एक राजा था। उसके दरबार में एक दिन साधु के वेश में एक ठग पहुँचा, राजा ने उसके झांसे में आकर उसे अपने दरबार में राज ज्योतिषी नियुक्त कर दिया। उसके बुद्धिमान मंत्री ने विरोध भी किया, लेकिन राजा ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। एक बार राजा को सूचना मिली कि पड़ोसी राजा उस पर आक्रमण करने की योजना बना रहा है। उसने राज ज्योतिषी को बुलाकर इस विपत्ति का हल पूछा। वह बोला कि एक टन कोयला मंगाकर उसे जलाया जाए, उससे जितने वजन का धुआं उत्पन्न हो, उसके बराबर लोहा मंगाया जाए। इससे वह एक दिव्यास्त्र का निर्माण करेगा, जिससे शत्रु का नामोनिशान मिट जाएगा।
राजा और उसके सब सहयोगी इस अजीबोगरीब शर्त को सुनकर बहुत चकराए। तभी मंत्री बोला कि मैं कोयला मंगाकर धुएं का वजन करके बताता हूँ। उसने कोयला मँगाया और उसे जला दिया। पूरा जल जाने के बाद जो राख बची, उसने उसका वजन करवाया और ज्योतिषी को बताया कि जितना वजन कम हुआ है, वही धुएं का वजन है। अब ठग ज्योतिषी बुरी तरह फँस गया।
मंत्री ने उसकी मनोदशा को भाँप लिया और बोला कि यदि ज्योतिषीजी दिव्यास्त्र नहीं बना सकते तो एक और उपाय है। राजा ने उसे उपाय बताने के लिए कहा। मंत्री बोला कि यदि राजज्योतिषीजी एक जलता हुआ कोयला अपने हाथ पर रख लें और उसे राख बनने तक वहीं रहने दें तो राज्य की ग्रह दशा सुधर सकती है। ज्योतिषी राजा के पैरों पर गिर पड़ा। लेकिन राजा ने उसे क्षमा नहीं किया और कारागार में डलवा दिया।
सारः धोखे से पाई गई कोई स्थिति बहुत ज्यादा दिनों तक साथ नहीं रहती।
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