छोटी सी मीशा है शैतानों की नानी। मजाल है जो मम्मी को जरा भी चैन लेने दे। यह तो अच्छा है कि इधर उसे ढेर सारे खेल सूझ गए हैं और खेल में मगन होती है वह तो सब कुछ भूल जाती है। कभी शेर और मोबाइल वाला खेल, कभी टेडीबियर को बिस्कुट खिलाने वाला खेल तो कभी गुड्डे, पीलू डॉगी और बॉल वाला खेल। और भी न जाने कौन – कौन से खेल, उसके दिमाग से निकलते हैं और सबको हैरान-परेशान कर डालते हैं। कभी वह विशु भैया और शीलू दीदी को इसमें शामिल करती है, तो कभी मम्मी और पापा को। और कभी-कभी तो अकेले ही देर देर तक उसका खेल चलता है।
कुछ और नहीं तो वह अपनी शैतान गुड़िया, पीलू कुत्ते और पापा के पुराने वाले मोबाइल को ही डाँटना शुरू कर देती है, जो पापा के काम का नहीं रहा तो अब मीशा के हिस्से आ गया है। मम्मी सोचती हैं, ‘चलो इसी बहाने यह चंचल लड़की अपने आप में रमी तो रहती है। वरना इसका क्या ठिकाना? अभी घर से निकले और पास वाले पार्क में जाकर फूलों से बातें करना शुरू कर दे! या फिर पड़ोस वाली रजनी आंटी के घर जाकर ही बैठ जाए। फिर भले ही उसे ढूँढ़ते हुए आप पसीने-पसीने होते रहो। और मिलते ही वह अपनी मोहिनी मुसकान के साथ कहेगी, ओहो मम्मी, आप परेशान तो नहीं हुई? मैं अभी घर ही आ रही थी।’ मम्मी रसोई साफ करने में लगी थीं और सोच रही थीं मीशा के बारे में ही, ‘देखो तो, कैसी बुद्ध है यह लड़की, मगर जब अपने पर आती है तो एकदम आफत की परकाली…!’ तभी अचानक उन्हें याद आया, अरे, बड़ी देर से मीशा नहीं दिखाई दी।
कहीं फिर बाहर तो नहीं निकल गई? उन्होंने घबराकर अंदर झाँका, तो ड्राइंगरूम में सोफे के पास फर्श पर बैठी मीशा की झलक दिखाई दे गई। थोड़ी तसल्ली हुई, चलो, खेल में लगी है। अब देर तक इसी में लीन रहेगी। हो सकता है, अभी अपने खिलौनों से ही बातें करना शुरू कर दे। फिर तो समय का कुछ होश ही नहीं! कब सुबह से दोपहर हो गई, कुछ पता ही नहीं चलेगा। मीशा पर एक नजर डालकर मम्मी फिर कपड़े धोने में जुटने वाली थीं कि अचानक वे चौंक उठीं। उन्होंने गौर से देखा, मीशा आज खिलौनों से नहीं खेल रही है। उसके साथ तो कोई पक्षी है। बहुत सुंदर और अनोखा पक्षी, जैसा उन्होंने पहले कभी नहीं देखा। मीशा पूरी तरह खेल में लीन थी। मम्मी ने सोचा, उसका खेल बिगाड़े बगैर दूर से ही झाँककर देखना चाहिए। उन्होंने कुछ और पास आकर देखा तो उन्हें मीशा के आगे बैठा हुआ एक हंस जैसा खूबसूरत पक्षी दिखाई दिया। ‘अरे, यह तो डोडो है!’ हैरानी के मारे मम्मी का मुँह खुला का खुला रह गया। डोडो तो आजकल कहीं नहीं दिखाई देता। इसे तो विलुप्त पक्षी मान लिया गया है, जो धरती से एकदम गायब ही हो गया है। मगर फिर मीशा के पास डोडो कैसे आ गया!
कहाँ से आ गया? … यह तो एक पहेली ही है। मम्मी खासी उधेड़बुन में थीं, पर नन्ही मीशा तो इस सबसे बेखबर डोडो के साथ बातें करने में खोई हुई थी। * “कहानी सुनोगे डोडो?” वह प्यार से डोडो से कह रही थी। और फिर उसने एक प्यारी-सी कहानी ‘गुलगुल का चाँद’ सुनानी शुरू की। कहानी पूरी खत्म होने के बाद बोली, “बताओ डोडो, कैसी लगी कहानी? अच्छी है न! तुम्हें पसंद आई? तुम्हारा भी मन करता है न चाँद को पकड़ने का। मैं भी सोचती हूँ, कभी चाँद आए तो उसे पकड़कर अपने पास रख लूँ छोटी-सी गेंद बनाकर और फिर उसी से खेला करूँगी।” कहकर मीशा हँसने लगी, खुदर-खुदर। “अच्छा दोस्त, पानी पियोगे? तुम्हें प्यास लग आई होगी। अभी लाती हूँ।” कहकर मीशा दौड़ी-दौड़ी गई और रसोई में जाकर एक कटोरी में पानी भर लाई। साथ में चम्मच भी थी। पानी लाकर मीशा बोली, “डोडो, तुम ऐसे ही पानी पी लोगे न, या चम्मच से पिलाऊँ?” सुनकर डोडो हँसने लगा। बोला, “अरे, मेरी चोंच ही मेरी चम्मच है। देखो, कैसे झटपट पानी पीता हूँ।” और सचमुच उसने झटपट पूरी कटोरी खाली कर दी। देखकर मीशा भी हँसने लगी। थोड़ी ही देर में नन्ही मीशा और डोडो की दोस्ती एकदम पक्की हो गई। मम्मी दूर से नन्ही मीशा और डोडो का यह खेल देख रही थीं। ‘लोग तो कहते हैं कि डोडो पक्षी अब धरती पर कहीं नहीं है। पर देखो न, वह तो यहाँ है, हमारे घर। और मीशा के साथ कितने प्यार से खेल रहा है, जैसे न जाने कितने वर्षों की दोस्ती हो।’ वे सोचने लगीं। थोड़ी देर और डोडो मीशा के साथ खेलता रहा। दोनों खूब प्यार से बातें कर रहे थे। बीच-बीच में हँस भी रहे थे। फिर डोडो बोला, “अच्छा मीशा, मैं चलता हूँ। मेरी मम्मी इंतजार कर रही होंगी। कल फिर आऊँगा।” डोडो के जाने के बाद नन्ही मीशा दौड़ी-दौड़ी मम्मी के पास आई। बोली, “मम्मी-मम्मी, मेरा एक प्यारा दोस्त आया था, जो अब चला गया। कल फिर आएगा। आप उससे मिलना। बड़ा ही प्यारा है वो मम्मी। डोडो नाम है उसका, डोडो!” “अच्छा!” मम्मी मुसकराईं और नन्ही मीशा से डोडो के बारे में सारी बातें सुनने लगीं। * रात को मम्मी ने पापा को बताया, “आज तो कमाल हुआ! डोडो आया हमारे घर और नन्ही मीशा के साथ खेलता रहा। सचमुच का डोडो! इसका मतलब, डोडो अब भी इस धरती पर कहीं न कहीं तो जरूर हैं। यानी यह विलुप्त प्राणी…!” “अरे वाह, फिर तो जब डोडो आएगा तो मीशा बेटी और डोडो का साथ-साथ खेलते हुए फोटो लेंगे। किसी अखबार में छपने को देंगे या फिर टीवी के किसी न्यूज चैनल में भी क्यों नहीं दिखाया जा सकता? सब हैरान रह जाएँगे कि डोडो आज भी है,
कहीं गया नहीं!” “नहीं-नहीं, इसे हम डिस्कवरी चैनल या एनिमल प्लैनेट में भेजेंगे। वे लोग कितने खूबसूरत ढंग से दिखाते हैं ऐसी चीजें…!” मम्मी ने अपनी विशेषज्ञ राय दी तो सभी को मानना ही था। पापा ने अपने बड़े वाले जापानी कैमरे को निकालकर सेल वगैरह चेक किए और बोले, “जिस समय डोडो आए मीशा के साथ खेलने के लिए, तो बताना। मैं चुपके से उसकी फोटो खींचूँगा।” अगले दिन फिर डोडो आया और मीशा से बोला, “तुम्हारी बातें मुझे बहुत अच्छी लगती हैं। तुम बहुत सीधी-सादी हो न! पर इतनी नॉटी भी हो कि तुम्हारी बातें सुन-सुनकर मुझे बड़ी हँसी आती है। मैंने घर जाकर अपनी मम्मी को भी बताया। वो भी तुम्हारे बारे में सुनकर बहुत खुश हुई।” मीशा बोली, “और डोडो, तुम भी लगता है, किसी अनोखी दुनिया के प्राणी हो! लोग कहते हैं कि पक्षी बोलते नहीं, पर तुम तो ऐसे प्यारे किस्से-कहानियाँ सुनाते हो कि क्या कहूँ! बैठो, प्यास लगी होगी, मैं तुम्हारे लिए पानी लाती हूँ।” नन्ही मीशा और डोडो बातें कर रहे थे, इतने में ही ‘क्लिक’ की आवाज हुई। मीशा के पापा ने डोडो का फोटो खींचा था। पर जाने कैसे डोडो को यह पता चल गया। बोला, “मीशा, मुझे यह अच्छा नहीं लगा। अब मैं यहाँ नहीं आऊँगा, कभी नहीं।” बेचारी मीशा हक्की-बक्की! … डोडो के जाने के बाद मीशा के पापा ने बड़ी उतावली से देखा, पर कैमरे से खींचे गए चित्र में डोडो कहीं था ही नहीं। उसकी जगह बस एक नीला – नीला धब्बा दिखाई पड़ रहा था। “अरे, यह तो सचमुच शर्मीला पक्षी है, इसलिए फोटो तक में नहीं आया।” मीशा की मम्मी बोलीं। “शायद हमसे गलती हो गई। डोडो फोटो नहीं खिंचवाना चाहता था, फिर हमें क्या जरूरत थी?” मीशा के पापा पछता रहे थे। कई दिनों तक डोडो नहीं आया तो मीशा उदास रही। पापा बोले, “सॉरी, वैरी सॉरी मीशा! मेरे कारण तुम्हारा दोस्त डोडो नाराज हो गया। चलो, अब तुम्हारे लिए एक नया टेडीबियर ला देते हैं। तुम उससे खूब खेलना और बातें करना।” उसी दिन पापा मीशा के एक बड़ा टेडीबियर लेकर आए। मीशा को वह बहुत ही सुंदर लगा। उसके साथ खेल में वह लीन हो गई। लेकिन फिर भी उसे डोडो की बहुत याद आती थी। कभी – कभी वह मम्मी से कहा करती, “मम्मी-मम्मी, डोडो बड़ा अच्छा था। वह पता नहीं क्यों इतना नाराज हो गया?” इस पर मम्मी कहती, “मैं क्या जानूँ बेटी! हो सकता है, वह पूरी धरती की परिक्रमा करने गया हो और लौटकर फिर कभी आए।” “हाँ-हाँ, वह आएगा, जरूर आएगा।… जैसे मुझे उसकी याद आती है, उसे भी तो मेरी याद आती होगी।” कहकर मीशा मुसकरा उठती है। और मम्मी को भी उसकी मुसकान इतनी सच्ची लगती है कि उन्हें यकीन है, एक न एक दिन डोडो आएगा, जरूर आएगा।
