं को पालने की जगह, एक कुंआ, भेड़-बकरियों का बाड़ा होता था। ऐसे वनवासियों के गांव की यह बात है। गांव का नाम था हडाद। इस गांव में दो मित्र रहते थे।

एक का नाम सवजी था और दूसरे का नाम कानजी था। प्राथमिक शाला में साथ पढ़ने के बाद कानजी खेत में लग गया था। जब कि सवजी को उसके पिताजी ने आश्रमशाला में भेजा था। चार-पांच साल आश्रमशाला में पढ़ने के बाद एक बार वह छुट्टियों में अपने घर आया था। उस वक्त उसकी मां ने कहा था. “सवजी, देवी मां की देरी पर दिया जलाकर भोग चढ़ा आ।” देवी मां की देरी कानजी के घर से थोड़ी दूरी पर पहाड़ी पर थी। सवजी को कानजी रास्ते में मिल गया।

दोनों मित्र पहाड़ी पर चढ़ने लगे, रास्ता बहुत कठिन था। दोनों मित्र संभल-संभलकर चढ़ते थे।

सवजी और कानजी ने देवी मां की देरी पर आकर दिया जलाया। साथ में लाया प्रसाद भी चढ़ाया।

दोनों मित्र बहुत थक गए थे। देवी मां की देरी पर्वत की चोटी पर थी। इसलिए शीतल पवन आ रहा था। उन दोनों की थकान इस शीतल पवन की वजह से दूर हो गई। थोड़ी देर में अंधेरा छाने लगा। हरे-हरे वृक्ष डरावने लगने लगे। सवजी ने कानजी को कहा, “कानजी, चल हम जल्द ही नीचे उतर जाए।”

दोनों मित्र नीचे उतरने लगे। उस वक्त थोड़ा प्रकाश दिखाई दिया।

“कानजी, देख कोई हमें ढूंढने के लिए आ रहा है।” सवजी ने कहा।

“नहीं, नहीं दोस्त, मुझे तो जंगल में आग लगी हुई लगती है” “कानजी ने कहा।

“नहीं, कोई मशाल लेकर अपनी ओर आ रहा है, चल हम उस ओर जाए” सवजी ने कहा।

दोनों दूर दिखती आग की ओर चले। थोड़ा चलने पर देखा तो वहां कोई नहीं था। पेड़ जलते थे।

“कानजी, ये पेड़ किसने जलाएं होंगे?” सवजी ने पूछा

“क्या पता?”

“यह पेड़ ही तो हमारा जीवन है। हमारे भेड़-बकरें को इनसे ही चारा मिलता है। इनके लक्कड़ को बेचकर हम चीज वस्तुएं लाते हैं।”

“तेरी बात सही है। तेरे पिता ने तुझे पढ़ने के लिए आश्रमशाला में भेजा इसलिए तू यह सब समझता है। लेकिन गांव वालों को ऐसी समझ नहीं है” कानजी ने कहा।

“तो क्या गांववालों ने ये पेड़ जलाएं हैं?” सवजी ने पूछा।

“हां तो!”

“क्यों?”

“गांव में किसी को संतान नहीं होती हो, किसी को कोई बीमारी पड़ जाए, कोई आपत्ति आ जाती है तो गांव के लोग उसको देवी मां का कोप मानते हैं। फिर डुंगर को नहलाते हैं” कानजी ने कहा।

“डुंगर को नहलाते हैं? वो कैसे? इतना पानी कहां से लातें हैं? सवजी ने पूछा।

“अरे पगले! पानी से नहीं, आग से नहलातें हैं। इससे देवी मां प्रसन्न होती हैं” कानजी ने कहा।

“पर वन की देवी वन का नाश होने से खुश कैसे हो सकती हैं?” -सवजी ने पूछा।

“यह तो मुझे पता नहीं है। लोगों की ऐसी मान्यता है। चल, चल जल्द ही उतर जाए वरना हम आग से घिर जाएंगे” कानजी ने कहा।

“हां, हां चल, इस ओर नहीं, हम उस ओर से जाए। इस ओर तो आग हमारी ओर ही आ रही है” सवजी ने पूछा।

“पवन भी इस ओर है। मुझे तो गर्म भाप जला रही है” सवजी ने कहा।

“अरे! पर इस ओर तो रास्ता ही नहीं है, अब क्या करेंगे?” सवजी ने पूछा।

“जिस ओर से जगह मिले, वहां से चलने की कोशिश करें “कानजी ने कहा।

दोनों मित्र आग से बचने के लिए बड़ी मुश्किल से आगे की ओर चल रहे थे। उस वक्त वहां एक जलता हुआ पेड़ उनके सामने ही गिर पड़ा। अब आगे जाना संभव नहीं था।

“दोस्त, हम आज आग में जल जाएंगे” सवजी ने कहा।

“ना दोस्त, तू घबराना मत। मैं अभी आग को आगे बढ़ने से रोकता हूँ। तू मेरा साथ दे” कानजी ने कहा।

“तू आश्रम में गया, उसके बाद मैंने जंगल के एक पहरेदार से दोस्ती की है। उसने मुझे कहा है कि जब आग आगे बढ़ने लगे तब एक ओर से घास को काटकर साफ करके दूसरी ओर आग लगाने से बुझ जाती है” कानजी ने कहा।

“तूने कभी ऐसा किया है क्या?”

“नहीं, पर आज हमें इस बात को परख लेना चाहिए। तू यह कांटे वगैरह को साफ कर दे। मैं उस ओर से आग लगाता हूँ।”

कानजी और सवजी ने इस तरह उस ओर आग लगाई। इतने में गांववाले आते दिखाई दिए। बड़ा शोर होने लगा।

“देख, यह लोग उस ओर आग बुझाते हैं, हमने सामने से आग लगाई। उससे पवन ने दिशा बदली और आग काबू में आने लगी है” -कानजी ने कहा।

“सवजी, कानजी, तुम इस ओर मत आना। अंगार पड़े हुए हैं” -सवजी ने जोर से चिल्लाते हुए कहा।”

“कानजी बेटा, हम लोग आ रहे हैं, तुम्हें बचा लेंगे।” कानजी के पिताजी ने कहा।

आग धीरे-धीरे काबू में आते ही गांव वालों ने दोनों मित्रों को बचा लिया। सभी की आंखों में हर्ष के आंसू आने लगे। तब सवजी ने कहा, “मां, मैं तुझे और गांव वालों को एक बात कहना चाहता हूँ। हमें अपने छोटे से स्वार्थ के लिए ऐसी मन्नतें नहीं माननी चाहिए। इससे वन की देवी कोपायमान होती है। हम तो जंगली संतान है। यह पहाड़ हमें कितना कुछ देता है। टीमरु के पान, गौंद, गूगल, मध, केसूड़े-सब कुछ ही तो देता है। इन पेड़ के पत्तों से हमारे भेड़-बकरें को चारा मिलता है। उसका लक्कड़ बेचकर हम अपना गुजारा करते हैं।”

सबको सवजी की बात सच्ची लगी। सबने प्रतिज्ञा ली कि हम अब आगे कभी-भी डुंगर को नहीं नहलाएंगे। फिर से बारिश होने पर जंगल हरा-भरा हो गया। पेड़ पर रंग-बिरंगे फूल खिल उठे। पंछी चहकने लगे। सवजी और कानजी की बात गांव वालों के मन में बस गई।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’

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