छलावा-21 श्रेष्ठ नारीमन की कहानियां चंडीगढ़
Chalava-Nariman ki Kahaniya

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

एयरपोर्ट पर पिंकी और हैपी दोनों लेने आये थे। सिया और अनुज दोनों चुपचाप उनके साथ कार में बैठ घर चल दिये। आलीशान कोठी थी उनकी। सिया ने देखा, कमल का कमरा सुंदरता से सजा हुआ था। हैंगर में कपड़े सलीके से टंगे हुए थे, बिस्तर की चादर सिलवटों रहित, वाशबेसिन चमक रहा था। लग रहा था, किसी भी क्षण कमल कमरे में आता ही होगा। सिया पिंकी का हाथ पकड़ चुपचाप ड्राइंग रूम में बैठ गई। उसके पास शब्द ही नहीं थे। पिंकी हंस-हंस कर बातें कर रही थी। चेहरे पर कहीं से कहीं तक दु:ख की छाया भी नहीं थी। सिया चकित थी और भयभीत भी। पिंकी कितनी उत्फुल्ल और ऊर्जावन लग रही थी। टॉमबॉय तो वह शुरू से ही थी, सो उसी अंदाज़ में ऊंचे-ऊंचे हाथ घुमाकर कह रही थी, “सिया मैंने सारा खाना कमल की पसंद का बनाया था उस दिन। जब उसकी बाडी आई इतना सोणा लग रहा था तुझे क्या बताऊं, सोच रही थी, कहीं मेरी नज़र न लग जाये उसे! लेटा हुआ लाल टी शर्ट में जंच रहा था!”

सिया का दिल रो उठा। उसकी सहेली कहीं अपना मानसिक संतुलन तों नहीं खो बैठी है!

सिया ने सोचा था, वह पिंकी के आंसू पोछेगी, अपने अंक में भर लेगी, लेकिन पिंकी ने तो अपनी अलग ही दुनिया बसा ली है। कह रही है-

“सिया, कमल न मेरे अंदर समा गया है। बड़ा खुश है, बिलकुल सुरक्षित, मुझमें ही रहता है हर दम। अब उसे कुछ हो ही नहीं सकता!”

सिया चुप। क्या कहे, कैसे समझायें अपनी बहन से बढ़कर सहेली को। कमल के जाने के तीन महीने बाद वे सैन्फ्रांसिस्को से ओटावा पहुंचे है। सैन्फ्रांसिस्को वे अपनी छोटी बेटी पूजा से मिलने आये थे। अब सप्ताह भर हैपी और पिंकी के साथ रहेंगे।

कमल! कमल! पिंकी की हर बात उसी से शुरु होती है और उसी पर खत्म। लेकिन उसकी आंख में एक आंसू भी नहीं तैरा है, सिया देख रही है। पिंकी की यह हालत देख कर सिया चिंतित है।

आज जब पिंकी काम पर गयी, तो सिया ने हैपी से पूछा,

‘हैपी, पिंकी को क्या हो गया है?

यह असामान्य नहीं लगता? पिंकी कभी रोती नहीं है?”

हैपी ने बताया, वह रात में रोती है अकेले। दीवार की तरफ मुंह करके। दिन में किसी के सामने एक आंसू नहीं बहाया है इसने अब तक। अपने दुःख में मुझे भी शामिल नहीं करती। सारा दोष मेरा ही मानती है। कहती है,

“तू कमल को कुछ करने को ना कहता तो आज यह दिन न देखना पड़ता।”

पिंकी ने कमल के जाने के दिन हैपी की कमीज़ खींच कर कहा था,

“हैपी तुमने मेरे बेटे की जान ले ली!

बैठा हुआ तुम्हें चुभ रहा था!

पैसे की कमी थी हमारे पास?

तुमसे मांग रहा था? मैं बैठ कर खिलाती। मैं उसे जिन्दगी भर खिला सकती थी। हैपी तुमने यह क्या किया!”

हैपी क्या जवाब दे।

सेना में ब्रिगेडियर के पद से रिटायर हुआ है। मर्द है और फिर सेना का जवान! हर हाल में फौलाद बने रहने की ट्रेनिंग ली हुई है। रो भी नहीं सकता!

उसने तो बेटे की भलाई चाही थी। 2008 के मंदी के दौर में लेऑफ हो गया था बेटा भी। कुछ समय इधर-उधर नौकरी की कोशिश की, फिर थक-हार कर घर बैठ गया।

माता-पिता दोनों कमाते थे, शानदार कोठी थी, किसी बात की चिंता न थी। पिता यूनिवर्सिटी में पढ़ा रहे थे। रिटायरमेंट के कुछ साल बाद ओटावा आये थे। सेना से अच्छी पेंशन मिलती थी।

पिंकी ने शादी के पहले ही मास मीडिया में मास्टर्स और पी.एच.डी. की हुई थी। सुंदर, हंसमुख थी। हैपी सेना में, छः फुटा नौजवान, खुशमिजाज, ज़िन्दगी को हर पल जीने वाला। दोनों की जोड़ी जो देखता, बलाए लेता।

लेकिन हमेशा सब कुछ अच्छा ही नहीं होता। शादी के बहुत साल बाद तक कोई बच्चा नहीं हुआ। मन में दुःख छुपाये हंसते रहते दोनो।

उन्हीं दिनों अनुज की पोस्टिंग जोरहाट में हुई थी। वह चंडीगढ़ में पढ़ा-लिखा बड़ा हुआ, असम पहुंच गया। तीन बच्चे थे। बड़ी अंजना और बेटा मान को सनावर के स्कूल में डाला था। छोटी वाली पूजा उनके पास जोरहाट के सेना के स्कूल में पढ़ रही थी। वहीं सिया को स्कूल वालों ने हिंदी पढ़ाने के लिए नियुक्त कर लिया था। चंडीगढ़ में आठ महीने स्कूल में पढ़ाने का अनुभव उसके बहुत काम आया था। बी.एड. तो वह थी ही।

सिया को जब अनुज की जोरहाट पोस्टिंग का पता चला था तो चंडीगढ में नई-नई नौकरी छोड़ने के विचार से वह बहुत दु:खी हुई थी। बाद में अनुज ने फोन पर जब बताया था, “पूजा का दाखिला आर्मी स्कूल में हो गया है लेकिन स्कूल वालों का एक आग्रह है कि तुम हिंदी अध्यापिका के रूप में वहां ज्वाईन कर लो, उनके पास हिंदी की शिक्षिका नहीं है।”

वह खुशी से नाच उठी थी।

सिया की वहीं हैपी और पिंकी से दोस्ती हुई थी। उनके ऊपर वाले फ्लैट में ही थे ये लोग। जोरहाट में अंधेरा जल्दी ही हो जाता था। शाम सात बजे तक खाना-पीना खत्म करके इनकी बैठक जम जाती। ताश की बाजी जमती। स्वाइप खेलते, बिना पैसे लगाएं। हैपी और सिया, पिंकी और अनुज पार्टनर बनते। नौ, दस बज जाती। कोई हिलने का नाम ही न लेता। आखिर सिया कहती, “पिंकी तुझे तो कहीं जाना नहीं है। मुझे सुबह उठ कर पढ़ाने जाना है!”

पिंकी का जवाब होता, “अरे बैठों न दीदी। तुम सुबह उठ कर पूजा को तैयार करना, खुद तैयार होना और स्कूल चली जाना। सुबह के खाने की जिम्मेवारी मेरी। मैं सब का खाना बना कर तैयार रखूगी, दोपहर में पजा को भी खिला दंगी। तम बिलकल टेंशन मत लेना दीदी।”

सिया कहती, “सिर्फ खाने की बात नहीं है, मुझे सोना भी है, आराम भी करना है” तब जाकर बैठक उठती।

मनमौजी थी पिंकी। मन की ही करती जब भी प्रशासनिक काम से दोनों के पति दिल्ली हेडक्वाटर जाते, पिंकी कहती, “चलो सिया दीदी पिक्चर देखकर जाते है”

सिया कहती, “कैसे जायेगें पगली! इन कामों के लिए गाड़ी नहीं मिलेगी।”

पिंकी बोलती, “मेरे पास स्कूटी है न!”

और सिया पूजा को गोद में लेकर पीछे बैठ जाती, तीनों पिक्चर देखकर रास्ते भर खाते-पीते लौटते।

दो साल बाद हैपी की पोस्टींग जम्मू हो गई थी और अनुज की दिल्ली। दस-ग्यारह साल बाद हैपी के घर बच्चे के आने की आहट आई थी। नौ महीने बाद पिंकी ने स्वस्थ, सुंदर बेटे को जन्म दिया था। सिया और अनुज उनकी खुशी में शामिल होने जम्मू गये थे। बेटे का नाम रखा था, कमल। उसकी आंखें कमल की तरह ही सुंदर थी।

बस तब से हैपी और पिंकी की दुनिया कमल के आस-पास घूमने लगी थी। खासकर पिंकी ने कमल के लिए सपने बुनने शुरू कर दिये थे। उसकी दिली ख्वाहिश थी, कमल को पढ़ने कनाडा भेजने की, वहीं सैटल करने की। उसकी एक बड़ी बहन पहले ही वैनकूवर में बसी हुई थी। पिंकी ने पैसे बचाने शुरू कर दिये थे।

अपनी पूरी तनख्वाह उसकी पढ़ाई के लिए जमा करने लगी। हैपी मज़ाक में कहता, “ना जी ना! पिंकी के पैसों को मैं छू भी नहीं सकता। उन पर तो पूरा हक कमल का है।”

पढ़ने में होशियार, देखने में खूबसूरत, अच्छी कद-काठी का निकला था बेटा।

पहले अकेले पिंकी गई थी कनाडा। वहां पहले नौकरी खोजी, फिर मकान भी होम लोन पर ले लिया था। सेना के नियम के तहत हैपी रिटायर होने के तीन साल बाद विदेश में सेटल हो सकता था। कनाडा जाकर सबसे पहले उसने यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया। अंग्रेजी में पीएच.डी. करके यूनिवर्सिटी में पढ़ाने लग गया। ज़िन्दगी खूबसूरत थी।

सिया के दोनों बच्चों की शादी में हैपी और पिंकी दिल्ली और चंडीगढ़ आये थे। तीसरी की शादी अमेरिका आकर ही की थी।

सिया और अनुज भी बच्चों से मिलने अमेरिका जाते तो पिंकी के पास ओटावा में हफ्ता लगा कर आते।

कमल ने पढ़ाई पूरी कर अच्छी नौकरी कर ली थी। अब पिंकी और सिया की बातचीत का खास मुद्दा कमल की होने वाली दुल्हन रहती। पिंकी ने सालभर में बेटे की शादी करने का सोच रखा था। दोनों सहेलियाँ ज्यूलरी शॉप के चक्कर लगाती, शादी लायक लड़कियों को नजरों में निकालती।

अचानक दो हजार आठ की आर्थिक मंदी ने स्थितियां बदल दी।

एक दिन कमल को भी पिंक स्लिप मिल गई। मां को चिंता नहीं थी, वैसे भी वह ठहरी मस्तमौला घोर आशावादी! लेकिन पिता ने देखा, नौकरी जाने के बाद कुछ दिन कमल काफी परेशान रहा था। फिर उसकी दोस्ती कुछ गलत लोगों के साथ होने लगी थी। अनुशासित ज़िन्दगी जीने वाला बाप था, इधर-उधर पार्टियों में वक्त जाया करता बेटा, मन को तकलीफ़ दे रहा था। एक दिन कह ही दिया, “बेटा यही वक्त है अपना कैरियर बनाने का, भविष्य सुधारने का। नौकरी छूट गई तो क्या हुआ! कुछ और करों। यों हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहने से क्या बनता है?”

इस बातचीत के बाद कमल बिजनेस करनेवाले कुछ दोस्तों के पास टोरंटो आ गया था। उसके दोस्त सरबजीत के ट्रक चलते थे। उसके साथ ही कुछ काम करने की सोची। जगह-जगह सामान सप्लाई होता था। अमेरिकी सीमा पार से खाने-पीने की चीजें और भी बहुत कुछ साथ में आता-जाता था। शायद ड्रग की तस्करी भी होती थी। लेकिन मां बाप को इतना ही पता था, दोस्त के साथ सामान के सप्लाई का काम कर रहा है. काम अच्छा चल रहा है।

कमल एक दिन सरबजीत के घर खाना खाने गया था। तीन-चार दोस्त साथ थे। सरबजीत के पास कोई फोन आया। किसी पार्टी से पैसों को हिसाब करना था। सरबजीत ने अखाड़ा सिंह को वसूली के लिए जाने का कहा। अखाड़ा सिंह ने अकेले जाने से मना कर दिया तो सरबजीत ने कमल से साथ जाने का कहा। कमल तुरंत जाने को तैयार हो गया। पिंकी और हैपी तो यही कहते हैं, वह तो पैमेंट लाने गया था, उसे नही पता था ड्रग, मारिजुआना, तस्करी का मामला था और उसकी पैमेंट लेनी थी। माफिया वाले दोनों को गोली मार लाश कार की डिक्की में बंद कर चले गये। जब खून बहकर बाहर निकला तो किसी ने पुलिस को फोन किया। पुलिस वालों ने फोन के डिटेल खंगाल कर माता-पिता को खबर दी थी। पता नहीं सच क्या है! कमल जानते बूझते पैसा जल्दी कमाने के चक्कर में या एक्साईटमेंट, एडवेंचर की खोज में जाने-अनजाने इन लोगों के साथ जुड़ गया था। गेहूं के साथ घुन भी पिस गया।

लेकिन सच यह था की माता-पिता का चमन उजड़ गया था।

पिंकी ने धर्म की शरण ली थी। वह समागमों में जाती। अब मानती है, बेटा उसके अंदर ही समा गया है। बहुत सुखी है। उसके अंदर पूरी तरह सुरक्षित है, कोई खतरा नहीं है। दु:ख की आंच भी उसे छूती नहीं है। मां ने पूरी तरह से बेटे को अपने अदंर समा लिया है।

सिया ने अमेरिका में प्रैक्टिस कर रही अपनी साइकेट्रिस्ट बेटी अंजना से पिंकी की इस हालत के बारे में पूछा तो वह बोली, “मम्मी आंटी एकदम असामान्य व्यवहार कर रही है। उन्होने अपने अंदर एक दुनिया बसा ली है। बहुत खुश दिखने की कोशिश में अपना दुःख छुपाने को बेवजह ढेर सारे प्रश्न हमारे और बच्चों के बारे में पूछती है। एक मुखौटा पहन लिया है। मजबूत दिखने की मजबूरी में ज़िन्दगी की झूठी तसल्ली तलाश ली है। अंदर ही अंदर बेटे को खोने का दुःख उन्हें खाये जा रहा है।”

दस-ग्यारह साल हो गए है इस बात को। न पहले, न अब पिंकी कभी कमल को याद कर के आंखों में पानी लाती है। जब भी बेटे की बात करती है, चेहरे से खुशी फूटी पड़ती है, जैसे उसके अंदर बेटा बैठा हुआ है। छः भाई-बहिनों में सब से छोटी। सब की लाड़ली, मस्तमौला, स्वछंद और खिलंदड़ी, शुरू से मजबूत रही है। अपनी उसी छवि से प्यार करती रही है। इतना बढ़िया बैडमिन्टन खेलती थी। हैपी के दोस्त, ऑफिसरों के साथ खेलती रहती, घंटों हिलती नहीं थी अपनी जगह से। हैपी हाथ जोड़ कर उसे चलने का कहता तब कहीं हंसते हुए साथ चल देती।

हादसे के बाद बहुत सालों तक पति-पत्नी मे दूरी आ गई थी। बात ही नहीं करते थे। पिंकी, हैपी को ही बेटे की मौत के लिए जिम्मेदार मानती है।

पिंकी भारत आने पर जब भी सिया से मिलती है, उसके बच्चों के बारे में इतने प्रश्न पूछती है कि यह पूछताछ सामान्य से बहुत अधिक लगती है। शायद वह दिखाना चाहती है कि बेटा भले उसकी ज़िन्दगी में नहीं रहा है लेकिन अपने परिचितों, रिश्तेदारों के बच्चों में उतनी ही शिद्दत से रुचि लेती है जितनी वह अपने कमल की ज़िन्दगी में लेती। शायद इस तरह साबित करना चाहती है कि वह जो कहती है न कि उसका कमल उसके साथ ही जी रहा है, उसके अंदर प्रवेश कर लिया है, तो वाकई ऐसा ही है।

कुछ समय पहले पति-पत्नी भारत में एक फ्लैट खरीदने का सोच रहे थे फिर विचार छोड़ दिया। हैपी ने पिंकी से कहा था,

देख पिंकी, मुझे तो इण्डिया आकर बड़ी दीदी के पास दो महीने रहना ही है। मामा का फार्म हाऊस चंडीगढ़ में है। हमेशा साथ आकर रहने को कहते है। तेरी बहन की कोठी में हम अभी महीने भर से है। तेरी और बहिनों के बुलावे लुधियाना, कनाडा, अमेरीका से आते रहते है।

अब तुझे पहले कुछ हो गया तो मैं सोच लेवांगा, मैन्नू टीम्बकटू रैना है या होर कित्थे और मैन्नू पैले कुछ हुआ तै तू सोच लियो तैन्न किस के कौल रैना है?”

पिंकी झट से बोली, “मैं कहीं क्यों जाऊं, मैं अकेली थोड़ी हूं। मैं तो अपने कमल के साथ ही रहूंगी।”

सिया ने बहुत मुश्किल से अपने आंसू पीये। वह सोच रही थी, पिंकी अब अपने अंदर रची छलावे की इस दुनिया में ताज़िन्दगी जीने को अभिशप्त है। सिया चाह कर भी उसे इस दुनिया से बाहर नहीं निकाल सकती है।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’

Leave a comment