Hindi Kahaniya: आज हमारा देश अनेक क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता हासिल करने की ओर गतिमान है और अनेक क्षेत्रों में तो अक्षम से सक्षम भी हो चुका है। लेकिन चिंता की बात है कि विवाह के पवित्र बंधन में बंधने वाले वर -वधू के बीच की ऊंच -नीच की खाईं आज भी बरकरार है। कहने को तो हमारे समाज में वधू को वर की अर्धांगिनी कहा जाता है। परंतु वास्तविकता यह है कि उसे आज भी दोयम दर्जे से ही संतोष करना पड़ता है। आज भी उसे अपने नारी होने की क़ीमत चुकानी पड़ती है वर की योग्यता के अनुरूप दहेज़ अदा करके। सिर्फ इतना ही नहीं विवाहोपरान्त उसे आजीवन अपने पति की सलामती के लिए तरह तरह के रीति-रिवाज व व्रत आदि भी करने पड़ते हैं उसकी लंबी उम्र
के लिए। वर जब अपनी ससुराल जाता है तो वधू पक्ष के लोग उसके सम्मुख पलक पांवड़े बिछाए खड़े रहते हैं। मांगने से पहले ही उसे सेवा सत्कार की हर वस्तु मुहैय्या करा दी जाती है। उसकी सेवा में किसी प्रकार की कोई कमी न रह जाए इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता है। जबकि वधू के साथ इसके ठीक उलट व्यवहार किया जाता है। यहां देखने वाली बात यह भी है कि अनेक घरों में वधू को बाहर आजीविका कमाने भी जाना होता है और कतिपय मध्यम परिवारों में तो उनकी कमाई से ही घर का खर्च भी चलता है। ऐसे में परिवार के सदस्यों की ओर से उन्हें अपेक्षित सराहना की सौगात मिलनी चाहिए। पर देखने में आता है कि सराहना के बदले उल्टे उन्हें उल्टी -सीधी बातें सुनाई जाती हैं। ऐसे में अक्सर एक सवाल मन में उठता है कि आखिर अर्धांगिनी को उसका असली हक़ समाज कब देगा?
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