बचपन की गलियां-जब मैं छोटा बच्चा था
Bachpan ki Galiyan

Childhood Story: कभी-कभी मन बचपन की गलियों में घूम आता है। याद आ जाती हैं कभी-कभी अपनी शैतानियों की। जब आजकल के बच्चों को देखते हैं मोबाइल की दुनियाँ में जकड़े हुए।
बचपन के दौर में गर्मियों की छुट्टियों में हम सब भाई बहन खूब धमा चौकड़ी मचाते थे। पूरे दिन लूडो, कैरम और ताश की बाजियाँ चलती थी। शाम होते ही हम सब लोग छतों पर चढ़ जाते थे क्योंकि हमारे यहां लाइट की बहुत समस्या थी।
एक बार हमारे यहां रिश्तेदारी के भी कई बच्चे आए हुए थे। पूरे दिन खेल-खेल में निकलता। यहां तक की गर्मी की टीक दुपहरी में भी हम छत पर जाकर घर-घर खेलते थे। गुड्डे गुड़ियों का विवाह करते थे। पापा दबे पांव आकर जब हमें चिल्लाते थे तो हम जल्दी-जल्दी नीचे आ जाते थे।
एक बार जामुन का सीजन चल रहा था। पापा ने बहुत सारे जामुन हम सबके लिए खरीद लिए। हमने छत पर बैठकर खूब मन से जामुन खाये। लापरवाही इतनी देखो गुठलियों को वहीं छोड़ दिया। उस दिन ऐसा इत्तेफाक हुआ की रात को बहुत जोर से बारिश आ गई। सारी जामुन की गुठलियां नाली के मुंह पर इकट्ठी हो गई। पानी का निकास बंद हो गया। पूरी छत पर पानी लबालब भर गया। पानी हमेशा अपना रास्ता बना लेता है। रात को ही कमरे की छत टपकने लगी। अंधेरी रात में पापा जब छत पर देखने गए तो गुठलियों के कारण सारी नाली बंद पड़ी थी। उस समय बड़ी डांट लगी सबकी।
उस दिन के बाद सबक मिल गया की कुछ भी खाओ पर कूड़ा इकट्ठा करके सही जगह पर फेंक दो।
अब भी जब घर पर जामुन आती है बचपन की वो शैतानी याद आ ही जाती है।
वह दिन भी क्या दिन थे? जब हम बेवजह भी हंसते थे।

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