अपमान-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Apmaan Story
Apmaan

Apmaan Story: बात पिछले महीने की है बाहर से कुछ समान लाना था मै घर से बाहर निकली बाजार जा ही रही थी कि रास्ते में याद आया कि विवेक भाई साहब का घर है दो मिनट उनके घर भी हो लूँ बस विचार आया और मैं पहुँच गई उनके घर, दरवाजा खटखटाना शुरू ही किया कि भाई साहब खोल दिया मुझे देख बड़े खुश हुए मैने भी मिठाई का डिब्बा उनको दिया और उनके गेस्ट रूम में जा बैठी। जिस वक्त घर में मैं बैठी ही थी,  उसी समय उनकी नौकरानी घर की सफाई कर रही थी। मैं ड्राइंग रूम में बैठी थी,  विवेक फोन पर किसी से बात कर रहे थे। उनकी पत्नी चाय बना रही थीं। मेरी नज़र सामने वाले कमरे तक गई, जहां मेड फर्श पर पोछा लगा रही थी। 

अचानक मेरे कानों में आवाज़ आई। 

“बुढ़िया अभी ज़मीन पर पोछा लगा है, नीचे पांव मत उतारना। मैं बार-बार यही नहीं करती रहूंगी।” तंग आ गई हूँ तुमसे रोज रोज घर गन्दा कर देती हो

मैंने भाई साहब  से पूछा, “मां कमरे में हैं क्या? 

गाँव से यहीं ले आयें हैं क्या

ठीक कियें वहाँ किसके सहारे रहतीं भला, 

भाई साहब बोले हाँ माँ अब यहीं रहतीं हैं हम लोगों के साथ|

“जब तक चाय बन रही है, मैं मां से मिल लेती हूं।” 

भाई साहब बोले .. 

“हां, हां। लेकिन रुकिए, अभी-अभी शायद पोछा लगा है, सूख जाए,फिर जाइएगा।” 

मैंने बड़ी हैरानी से पूछा 

“क्यों? गीला है तो नौकरानी दुबारा से लगाएगी। नहीं लगाएगी तो थोड़े निशान रह जाएंगे फर्श पर। क्या फर्क पड़ेगा?” 

भाई साहब थोड़ा हैरान हुए शायद मेरी बातों को सुनकर लेकिन मैं भी कहाँ मानने वाली थी वो कुछ बोलें उसके पहले मैं कमरे में चली गयी थी। गीले पर्श पर पांव के खूब निशान बनाती हुई। 

मैं मां के पास गयी। मैंने उनके पांव छुए और फिर उनसे कहा कि चलिए आप भी ड्राइंग रूम में, वहां साथ बैठ कर चाय पीते हैं। चाय बन रही है। भाभी रसोई में चाय बना रही हैं। 

मैंने इतना ही कहा था। मां एकदम घबरा गईं। 

“अरे नहीं , अभी फर्श पर पांव नहीं रखना है। फर्श गीला है न, मेरे पांव के निशान पड़ जाएंगे।”

“पांव के निशान पड़ जाएंगे? वाह! फिर तो मैं उनकी तस्वीर उतार कर बड़ा करवा कर फ्रेम में लगाऊंगी। आप चलिए तो सही।”

पर मां बिस्तर से नीचे नहीं उतर रही थीं। उन्होंने कहा कि तुम चाय पी लो बेटी।

तब तक भाई  साहब भी माँ के कमरे तक आ गए थे। 

उन्होंने मुझसे कहा कि मां सुबह चाय पी चुकी है। आप आइए गुड़िया ।

“नहीं। मां के साथ मैं यहीं कमरे में चाय लूंगी।”

चमकते हुए टाइल्स पर मेरे जूते के निशान बयां कर रहे थे कि मैंने जानबूझ कर कुछ निशान छोड़े हैं। वो समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर मैंने ऐसा किया ही क्यों?

उन्होंने मुझसे तो कुछ नहीं कहा, लेकिन मेड को उन्होंने आवाज़ दी। “बबिता, जरा इधर आना। इधर गुड़िया जी के पांव के निशान पड़ गए हैं, उन्हें साफ कर देना।” 

बबीता ने गीला पोछा फर्श पर लगाया। जैसे ही फर्श की दुबारा सफाई हुई मैं फिर खड़ी होकर उस पर चल पड़ी। दुबारा निशान पड़ गए। 

अब बबिता हैरान थी। और साथ में भाई साहब भी। तब तक उनकी भाभी भी कमरे में आ चुकी थीं।

भाभी बोली , ” दीदी, आइए चाय रखी है पी लीजिये बहुत दिनों बाद आप आयीं अच्छा लगा आप आते रहा करिये।” 

मैंने भाभी से कहा कि ‘बुढ़िया’ के लिए चाय यहीं दे दीजिए।

भाभी ने मेरी ओर देखा। 

और चौक कर भाई साहब की तरफ भी

मैंने कहा कि हैरान मत होइए। 

वो चुप थे। 

मैंने कहा कि मुझे ऐसा लगता है कि आप लोग मां को प्यार से बुढ़िया बुलाते हैं। 

नौकरानी वहीं खड़ी थी। सन्न। भाई साहब और भाभी भी वहीं खड़ी थी, सन्न। 

भाई साहब बोले, “क्या हुआ गुड़िया?”

ऐसा क्यों बोल रहीं हैं आप

मैंने कहा भाई साहब हुआ कुछ नहीं। मैंने खुद सुना है कि आपकी बबिता मां को बुढ़िया कह कर बुला रही थी। उसने मां को बिस्तर से उतरने से धमकाया भी था। यकीनन काम वाली ने मां को बुढ़िया पहली बार नहीं कहा होगा। बल्कि वो कह भी नहीं सकती उन्हें बुढ़िया। उसने सुना होगा। बेटे के मुंह से। बहू के मुंह से। बिना सुने वो नहीं कह सकती थी। 

जाहिर है आप लोग प्यार से मां को इसी नाम से बुलाते होगे, तभी तो उनसे कहा।

सच कह रहीं हूँ न भाई साहब

पल भर के लिए धरती हिलने लगी थी। गीले फर्श पर हज़ारों निशान उभर आए थे। 

भाई साहब के भाभी को डाटने लगे बोले तुमने कहा होगा।  उनका छोटा बच्चा भी वहीं खेल रहा था।

बुढ़िया रो रही थी। बहू की आंखें झुकी हुई थीं। बबिता चुप थी। 

गुड़िया, गलती हो गई। अब नहीं होगा ऐसा। बहुत बड़ी भूल थी मेरी, 

मैं चल पड़ी बिना चाय पिये। सिर्फ इतना कह कर कि आँखें ही पोंछनी चाहिए। उस फर्श को तो चूम लेना चाहिए जहां मां के पांव के निशान पड़े हों।

जिस घर में माँ का अपमान हो वहाँ ईश्वर का अपमान होता है भाई साहब, आप तो सगे बेटे हैं पैदा किया हैं उन्होंने आपको कैसे आप बर्दास्त कर लेते हैं आपकी माँ को बुढ़िया बुलाते हुए..