Motivational Story: ” सुबह का सूरज निकले हुए बहुत समय हो गया था। सभी कामकाजी व्यक्ति अपनी दैनिक दिनचर्या का निर्वाह करने में व्यस्त हो चुके थे। गाँव में बहुत शांति हो चुकी थी मगर इस अनुशासित जीवनशैली का पालन करने वाले गाँव में एक व्यक्ति भी था जो अभी तक अपने बिस्तर पर सपनों की दुनिया में घूम रहा था। सारी दुनिया की भागदौड़ से दूर स्वयं में ही व्यस्त था अनिल “। सुबह से माँ ने कई बार उसे जगाने का प्रयास भी किया मगर अनिल की माँ उसे जगाने में असफल ही रहती है। माँ अपने मन में सोचती है – “
अनिल का जीवन इसलिए अंधकार में है क्योंकि उसका जीवन ” सौभाग्य ” पर आश्रित है भाग्य और हाथों की रेखाएं सिर्फ कुछ समय तक ही सहयोगी होती हैं। ” भाग्य से बड़ा परिश्रम ” होता है। यह शायद उसे पता नहीं है “। ऐसा सोचकर माँ अपने कार्यों में व्यस्त हो जाती है। कुछ देर बाद अपनी सपनों की दुनिया को अलविदा कहकर अनिल ने अपनी आँखें खोलकर देखा धूप बहुत तेज थी और दोपहर हो चुकी थी । अनिल अपने कमरे की बालकनी में आता है और कुछ देर बाद अपनी चाय बनाकर पीने लग जाता है और फिर दोपहर का खाना खाकर शहर की ओर चल देता है। शहर में उसकी दुकान है जो उसके घर की जीविका है मगर आलस और भाग्य के भरोसे रहने वाले अनिल के लिए परिश्रम कोई अहमियत नहीं रखता है। अनिल अक्सर कहता है – ” भाग्य के भरोसे रहो और भाग्य में होगा तो वह स्वयं ही मिल जाएगा इसलिए व्यर्थ परिश्रम करना क्यों है “।
अपनी दुकान पर पहुंचने के बाद अनिल ने दस्तावेजों को सिर्फ एक नज़र देखा और फिर अपनी कुर्सी पर बैठकर आराम करने लगा। दुकान में काम करने वाले सभी कर्मचारी अनिल के व्यवहार को बहुत अच्छी तरह से जानते थे इसलिए उन्हें अनिल सिर्फ नाम का मालिक लगता है और दुकान की पूरी जिम्मेदारी उन्होंने अपने कंधों पर लेकर फैसले लेने शुरू कर दिए। कुछ ही समय के बाद दुकान के दस्तावेजों में कुछ गड़बड़ी होने लगी। सामान की बिक्री ज्यादा होती थी और मुनाफा कम होता था मगर अपने आलस और ” सौभाग्य ” पर निर्भर अनिल इन सभी चीजों को अनदेखा करता रहता है और यह सभी चीजें दुकान को मुनाफा के स्थान पर हानि और कर्ज में लाना शुरू कर देती हैं। ” भाग्य से बड़ा परिश्रम ” अनिल को यह विचार गंभीर नहीं लग रहा था। वह कभी मंदी तो कभी मौसम और कभी आधुनिकरण को इन सभी का जिम्मेदार कहता। मगर इन सभी के बीच में माँ बहुत दुखी होती है और अपने बेटे अनिल को कैसे समझाए यह सोचने लगती है क्योंकि अगर यह सब ऐसे ही चलता रहा तो फिर वह दिन बहुत दूर नहीं है जब दुकान पर ताला लग जाएगा और फिर परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय हो जाएगी। अनिल को समझाने का बहुत प्रयास करने के बाद भी वह अपने आलस को नहीं छोड़ रहा था। अनिल अपने भाग्य पर ही निर्भर था।
कुछ ही दिनों के बाद अनिल को नगर निगम से पत्र आता है जिसमें लिखा होता है कि उसकी दुकान ने नगर निगम के नियमों का पालन नहीं किया है और शासकीय वेतन कर का भुगतान सही समय पर नहीं किया है। यह पत्र अनिल नजरअंदाज कर देता है और फिर कुछ पुलिसकर्मी अनिल की दुकान को सील करके चले जाते हैं। जब अनिल को यह पता चलता है तो फिर वह नगर निगम के कार्यालय में जाता है तब उसे मालूम होता है कि उसकी दुकान में कितना कुछ गलत हो रहा है। नवीन घर आकर अपनी माँ को सब बताता है उसकी माँ कहती है – ” अनिल इसमें सिर्फ तुम्हारी ही गलती है तुमने अपनी दुकान की ज़िम्मेदारी स्वयं नहीं ली और सारा काम दुकान के कर्मचारियों को सौंपकर आलस को चुना अनिल बेटा तुम ” सौभाग्य ” में इतना निर्भर हो गए कि तुमको यह याद ही नहीं रहता कि ” भाग्य से बड़ा परिश्रम ” होता है “। ” सौभाग्य ” से बड़ा कर्म होता है। अनिल रोने लगता है और अपनी माँ से कहता है – ” माँ अब मुझे क्या करना चाहिए ,मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है मैंने सब कुछ खराब कर दिया और अब मैं स्वयं को दोषी मानता हूँ और सब कुछ ठीक करके अपने कर्मों का पछतावा करना चाहता हूँ “। अनिल की बातों को सुनकर माँ कहती है – ” अनिल अब तुम सबसे पहले नगर निगम कार्यकाल में जाकर शासकीय वेतन कर का भुगतान करो और फिर अपनी दुकान की जिम्मेदारी स्वयं लेकर कार्य करो “।
अनिल अपनी माँ के सुझावों को स्वीकार करके अपनी दुकान की सारी जिम्मेदारी स्वयं लेकर सबसे पहले नगर निगम कार्यकाल जाकर शासकीय वेतन कर का भुगतान करता है और उनसे अपनी गलती की क्षमा मांँगता है। नगर निगम कार्यालय उसे एक पत्र देते हैं। जिसमें उसकी दुकान को मुक्त करने का आदेश होता है। इस पत्र को लेकर वह पुलिसकर्मी के पास जाता है और पुलिसकर्मी इस पत्र के आदेश के अनुसार उसकी दुकान को मुक्त कर देते हैं। अनिल अपनी दुकान को खोलकर हिसाब देखने लगता है और दुकान के कर्मचारियों से कहता है – ” हिसाब में बहुत गलतियां हैं आप सभी का क्या कहना है “। दुकान के सभी कर्मचारी कहते हैं – ” आगे से ऐसा कुछ भी नहीं होगा हमें माफ़ कर दीजिए “। सभी कर्मचारी आश्चर्चकित थे कि यह सब कुछ कैसे हो गया , जो व्यक्ति भाग्य और किस्मत पर निर्भर होता था वह व्यक्ति आज ” सौभाग्य ” के स्थान पर मेहनत को प्राथमिकता दे रहा है। आलस का पर्यायवाची व्यक्ति आज ” भाग्य से बड़ा परिश्रम ” विचार को स्वीकार करके अपने कर्मों का पालन कर रहा है। अनिल अपनी दुकान को व्यवस्थित करके अपनी माँ से बेहतर काम करना सीखने लगता है। कुछ ही दिनों में दुकान का सारा नुकसान कम होने लगा और फिर उसकी दुकान मुनाफे में चलने लगी। अनिल बहुत खुश होता है और अपने कर्मचारियों को बेहतर वेतन देने लगता है शहर में अब उसकी दुकान आगे बढ़ने लगती है उसकी दुकान का नाम जो पहले सूची में बहुत नीचे होता था अब वह धीरे – धीरे प्रथम स्थान पर आने लगता है।
अनिल अपनी दुकान की सफलताओं को देखकर और आगे बढ़ने की रणनीति बनाने लगता है। कुछ ही दिनों के बाद शहर में एक नया बाजार बनने का कार्य शुरू हो जाता है जिसमें दुकानों को खरीदने के लिए नामांकन शुरू हो जाता है। अनिल सोचने लगता है अगर वह अपनी दुकान की एक शाखा इस नए बाजार में खोलने के लिए दुकान खरीद लेता है तो फिर उसका मुनाफा बहुत बढ़ जाएगा। अनिल घर पहुंचकर अपनी माँ से कहता है – ” माँ शहर में एक नया बाजार बनने जा रहा है मुझे लगता है कि हमें उस बाज़ार में एक दुकान लेकर वहां अपनी दुकान की एक नई शाखा खोलकर काम करना चाहिए जिससे मुनाफा ज़्यादा हो जाएगा “। यह सुनकर माँ कहती है – ” अनिल बेटा अभी इंतजार करो वह नया बाजार कैसा होगा और उस बाज़ार की दुकान कैसी होगी। अभी सिर्फ यह एक दिखावा है इसलिए तुम अभी अपनी इस दुकान पर ही अच्छे से काम करो “। अनिल माँ की बात सुनकर चुप हो जाता है और फिर अपने कमरे में चला जाता है। अनिल सोचने लगता है – ” माँ ने ऐसा क्यों कहा ? क्या हुआ होगा क्या कुछ गलत होने वाला है “। माँ ने कहा था कि ” सौभाग्य ” नहीं बल्कि कर्म बड़ा होता है और ” भाग्य से बड़ा परिश्रम ” होता है। मैं अपनी मेहनत को बढ़ाना चाहता हूँ फिर माँ मुझे रोक क्यों रही है।
कुछ ही दिनों के बाद नया बाजार बन गया और दुकानों का नामांकन भी हो गया मगर अनिल बहुत दुखी होता है वह सोचता है – ” माँ की बात मानकर आज मैं पीछे हो गया , सभी दुकानदारों का फायदा हो गया है सभी को मुनाफा होगा मगर कुछ ही दिनों के बाद नया बाजार बंद हो जाता है। अखबार में लिखकर आता है शहर का नया बाजार सरकारी ज़मीन पर बना हुआ था इसलिए उसे बंद कर दिया है और सभी आरोपी धन लेकर फरार हो गए हैं। यह ख़बर पढ़कर अनिल को अपनी माँ की बात याद आती है – ” सौभाग्य ” नहीं बल्कि कर्म बड़ा होता है और ” भाग्य से बड़ा परिश्रम ” होता है। माँ की बात सही थी क्योंकि अगर मैं इस नए बाजार में एक दुकान लेकर उसमें अपनी दुकान की शाखा खोलकर बैठा होता तो आज मैं सभी दुकानदारों की तरह नुकसान का ही अनुभव करता “। अनिल अपने काम में लग जाता है और फिर कुछ दिनों के बाद अनिल की दुकानों की शाखाएँ खुलनी लगती हैं धीरे – धीरे दूसरे शहरों में अनिल की दुकान की तारीफ होने लगती है। अनिल को देखकर उसकी माँ को बहुत खुशी होती है अनिल अपनी इस उन्नति का कारण अपनी माँ को बताता है- ” मेरी माँ के बताए गए रास्तों पर चलकर ही मैंने यह सफलता प्राप्त की है “।
