Stories in Hindi: रेनू जी बहुत खुश रहती है अपने छोटे से शहर में। बच्चों को पढ़ाने के लिए उन्होंने खूब भागम भाग कर ली। अब उनके तीनों बच्चे खूब अच्छी नौकरियों पर है। उन्होंने सबकी विवाह शादी कर अपनी जिम्मेदारियां भी निपटा ली है। उनके पति का भी रिटायरमेंट हो चुका है। दोनों पति-पत्नी जीवन संध्या की छाया ख़ूब खुशी-खुशी बिता रहे हैं। बच्चों से फोन पर या कभी-कभी वीडियो कॉल पर बात हो जाया करती है और वैसे भी आजकल किसी का हाल-चाल जानना हो तो सोशल मीडिया ही काफी है। वह बता देता है प्रत्येक व्यक्ति के बारे में कि कौन कहाँ जा रहा है?
किसने कौन से कपड़े पहने? कौन सी पार्टी इंजॉय करी?
क्योंकि ज्यादातर लोग सोशल मीडिया पर अपनी पिक्स अपलोड करते ही हैं। मेलजोल निभाने का भी एक अच्छा माध्यम बन गया है सोशल मीडिया।
रेनू जी बहुत ही समझदार महिला है। वह सोशल मीडिया पर थोड़ी बहुत देर ही एक्टिव रहती बाकी का अपना समय रचनात्मक गतिविधियों में लगाती।
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रेनू जी और उनके पति अब घूमने फिरने में भी काफी समय व्यतीत करते क्योंकि बच्चों की जिम्मेदारियों और खर्च के चलते उन्होंने सैर सपाटा कम ही किया था।
अब दोनों पति-पत्नी घूम फिर कर अपने मन की निकालते रहते हैं। बच्चे कभी-कभी मिलने आ जाया करते हैं। लेकिन वह इसमें भी खुश है कि दूर रहो या पास मन मिलने चाहिए।
रेनू जी अपने खाली समय में कुछ भजन भी लिख लिया करती हैं।
उनका छोटा बेटा बहुत दिनों से जिद कर रहा था अपने घर पर उनको बुलाने की। वह बहुत दिनों से टाल रही थी। बच्चों की अधिक जिद के चलते आखिरकार उन्होंने प्रोग्राम बनाया कि कुछ दिन बच्चों के पास रहे।
उन्होंने अपना सारा सामान पैक किया और निकल पड़ी अपने पति के साथ अपने बेटे के पास रहने के लिए।
बच्चे उनको देखकर बहुत खुश हुए। उनकी बहू भी बहुत अच्छी थी। पोते-पोतियो के तो चमन ही खिल गए दादी को पास पाकर।
लेकिन उन्होंने देखा बड़े शहरों में बड़ी भागम भाग है। सब व्यस्त रहते हैं अधिक किसी के पास समय ही नहीं होता। और जो समय बसता है वह तो सबका आजकल मोबाइल ही खा गया। आज हर व्यक्ति यही कहता नजर आता है, ” अरे यार टाइम नहीं है मेरे पास। “
मोबाइल ने जो हमारा समय खाया। वह तो हम कभी गिनते ही नहीं है।
उन्होंने सबसे अधिक फर्क महसूस किया कि उनके पोते-पोती विलोक और हरिका के चेहरे अत्यधिक बोझ से दबे हुए नजर आते हैं। उनकी बहू मानवी वैसे तो बहुत अच्छी है लेकिन बच्चों पर बड़ी कसकर पकड़ रखती है।
बच्चे सुबह से ही बड़े-बड़े बैग लेकर स्कूल के लिए रवाना होते। आजकल स्कूलों में भी तो मल्टी स्टोरी बिल्डिंग है जहां बच्चे भारी-भारी बैग लेकर सीढ़ियां चढ़ते उतरते रहते हैं।
एक्स्ट्रा करिकुलम एक्टिविटी के नाम पर बच्चों पर अतिरिक्त प्रेशर डाला जाता है। बच्चे ढाई तीन बजे स्कूल से आते फिर ट्यूशन कोचिंग क्लासेस में भागम भाग करते।
रोज स्कूल प्रोजेक्ट का काम रहता जिस पर मानवी भी उन्हें पूरा करने में लगी रहती है।
उसके बाद भी मानवी सोचती की बच्चों को एक्स्ट्रा कोर्सेज करा दिए जाएं। बेटे को जबरदस्ती स्केटिंग क्लास में भेजती। बेटी के लिए डांस क्लास लगा रखी थी।
मानवी बच्चों के प्रति इतनी समर्पित है कि सारे दिन उन पर निगाहें बनाए रखती। उनकी पोती हरिका डांस क्लास में जाना नहीं चाहती लेकिन मानवी जबरदस्ती उसको वहां भेजती है।
रेणु की पारखी नजरें बच्चों के ऊपर पड़े हुए बोझ को महसूस कर रही थी।
उन्होंने अपनी बहू को समझने की कोशिश की है बच्चों पर इतना बोझ मत डाला कर। मासूम है, अधिक बोझ से दब जाएंगे। उनकी बहू ‘कंपटीशन बहुत है’ का हवाला देकर उनकी बात को दरकिनार कर देती।
एक दिन रेनू जी बगीचे में पानी लगा रहे थी। बगिया में सुंदर-सुंदर फूल उगे हुए हैं। सुंदर फूलों को देखकर बहु उनसे कहती है, “मम्मी जी आपके आने से रौनक हो गई। गार्डन में पहले फूल खिलते ही नहीं थे लेकिन आपकी देखभाल के चलते सर्दियों के मौसम में सुंदर-सुंदर फूल आने लगे हैं।”
रेनू जी मंद-मंद मुस्काती हुए कहती हैं, ” बेटा पौधे हो या बच्चे दोनों को सींचना पड़ता है। दोनों को सही खाद या परवरिश की जरूरत होती है। और इनको फलने फूलने के लिए अवसर व समय भी देना चाहिए। और फिर समय आने पर इनमें निखार आता है।”
मानवी को समझ आ गया उनका इशारा जो हरिका और विलोक की तरफ था। वास्तविकता में सच्चाई भी यही थी कि ज्यादा सख़्ती के चलते हरिका सहम सी गई थी। विलोक भी सुस्त सा रहता।
आज मानवी को एहसास हुआ कि उसने बच्चों पर लगाम अधिक कस रखी है। जिसके कारण उनका विकास अवरूद्ध हो रहा है। उसने आज पूरी तरह निश्चय किया अपने को बदलने का। आज उसे महसूस हुआ बड़े-बूढ़े कितना अनुभव का केंद्र होते हैं। उसने तो कभी सोचा भी नहीं था कि वह अपने बच्चों पर ज्यातती कर रही है।
स्कूल से आने के बाद शाम को जब उसने बच्चों से पार्क में खेलने के लिए कहा तो बच्चों के तो चमन ही खिल गए। बच्चे दादी के साथ पार्क चले गए। आज दादी भी बहुत खुश है बच्चों के चेहरे पर लौटती खुशी देखकर। हरिका पार्क में चहक रही थी मचलती तितलियों को पकड़ने के लिए। विलोक भी झूले पर बैठ कर खुश हो रहा था। बच्चे खुश भी क्यों ना हो आखिर उनकी दादी से उनको #उपहार स्वरूप आजादी प्राप्त हुई है।
रेनू जी के मन में भी संतोष उत्पन्न हुआ।
बच्चों के लिए सही परवरिश और संस्कार अत्यंत आवश्यक है। आज मानवी को भी सबक मिल गया। घर में बड़े बूढ़ो की छत्रछाया कितनी आवश्यक है। जिनकी छाया तले नन्हे पुष्प सुरक्षित पल्लवित हो जाते हैं।
