dani nirala ji
dani nirala ji

इलाहाबाद के किसी मार्ग से निराला जी इक्के पर सवार होकर जा रहे थे। रास्ते में एक बुढ़िया ने देखा तो बहुत आशा में कहा, “बेटवा! अपनी अम्मा का कछु दे देतेव!”

निराला जी ने इक्का रुकवाया, उस बुढ़िया के पास गये। उन्होंने गुस्से में कहा, “निराला की माँ होकर तुझे भीख माँगते शरम नहीं आती। “बुढ़िया चुप, क्या कहती?

निराला ने कहा, “अगर मैं एक रुपया दूं तो कितने दिन भीख नहीं माँगेगी?” बुढ़िया ने कहा, “एक दिन”

“यह चौंसठ रुपये रख। जब खत्म हो जाएं तो दरियागंज चली आना और रुपये ले जाना”

निराला जी ने उस बुढ़िया के चरण छुए, रुपये दिये और इक्केवाले से कहा, “अब चलो महादेवी के घर अशोक नगर। वहीं तुम्हें किराया मिलेगा।”

वे महादेवी के घर आये और उन्होंने इक्केवाले को किराया दिलवाया। बुढ़िया को दी गयी राशि निरालाजी ‘बेहद जरूरी’ बताकर अपने प्रकाशक से लाये थे।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)