Back Pain Due to Spine: केस स्टडी-मीता 10-12 दिन से पीठ दर्द को लेकर परेशान थी। इसकी वजह से वो घर-ऑफिस का काम ठीक से नहीं कर पा रही थी। दर्द की वजह से रोजाना 3-4 पेन किलर ले रही थी। लेकिन उसे आराम नहीं मिल रहा था। हारकर वह आर्थोपेडिक्स डॉक्टर को दिखाने गई। एक्स-रे करने पर पता चला कि उसकी स्पाइन की पीठ वाली एक डिस्क खिसक गई थी। मीता के घर में पिछले दिनों सफेदी चल रही थी जिसमें भारी वजन खिसकाने से यह समस्या हुई। डॉक्टर ने उसे मेडिसिन, बेल्ट लगाने और एक हफ्ता घर पर रहने की सलाह दी। उसे कुछ आराम तो मिला लेकिन अभी पूरी तरह ठीक नहीं हो पाई थी।
दरअसल, रीढ़ की हड्डी या स्पाइन इस तरह के पीठ दर्द का अहम कारण है। जब भी स्पाइन की वर्टिब्रा में कोई समस्या हो या स्पाइन की डिस्क की वजह से कोई नर्व पर दवाब पड़ रहा हो, तो पीठ दर्द की समस्या होती है। रीढ़ की हड्डी यानी स्पाइनल कॉर्ड में दर्द की शिकायत इन दिनों आम हो गई। खराब लाइफस्टाइल और सिटिंग वर्क कल्चर के चलते इस समस्या को बढ़ावा मिल रहा है। स्पाइनल कॉर्ड में होने वाली समस्या सभी के जीवन पर बुरा प्रभाव डालती है। कई लोग स्पाइन में होने वाले दर्द और तकलीफ को नज़रअंदाज़ करते हैं, जिसके कारण स्पाइनल कॉर्ड डैमेज हो सकती है। स्पाइनल कॉर्ड के डैमेज होने से कमर दर्द ही नहीं, अर्थराइटिस, डिस्क प्रॉब्लम, स्लिप डिस्क, स्कोलाइसिस, स्पाइनल कॉर्ड इंजरी, ऑस्टियोपोरोसिस जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। मोटे तौर पर यह कहना गलत नहीं होगा कि स्पाइन में किसी भी तरह की समस्या होने पर हमारा उठना-बैठना और यहां तक कि हिल पाना भी मुश्किल हो जाता है।
क्या है कारण
पीठ दर्द स्पाइन में होने वाली कई समस्याओं की वजह से होता है-
- उठने, बैठने, खडे़ होने, चलने, सोने का पॉश्चर गलत होना।
- आरामतलब जीवनशैली और एक्टिविटी के अभाव में हड्डियों में जकड़न होना।
- गलत खानपान यानी पौष्टिक संतुलित आहार के बजाय फास्ट फूड, जंक फूड का अधिक सेवन करना।
- स्लिप डिस्क होना यानी भारी वजन उठाने के कारण स्पाइन पर दवाब पड़ने से स्पाइन डिस्क का अपनी जगह से खिसकना।
- ट्यूबरक्लोसिस जैसे इंफेक्शन होना।
- स्पाइन इंजरी या फ्रैक्चर होना वो चाहे किसी दुर्घटना, घर में गिरने या किसी चीज का स्पाइन पर गिरने की वजह से हो।
- पीठ के निचले हिस्से से पैरों तक जाने वाली साइटिका नसों पर दवाब पड़ने से भी पीठ असहनीय दर्द, पैरों में झनझनाहट और सुन्नपन होना।
- आर्थराइटिस की वजह से एंक्लोजिंग स्पॉडिलाइटिस होना। स्पाइन में सूजन और अकड़न होना जिसकी वजह से मूवमेंट पर दर्द रहना।
- ऑस्टियोपोरोसिस या बोन डेंसिटी कम होने से स्पाइन कमजोर होना।
- सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस होना यानी गलत पॉश्चर या कंधे में जकड़न की वजह से दर्द होना।
- स्पाइन कैंसर होना।
कब जाएं डॉक्टर के पास

अगर आपको स्पाइन में सुबह के समय बहुत ज्यादा जकड़न महसूस हो रही हो और धीरे-धीरे बढ़ रहा हो। आराम करने के बावजूद दर्द ठीक न हो रहा होे या बार-बार लौटकर आ रहा हो। पीठ दर्द 10-12 दिन से ज्यादा बना हो तो डॉक्टर को जरूर दिखाना चाहिए और समुचित उपचार कराना चाहिए।
क्या है उपचार
डॉक्टर ब्लड टेस्ट, स्पाइन एक्स-रे और एमआरआई करके डायग्नोज करते हैं। पहले उन्हें एक महीने एंटी-इंफ्लेमेटरी, मसल रिलेक्सटेंट या पेन किलर मेडिसिन से कंजर्वेटिव उपचार किया जाता है। दर्द कम होने पर फिजियोथेरेपिस्ट की मदद से मरीज को मसल्स स्ट्रैंथनिंग और फ्लेक्सिबल एक्सरसाइज कराई जाती हैं। इसमें एबडोमल मसल्स और स्पाइन मसल्स को मजबूत करने के लिए की जाती हैं। स्थिति में सुधार न आने पर यानी पीठ में दर्द 2 महीने से ज्यादा समय से हो या मेडिसिन के बावजूद दर्द बढ़ रहा हो, तो सर्जरी भी करनी पड़ सकती है। जबकि गंभीर फ्रैक्चर होने पर मरीज को ठीक होने में तकरीबन 3-6 महीने लग जाते हैं।
कैसे करें रोकथाम

- पीठ दर्द से बचने के लिए पॉश्चर ठीक रखना जरूरी है। बैठने की कुर्सी अच्छी हो जिसमें हैंड सपोर्ट हो, बैक रेस्ट हो और बैक का एंगल 110 डिग्री के करीब हो ताकि आपकी कमर पर एंजियो प्रेशर न आए। कुर्सी या डेस्क पर बिल्कुल सीधे और टेक लगा कर बैठें।
- लंबे समय तक बैठे न रहें। कम से कम आधा घंटे बाद ब्रेक लें। स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करें।
- कंप्यूटर पर काम करते समय आगे की तरफ झुकने की जगह अपने कंप्यूटर के मॉनिटर को सीधा रखें, ताकि पीठ दर्द की समस्या न हो।
- अगर आपको पीठ दर्द या साइटिका दर्द है तो कुछ एक्टिविटीज अवायड करें। जैसे- एकदम से आगे झुकना, जमीन से कोई चीज उठाते हुए सीधे न झुककर घुटने मोड़कर उठाएं ताकि पीठ पर प्रेशर न आए।
- स्वास्थ्य और वजन मेंटेंन करने के लिए एक्सरसाइज शेड्यूल बनाएं। क्योंकि शरीर का वजन जितना ज्यादा होगा, स्पाइन पर दवाब अधिक पड़ता है। खासकर बैक-फोर-मसल्स स्ट्रेंथनिंग, फ्लेक्शन (आगे झुकने वाली) और एक्सटेंशन (रिवर्स या पीछे झुकने वाली) एक्सरसाइज करें। आर्थराइटिस के मरीज दिन में एक बार अपने सारे जोंड़ों का मूवमेंट जरूर करें ताकि जोड़ों में जकड़न न हो और दर्द कम हो।
- ट्यूबरक्लोसिस वाले मरीज को मेडिसिन का कोर्स बिना नागा पूरा करना जरूरी है। बीच में मेडिसिन छोड़ने पर उसे मल्टी ड्रग रजिस्टेंस होने का खतरा रहता है और बीमारी बढ़ सकती है।
- सोते समय भी ध्यान रखें कि बहुत मुलायम या कड़क गद्दे पर न सोएं। सोते समय बच्चे की तरह घुटने मोड़कर और करवट लेकर सोएं ताकि स्पाइन पर दवाब कम पड़े। स्पाइन और बैक मसल्स रिलेक्स रहें।
- बिस्तर पर लेटने से उठते समय ध्यान रखें कि एकाएक सीधे न उठें। करवट लेकर अपने हाथों की सपोर्ट से ने से पहले अपने शरीर के ऊपरी भाग को उठाएं। आराम से बैठ जाएं, तभी खड़े हों।
- पौष्टिक और संतुलित आहार लें। बढ़ती उम्र में बोन डेंसिटी कम होने के कारण हड्डियां कमजोर होने लगती हैं। कैल्शियम रिच आहार लेना जरूरी है, इसके साथ विटामिन डी के कैप्स्यूल ले सकते हैं या सनएक्सपोजर ले सकते हैं।
(डॉ गौरव सचदेव, कंसल्टेंट, ऑर्थोपेडिक्स, दिल्ली)