Hindi Motivational Story: अपने पिता के कांपते हाथ देखकर ना जाने क्यों आशी का विश्वास भी कांप रहा था. आशी ने अपने पापा दीपक को सदा एक चट्टान की तरह देखा था, अडिग और मजबूत. अपने पापा के सहारे ही तो आशी अपने झूठे और मक्कार पति मनुज को छोड़ कर इस घर मे आ […]
Author Archives: रितू वर्मा
हौसले की उड़ान-गृहलक्ष्मी की कहानी
Hindi Kahani: हाथ में कॉफी का कप लिए शिल्पी देर तक शून्य में घूरती रही.भारत की एक टॉप एमएनसी में उसने टेस्ट और इंटरव्यू दिया था। रिज़ल्ट उसी दिन आया था। उसे पूरी उम्मीद थी कि इस बार उसका चयन हो जाएगा। वह अपनी माँ को एक बेहतर जीवन देना चाहती थी। मगर सबकुछ अच्छा होने के बावजूद उसका नाम सूची में नहीं था.क्या ये अंधकार ही उसके जीवन की सच्चाई बन गई हैं? एक इंटरव्यू के बाद दूसरा मगर रिजल्ट जीरो. दिल बैठ गया। उसे लगा कि वह कब तक माँ के पैसों पर बोझ बनी रहेगी? हर महीने मम्मी से पैसे मांगते हुए उसे अब शर्म आती हैं. इतने में पीछे से माँ आईं। उन्होंने लाइट ऑन करते हुए कहा— “यहाँ अंधेरे में क्यों बैठी हो, बेटी?” शिल्पी फीकी हंसी से बोली— “मम्मी, क्या इस रोशनी से मेरी ज़िंदगी का अंधेरा दूर होगा? सरकारी नौकरी में आरक्षण है, प्राइवेट में सिफारिश और भाई-भतीजावाद।” ” अब तो अपनी डिग्रियों पर भी शक होने लगा है “ माँ ने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोलीं— “बेटा, अंधेरा कितना भी गहरा हो, सवेरा ज़रूर आता है।” माँ का हौसला शिल्पी को थोड़ा संभाल गया। फिर माँ ने कहा— “चल, अविका को फोन कर ले। दोनों की बातें होंगी तो मूड हल्का होगा।” लेकिन शिल्पी ने मना कर दिया। “उसका तो इंटरव्यू मुझसे भी खराब हुआ था, क्या बात करूँ?” दो दिन तक शिल्पी का मूड ख़राब रहा, मगर तीसरे दिन उसने मायूसी उतार फेंकी। कुछ और कंपनियों में ओपनिंग निकली थी। उसने अप्लाई करने का फैसला किया और अविका को भी बताने सोचा। फोन मिलाया तो अविका की माँ ने बताया— “बेटा, उसकी तो परसों जॉइनिंग है। उसका सिलेक्शन हो गया।” फोन रखते ही शिल्पी का दिल भर आया। तकिये से लिपटकर वह देर तक रोती रही। जलन नहीं थी, मगर नाइंसाफी चुभ रही थी। बचपन से लेकर हर एग्ज़ाम तक वह अविका का सहारा रही थी। फिर भी उसका चयन नहीं हुआ और अविका कामयाब हो गई। शाम को माँ उसे डिनर पर ले गईं। धीरे से समझाया “बेटा, ज़िंदगी हमेशा हमारी सोच के हिसाब से नहीं चलती। कई बार हमें लगता है कि दुनिया हमारे साथ बेईमानी कर रही है। पर मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। तुम्हें तुम्हारे हिस्से की सफलता ज़रूर मिलेगी।” उस रात शिल्पी देर तक सोचती रही। “माँ ने इतनी ठोकरें खाकर भी हिम्मत नहीं हारी… और मैं एक छोटे से झटके पर हार मान लूँ?” “मां के साथ तो कोई हौंसले देने वाला भी नहीं था फिर भी वो डटी रही और माँ उसके साथ ढाल बन कर खड़ी है और वो हार मान कर बैठ गयी हैं “ सुबह होते ही उसने फिर से कोशिश शुरू कर दी थी. आखिरकार मेहनत रंग लाई। उसे एक कंपनी से जॉब ऑफर मिला। तनख्वाह बहुत ज़्यादा नहीं थी, मगर कम भी नहीं थी। वह संतोष से काम करने लगी. लेकिन दिल के किसी कोने में अविका की याद फांस की तरह चुभती रहती। एक दिन अचानक अविका का फोन आया। “अरे शिल्पी, तुम तो मुझे भूल ही गई!” थोड़ी कड़वाहट के साथ शिल्पी ने कहा—”जैसे तुम बिना बताए नौकरी जॉयन कर ली थी “ अविका हँसते हुए बोली— “यार, मुझे लगा तुम्हें बुरा लगेगा। वैसे भी… डैड ने पहले ही कहा था—टेंशन मत ले, रिज़ल्ट अपने हक़ में रहेगा। बड़ी कंपनियों में इंटरव्यू तो फॉर्मेलिटी है। असली बात बाद में होती है” शिल्पी चुप रह गई. उसे सब समझ आ रहा था कि ये नौकरी अविका को काबिलियत के बलबूते पर नहीं ब्लकि सिफारिश की बैसाखी के कारण मिली हैं. अविका खुशामदी स्वर में बोली “चल तेरी शिकायत दूर करते हैं और कल घर पर लंच पर मिलते हैं “ लंच पर अविका बोली “देख शिल्पी ये डेटा एनालिसिस और रिपोर्ट तेरे लिए बहुत आसान हैं, मदद कर दे थोड़ी सी “ “बाकी क्लाइंट को तो मैं पटा लूँगी “ धीरे-धीरे यह सिलसिला बन गया. अविका हर वीकेंड शिल्पी को बुलाती, लंच या गेट-टुगेदर के बहाने पूरा काम उससे करवाती—रिपोर्ट्स, क्लाइंट प्रेज़ेंटेशन, मार्केट एनालिसिस.कंपनी में ओपनिंग की बात होते ही अविका टाल देती. कभी ऐसे बोलती “यार बड़ी बड़ी कंपनियां में थोड़ा बहुत जान पहचान चलती हैं “ शिल्पी समझ रही थी कि उसका इस्तेमाल हो रहा है, मगर वह चुप रहती. एक दिन शिल्पी को एक शानदार प्रोजेक्ट आइडिया सूझा। उसने अविका से साझा किया। अविका हँसते हुए बोली—”ये सब क्लाइंट अप्रूव नहीं करेंगे। वैसे भी प्रोजेक्ट हमें कंपनी के कनेक्शन से ही मिल रहा है” “मगर शिल्पी ने हार नहीं मानी। उसने सीधे क्लाइंट को अपना आइडिया मेल कर दिया था “ एक महीना बीत गया। शिल्पी भी उस बात को भूल चुकी थी। तभी एक दिन मेल आया—क्लाइंट को उसका आइडिया बहुत पसंद आया है. इतना ही नहीं, उसे ऑनशोर में एक नामी कंपनी से ऑफर भी मिला था.सैलरी उसकी मौजूदा आय से दस गुना ज्यादा थी. कॉन्ट्रैक्ट साइन करते वक्त शिल्पी की आँखें चमक रही थीं.उसे लगा थोड़ी देर लगी मगर कुदरत ने उसके हिस्से की कामयाबी उसे दे दी हैं. जब आँखों में जुगनुओं की चमक लिए शिल्पी घर पहुंची तो माँ ने मुस्कुराकर पूछा—“इतनी खुश क्यों है?” शिल्पी ने गहरी सांस ली और कहा”मम्मी, आप सही कहती थीं। मेहनत कभी बेकार नहीं जाती. फर्क बस इतना है कि सिफारिश से मिली कुर्सी टिकती नहीं, लेकिन मेहनत से मिली इज्ज़त हमेशा साथ रहती है” अविका को जब पता चला तो इतराते हुए बोली “चलो मेरे कनेक्शन से तुम्हारा भी भला हो गया “ शिल्पी अंदर से इतनी संतुष्ट थी कि उसने अविका की बेवकूफी का कोई ज़वाब नहीं दिया. हवाई जहाज़ की उड़ान के साथ शिल्पी ने अपनी मायूसी और हताशा पीछे छोड़ दी.हौंसले की उड़ान ने सिफ़ारिशों के दलदल को कहीँ दूर छोड़ दिया था.
अर्थ-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Hindi Social Story: विकास अभी ऑफिस में घुसा ही था कि दो लड़के हाथ मे मिठाई का डिब्बा लिए खड़ा था.विकास उससे पहले कुछ कहता, दोनों लड़कों ने उसके पांव छू लिए. “सर आज आपके कारण हम अपने पैरों पर खड़े हैं “ “अगर आप हमें सहारा ना देते तो हम ना जाने दर दर की ठोकरे खाते?” विकास फीकी सी मुस्कान लिए हुए बोला “मैने तुम पर नहीं खुद पर उपकार करा हैं “ “तुम लोग अपने मम्मी पापा का नाम रोशन करो बस ये ही मेरा सपना हैं “ विकास फिर क्लास में पढ़ाने घुस गया था. ये ही तो वो जगह हैं जहां वो खुद को भूल जाता है. नही तो दो वर्ष पहले तक विकास बेहद बिजनेस ओरिएंटेड था.पहले एडवांस् में फीस जमा होती थी बाद में क्लास शुरू होती थी. विकास हर बच्चे को एक प्रोडक्ट की तरह देखता था, हर बच्चे की फीस के साथ जुड़ा होता था विकास का एक सपना.विकास अपने कोचिंग इंस्टिट्यूट में अमीर और मेधावी बच्चों का ही एडमिशन करता था. हर साल पूरे शहर में विकास सर के नाम का डंका बजता था. विकास ने नियत समय पर श्रुति से विवाह कर लिया था.श्रुति विकास के बिजनेस का मार्केटिंग और अकाउंट सेक्शन संभालती थी.दोनों के रिश्ते पति पत्नी से ज्यादा बिजनेस पार्टनर के लगते थे.मगर आर्यन और आहना के जन्म के बाद रिश्तों में थोड़ी गर्माहट आ गई थी. मगर फिर भी प्यार जैसा कुछ नहीं था. श्रुति को विकास का पैसों के पीछे का पागलपन पसंद नहीं था.उसे लगता विकास के अंदर एक शिक्षाविद नहीं ब्लकि एक कंजूस और चालक व्यापारी हैं. कितनी बार श्रुति ने महसूस किया था कि विकास बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा हैं.अगर उसे लगता कि कोई बच्चा उसके इंस्टिट्यूट का रिजल्ट ख़राब कर सकता हैं तो वो उसे बाहर कर देता था. विकास के ऐसे करने से अवसर उस छात्र का मॉरल इतना डाउन हो जाता था कि वो छात्र खुद को नकारा मान कर घर ही बैठ जाता था.श्रुति की इस बात पर विकास से बहुत बार बहस भी हो जाती थी. “विकास होनहार छात्र के साथ कामयाब होने में तुम्हारी क्या ही मेहनत हैं?” “जिन छात्रों को वास्तव मे तुम्हारी जरूरत है उन्हें तो तुम कान पकड़ कर बाहर कर देते हो “ विकास तिलमिला जाता और बोलता “मैने कोई धर्मशाला नहीं खोल रखी हैं “ “अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए मुझे ढेरों रुपये चाहिए “ श्रुति और विकास के बीच इन्हीं बातों के कारण दूरी बढ़ती जा रही थी. फिर एक रोज विकास के इंस्टीट्यूट में समीर दाखिला लेता हैं.समीर पास के गाँव का होनहार छात्र था.12 में उसके 90 प्रतिशत आए थे.आखों में ढेरों सपने लिए उसने विकास सर के यहां एडमिशन लिया था.समीर के पिता ने जमीन को गिरवी रखकर इंस्टिट्यूट की फीस जमा करी थी. दो महीने होते होते समीर को समझ आ गया था वो छोटे से गाँव का टॉपर हो सकता हैं मगर इस बड़े शहर मे वो बस एक औसत वर्ग का छात्र ही हैं.उसे कड़ी मेहनत के साथ साथ एक अनुभवी गुरु की आवश्कता हैं जो उसे हर कदम पर गाइड कर सके. मगर ठीक इसके विपरीत ,विकास ने समीर को एक दिन भरी कक्षा मे कुए का मेंढ़क और रटने वाला पीर कहा था. कक्षा समाप्त होने पर समीर को रोककर विकास से कहा “तुम वापिस गाँव चले जाओ, ये तुम्हारे बस का रोग नहीं हैं “ समीर हकलाहट से बोला “आप मुझे मौका तो दीजिए, मैं अंग्रेजी सीख लूंगा “ “मुझे आपके ज्ञान और अनुभव की आवश्यकता हैं “ “मेरे पापा की बहुत सारी उम्मीद जुड़ी हैं मुझसे “ विकास व्यंग्य से बोला “तुम्हारे सपने के चक्कर मे, मै अपने सपनों को नहीं तोड़ सकता हूं “ “तुम्हारे जैसे दो-चार और आ जाये, तो मेरा बिजनेस ही ठप हो जायेगा “ “कल आकर अपना हिसाब कर लेना “ समीर के आसुओं का विकास पर कोई असर नहीं हुआ था. अगले दिन विकास अचानक से लगातर मोबाइल की घंटी से उठ गया. उधर से कांपती आवाज में किसी ने कहा “सर समीर ने फांसी लगा ली हैं “ विकास एकाएक घबरा उठा.पुलिस के आने से पहले उसने पूरे कमरे की स्क्रीनिंग कर ली थी. एक नोट मिला था जिसमें समीर ने अपने दिल का हाल बयां कर रखा था.उस नोट को विकास ने चुपचाप उसे अपनी पेंट की पॉकेट में रख लिया था.समीर के घर वाले रोते हुए आए, कोई सबूत ना होने के कारण समीर का केस बंद कर दिया था. मगर विकास की जेब में रखा हुआ वो पुर्जा उसे तिल तिल मार रहा था. एक रोज श्रुति ने विकास से कहा भी ” तुम क्यों नहीं जा कर समीर के माता पिता से माफ़ी मांग लेते हो “ “मुझे मालूम हैं तुमने उस शाम उसे बहुत भला बुरा कहा था “ श्रुति की बात सुनते ही विकास भड़क उठा था. फिर एक रोज घर की सफ़ाई करते हुए श्रुति के हाथ समीर का नोट लग गया था. श्रुति तिलमिला उठी और उस रोज उनके घर भयंकर झगड़ा हुआ. विकास बोलता रहा “मैने बस समीर को असलियत से वाकिफ कराया था ,मैं कैसे उसकी मौत का जिम्मेदार हुआ?” श्रुति धारा प्रवाह बोलती रही “भगवान की लाठी बेआवाज़ होती हैं “ और तभी वो हादसा हो गया था. श्रुति और विकास कोचिंग सेंटर गए हुए थे जब शॉर्ट सर्किट होने के कारण विकास के घर मे आग लग गई थी और ये शॉर्ट सर्किट बस बच्चों के कमरे में ही हुआ था. जब दौड़ते भागता विकास पहुँचा तो बच्चों की बस राख ही मिल पायी.श्रुति फटी फटी आँखों से कभी विकास तो कभी बच्चों की राख को देख रही थी. दोनों ही काफी दिनों तक संज्ञा शून्य हो गए थे. जब विकास को होश आया तो उसका सब कुछ लुट गया था. बच्चे तो खो चुका था, श्रुति भी उसे छोड़ कर जा चुकी थी. उसके कोचिंग इंस्टिट्यूट की हालत पतली हो गई थी. उसका इंस्टिट्यूट लगभग बंद होने के कगार पर था. हिम्मत जुटा कर विकास ने एक फैसला लिया और वो समीर के माता पिता से माफ़ी मांगने गाँव पहुंचा, वहां जाकर उसने उस शाम की पूरी बात बतायी साथ ही साथ समीर का लिखा हुआ वो पुर्जा भी विकास ने उनके सुपुर्द कर दिया. समीर के माता-पिता ने विकास को माफ़ कर दिया था क्योंकि उन्हें मालूम था कि ऊपर वाले ने विकास को बेहद कड़ी सज़ा दे दी हैं. वापिस आकर विकास ने फिर से पढ़ाना शुरू किया मगर इस बार वो बिजनेस के लिए नहीं खुद के लिए पढ़ा रहा था.गरीब छात्रों से वो कोई फीस नहीं लेता था .उसकी जिंदगी का मकसद अब घरों को रोशन करना था. ये ही सब सोचते सोचते ना जाने किस पहर में विकास की […]
हनीमून-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Hindi Kahani:ज्योति को आज उसकी पहली सैलरी मिली थी.28 वर्षीय जयति ने काफी पापड़ बेले थे तब कहीं जाकर उसे ये सरकारी नौकरी मिली थी.अगर प्राइवेट सेक्टर से तुलना करी जाए तो 55 हजार कुछ भी मायने नहीं रखते , मगर सरकारी नौकरी में समय इतना अधिक नहीं देना पड़ता हैं और ना ही इतना तनाव रहता हैं.सबसे अच्छी बात ये हैं कि आपकी नौकरी सुरक्षित है और पीएफ और ग्रेच्युटी में भी प्राइवेट सेक्टर की तरह कोई घपला नहीं होता हैं. पहली सैलरी मिलते ही सबसे पहले जयति ने अपनी मम्मी के लिए एक साड़ी खरीदी , साड़ी की कीमत बस दो हजार थी मगर ये जयति के लिए इसलिए खास थी क्यूंकि पहली बार उसकी मम्मी के लिए कोई ऐसी साड़ी आई हैं जिसमें कोई डिफेक्ट नहीं है. मम्मी साड़ी लेते हुए बोली”अरे इसकी क्या जरूरत थी , इतनी सारी साड़ी हैं तो मेरे पास” जयति बोली”हां पता हैं कैसी साड़ी हैं तुम्हारे पास, अब इसे किसी के लिए रखना मत.चुपचाप पहन लेना” जयति की मम्मी सरल हुलसते हुए बोली”तेरी शादी में पहनूंगी” जयति के मुंह का जायका खराब हो गया. चिढ़ते हुए बोली”और भी हैं गम ज़माने में शादी के सिवा, परसो अपने जन्मदिन पर पहनना” जयति सांवली सलोनी प्यारी सी एक आम सी लड़की थी.बहुत बड़े बड़े नहीं, मगर छोटे छोटे सपने देखती थी और अपनी मेहनत के बल पर वो उन सपनो को भी पूरा करती थी.खूबसूरती में उसका कहीं नंबर नहीं लगता था मगर दिखने में वो आकर्षक थी. अपनी मम्मी, अपनी दीदी, अपनी सहेली या यूं कहे कि अपने आसपास की सारी विवाहित औरतों को जयति ने समझौते करते हुए ही देखा था.ऐसा नहीं जयति को शादी से या पुरुषो से नफरत दी मगर जयति को अपने सपनो की बागडोर किसी और के हाथ में देने की इच्छा नहीं थी. अगर कोई ऐसा साथी मिल जाए जो उसकी जिंदगी का मांझा अपने हाथ में लेने की कोशिश ना करे तो जयति तैयार थी,मगर चेहरे के ऊपर मुखौटे लगाकर चलने वाली दुनिया कहां ऐसे चलती हैं? कुछ को जयति के रंग से दिक्कत थी ,कुछ को जयति की उम्र से, कुछ लोगो को जयति की बेबाकी पसंद नहीं थी तो कुछ लोगो को उसका नौकरी करना भी नही भाता था.लड़के वाले चाहते थे वो नौकरी करे मगर उनकी पसंद से. अपने मम्मी के 50 जन्मदिन पर शाम को जयति ने एक छोटी सी पार्टी आयोजित करी थी.जयति की मम्मी अपने लिए ऐसा सरजाम देखकर दुल्हन की तरह शर्मा रही थी.जयति ने जब केक कटिंग ले लिए मम्मी को बुलाया तो मम्मी अपराधी की तरह बोली”अरे तेरे पापा नहीं हैं , क्या अच्छा लगेगा ऐसे केक काटना उनके बिना?” जयति झुंझलाते हुए बोली”ओफ्फो मम्मी, पापा अपने बर्थडे पर दोस्तो के साथ मनाते हैं और तुम्हे पहली बार बर्थडे मनाते हुए गिल्ट महसूस हो रहा हैं” पूरी पार्टी में जयति की मम्मी बेहद खुश थी, सच तो ये हैं कि ये शायद उनकी याद में पहला बर्थडे था जब वो एंजॉय कर रही थी. नही तो अपने बर्थडे पर भी जयति की मम्मी सरल पति और बच्चों की पसंद का ही बनाती रह जाती हैं.उपहार के सुनहले कवर को हटाते हुए सरल बच्चों की तरह खिलखिला रही थी.उपहार तो नॉर्मल ही थे मगर सरल के चेहरे पर जो खुशी थी वो अनमोल थी. जयति रात में अपनी मम्मी की गलबहियां डालते हुए बोली”खुश हो?” सरल बोली”बहुत, आज तक किसी ने भी मेरे बारे में इतना नहीं सोचा” जयति चिढ़ाते हुए बोली”आपके पति परमेश्वर ने भी नही?” “और आप मुझे बोलते रहते हो कि शादी के बाद ही किसी औरत की जिंदगी मुकम्मल होती हैं” सरल कुछ नही बोली मगर जयति की बात ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया था. जयति की पोस्टिंग बरेली हो गई थी.जयति के पापा उसे घर किराए पर दिलाने आए थे.बरेली अपने आप में एक छोटा सा शांत शहर था कुछ बातो में मॉर्डन था और कुछ बातो में अभी भी थोड़ा सा कंजरवेटिव.फ्लैट कल्चर था मगर अभी भी पूरी तरह से नहीं हुआ था. हर कोई जयति को घर तो देना चाहता था , उसका प्रौढ़ शिक्षा अधिकारी होना उन्हें भाता था मगर उसकी अब तक शादी ना होना, उसका अकेले रहना सब कुछ लोगो को थोड़ा अटपटा लगता था.मगर थोड़े से प्रयास के बाद जयति को एक नई कॉलोनी में ऊपर एक छोटा सा पोर्शन मिल गया था.सबसे अच्छी बात ये थी कि ये घर जयति के दफ्तर से काफी करीब था.जयति का समान रखवाकर जयति के पापा विनोद जयति को ये सलाह देते हुए गए”अब शादी कर के सेटल हो जाओ” “बड़ी मुश्किल से ये घर मिल हैं.तुम्हार पोस्टिंग तो ऐसे ही छोटे शहरों में होगा, कब तक सबको बताओगी कि शादी क्यों नहीं करी अब तक?” पापा के जाने के बाद एक हफ्ते के भीतर ही जयति अपने नए घर और नई दिनचर्या में ढल गई थी. नीचे जयति के मकान मालिक रहते थे जिनके परिवार में सतीश, उनकी पत्नी कुसुम, बेटा प्रिंस और बहू आशी थे.उनकी बहु आशी जयति की हमउम्र थी इसलिए उनकी हाय हेलो हो जाती थी. शुरू के दो दिन तक जयति ने उनके घर पर ही डिनर किया था.सतीशजी खुले दिल के जिंदादिल इंसान थे, वो तो कह रहे थे कि जयति को रात के खाने के झंझट में नहीं पड़ना चाहिए.जयति को भी ये सुझाव पसंद आया था मगर उनकी पत्नी ने दूसरे दिन ही जयति के बारे में इतनी पूछताछ करी कि जयति ने कान ही पकड़ लिए. “शादी के लिए लड़का देखा ही नहीं या बात ही नहीं बनी” “कैसा लड़का चाहिए? कास्ट का चक्कर तो नहीं हैं, खाना बना सकती हो क्या, टूटा हुआ दिल तो नहीं हैं?” तब से जयति ने उस घर से दूरी बना ली थी.जब भी जयति दफ्तर के लिए निकलती या दफ्तर से आती , तो उनकी पैनी नज़रे जरूर जयति पर ही होती थी. तीन महीने बीत चुके थे.आज आशी की गोदभराई थी जयति दफ्तर से जल्दी आ गई थी और खूब सजधज कर नीचे चली गई थी. आशी बेहद खूबसूरत लग रही थी.तभी एक आशी की हमउम्र आई और जयति से बोली”आपके पति क्या करते हैं?” जयति मुस्कुराते हुए बोली”मेरी अभी शादी नहीं हुई हैं” वो कुछ कन्फ्यूजन में बोली”अरे आपको देखकर लगा शायद आपकी शादी हो गई हैं” जयति को समझ आ गया था उसकी साडी, गहने देखकर उसे लगा होगा.फिर कुसुम आंटी बोली”अरे कोई अच्छा लड़का हो तो बताना” “वैसे तो आजकल सभी लड़के इस उम्र तक शादी कर लेते है.किसी प्राइवेट फर्म में होती तो और बात थी , सरकारी दफ्तर में तो लड़के कहां मिलेगे?” एक और पड़ोस की आंटी थी जो जयति को आंखो ही आंखो में तोल रही थी. छूटते ही बोली”मेरा भतीजा हैं नोएडा में ,मगर इसका पोस्टिंग यहां हैं और इसके बराबर ही होगा या एकाध साल छोटा” कोई जयति को सलाह देते हुए बोल रहा था”जल्दी जल्दी शादी कर लो , वरना बाद में मां बनने में दिक्कत आ जाती हैं” जयति को समझ नही आया कि इस सदी में वो कैसे इस घर के लिए एक अजूबा बन गई थी.क्या 30 साल बहुत अधिक उम्र होती हैं? जितनी खुशी के साथ जयति इस उत्सव में आई थी, उतने ही कसैले मन के साथ वापिस चली गई.उससे वहां बैठ कर खाना भी नही खाया गया. घर आकर भी उसका मन विचिलत रहा, कहां गलती हो गई उससे? क्या अब वो कभी भी खुश नहीं रह पाएगी? विवाह एक समाज में उठने बैठने के लिए कितना जरूरी है खासतौर में मध्यमवर्गीय समाज में जयति को आज समझ आया था.मम्मी पापा की सारी बाते उसे अब समझ आ रही थी. अभी वो यूं ही अनमनी सी बैठी थी कि प्रिंस खाने का थाल लिए खड़ा था”आप बिना खाना खाए ही आ गई?” “ये छोटा शहर हैं और ऐसी ही छोटी सोच हैं यहां के लोगो की” “मैं तो आपको बहादुर समझता था ,आप तो पहले ही मैदान छोड़ कर भाग गई” जयति उदासी से बोली”आपको समझ नही आयेगा” फिर प्रिंस थोड़ी देर बैठा रहा और जयति को हंसाने का प्रयास करता रहा था. प्रिंस के जाने के बाद भी बहुत देर तक जयति प्रिंस की बातो में डूबी रही थी.प्रिंस का इस तरह उसके लिए खाना लाना, उससे बाते करना ,सब कुछ जयति को भा रहा था. फिर उस दिन के बाद से प्रिंस और जयति के बीच मैसेजेस का आदान प्रदान होने लगा.10 दिनों में ही ये मैसेजेस थोड़े इनफॉर्मल होने लगे थे. तभी एक दिन शाम को जयति के मकानमालिक का पूरा परिवार किसी विवाह में गया था दो दिनों के लिए.आशी नही जा सकती थी इसलिए जयति को आशी के साथ रहना था.आशी पूरा समय प्रिंस के प्यार और केरिंग नेचर की बात करती रही.आशी की बात सुनकर जयति आशी से बोली”क्या प्रिंस ने कभी भी चीट करने की कोशिश नहीं करी” आशी बोली”अरे चार साल डेट के बाद हमने शादी करी थी” “वो और लड़को जैसा नहीं हैं” जयति कुछ बोली नहीं मगर वो आशी की बातो से सहमत नहीं थी क्यूंकि प्रिंस के मैसेज जो वो जयति को भेजता था ,कुछ और ही बयां कर रहे थे. जब जयति ऑफिस पहुंची तो प्रिंस का कॉल आ रहा था.जयति ने उठाया तो पहले तो प्रिंस ने जयति से इधर उधर की बात करी , आशी के बारे में पूछा और फोन रखने से पहले प्रिंस ने कहा “तुम्हारे बिना सब कुछ अधूरा लगता हैं.तुम्हारे जैसी स्ट्रांग लड़की चाहिए थी मगर आशी जैसी छुई मुई मिल गई “ […]
सॉरी पापा-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Hindi Story: आरोही खिड़की से बहार देख रही थी. बारिश की बूंदे उसके मन को बारबार रंगो की दुनिया में खींच रही थी.आरोही ने आंख बचाकर इधर उधर देखा, उसकी दीदी वैभवी मेडिकल की पढ़ाई में व्यस्त थी और मम्मी मोबाइल में डूबी हुई थी.चुपके से आरोही ने अपनी ड्राइंग फाइल निकली और बारिश की […]
