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डार्टमाउथ कॉलेज के वैज्ञानिकों ने अमेरिका और यूके के करोड़ों लोगों पर यह रिसर्च किया है। अमेरिका में 1 करोड़ से ज्यादा वयस्कों और यूके में 40,000 परिवारों का डेटा खंगाला गया। जिसमें सामने आया कि लोगों का मानसिक स्वास्थ्य अब यू-टर्न में चलता है।
Life Crisis: एक समय था जब माना जाता था कि 40 से 50 की उम्र में लोग अपनी जिंदगी से परेशान हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि अब जीवन में ज्यादा कुछ बचा ही नहीं है। इसे कहा जाता था ‘मिड लाइफ क्राइसिस’। लेकिन एक नई रिसर्च ने सबको चौंका दिया है। जिसके अनुसार ‘मिड-लाइफ क्राइसिस’ बीते जमाने की बात हो गई है। असली परेशानी अब युवाओं को हो रही है। इसे कहा गया है ‘यंग-लाइफ क्राइसिस’।
जानिए क्या कहती है रिसर्च

डार्टमाउथ कॉलेज के वैज्ञानिकों ने अमेरिका और यूके के करोड़ों लोगों पर यह रिसर्च किया है। अमेरिका में 1 करोड़ से ज्यादा वयस्कों और यूके में 40,000 परिवारों का डेटा खंगाला गया। जिसमें सामने आया कि लोगों का मानसिक स्वास्थ्य अब यू-टर्न में चलता है। यानी बचपन में ठीक, फिर मिड-एज में सबसे खराब और बुढ़ापे में उसमें थोड़ा सुधर आता है। लेकिन नए आंकड़े बताते हैं कि अब ऐसा नहीं हो रहा। अब युवाओं में ही डिप्रेशन, स्ट्रेस और एंग्जायटी की परेशानी सबसे ज्यादा दिख रही है। वहीं जैसे-जैसे उम्र बढ़ रही है, मानसिक स्थिति बेहतर हो रही है।
47 थी सबसे परेशान करने वाली उम्र
एक्सपर्ट बताते हैं कि पहले 47 साल की उम्र को सबसे उदास समय माना जाता था। खासतौर पर महिलाओं के लिए। लेकिन अब ऐसा नहीं है। रिसर्चर्स के अनुसार ये बदलाव इसलिए हो सकता है क्योंकि आज की युवा पीढ़ी कई नई समस्याओं से जूझ रही है। वे कम उम्र में ही कई चुनौतियों का सामना करने लगते हैं जो उन्हें तनाव देता है।
इसलिए परेशान हैं आज के युवा
आज के युवाओं के परेशान होने की सबसे बड़ी वजह है आर्थिक मंदी। आर्थिक मंदी के कारण युवाओं को नौकरियों में कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। जिन युवाओं ने काम शुरू किया, उन्हें बेहतर मौके नहीं मिल रहे। इससे उनका आत्मविश्वास और मनोबल दोनों गिरा है। वहीं कोविड के कारण युवाओं का करियर बहुत प्रभावित हुआ है। पढ़ाई करने के बावजूद उन्हें अच्छे विकल्प नहीं मिल रहे हैं।
स्मार्टफोन और सोशल मीडिया का असर
शोधकर्ताओं का कहना है कि स्मार्टफोन और सोशल मीडिया का बढ़ता असर भी युवाओं की खुशी पर भारी पड़ रहा है। जब वे दिन-रात दूसरों की चमचमाती जिंदगी इंस्टाग्राम, फेसबुक पर देखते हैं तो उन्हें खुद की जिंदगी फीकी लगने लगती है। वहीं कोविड के कारण पहले ही युवाओं की सोशल लाइफ काफी प्रभावित हो चुकी है। उनके वर्चुअल फ्रेंड्स ज्यादा हैं, लेकिन वास्तविक दोस्तों की कमी है।
ये भी है तनाव की जड़
पीएलओएस वन में प्रकाशित इस अध्ययन के शोधकर्ताओं का कहना है कि इस बदलाव को गंभीरता से लेना चाहिए। हमें युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। वरना आने वाले सालों में हालात और बिगड़ सकते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि स्मार्टफोन की लत असली बीमारी हो सकती है। यंग-लाइफ क्राइसिस के कारण लोग अंदर ही अंदर घुटन महसूस करने लगे हैं। उन्हें एक बैलेंस लाइफ की ओर कदम बढ़ाने चाहिए। जिससे स्थितियां सुधर सकती है।
