Hindi Social Story: विकास अभी ऑफिस में घुसा ही था कि दो लड़के हाथ मे मिठाई का डिब्बा लिए खड़ा था.विकास उससे पहले कुछ कहता, दोनों लड़कों ने उसके पांव छू लिए.
“सर आज आपके कारण हम अपने पैरों पर खड़े हैं “
“अगर आप हमें सहारा ना देते तो हम ना जाने दर दर की ठोकरे खाते?”
विकास फीकी सी मुस्कान लिए हुए बोला “मैने तुम पर नहीं खुद पर उपकार करा हैं “
“तुम लोग अपने मम्मी पापा का नाम रोशन करो बस ये ही मेरा सपना हैं “
विकास फिर क्लास में पढ़ाने घुस गया था.
ये ही तो वो जगह हैं जहां वो खुद को भूल जाता है.
नही तो दो वर्ष पहले तक विकास बेहद बिजनेस ओरिएंटेड था.पहले एडवांस् में फीस जमा होती थी बाद में क्लास शुरू होती थी.
विकास हर बच्चे को एक प्रोडक्ट की तरह देखता था, हर बच्चे की फीस के साथ जुड़ा होता था विकास का एक सपना.विकास अपने कोचिंग इंस्टिट्यूट में अमीर और मेधावी बच्चों का ही एडमिशन करता था.
हर साल पूरे शहर में विकास सर के नाम का डंका बजता था.
विकास ने नियत समय पर श्रुति से विवाह कर लिया था.श्रुति विकास के बिजनेस का मार्केटिंग और अकाउंट सेक्शन संभालती थी.दोनों के रिश्ते पति पत्नी से ज्यादा बिजनेस पार्टनर के लगते थे.मगर आर्यन और आहना के जन्म के बाद रिश्तों में थोड़ी गर्माहट आ गई थी. मगर फिर भी प्यार जैसा कुछ नहीं था.
श्रुति को विकास का पैसों के पीछे का पागलपन पसंद नहीं था.उसे लगता विकास के अंदर एक शिक्षाविद नहीं ब्लकि एक कंजूस और चालक व्यापारी हैं.
कितनी बार श्रुति ने महसूस किया था कि विकास बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा हैं.अगर उसे लगता कि कोई बच्चा उसके इंस्टिट्यूट का रिजल्ट ख़राब कर सकता हैं तो वो उसे बाहर कर देता था. विकास के ऐसे करने से अवसर
उस छात्र का मॉरल इतना डाउन हो जाता था कि वो छात्र खुद को नकारा मान कर घर ही बैठ जाता था.श्रुति की इस बात पर विकास से बहुत बार बहस भी हो जाती थी.
“विकास होनहार छात्र के साथ कामयाब होने में तुम्हारी क्या ही मेहनत हैं?”
“जिन छात्रों को वास्तव मे तुम्हारी जरूरत है उन्हें तो तुम कान पकड़ कर बाहर कर देते हो “
विकास तिलमिला जाता और बोलता “मैने कोई धर्मशाला नहीं खोल रखी हैं “
“अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए मुझे ढेरों रुपये चाहिए “
श्रुति और विकास के बीच इन्हीं बातों के कारण दूरी बढ़ती जा रही थी.
फिर एक रोज विकास के इंस्टीट्यूट में समीर दाखिला लेता हैं.समीर पास के गाँव का होनहार छात्र था.12 में उसके 90 प्रतिशत आए थे.आखों में ढेरों सपने लिए उसने विकास सर के यहां एडमिशन लिया था.समीर के पिता ने जमीन को गिरवी रखकर इंस्टिट्यूट की फीस जमा करी थी.
दो महीने होते होते समीर को समझ आ गया था वो छोटे से गाँव का टॉपर हो सकता हैं मगर इस बड़े शहर मे वो बस एक औसत वर्ग का छात्र ही हैं.उसे कड़ी मेहनत के साथ साथ एक अनुभवी गुरु की आवश्कता हैं जो उसे हर कदम पर गाइड कर सके.
मगर ठीक इसके विपरीत ,विकास ने समीर को एक दिन भरी कक्षा मे कुए का मेंढ़क और रटने वाला पीर कहा था.
कक्षा समाप्त होने पर समीर को रोककर विकास से कहा “तुम वापिस गाँव चले जाओ, ये तुम्हारे बस का रोग नहीं हैं “
समीर हकलाहट से बोला “आप मुझे मौका तो दीजिए, मैं अंग्रेजी सीख लूंगा “
“मुझे आपके ज्ञान और अनुभव की आवश्यकता हैं “
“मेरे पापा की बहुत सारी उम्मीद जुड़ी हैं मुझसे “
विकास व्यंग्य से बोला “तुम्हारे सपने के चक्कर मे, मै अपने सपनों को नहीं तोड़ सकता हूं “
“तुम्हारे जैसे दो-चार और आ जाये, तो मेरा बिजनेस ही ठप हो जायेगा “
“कल आकर अपना हिसाब कर लेना “
समीर के आसुओं का विकास पर कोई असर नहीं हुआ था.
अगले दिन विकास अचानक से लगातर मोबाइल की घंटी से उठ गया.
उधर से कांपती आवाज में किसी ने कहा “सर समीर ने फांसी लगा ली हैं “
विकास एकाएक घबरा उठा.पुलिस के आने से पहले उसने पूरे कमरे की स्क्रीनिंग कर ली थी.
एक नोट मिला था जिसमें समीर ने अपने दिल का हाल बयां कर रखा था.उस नोट को विकास ने चुपचाप उसे अपनी पेंट की पॉकेट में रख लिया था.समीर के घर वाले रोते हुए आए, कोई सबूत ना होने के कारण समीर का केस बंद कर दिया था.
मगर विकास की जेब में रखा हुआ वो पुर्जा उसे तिल तिल मार रहा था.
एक रोज श्रुति ने विकास से कहा भी ” तुम क्यों नहीं जा कर समीर के माता पिता से माफ़ी मांग लेते हो “
“मुझे मालूम हैं तुमने उस शाम उसे बहुत भला बुरा कहा था “
श्रुति की बात सुनते ही विकास भड़क उठा था.
फिर एक रोज घर की सफ़ाई करते हुए श्रुति के हाथ समीर का नोट लग गया था.
श्रुति तिलमिला उठी और उस रोज उनके घर भयंकर झगड़ा हुआ.
विकास बोलता रहा “मैने बस समीर को असलियत से वाकिफ कराया था ,मैं कैसे उसकी मौत का जिम्मेदार हुआ?”
श्रुति धारा प्रवाह बोलती रही “भगवान की लाठी बेआवाज़ होती हैं “
और तभी वो हादसा हो गया था. श्रुति और विकास कोचिंग सेंटर गए हुए थे जब शॉर्ट सर्किट होने के कारण विकास के घर मे आग लग गई थी और ये शॉर्ट सर्किट बस बच्चों के कमरे में ही हुआ था.
जब दौड़ते भागता विकास पहुँचा तो बच्चों की बस राख ही मिल पायी.श्रुति फटी फटी आँखों से कभी विकास तो कभी बच्चों की राख को देख रही थी.
दोनों ही काफी दिनों तक संज्ञा शून्य हो गए थे.
जब विकास को होश आया तो उसका सब कुछ लुट गया था.
बच्चे तो खो चुका था, श्रुति भी उसे छोड़ कर जा चुकी थी. उसके कोचिंग इंस्टिट्यूट की हालत पतली हो गई थी. उसका इंस्टिट्यूट लगभग बंद होने के कगार पर था.
हिम्मत जुटा कर विकास ने एक फैसला लिया और वो समीर के माता पिता से माफ़ी मांगने गाँव पहुंचा, वहां जाकर उसने उस शाम की पूरी बात बतायी साथ ही साथ समीर का लिखा हुआ वो पुर्जा भी विकास ने उनके सुपुर्द कर दिया.
समीर के माता-पिता ने विकास को माफ़ कर दिया था क्योंकि उन्हें मालूम था कि ऊपर वाले ने विकास को बेहद कड़ी सज़ा दे दी हैं.
वापिस आकर विकास ने फिर से पढ़ाना शुरू किया मगर इस बार वो बिजनेस के लिए नहीं खुद के लिए पढ़ा रहा था.गरीब छात्रों से वो कोई फीस नहीं लेता था .उसकी जिंदगी का मकसद अब घरों को रोशन करना था.
ये ही सब सोचते सोचते ना जाने किस पहर में विकास की आंख लग गई थी.सुबह ऑफिस पहुंचते ही खबर मिली कि राज्य सरकार विकास को उसकी निस्वार्थ सेवा के लिए पदम भूषण सम्मान से सम्मानित कर रही हैं.
विकास ने श्रुति को सूचित किया था मगर वो नहीं आयी थी.
विकास अंदर से दुखी था मगर जब वो अवार्ड लेने स्टेज पर पहुंचा तो उसके द्वारा पढ़ाए हुए असंख्य छात्र एक परिवार की तरह खड़े हुए थे और वो लोग ही उसकी खुशी में शामिल होने आए थे.
विकास को लगा शायद समीर और उसके बच्चों ने उसे माफ़ कर दिया हैं.शिक्षा का वास्तविक अर्थ ज्ञान बेचना नहीं ज्ञान बाँटना और अर्जित करना है.शायद विकास को जिंदगी जीने का वास्तविक अर्थ मिल गया था.
