Procrastination Habit: विलम्बन या टालमटोल करने का अर्थ है जो काम अभी किया जाना है उसे लटका देना। परीक्षा में असफल होने का एक मुख्य कारण यह भी है। कल-कल करते-करते सारा काम बोझ बनकर सामने आ जाता है जिसे एक साथ देखकर घबराहट होती है और यही घबराहट परीक्षा में सफल नहीं होने देती।
हम चीजों को कल पर क्यों टालते हैं तथा इससे कैसे बचें आइए जानें
टालमटोली का कारण
- यदि आप गौर से देखें तो पाएंगे कि इस टालमटोली का सदैव एक प्रमुख कारण होता है, ‘असफलता का भय। इसी भय को आप विभिन्न बहानों की आड़ में छुपाने लगते हैं। यह बहाने आपको हकीकत से दूर ले जाते हैं और तब आपको भय से जूझना थोड़ा आसान लगने लगता है। लेकिन विलम्ब की आड़ में भय को छिपाना स्वयं को मूर्ख बनाने के समान है। इससे हकीकत तो बदलती नहीं वरन्ï और मुश्किल होती जाती है।
- उस स्थिति में आक्रान्त हो जाना (यानी अपनी अयोग्यता की तुलना में) क्योंकि काम तो बहुत विकट लगता है और योग्यता नगण्य! उदाहरणार्थ आप याद करें कि जब आप ग्यारहवीं कक्षा में आए थे तो आपने सोचा था कि अगले दो साल आप दाखिले की परीक्षाओं के लिए जमकर मेहनत करेंगे। तब संकल्प की विशालता और मेहनत से डट कर आपने उसे टालना ही ठीक समझा।
- अपने अंतिम लक्ष्य के प्रति लगाव की कमी भी इसका एक कारण होती है।
- आपका स्वयं को परिपूर्ण (हर काम उत्तम तरीके से करने वाला) समझना। इसमें आप शुरू से हर काम सबसे बढ़ियां ढंग से करने की चाह रखते हैं, जो कभी होता नहीं। अत: आप अपने काम को टालते रहते हैं क्योंकि आप अभी उसके लिए ‘तैयारी’ कर रहे हैं, यानी पाठ्ïय सामग्री-पुस्तकें इत्यादि इकठ्ठा कर रहे हैं, हर स्रोत से मशविरा ले रहे हैं अथवा कार्यक्रम बना रहे हैं इत्यादि। परंतु आप शुरुआत नहीं कर पा रहे क्योंकि अभी ‘सर्वोत्तम’ फल नहीं दे पाएंगे।
टालमटोली का निवारण या हल
१) आज ही शुरू करें

टालमटोली का एक आसान निदान है, जो काम करना है उसे आज ही शुरू कर दें। शुरू करने पर इतना जोर इसलिए है क्योंकि यदि सुनियोजित ढंग से पढ़ाई (परीक्षा के लिए) प्रारंभ नहीं की गई तो परीक्षा पास आने पर हड़बड़ी और घबराहट के कारण सही रूप से कुछ नहीं हो पाएगा। पैराशूट से कूदना सीखने के लिए हवाईजहाज में आग लगने का इंतजार क्यों किया जाए। आप अपनी पढ़ाई जितनी शीघ्र शुरू कर दें उतना बेहतर है यानी एक दिन समय निर्धारित करें और काम शुरू कर दें। हालांकि कहावत के अनुसार ‘कल कभी नहीं आता आप बजाय आज के कल भी निश्चित कर सकते हैं पर इस ‘कल’ को स्पष्ट रूप से परिभाषित कर लीजिए। यदि आज 25 फरवरी है तो आप अपनी डायरी में लिख लें कि कल से यानी 26 फरवरी सुबह 9:30 बजे से आप अपनी पढ़ाई प्रारंभ कर देंगे। उसमें टालमटोली की गुंजाइश तब नहीं रहेगी।
एक तरीका और भी है टालमटोली से छुटकारा पाने का। यानी इसे किसी दिलचस्प घटना या क्रिया से जोड़िए जिससे आपके दिमाग को एक प्रेरणा मिले। मान लीजिए आप एक दिलचस्प उपन्यास पढ़ रहे हैं, आप तय कीजिए कि इस उपन्यास को दो दिन में खत्म कर आप अपना पढ़ाई का कार्यक्रम चालू कर देंगे। तो जैसे ही उपन्यास खत्म होगा आपके दिमाग में एक घंटी बजने लगेगी कि परीक्षा की पढ़ाई प्रारंभ करनी है। इसमें थोड़ी टालमटोली तो रहेगी पर इसकी एक निश्चित सीमा भी स्पष्टï रहेगी।
२) इसके (टालमटोली के) कारण को ही ध्वस्त कर दें
पढ़ाई की तिथि निश्चित करने के बाद दूसरा कदम है अपने निर्धारित कार्यक्रम से कतई न हटें। इसके लिए आपको इसके कारण का हल ढूंढना पड़ेगा। इसको एक-एक कर देखें।
(क) ‘लक्ष्य प्राप्ति में दिलचस्पी की कमी’ का हल– टालमटोली में एक गुण तो होता है कि यह एक सत्य उद्घाटित करती है, यानी एक विसंगति दिखाती है जिसके कारण लक्ष्य-प्राप्ति में कम दिलचस्पी उभर कर आती है। इसलिए स्वयं से स्पष्ट पूछें-
१) क्या मैं यह काम पूरा कर सकने में सक्षम हूं?
२) क्या मुझे कॅरियर के इस क्षेत्र में वाकई दिलचस्पी है?
३) क्या यह परीक्षा पास करना या इसमें सफल होना मेरे लिए वाकई महत्त्वपूर्ण है?
इन प्रश्नों की जरूरत इसलिए है क्योंकि आपकी इस कॅरियर-लाइन में घुसने में गहरी रुचि नहीं है। इसलिए यदि ऊपर के प्रश्नों का उत्तर ‘हां’ है तो कोई संदेह नहीं रह जाएगा।
(ख) ‘स्वयं को इस काम के लिए अक्षम समझने का हल आपके बर्ताव से जुड़ा रहता है। इसको ऐसे शुरू करें- अपनी सभी उपलब्धियों को एक कागज पर उतार लें या अपना ‘टेस्ट ग्राफ’ बनाएं। इसमें आपके पिछली परीक्षाओं में आए अंकों का ग्राफ बनेगा। यदि यह ग्राफ धीरे-धीरे ऊंचा उठता है तो निश्चित ही आपका मनोबल बढ़ेगा और आत्म-विश्वास में काफी इजाफा होगा।
३) ‘काम की विशालता और स्वयं की नगण्यता से अभिभूत होने का हल
इसमें बेशक आपकी नगण्य क्षमता और काम की विशालता परेशान तो करती है, दिल बैठाती है परंतु फिर भी इसमें जुट जाएं। हल यही है कि इस विशाल काम को छोटे-छोटे हिस्सों में बांट लें- यानी महीने, हफ्ते या रोज के काम।
इस उद्देश्य को प्राप्त करने का एक कार्यक्रम बना लें। तब आप देखेंगेे कि रोज का काम या हफ्ते का काम इतना विशाल और भयकारी नहीं प्रतीत होगा। धीरे-धीरे आप उन्हें पूरा करते जाएंगे और अंतत: इसको पूरा करने में सफल भी हो जाएंगे। आपके सफलता ग्राफ में इसका उल्लेख सबसे ऊपर रहेगा तथा आपको अपनी उपलब्धि पर संतोष और खुशी होगी।
४) परफैक्शनिस्ट समझने की प्रवृत्ति का हल
इसका हल एक परफैक्ट प्लान बना कर ही होगा कैसे? यानी एक ऐसा परफैक्ट प्लान बनाएं जिसमें बाकी अध्ययन दिवसों का ख्याल परफैक्ट तरीके से रखा जाए। इसके लिए अपने प्लान का प्रथम दिन दीर्घकालीन योजना का महत्त्वपूर्ण दिवस होगा। इसे ‘प्लानिंग डे’ या ‘स्टार्ट डे’ कह सकते हैं। यानी इस दिन सिवाय इस प्लान को पूरा करने पर विचार करने के अलावा और कुछ नहीं किया जाएगा- यानी पूरी अवधि में कैसे इस योजना का कार्यान्वयन किया जाएगा। इसके लिए आप एक तरीके के अनुसार ‘शेड्ïयूल कैलेण्डर बनाएंगे।
लड़ने की या कुछ अलग कर दिखाने की इच्छा शक्ति यानी बिना नतीजे के भय के किसी काम को पूरा करने का प्रयत्न करने की इच्छा शक्ति। बेशक किसी काम का फल हमारे हाथ में नहीं होता पर हम कोशिश तो कर ही सकते हैं। हमें अपनी इस इच्छाशक्ति का सही रूप में उपयोग करना पड़ेगा।
तो इसके लिए अभी अपना ‘स्टार्ट डे’ निर्धारित करें- सोने जाने से पूर्व हर हालत में इसे कर ही डालें। आप देखेंगे कि सफलता आपका ही वरण करेगी।