Badlaav Story: अनु वही करती जो उसका दिल चाहता।घूमों फिरों मस्ती करो, यही उसने अपनी दिनचर्या बना रखी थी।उसने सिनेमा हाॅल में”गुमराह”पिक्चर देखने का मूड बना लिया और पति सुनील  से कहा..,”सुनो आज शाम  को पिक्चर  चलते हैं। गुमराह लगी है,वापसी में वहीं कुछ खा लेगें और रोहन  के लिए पैक करवा लाएंगे।” 

ओ. के.डार्लिंग…,लेकिन पापा के लिए  तो कुछ  बना दो, वह कब तक भूखे बैठे रहेगें..सुनील  ने कहा।

“अरे वो सुबह का खाना बचा पड़ा है,पापा वही खा लेगें।”

“फिर वही बात की तुमने..,पापा को चबाने में दिक्कत है, उनके लिए कुछ फ्रेश बना दो..अनु।”

बेटे रोहन के पेपर चल रहे हैं,वह घर में ही है,वह खाना गरम कर पापा को दे देगा,खाना गरम करने से ठीक रहेगा।

“सुबह का नहीं, पापा के लिए  कुछ  फ्रेश बना दो।”

तुम भी ना, मुझे हर समय चूल्हे पर चढ़ाए रखते हो…,अनु ने खीजते हुए  कहा।

ऐसा मैने क्या कह दिया…, अनु? बुढ़ापे के पड़ाव से हर व्यक्ति को गुजरना है,आज जिस जगह पापा है कल हम होंगें…समझीं। 

“वैसे भी किसी ने सही कहा है,”माता -पिता को बुढ़ापा उतना कमजोर नहीं करता,जितना हम लोगों का रवैया कमजोर करता है।”

“अरे माता पिता उस  पेड़ के समान  होते हैं, जो हमें बिना स्वार्थ  के छाया देते हैं।”यह सोचो हमें भी बुढ़ापा आएगा,रोहन  को अच्छे संस्कर दो,जैसा हम बोएगें वैसा ही काटेगें।”

ऐसा कर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही हो, सुनील  गुस्से से कह अपने रूम में चला गया और अनु भारी मन से किचन में।

पिता जी सब सुन रहें थे, उन्हे बेटे का पत्नी से अपने लिए झगड़ना अच्छा नहीं लगा, हाँ बुदबुदाते हुए इतना जरूर कहा, किसी को मेरी चिंता करने की जरूरत नहीं है। मेरे लिए आपस में झगड़ा क्यों? 

बराबर में बैठा हुआ पोता (रोहन) भी सुन रहा था,वह यह जान  गया कि माँ-पापा का झगड़ा होना बाबा को ठीक नहीं लगा…,वह बाबा से बोला ,”क्या हुआ बाबा ,क्यों परेशान  हो? मैं हूँ ना,फिकर नोट।”

जैसा बोओगे वैसा काटोगे

“चलो बाबा लूडो खेलते हैं, मैं पढ़ते-पढ़ते बोर हो गया।”

बाबा जी खुश  हो गए। यही निस्वार्थ प्रेम के कुछ पल थे जिनमें बाबा बच्चा बन जाते और अपना दुख भूल जाते।

अनु और सुनील के मूवी जाने के बाद रोहन ने फोन उठाया और एक अच्छे होटल से थाली आर्डर की और खुद भी खाई अपने बाबा को भी खिलाई।

“पोते का यह असीम प्यार देख बाबा की आँखे भर आईं और माथा चूमा।”

अगले दिन करियर को लेकर अनु और सुनील रोहन से डिस्कस कर रहे थे कि अचानक से अनु ने रोहन से कहा,”जब तुम्हारा करियर बन जाएगा तो हमारा भी बुढ़ापा सुधर जाएगा!”

रोहन से चुप नहीं रहा गया..,और तपाक से जवाब दिया हां,” बाबा का भी तो सुधर गया.., और इतना बोल कर रोहन वहां से उठकर बाबा के कमरे में चला गया।”

“बेटे के बोले शब्दों से अनु को झटका लगा।”

थोड़ी देर बाद पिताजी के कमरे से हंसने की आवाजें आता हुआ देख अनु में झांक कर देखा और सोचा.., दोनों बाबा -पोते एक दूसरे के साथ कितना खुश हैं,बड़ों की छाया उस विशाल बरगद के समान होती है जिस की अहमियत उसके कटने के बाद पता चलती है। 

“ओह.., मैं भी वही गलती करने जा रही थी।”