Mahadev Story
Baba Mahadev Story

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

Mahadev Story: पिठौरागढ़ जनपद के चमदेवल नामक शिव मंदिर में बाबा महादेव रहते थे। एक दिन देव सिंह नाम का कोई व्यक्ति नौकरी की खोज में घर से बाहर जा रहा था। अपने इष्ट देवता के दर्शनार्थ वह मंदिर में गया। मंदिर में बाबा की धूनी जल रही थी। एक किनारे पर वह भी बैठ गया। देव सिंह ने बाबा से कहा, ‘मै परदेश को जा रहा हूं, कोई लाभदायक बात मुझे भी बता दीजिए।’ बाबा ने उससे कहा, ‘मैं एक बात बताने के पूरे सौ रूपये लूंगा।’ देव सिंह राजी हो गया। एक सौ रूपये देने के बाद बाबा ने कहा, ‘आए गुस्से को रोक लेना।’ इतना कह कर बाबा चुप हो गये। देव सिंह फिर पूछने लगा तो बाबा ने पुनः सौ रूपये मांगे। एक सौ रूपये पुनः देने के बाद बाबा ने कहा, ‘दूसरे की चारपाई में हमेशा उसे झाड़-फूक लेने पर ही बैठना।’ एक सौ रूपये और देने के बाद उसने पुनः एक बात और पूछी तो बाबा ने बताया, ‘आते-जाते समय रास्ते से हटकर बैठना।’

तीन सौ रूपयों के बदले तीन बातों को गांठ बांधकर जब वह परदेश को जाने लगा तो चलते-चलते वह एक बड़े शहर में पहुंचा। वहां किसी कारखाने में काम में लग गया, वहां पर उसने अपने परिश्रम व ईमानदारी के साथ बहुत अधिक धन अर्जित किया। घर से गये जब बहुत वर्ष बीत गये तो उसने अपने कुटुम्बजनों से भेंट करने के लिये प्रस्थान किया। रास्ता पूरा पैदल यात्रा का था। तब मोटर गाड़ियां थी नहीं। पैदल चलते-चलते जब वह थक गया तो विश्राम करने की इच्छा से वह मार्ग में बैठ गया। उतने में ही उसे बाबा जी की बताई बात याद आ गई और वह मार्ग से किंचित दूर जाकर बैठ गया। थकान दूर हो जाने पर जब वह जाने लगा तो उसे याद आया कि वह अपना बटुआ वहीं पर भूल आया। चिन्तित होकर जब वह दौड़ता हुआ वहां पर पहुंचा तो रास्ते से हटकर दूर बैठने से उसे रूपयों की थैली मिल गई। अब वह मन ही मन बाबा को धन्यवाद देने लगा।

दिन भर चलते-चलते जब देव सिंह थक गया, सूर्य अस्तांचल को चला गया और रात्रि का आगमन हो गया तो किसी एक गाँव में जाकर रहने की जगह मांगने लगा। इस प्रकार वह आश्रय की खोज में किसी हत्यारिन वेश्या के घर जा पहंचा। उसने पहले तो बहत अच्छी तरह खिला-पिला कर उसका सत्कार किया और फिर सोने के लिए साफ-स्वच्छ एवं सुन्दर चादर बिछी चारपाई की ओर संकेत किया। बाबा की कही बात के अनुसार जब उस चादर को उसने झाड़ने के लिये उठाया तो उसमें निवाड़ आदि कुछ भी प्रयुक्त न हुआ था तथा उसके नीचे उसे मौत का कुआँ दिखाई दिया। अपनी जान बचाकर बाबा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए वह वहां से रात में ही चला गया।

जब देव सिंह घर से गया था तो उस दिन उसकी कोई सन्तान न थी किन्तु उसकी पत्नी गर्भवती थी। पुत्र उत्पन्न होने के बाद भी उसे कोई सूचना प्राप्त न हुई थी। उसे यही जानकारी थी कि घर पर उसकी कोई सन्तान नहीं है। घर पहुंचते ही उसने आँगन में अपने पुत्र को बाल-क्रीड़ा करते देखा। उसने उसको देखकर अपने मन में विचार किया कि मेरी तो कोई सन्तान ही न थी, यह कहां से आया है? सम्भवतः मेरी पत्नी व्यभिचारिणी है और उसने इसे इसी तरह पैदा किया होगा। यों ही सोचता हुआ वह अपनी पत्नी को मारने को तैयार हो गया। उसी बीच जब उसकी मां आई तो उसने अपनी मां से सब हाल समाचार पूछे तो उसकी मां ने उसकी पत्नी के आचरण की भूरि-भूरि प्रशंसा की और कहने लगी कि यदि यह व्यभिचारिणी ही होती तो इसके बाद भी तो यह सन्तान उत्पन्न कर सकती थी। मां की बातों को सुनकर आये हुए क्रोध को रोक कर पत्नी की हत्या करने से अपने को बचा लेने के फलस्वरूप उसने पुनः हृदय से बाबा के प्रति धन्यवाद व्यक्त किया।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’