Indoor Pollution: आमतौर पर प्रदूषण घर से बाहर वातावरण में फैले प्रदूषण को माना जाता है। लेकिन हमारे घर के भीतर भी प्रदूषण यानी इंडोर पॉल्यूशन साइलेंट किलर के समान मौजूद है। घर की चारदीवारी में भी सांस लेना मुश्किल है। हवा की गुणवत्ता और प्रदूषक तत्व स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है। वायु प्रदूषण में मौजूद परमाणु के समान जहरीले कण सांस लेने पर फेफड़े में प्रवेश कर जाते हैं। ब्लड के साथ मिलकर पूरे शरीर को हानि पहुंचाते हैं। ये धीरे-धीरे रक्त वाहिकाओं को संकुचित करने और सूजन पैदा करने लगते हैं। आहार से आने वाले फैट को कोलेस्ट्रॉल के रूप में जमने देते हैं जिससे वाहिकाओं में ब्लड क्लॉट्स की समस्या उत्पन्न करते है और ब्लड सर्कुलेशन में बाधा पहुंचाते हैं। इंडोर पॉल्यूशन से व्यक्ति को आंखों में जलन, स्किन एलर्जी, हार्ट अटैक, फेफड़ों से जुड़ी समस्याएं, अस्थमा या सांस लेने में कठिनाई, कैंसर, ब्रेन डैमेज, डिमेंशिया जैसी कई बीमारियों का शिकार बना रहा है।
संभव है कि हम इंडोर पॉल्यूशन से अनभिज्ञ हों या मानने के तैयार न हों। लेकिन यह कड़वी सच्चाई है कि वर्तमान समय में घर के अंदर या इंडोर पॉल्यूशन वातावरणीय प्रदूषण से कहीं ज्यादा खतरनाक है। एम्स के सेंटर फॉर कम्यूनिटी मेडिसिन ने एक रिसर्च में यह पाया किघरों के अंदर पाया जाने वाला प्रदूषण घर के बाहर होने वाले प्रदूषण के मुकाबले 10 गुना ज्यादा खतरनाक हो सकता है। घर में खाना पकाने से निकलने वाला धुंआ 20 साल से ज्यादा उम्र के 51 फीसदी युवाओं के फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रहा है।
कैसे होता है इंडोर पॉल्यूशन

- किचन में समुचित एग्जॉस्ट या चिमनी का न होना। या फिर लंबे समय तक सफाई न करने पर चिमनी के अंदर लगे फिल्टर पर धुंआ या तेल जम जाता है जिससे चिमनी धुंए को बाहर नहीं निकाल पाती। डब्ल्यूएचओ के हिसाब से रसोईघर में खाना पकाने के दौरान निकलने वाले धुंए की वजह से हर साल विकासशील देशों में 15 लाख से ज्यादा लोग मौत का शिकार होते हैं। यानी किचन से निकलने वाला धुंआ हर 20 सेकंड में एक जान ले रहा है।
- घर की शांति और पॉजीटिव एनर्जी के लिए धूप बत्ती, हवन का इस्तेमाल करके भगवान की पूजा करते हैं। लेकिन यह इंडोर पॉल्यूशन का सबसे बड़ा स्रोत है। इनसे निकलने वाला धुंआ घर की हवा में कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसें घर के माहौल को प्रदूषित करती हैं जो सेहतमंद लोगों को भी बीमार कर सकता है। स्टडी के मुताबिक घर के अंदर धूप बत्ती और अगर बत्ती का धुंआ प्रदूषण के स्तर को 15 गुना ज्यादा बढ़ा देता है।
- लाइट जलाने पर रोशनी के लिए जलाई जाने वाली मोमबत्ती, दीया या लालटेन भी घर के अंदर की हवा की गुणवत्ता पर नकारात्मक असर डालती है।
- मच्छरों को मारने वाली मॉस्कीटो कॉयल और उसका धुंआ भी साइलेंट किलर के समान है।
- घर में धूल जमा हो, फफूंद और सीलन की समस्या हो, तो व्यक्ति लंबे समय तक पॉल्यूशन के संपर्क में रहता है।
- इंटीरियर डेकोरेशन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कार्पेट या डोरमैट, पर्दों या फिर सर्दियों में इस्तेमाल किए जाने वाले रजाई, कंबल की समुचित साफ-सफाई का अभाव। जिसकी वजह से इनमें धूल-मिट्टी के कण और हानिकारक कीटाणु पनप जाते हैं जो घर के वातावरण को दूषित करते हैं।
- घर में एयर वेंटिलेशन की समुचित व्यवस्था न होना।
- स्मोकिंग और पैसिव स्मोकिंग का धुंआ भी इंडोर पॉल्यूशन का बड़ा कारण है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार बच्चे घरों में पैसिव स्मोकिंग के सबसे ज्यादा शिकार होते हैं।
किन्हें है ज्यादा खतरा

इंडोर पॉल्यूशन का असर सबसे ज्यादा घर में रहने वाले बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गो पर पड़ता है। उन्हें सांस लेने में किसी तरह की तकलीफ, खांसी-जुकाम, सांस लेने में आवाज आना, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा या सीओपीडी जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
कैसे करें बचाव

- घर के अंदर बेहतर एयर वेंटिलेशन से पॉल्यूशन का असर थोड़ा कम हो सकता है। अगर बाहर वातावरण में स्मॉग प्रदूषण न हो और सनलाइट आ रही हो, तो सुबह उठने पर खिड़की-दरवाजें थोड़ी देर के लिए खोल दें और और एग्जास्ट फैन चला दें ताकि घर के अंदर की कार्बन डाई ऑक्साइड युक्त टॉक्सिक हवा बाहर निकल जाए। बहुमंजिला बिल्डिंग में रहने वाले खासतौर पर इसका ध्यान रखें। इससे घर में नमी या सीलन को दूर करने में भी मदद मिलेगी।
- अगर घर ऐसी जगह हो जहां एयर पॉल्यूशन का लेवल बहुत ज्यादा है और घर में वेंटिलेशन की कमी है, वहां अच्छी गुणवत्ता वाला एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- दीया, अगरबत्ती, धूप जैसी चीजों का प्रयोग सीमित मात्रा में करना बेहतर है।
- घर को नियमित रूप से साफ-सफाई का ध्यान रखें। गद्दे, चादर, सोफा, फर्नीचर रोजाना झाड़-पौंछ जरूर करें और सप्ताह में एक बार घर के हर कोने की डीप-क्लीनिंग यानी गीले डस्टर से डस्टिंग करनी चाहिए। वैल्वेट की चादरें, रजाई, कंबल को हर सप्ताह धूप में रखें। पर्दों, डोर मैट्स, कालीन को भी नियत अंतराल के बाद बराबर धोते रहें या वैक्यूम क्लीनर से साफ करते रहें। किचन में लगी चिमनी के फिल्टर और एग्जॉस्ट फैन को भी 15-20 दिन में एक बार जरूर साफ करना चाहिए ताकि हवा निकलने में कोई परेशानी न हो।
- घर में अगर पालतू जानवर हों, तो उनसे यथासंभव दूरी बनाकर रखें जिससे उनके फर आपके श्वसन तंत्र में पहुंचकर सांस संबंधी समस्याएं ट्रिगर कर सकते हैं।
- घर में प्रदूषण-रोधी इंडोर प्लांट लगाएं- मनी प्लांट, स्नैक प्लांट, आरीका पाम, रबर प्लांट, एलोवेरा आदि। ये पौधे कार्बन डाइऑक्साइड और वातावरण में मौजूद गहरीली गैसों को अवशोषित कर ऑक्सीजन छोड़ते हैं, जो गुणवत्ता को बेहतर बनाकर वातावरण को साफ रखने में मदद करते हैं।
(डॉ विनी कांतरू, सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट, इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, दिल्ली)