कुछ खट्टी कुछ मिट्ठी—गृहलक्ष्मी की कहानियां: Makar Sankranti Story
Kuch Khatti Kuch Mithi

Makar Sankranti Story: “कल चौदह जनवरी है। कल की तैयारी शुरू करो। सब लोग पतंगों का इंतजाम कर लो ।
हम सभी बच्चे छत पर जाकर पतंगे उड़ाएंगे!”

हमेशा की तरह हमारे टीम के बॉस राघव भैया ने कहा।

” छत पर क्यों?, विनी ने पूछा.. हम बड़े मैदान जाकर क्यों नहीं पतंगे उड़ाएंगे?”

” विनी, बड़े मैदान में हवा उतनी तेज नहीं आती है। हमारे छत पर खूब हवा आती है क्योंकि हमारी छत मैदान से दोगुनी ऊंची है इसलिए कल सब लोग पतंग, मांझा, चकरी सब तैयार रखना ।
स्नान और पूजा के बाद हम सब छत पर आ जाएंगे।”

राघव ने बड़े भाई का कर्तव्य निभाते हुए कहा।

राघव हम सबका बड़ा भाई था।

हम सब संयुक्त परिवार में रहते थे ।गांव में हमारे दादा जी का काफी बड़ा मकान था ।

नीचे काफी बड़ा अहाता था । इसमें एक तरफ गाएँ- बैले बंधी होती थीं। दूसरी तरफ बड़ा सा आंगन था।

उससे लगे हुए दो तलों का घर था ।जिसकी छत पर हम सबके पतंग उड़ाने का प्रोग्राम बना था।

पहले चौदह जनवरी को ही तिल सक्रांति मनाया जाता था।

दूसरे दिन तिल संक्रांति का दिन था। घर में दादी ने स्नान के बाद पूजा करने को कहा।

आज के दिन खिचड़ी बनती है।गुड़ और तिल के लड्डू, गजक और पेड़े मिलते हैं।

नीचे बड़े आंगन में खिचड़ी बन रही थी। वही चूल्हे में शकरकंदी और आलू भुन रहा था ।

नाश्ते के बाद हम सभी बच्चे ऊपर छत पर पतंग उड़ाने पहुंचे ।

आसमान में रंग बिरंगे पतंगें उड़ रहे थे।

राघव भैया ने सबको काम बांट दिया
” विनी, इन पतंगों को लूटना है कैसे भी ।बस तू माझा संभाल।
और चकरी अनु ,तुम पकड़ो।मैं पतंगों को ठीक करता हूं ।”

थोड़ी देर तक आसमान में पतंग को सीधा कर आसमान में उड़ाने में समय लगा। उसके बाद एक-एक कर राघव भैया ने पतंग काटना शुरू कर दिया।

एक एक पतंग कटती और हम सबके चेहरे पर मुस्कुराहट फैलती जाती।

हम सब बच्चे जोर शोर से चिल्लाते।
राघव भैया के चेहरे पर विजय की मुस्कुराहट फैलती जा रही थी। आखिर वह हमारे कमांडर जो थे ।

पतंग उड़ाते हुए अचानक राघव भैया की नजर पीछे दीवार पर पड़ी तब वह जोर से चिल्ला उठे ।

” आsss…! चीखते हुए उन्होंने अपने हाथ का मांझा फेंक दिया। अनु ,विनी,अतुल सब नीचे भागो !”

“क्या हुआ भैया?” हम सब भी डरते हुए राघव भैया के पीछे पीछे भागने लगे।

राघव भैया के चिल्लाने की आवाज सुनकर बड़े पापा, पापा ,दादा जी सब लोग सामने आ गए ।

“क्या हुआ राघव? क्यों चिल्ला रहे हो?”

” पापा बंदर …?राघव भैया ने मुश्किल से कहा।

“बंदर ?”पापा ने आश्चर्य से कहा।

“पापा, छत पर बंदर आ गए हैं !”हांफते हुए राघव भैया ने कहा।

सच में छत पर बंदर थे। अब उन लोगों ने मांझा और चकरी संभाल लिया था।

पतंग की डोर अब उनके हाथ में थी ।

नीचे आंगन से सब लोगों ने बंदरों को पतंग उड़ाते हुए देखा तो सब हंसने लगे ।

बड़े पापा ने हंसते हुए कहा “देखो बंदरों को देखकर असली बंदर आ गए।”