भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
“सुनो अमित, मुझे कुछ पैसों की ज़रूरत है। तुम्हारे पास हैं क्या? प्लीज़, अभी कुछ दिन बाद मुझे मम्मी पॉकेट मनी देंगी तब लौटा दूंगा।” रोहन ने अनजान बनते हुए कुछ झिझकते हुए अमित से कहा।
“हाँ हाँ, क्यों नहीं? कैसी बातें करते हो रोहन? तुम्हें प्लीज़ कहने की कोई आवश्यकता नहीं। कुछ पैसे हैं मेरे पास! चाहे सारे ले लो दोस्त। अरे, वैसे भी ये तुम्हारी मम्मी ने ही तो दिए हैं। इन्हें लौटाने की भी ज़रूरत नहीं।” अमित ने बड़े प्यार से जेब से पैसे निकालते हुए कहा।
“नहीं अमित, मुझे सारे नहीं, सिर्फ पचास रुपए चाहिए।” रोहन ने पचास का नोट लेकर बाकी साढ़े चार सौ रुपये अमित की जेब में डाल दिये।
रोहन को मम्मी पर बहुत गुस्सा आ रहा था। उसे पचास रुपयों की सख्त ज़रूरत थी। उसके कोचिंग क्लास वाले दोस्तों ने आज आइसक्रीम खाने का कार्यक्रम बनाया था। मम्मी से पैसे मांगे थे लेकिन मम्मी ने “कोई आइसक्रीम नहीं खानी, गला खराब हो जाएगा” कह कर सख्ती से मना कर दिया था। रोहन परेशान था। दोस्तों में उसकी इज़्ज़त की किरकिरी होने वाली थी। पता नहीं ये मम्मी इतनी कंजूस क्यों है। उसके दोस्तों के पेरेंट्स तो कभी मना नहीं करते। जो मांगो, लेकर देते हैं। लेकिन एक मेरी मम्मी है, जो पचास रुपये के लिए मना कर देती है। क्या मुँह लेकर जाता अपने दोस्तों में। भला हो अमित का जो मुसीबत में काम आया!
“बैंक यू सो मच अमित, आज इज्जत बचा ली तुमने।” रोहन की आवाज़ में अहसान झलक रहा था।
“थैक्स की कोई ज़रूरत नहीं रोहन। ये तो तुम्हारे ही पैसे थे, तुम्हें दे दिए, तो थैक्स की क्या बात है! अमित ने रोहन के हाथ पर अपना हाथ रख दिया।”
“अच्छा! मम्मी ने नहीं दिए होते तो क्या ज़रूरत के समय तुम मेरी सहायता नहीं करते?” रोहन ने हँसते हुए पूछा।

“तुम ऐसा कैसे सोच सकते हो दोस्त?” रुपये क्या, तुम और तुम्हारे मम्मी पापा के लिए तो जान भी हाज़िर है। तुम्हें ये विचार भी कैसे आया? अमित ने जरा शिकायत के लहजे में कहा।
“सॉरी अमित, मैं तो मज़ाक में कह रहा था। बुरा मत मानना दोस्त। तुम बहुत अच्छे हो!”
“अरे नहीं नहीं! मैं भी यूँ ही कह रहा था। तुम भी बहुत अच्छे हो। ये सारी अच्छी आदतें मैंने तुमसे ही सीखीं हैं। अच्छा रोहन, मेरी माँ बुला रही हैं। चलता हूँ। बाय बाय!” हाथ हिलाता हुआ रोहन अपनी स्टिक के सहारे बाहर चला गया।
रोहन उसे दूर तक जाते देखता रहा। कितना अच्छा है अमित! कितना शांत, सभ्य और शालीन!
अमित और रोहन शर्मा दोस्त थे। अमित की मां रोहन के यहाँ झाडू पौंछा करती थी। दोनों हमउम्र थे। जब अमित बहुत छोटा था तब से माँ के साथ आया करता था। वह बहुत साफ-सुथरा रहता। दुबला-पतला था लेकिन आकर्षक। बड़ी-बड़ी खूबसूरत आंखें परन्तु ईश्वर उनमें रोशनी डालना भूल गया। रोहन के माता पिता ने कभी उसे अमित के साथ खेलने के लिए मना नहीं किया। अमित की माँ शांति बाई ने भी अपने बच्चों को बहुत अच्छे संस्कार दिए थे। शर्मा आंटी के घर आकर वह सभी को प्रणाम करता। न किसी से फालतू बात करता न घर की चीज़ों से छेड़छाड़। बहुत आग्रह करने पर ही कुछ लेता। शांति बाई एक ग़रीब किंतु भले परिवार से थी। लंबी बीमारी के बाद पति की मृत्यु हो गई जो शर्मा जी के ड्राइवर थे। शर्मा जी ने शांति बाई से अपने घर का काम करने का आग्रह किया ताकि वह परिवार की गुजर बसर कर सके। उसके घर में एक बूढ़ी बीमार सास और दो बच्चे थे। दोनों बच्चे स्कूल जाते थे। शर्मा जी नहीं चाहते थे कि बच्चों की पढ़ाई बंद हो। उसके बाद से शांति बाई शर्मा जी के यहाँ घर का काम करने लगी। जब कभी अमित माँ के साथ शर्मा अंकल की कोठी पर आता, हम उम्र होने के कारण उनका बेटा रोहन अमित के साथ खेलता। अमित रोहन को ढेर सारी कहानियाँ भी सुनाता जो उसकी दादी जी हर रोज उसे सोते समय सुनाती थीं। खेल ही खेल में रोहन अमित से कई अच्छी बातें सीख गया।
दो दिन बाद अमित का जन्मदिन था। शर्मा आंटी को पता चला तो उन्होंने अमित को कुछ रुपये दिए ताकि उसकी माँ उसके लिए कुछ उपहार, मिठाई वगैरह खरीद सके। अमित ने बहुत मना किया। परंतु शर्मा आंटी ने बहुत आग्रह करके रुपये चुपचाप उसकी जेब मे रख दिए। अमित ने आदरपूर्वक शर्मा आंटी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया और बड़ी शालीनता से “बैंक यू सो मच आंटी जी” कहा।
रोहन दूर खड़ा ये सब देख रहा था। रोहन को परेशानी में अमित उम्मीद की किरण नज़र आया था। यह सोच कर कि मम्मी अब जब पैसे देगी तो अमित के पैसे लौटा दूँगा, वह अमित के पास गया था और सचमुच कितना अच्छा और भोला है अमित! गॉड ब्लेस हिम! रोहन को खुद पर ग्लानि हो आयी। अमित के कितने अच्छे विचार हैं रोहन के बारे में। और एक वह खुद है जो मम्मी के बारे में भला बुरा सोच रहा है।
शाम को कोचिंग के बाद आइसक्रीम खाते हुए रोहन ने अपने दोस्तों को पूरा किस्सा सुनाया। सब उसका मज़ाक उड़ाने लगे।
गौरव कहने लगा, “मैंने आज तक तुझ जैसा मूर्ख लड़का नहीं देखा।”
कुणाल बोला, “वाह रे हमारे बेवकूफ दोस्त! आज तो तुमने हमारा नुकसान कर दिया। हमें पार्टी दे देता भाई। अरे, जब अमित को पता ही नहीं था कि उसकी जेब में कितने पैसे हैं, तो ज़्यादा निकाल लेता। उसे कौन-सा पता चलता? वो तो अंधा है!”
कुणाल की बात सुनकर सभी दोस्त जोर-जोर से हंसने लगे।
“लेकिन मैं तो अंधा नहीं हूँ”, कहता हुआ रोहन फौरन घर की तरफ चल पड़ा। उसे दोस्तों का अमित का मज़ाक उड़ाना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। उसे अपने किये पर पश्चाताप हो रहा था। वह जल्दी से घर पहुंचना चाहता था ताकि मम्मी को सारी बात बता कर सॉरी कह सके।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
