Hindi Kahani: अंकिता की शादी बहुत छोटी उम्र में और संयुक्त परिवार में हो जाने के कारण उसका पढ़ाई का सपना चकनाचूर होता नजर आ रहा था।
लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और धीरे धीरे करके स्नातकोत्तर उत्तीर्ण कर ही लिया।
जल्दी ही उसके एक बेटा पैदा हो गया, साढ़े तीन साल के अंतराल में दूसरा बेटा भी पैदा हो गया।
अतः वह आगे की पढ़ाई को मन में सोचती ही रह गई क्योंकि अब सारा वक्त बच्चों के लालन-पालन और परिवार की देख रेख में ही निकल जाता था।
वह चाहकर भी अपनी पढ़ाई या अपने किसी अन्य काम के लिए कोई वक्त नहीं निकाल पा रही थी।
जब बच्चे थोड़ा बड़े हुए तब उसने अपनी आगे की पढ़ाई और जॉब के बारे में विचार बनाया।
अब वह संयुक्त परिवार से निकलकर, शहर में आकर रहने लगी थी।
लेकिन अब यहाँ पर समस्या यह थी कि वह बच्चों को किसके भरोसे छोड़कर पढ़ाई करने जाए?
ऐसे में मसीहा बनकर आईं रंजना दीदी, जिनके साथ कोई खून का रिश्ता तो नहीं था लेकिन वे खून के रिश्ते से भी बढ़कर हो गईं।
उन्होंने अंकिता के सपनों को एक नई उड़ान दी ये कहते हुए कि तुम बच्चों की बिल्कुल भी परवाह मत करो। मैं हूं ना, मैं अपने तीन बच्चों के साथ तुम्हारे दोनों बच्चों की भी देखरेख कर लूंगी।
तुम निष्फिक्र होकर पढ़ाई करो और अपनी मंजिल को हासिल करो।
अंततः आज अंकिता एक वकील और एक विधि महाविद्यालय में प्राचार्य के पद पर पदस्थ है।
आज रचना दीदी तो इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनका निस्वार्थ मदद करना अंकिता को बहुत याद आता है। शायद इतनी सहायता तो कोई सगे वाला भी नहीं करता, जैसा कि रचना दीदी ने की थी।
आज अंकिता जो भी है उन दीदी की ही बदौलत है।
अंकिता के लिए वे, बड़ी बहन, सहेली, गुरु, माँ सब कुछ थीं, जिन्होंने अंकिता के सपनों को पंख दिए और वह ऊंची उड़ान भर सकी।
Also read: निर्णय-गृहलक्ष्मी की कहानियां
