Social Story in Hindi: मॉल से बाहर निकलते वक्त एक व्यक्ति को देख निधि के पैर ठिठक गए। अतुल जीजा जी!हाँ ये तो अतुल जीजा ही थे पर उन्होंने तो बड़ी जिज्जी के इस दुनिया के जाने के बाद यह शहर छोड़ दिया था।छोड़ दिया था या छोड़ना पड़ा।निधि की अंतरात्मा ने उसे धिक्कारा…उसके परिवार ने एक शरीफ इंसान को शहर में रहने लायक छोड़ा ही कहाँ था।वो शहर छोड़कर जाता नहीं तो क्या करता!
अतुल जीजा जी अर्थात अतुल प्रभाकर,ऊँचा कद,गेहुंवा रंग और सधा हुआ चेहरा कुल मिलाकर एक नज़र में किसी को भी आकर्षित कर लेना वाला व्यक्तित्व।अतुल जीजा जी जब पहली बार जिज्जी को देखने आए तो सबने एक स्वर में कहा था।
”नीतू सोने की कलम से भाग्य लिखवाकर आई है।भाग्य खुल गए उसके तो…”
तो किसी ने कहा
“नीतू!नीतू जैसी को भी इतना सुंदर लड़का मिल सकता है।”
“जैसी!”
नीतू जिज्जी अतुल जीजा से ज़रा भी कम नहीं थी।एकदम बराबर की जोड़ी… अतुल जीजा ने जिज्जी को किसी शादी में देखा था और वह उसके रंग-रूप पर फिदा हो गए थे।नीतू जिज्जी तीन बहनों में सबसे बड़ी थी।
“नीतू को एक कपड़े में ही विदा कर दीजिए मुझे दहेज में कुछ नहीं चाहिए।”
अतुल जीजा जी की बात सुन पापा निहाल हो गए थे।तिलक में शगुन में चढ़ाए गए इक्यावन हज़ार रुपए को वापस कर उन्होंने कहा था।
“आपका आशीर्वाद ही काफ़ी है।”
“पर बेटा ये तो समाज की रीत है।इसमे अनोखा क्या है?हमारे पूर्वज भी करते थे,मैं भी कर रहा हूँ।आखिर मरने के बाद क्या मुॅंह दिखाऊॅंगा मैं अपने पुरखों को…”
जीजा जी ने नोटों की गड्डी से एक रुपए निकाला और माथे लगा स्वीकार कर लिया। उन्होंने पापा की बात मान भी रख लिया और अपना सम्मान भी बचा लिया।जीजा जी के व्यवहार ने पापा का दिल जीत लिया।जिस समाज में लड़कियाॅं दहेज के लिए रोज मार दी जाती है,वहाॅं अतुल जीजा ने शगुन का एक रुपए लेकर नाते-रिश्तेदारों का दिल जीत लिया था।ना जाने कितनी रिश्तेदारों के सीने पर सांप लोट गए थे।नीतू जैसी लड़की को इतना समझदार लड़के का मिलना किसी को भी पच नहीं पा रहा था पर कहते हैं ना खुशियाॅं दबे पांव आती हैं और दबे पांव चली भी जाती हैं।
शायद पापा से यहीं गलती हो गई थी।कहते हैं चाँद में भी दाग है।नीतू जिज्जी के संपूर्ण व्यक्तित्व पर एक ऐसा दाग था जो चाह कर भी छुड़ाया नहीं जा सकता था।नीतू जिज्जी को मिर्गी के दौरे पड़ते थे।पापा ने न जाने कहाॅं-कहाॅं इलाज़ कराया पर कोई फायदा नहीं हुआ।एक दिन निधि ने कहा भी था।
“पापा,जीजा जी को जिज्जी की बीमारी के बारे में बता दीजिए।कल को ये न हो कि हमारे ऊपर, हमने इतनी बड़ी बात छुपाकर शादी की का इल्जाम लग जाए।”
“चुप रहो तुम…क्या सही है और क्या ग़लत,ये बात अब तुम मुझे समझाओगी।”
निधि पापा के इस व्यवहार से रुआंसी हो गई।कभी-कभी वह सोचती कि आखिर क्या गलत कहा था उसने…पर उम्र के साथ निधि पापा की मजबूरी समझ गई थी।तीन जवान बेटियों के पिता के ऊपर अपने बेटियों को अच्छे घर ब्याहने का कितना दबाव होता है,यह बात वही समझ सकते थे।पापा कितनी भी कोशिश करते पर जीजा जी जैसा लड़का नहीं ढूंढ पाते।वैसे भी वह खुद चलकर आए रिश्ते को यूँ अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे।
सच ही कहते थे लोग जिज्जी सोने की कलम से अपना भाग्य लिखवा कर लाई थी।शादी के एक महीने ही हुए थे।जिज्जी वैसे भी बहुत सुंदर थी,उनके तन पर अतुल जीजा के प्रेम का रंग ऐसा चढ़ा थी कि वह शादी के बाद और निखर गई।उस दिन ऑफिस से लौटने के बाद अतुल जीजा ने अपनी नव विवाहिता पत्नी को गर्म-गर्म समोसे का पैकेट पकड़ाते हुए कहा था
“नीतू,ये लो समोसे…इसी बात पर एक बढ़िया सी चाय पिलाओ,चाय के साथ समोसा… मजा आ जाएगा।”
अपनी नवोढ़ा की आँखों में आँखें डालकर उन्होंने कहा
“आप हाथ-पैर धो लीजिए।मैं अभी आपके लिए तुलसी-अदरक वाली चाय बना कर लाती हूॅं।”
जीजा जी कपड़े बदलने के लिए बाथरुम में घुस गए और जिज्जी चाय बनाने के लिए रसोई घर में… तभी किसी बर्तन के गिरने की जोर से आवाज आई। जीजा जी रसोई घर की तरफ दौड़े।जिज्जी जमीन पर गिरी पड़ी हुई थी।चूल्हा जल रहा था और चाय का पानी भगोने सहित जमीन पर बिखरा हुआ था।
“क्या हुआ?तुम जमीन पर कैसे गिर गई!”
अतुल जीजा जी ने नीतू जिज्जी से पूछा,नीतू जिज्जी का शरीर बुरी तरह से ऐंठ रहा था,आँखें पलट गई थी और उनकी आँखों के कोर से लगातार आँसू बह रहे थे।ये आँसू शारीरिक तकलीफ़ और अक्षमता की वजह से कम अपने पति के सामने अपनी बीमारी के इस तरह उजागर होने से ज़्यादा थे।
सुहाग की चूड़ियाँ जमीन से टकराकर चूर हो गई थी और उसकी किरचें तन के साथ मन को भी लहूलुहान कर गईं थी।जिज्जी अपने आप को असहाय महसूस कर रहीं थीं।उनका तन इस वक्त उनका साथ नहीं दे पा रहा था पर मस्तिष्क एक अजीब से उहापोह में पड़ा हुआ था अब क्या होगा?जीजा जी समझ नहीं पा रहे थे कि उन्हें क्या हुआ है?अपनी नव विवाहिता का यह रूप देखकर एक पल को वह भी स्तब्ध रह गए थे उन्होंने जल्दी से उनके हाथ-पैर रगड़ना शुरू किया।थोड़ी देर में जिज्जी ठीक होती चली गई।जिज्जी जीजा जी से नज़र नहीं मिला पा रही थी आखिर उनका इतना बड़ा अवगुण जीजा के सामने आ गया था।
समाज के लिए उनकी यह बीमारी उनका अवगुण ही थी शायद इसीलिए लोग कहते थे नीतू जैसी लड़की को इतना सुंदर लड़का भला कैसे मिल गया! कुछ लोगों ने यह भी कयास लगाए थे।
“जरूर लव मैरिज होगी या शायद लड़के में ही खोट होगा पर सामने से तो ऐसा नहीं लगता था।”
आजकल के जमाने में लोगों की अच्छाई भी किसी को रास नहीं आती।अतुल जीजा जी समझदार थे।जिज्जी की बीमारी के बारे में उन्हें पता चल चुका था उन्होंने उनके इस रूप के साथ स्वीकार कर लिया।
जिज्जी ने इस घटना की जानकारी हम सब को दी। पापा दौड़े-दौड़े चले आए थे।वे हाथ जोड़े सर झुकाए जीजा जी के सामने एक अपराधी की तरह खड़े थे। वह एक ऐसे अपराध के लिए अपने दामाद से क्षमा मांग रहे थे जो उन्होंने किया भी नहीं था पर हाँ वह अपराधी थे उन्होंने एक मासूम और शरीफ़ आदमी से अपनी बेटी के जीवन का इतना बड़ा सच छुपाया था।अतुल जीजा जी ने पापा के हाथ को पकड़ कर कहा था।
“पापा जी आप मुझे शर्मिंदा न करें।यह बीमारी शादी के बाद होती तब मैं क्या करता!”
रिश्तेदारों ने कहा,
”अतुल जीजा करते भी तो क्या जिज्जी अब उनकी पत्नी थी।”
पर क्या सचमुच!एक वक्त था जब इस देश में लड़कियाँ रंग-रूप,चश्मा लगाने और छोटे बालों की वजह से नकार दी जाती थी।जिज्जी की बीमारी की बात छिपा कर शादी करना एक बहुत बड़ा मुद्दा हो सकता था।
वह चाहते तो उसी वक्त दीदी को वापस भेज सकते थे पर सात जन्मों तक साथ निभाने का वायदा की कसम खाने वाले जीजा जी ने उस कसम की सचमुच लाज रखी थी।
जिज्जी आत्मग्लानि से भरती चली गई।जीजा जी का मासूम चेहरा देखकर वह हमेशा सोचती,अतुल उनके बारे में क्या सोचते होंगे!उन दोनों के रिश्तों की मिठास न जाने धीरे-धीरे कहाँ खोती चली गई।जिज्जी के भाग्य से ईर्ष्या करने वाले लोगों की नजर ऐसी लगी कि जिज्जी की खुशियाँ भाप बनकर उड़ गई।
जिज्जी के शादी के सात साल हो गए थे पर जिज्जी की कोख अभी तक नहीं भरी थी।वह एक मानसिक दबाव से गुजर रही थी।मानसिक दबाव के चलते मिर्गी के दौरे जल्दी-जल्दी पड़ने लगे।एक तरफ माँ न बनने का दुख और दूसरी तरफ़ सामाजिक दबाव ने दीदी को चारों तरफ से घेर लिया था।वह समझ नहीं पा रही थी कि उनके साथ क्या हो रहा है!
एक तरफ उनके अंदर इस बात का दर्द था कि वह माँ नहीं बन सकती दूसरी तरफ इस बात का भी डर था कि अगर वह माँ बनी भी तो उनका होने वाला बच्चा भी उन्हीं की तरह पैदा ना हो जाए।जीजा जी के लाख समझाने के बाद भी की ऐसा कुछ भी नहीं होगा, जिज्जी इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रही थी।उनकी हालत दिन पर दिन बिगड़ती जा रही थी।
कोई उन्हें समझाने का प्रयास करता तो वह गुस्से से पागल हो जाती थी।जिज्जी घंटों अपने आप को कमरे में बंद कर लेती।जीजा जी की स्थिति अजीब थी।पति-पत्नी के बीच का रिश्ता प्रेम और विश्वास के ताने-बाने से बुना हुआ होता है पर उन दोनों के बीच का प्रेम और विश्वास कहीं दूर कराह रहा था।
जिज्जी दिन पर दिन शक्की होती जा रही थी उन्हें लगने लगा था कि अगर वह माँ नहीं बन पाईं तो जीजा जी उन्हें छोड़कर दूसरा विवाह कर लेंगे।जीजा जी उन्हें कई बार समझा चुके थे उन्होंने उनसे वादा किया था कि कुछ भी हो जाए वह किसी से कभी शादी नहीं करेंगे।जिज्जी की खुशी के लिए वह अनाथ आश्रम से बच्चा भी गोद लेने को तैयार हो गए पर जिज्जी को अपने खून अपने बच्चे की धुन सवार थी।
जिज्जी घण्टों पूजा करने लगी। कोई मंदिर कोई दरगाह ऐसी न थी जहाँ पर दीदी ने हाथ न जोड़े हो नाक ना रगड़ी हो पर ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था।उनका शरीर नमक की तरह घुलता जा रहा था।
उसे आज भी वह दिन याद है।
“मैं दो दिन के लिए ऑफिस के काम से शहर के बाहर जा रहा हूँ।निधि तुम अपनी जिज्जी के पास आकर रह लो।आजकल उसकी तबीयत ठीक नहीं रहती।”
“जीजा जी,आने को तो मैं आ जाती पर जीजी ने ही मना कर दिया है, मैं अकेले रह लूंगी।”
काश उस दिन निधि ने जीजा जी की बात मान ली होती तो जिज्जी हम सबके बीच होती।काश वह दीदी के पास चली गई होती।काश!काश,यह काश भी बहुत अजीब होता है।इस काश ने उम्र भर का उसे दर्द दे दिया था। जीजा जी को गए हुए एक दिन ही हुआ था।
सुबह-सुबह दूध वाले ने घंटी बजाई तो अंदर से कोई जवाब नहीं आया।दूध वाला वापस चला गया।बर्तन और झाड़ू पोछा करने वाली सुनीता आंटी आश्चर्य में थी रोज सुबह दरवाजा खोल देने वाली नीतू जिज्जी आज दस बजे तक दरवाजा बंद करक बैठी हुई थी। सुनीता आंटी को कुछ शक हुआ उन्होंने पड़ोसियों से आग्रह किया कि वे अपनी छत से कूद कर झांक कर देखें ।
नीतू जिज्जी ने पंखे से लटकर अपनी जान दे दी थी। यह बात जंगल में आग की तरह फैल गई।किसी भले मानुस ने अतुल जीजा को खबर दी,घर में कोहराम बच गया।पापा और घर के सभी लोग जिज्जी की मृत्यु का कारण जानते थे पर पापा ने सब जानते हुए भी अतुल जीजा जी को दीदी की मृत्यु का कारण बताया और उन पर केस ठोक दिया।
जमाता के पैर छूकर अपनी बेटी का कन्यादान करने वाले पापा जीजा जी के जान दुश्मन बन गए।जिस जमता के गुण गाते हुए पापा की ज़ुबान नहीं थकती थी आज वही जमाता उन्हें फूटी आँख नहीं सुहा रहा था । जिज्जी इस दुनिया से अकेले नहीं गई थी वह अपने साथ अतुल जीजा जी के जीवन की हिस्से की खुशियाँ भी लेकर चली गई थी।
जीजा जी का जीवन कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटते बीतने लगा।पापा ने उन पर तरह-तरह की धाराएं लगवाई थी।अपनी बेटी के खोने के दर्द का बदला वह कुछ इस तरह से ले रहे थे।निधि ने एक बार हिम्मत करके पापा से पूछा भी था
“पापा जीजा जी की क्या गलती है?आप और हम सभी यह बात अच्छी तरह जानते थे कि दीदी किस मनोस्थिति से गुजर रही थी,क्या आपको भी लगता है कि जीजा जी जिज्जी की मौत के जिम्मेदार हैं?”
पापा ने उसे डांट कर चुप कर दिया था।
“अभी तुम इतनी बड़ी नहीं हुई कि तुम मुझे सलाह दो ।मेरे मामले में दखल देने की कोई जरूरत नहीं…”
वह छटपटा कर रह गई थी। जिस चेहरे को देख रिश्तेदारों के सीने पर सांप लोट जाते थे।माॅं बलाए लेती नहीं चूकती थी।आज उस चेहरे की रौनक न जाने कहाँ गुम हो गई थी।
“कैसे हैं जीsss…!”
शब्द उसके गले में अटककर रह गए जिस व्यक्ति के साथ यह रिश्ता जुड़ा था वो अपनी मौत के साथ यह रिश्ता भी ले गया था।जिज्जी की मृत्यु के बाद जीजा जी के साथ जो कुछ भी उन पर बीता उसने उन्हें जीजा कहने का हक भी खो दिया था।
“कैसी हो निधि,तुम्हारी शादी हो गई!”
माथे पर बिंदी और लाल सिंदूर से भरी हुए मांग को देखकर जीजा जी ने कहा
“जी!दो साल हो गए।”
जीजा जी ने अपना हाथ उसके सिर पर आशीर्वाद की मुद्रा में रख दिया।
“नीतू निधि की कन्यादान हम ही करेंगे।”
जीजा जी की कही हुई बात उसके कानों में गूंज रही थी।वक्त भी कितना बेरहम होता है वह सोच रही थी।
“आप यहाँ…!”
“तेरी दीदी को गए पाँच साल हो गए।मैं उसकी पुण्यतिथि पर उस घर से मिलने जाता हूँ जिसमें हमने अपनी दुनिया बसाई थी।तेरी जिज्जी तो निर्मोही निकली।सात जन्मों तक साथ निभाने का वायदा करके हाथ छुड़ाकर चली गई।”
निधि के भीतर गहरे कुछ दरक गया।
“अतीत में जो बीत गया उसे भुला दीजिए।”
“भूल जाऊँ!भूलना तो मैं भी चाहता हूँ पर अतीत मुझे भूलने नहीं देता।”
जीजा जी की आवाज में निराशा थी
“आपने शादी sss…!”
वह चाहकर भी वाक्य पूरा नहीं कर पाई।जीजा जी हौले से मुस्कुरा दिए,उनकी मुस्कान में एक दर्द था।
“तेरी जिज्जी से वायदा किया था,कभी किसी से शादी नहीं करूंगा।”
वह जीजा जी को देखते रह गई।जीजा जी के प्रेम में कोई कमी नहीं थी पर दीदी ही सात जन्मों का वायदा करके उन्हें धोखा देके चली गई थी।
“चलता हूँ मेरी ट्रेन का समय हो गया है।अपना ध्यान रखना।”
निधि ने अपना मोबाइल निकाला।
“अपना फोन नंबर तो शेयर कीजिए।”
जीजा जी के चेहरे पर एक मुस्कान पसर गई।वह उस मुस्कान का मतलब समझने का प्रयास कर रही थी।
जीजा जी बिना नम्बर दिए सीढ़ियों से नीचे उतर गए वह उन्हें जाता हुआ देख रही थी।जिसकी वजह से यह रिश्ता जुड़ा हुआ था,जब वह रिश्ता ही नहीं रहा फिर जुड़ने का क्या ही मतलब था।निधि ने आसमान की तरफ देखा और मन ही मन कहा
“जिज्जी तुमने अच्छा नहीं किया।”
