Hindi Kahani: “अरे पिता जी आप चिंता मत कीजिए और मां से कहना मेरा खाना – पीना भी अच्छा चल रहा है और पढ़ाई भी बहुत अच्छी चल रही है। यहां सब कुछ अच्छा है और बहुत ही जल्दी मिठाई खाने का दिन भी आ जायेगा। चलिए पिता जी अब फोन रखता हूं , कोचिंग का समय भी हो गया है”। अपने पिता जी से फोन पर इतना कहकर राघव वहीं जमीन पर बैठ जाता है और एक अजीब से डर के साए में खुद को पाता है। तभी बाहर से कुछ आवाज़ें आने लग जातीं हैं। जिनको सुनकर राघव अपने कमरे का दरवाज़ा खोलकर बाहर आकर देखता है, कि सभी लोग एक साथ कहीं जा रहे थे। राघव ने ध्यान से सुना तो उसे मालूम हुआ कि आज प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम आ चुका है जो कि सूचना पटल पर लगा दिया गया है। राघव ने तुरंत अपने कमरे का दरवाज़ा बंद करके उसमें ताला लगा दिया और अपनी पुरानी साईकिल पर बैठकर अपनी प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम देखने के लिए चल देता है। रास्ते में ना जानें कितने ख्याल उसके मन में आते और चले जाते हैं इन सब ख्यालों के बीच उसे कभी माता – पिता तो कभी मोहल्ले के लोगों के चेहरे नजर आने लगते हैं इन सब के साथ में उसकी साईकिल सूचना पटल के पास ना जानें कब पहुंच गई थी उसे स्वयं भी पता नहीं चल पाया था। सूचना पटल के आस – पास बहुत भीड़ थी,कुछ लाइनें बनी हुईं थीं। अपना परिणाम देखकर कुछ चेहरे उदास थे तो कुछ माथों पर चिंता की रेखाएं उभर रहीं थीं। कुछ लोगों की आँखें भीग रहीं थीं तो कुछ के चेहरे पर मुस्कान थी। इतने सारे चेहरे और इतनी सारी भावनाओं के बीच में राघव अपने चेहरे और अपनी भावना को ढूंढ रहा था। मगर एक अनजाना और थोड़ा – सा पहचाना हुआ डर भी उसके मन में अपना घर बना रहा था।
राघव धीरे – धीरे अपने कदमों को सूचना पटल की ओर ले जा रहा था और इसी के साथ में उसकी दिल की धड़कनें भी धीरे – धीरे बढ़ रहीं थीं। कांपते हाथों से उसने सूचना पटल पर अपना परिणाम देखा मगर उसे किसी भी सूची में अपना नाम नहीं मिला शायद जल्दबाजी में उसने ठीक से नहीं देखा ऐसा सोचकर वह फिर से परिणाम सूची में अपना नाम खोजने लगता है। मगर उसे परिणाम सूची में अपना नाम नहीं मिलता है। राघव का दिल बैठ जाता है। उसे अचानक से बुरे – बुरे ख्याल आने लग जाते हैं। वह साईकिल को पैदल ही लेकर अपने कमरे तक पहुंच जाता है, कमरे का ताला खोलकर वह अपने कमरे के अंदर आ जाता है। वह अपने बिस्तर के पास जमीन पर बैठ जाता है और जोर- जोर से रोने लग जाता है। उसे अपने पिता और मां की बहुत याद आने लग जाती है वह उनसे बात करने के लिए फोन उठाता है मगर वह उनसे बात क्या करेगा ? वह उनको क्या बताएगा ? ऐसा सोचकर वह फोन को बिस्तर पर पटक कर अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लेता है और अपने बिस्तर पर सोने की कोशिश करने लग जाता है। मगर सपने में भी उसे अपने माता – पिता का चेहरा और परीक्षा का परिणाम ही दिख रहा था। यह सब चीज़ें उसे बैचेन कर रहीं थीं , इस बेचैनी के कारण वो पूरी रात किसी पत्थर की मूर्ति की तरह बेजान ही लेता रहा।
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कुछ समय के बाद शाम हो जाती है, वातावरण में एक अजीब- सी खामोशी छाने लग जाती है। इसी खामोशी के बीच में राघव के कमरे के दरवाजे और उसके अपने मन में दस्तक होती है और एक जानी पहचानी आवाज आती है। “राघव ,राघव दरवाजा खोल , सो गया है क्या ? ” यह आवाज उसके दोस्त विक्रम की थी जिसे राघव ने पहचान लिया था , राघव अपने बिस्तर से उठा और शीशे में देखकर अपना चेहरा साफ करता है और दरवाजा खोलता है, जैसे ही दरवाजा खुलता है विक्रम सीधा कमरे में दाखिल हो जाता है और राघव से पूछता है – परिणाम देखा क्या ? राघव जवाब देता है – हां, मगर मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ है। विक्रम राघव से पूछता है – ” अब क्या ? देख राघव मैंने वापिस गांव जाने का तय कर लिया है, तू अगर सहमत हो तो मैं तेरी भी टिकट करवा लेता हूं। राघव विक्रम से कहता है – ” नहीं , विक्रम मैं गांव खाली हाथ नहीं जा सकता, मेरे माता- पिता की बहुत उम्मीदें लगी हुईं हैं मुझसे। विक्रम राघव के गले लगता है और कहता है – ठीक है,राघव जैसी तेरी इच्छा। मैं अब चलता हूं। कल की रेलगाड़ी है मेरी। कुछ ही पलों के बाद राघव अपनी कुर्सी पर बैठकर मेज पर रखे हुए कुछ पेजों में से एक पेज को निकालता है, और उस पेज पर अपनी नई समय सारिणी बनाना शुरु कर देता है। एक घंटे के बाद वह समय सारिणी को अपनी कुर्सी के ठीक सामने लगा देता है, इस समय सारिणी में सबसे ऊपर लिखा हुआ था ” मेरी आखिरी उम्मीद “। जिसके अक्षर अपनी छाप छोड़ रहे थे।
राघव ने कुछ महीनों तक सुबह का न तो सूरज देखा था और न ही रात का चांद,उसकी सुबह और रात सिर्फ किताबों के बीच में ही होती थी। इन महीनों में उसने अपनी पूरी जान लगा दी थी, माता – पिता के द्वारा किए गए फोन का भी उसने कोई भी उत्तर नहीं दिया था। गांव के लोगों ने उसके बारे में गलत धारणाएं बनाकर रख लीं थीं और वह सब उसके पिता जी और माता जी को ताने मारते थे ” चले थे अपने प्यारे बेटे को अफसर बनाने अरे भई क्या हुआ क्यों, अरे भईया शहर जाकर गलत संगति में आ गया और क्या , चला गया वो उलटे- सीधे काम करने को ” इन सब तानों को सुनकर राघव के माता – पिता को बहुत दुःख होता था। मगर वह किसी प्रकार से स्वयं को इस उम्मीद पर संभाल लेते कि एक दिन उनका बेटा अफसर बनकर जरूर उनसे मिलने इस गांव में आएगा। इस उम्मीद पर वह अपना हर दिन बिता रहे थे।
राघव ने प्रारंभिक परीक्षा दे दी थी और उसका परिणाम आ चुका था जिसमें राघव पास हो चुका था। अब वह मुख्य परीक्षा की तैयारी में लग चुका था, तीन महीनों के बाद मुख्य परीक्षा का दिन आ चुका था राघव ने मुख्य परीक्षा बहुत ही मेहनत से दी। उसका परिणाम पांच महीनों बाद आने वाला था। इन पांच महीनों में राघव को अवसाद का अनुभव होने लगा था। इन पांच महीनों में राघव को अवसाद ने पूरी तरह से अपने काबू में कर लिया था। उसे हर समय और हर दिशा में अपने माता – पिता ,अपना घर , अपना गांव और अपनी परीक्षा का परिणाम ही नजर आता था, जिसके कारण उसका अवसाद और बढ़ने लगा था। फिर उसने अपनी स्वयं की मदद करने का निश्चय किया। उसने अपनी बीमारी का इलाज कराने का निश्चय किया मगर इलाज का खर्चा कहां से आयेगा क्योंकि पिता जी को वह कुछ बता नहीं सकता था। उसने एक कोचिंग में टीचर बनने का आवेदन दे दिया और कोचिंग संचालक ने उसे एक मौका दे दिया जिसे राघव ने अपनी पूरी मेहनत से अपनी सफलता में बदल लिया। कोचिंग ने उसे टीचर की नौकरी दे दी,जिसे राघव ने स्वीकार भी कर ली, उसने अपने पहले वेतन से अपना इलाज करवाया जिससे वह कुछ ही हफ्तों में स्वस्थ भी हो गया बाकी महीनों के वेतन में से कुछ हिस्सा वह अपनी सेविंग के रूप में इकठ्ठा करने लगा था। राघव अब अपने भविष्य को लेकर चिंतित नहीं था। मगर अपने माता – पिता की आखिरी उम्मीद उसे एक अफसर के रूप में देखने की आज भी उसकी आंखों के सामने आ ही जाती थी। परीक्षा आयोग ने “महत्वपूर्ण सूचना पत्र” में यह सूचना जारी करवा दी, कि अब मुख्य परीक्षा का परिणाम दस महीनों के बाद अर्थात् दिवाली से ठीक एक हफ्ते पहले जारी किया जाएगा।
दस महीने ऐसे ही इंतजार करते बीत चुके थे। फिर एक दिन राघव को पिता जी का फोन आता है, राघव कांपते हाथों से फोन उठा लेता है , पिता जी कहते हैं – ” बेटा राघव दिवाली आने वाली है बेटा अपना चेहरा दिखाने ही आ जा यह दिवाली हमारे साथ में ही मना ले। कोई तुझसे तेरी नौकरी के बारे में नहीं पूछेगा बेटा आ जा बेटा घर आ जा बस “। राघव बिना कुछ बोले फोन रख देता है। राघव अपना सारा सामान बांध कर अपने गांव पहुंच जाता है कोई उसे पहचान नहीं पाता है, तभी गांव में अखबार वाला आता है और अखबार के पहले पन्ने पर राघव की फ़ोटो देखकर उसे पहचान लेता है। यह ख़बर पूरे गांव को पता चल जाती है और पूरा गांव उसके घर के बाहर खड़े होकर उसकी तारीफ करता है यह सब देखकर उसके माता – पिता की आंखों में आंसू आ जाते हैं। पूरा परिवार एक साथ रोने लगा था और राघव के हाथों में उसकी समय सारिणी के पन्ने के वो ” मेरी आखिरी उम्मीद” के शब्द आंसुओं से पूरे गीले हो चुके थे।
