गर्मियों में होने वाली व्याधियों का घरेलू इलाज: Home Remedies in Summer
Home Remedies in Summer

Home Remedies in Summer: गर्मी के मौसम में अक्सर प्यास लगना उदर का फूलना, पेशाब की रुकावट तथा जलन, सूजाक, उपदंश (सिफलिस), मंदाग्नि (पाचन शक्ति का कमजोर होना), बुखार, हैजा, घमौरी, सिरदर्द, दाद, दमा, खांसी, रक्तक्षय, पाण्डु, थैलेसीमिया, रक्त कैंसर, रक्तपित्त, पेट के कीड़े, उन्माद, पीड़ा, रक्तचाप, आंखों के रोग, लू, कान दर्द, हृदय व्याधि, मुखरोग, प्रदर, स्वेदाधिक्य, स्वेदावरोध, वातरक्त, घाव, विस्फोट, पेट रोग, जुकाम, दस्त की बहुलता देखने को मिलती है। यहां कुछ रोगों पर चर्चा की जा रही है-

घमौरियां

हालांकि ग्रीष्म ऋतु में तमाम व्याधियां पनपती है किंतु त्वचा संबंधी, जिसे ऊष्मा पित्तिका, धाम पित्ती, अम्हौरी, मिलियारिया (मलेरिया नहीं) के नाम से जाना जाता है, अधिक होती है। घमौरी होने का विशेष कारण स्वेद (पसीना) ग्रंथियों का रुक जाना है, इस व्याधि के होने पर गर्दन, कंधे या काया के दूसरे भागों पर लाल-लाल से ददोरे या नन्हीं-नन्हीं फुंसियां आकार-प्रकार में मुहासों सरीखी ही होती है, जिनसे त्वचा में जलन तो नहीं होती किंतु खुजली अवश्य होती है, स्वेद ग्रंथियों के रुक जाने की सही वजह की जानकारी नहीं मिली है किंतु मोटापा, तनाव, गर्मी तथा आर्द्र मौसम, प्लास्टिक अंडर शीट का प्रयोग तथा नाजुक त्वचा वाले व्यक्तियों में घमौरियां निकलने की ज्यादा आशंका रहती है। यदि आप अपने शरीर पर घमौरियां नहीं होने देना चाहते हो, तो ढीले-ढाले सूती कपड़ों का ही प्रयोग करें। खासतौर से इस मौसम में रेशमी, नायलॉन, सिंथेटिक अथवा कृत्रिम धागों द्वारा निर्मित वस्त्रों को धारण न करें क्योंकि इनसे काया का पसीना सूख नहीं पाता है जिससे घमौरियों के साथ ही त्वचा आधारित अन्याय व्याधियों के होने की प्रबलता बढ़ जाती है। दिन में कम से कम दो बार सुबह-शाम कुछ समय तक नियमित स्नान करने से आशातीत सफलता मिलती है। स्नान के लिए नीम के तेल से निर्मित साबुन का प्रयोग करना चाहिए।

जहां तक हो सके उत्तेजक चीजों के सेवन से बचना चाहिए क्योंकि उत्तेजक चीजों के इस्तेमाल से पसीने निकलने की प्रबल आशा पैदा हो जाती है विशेष कर ज्यादा तेल, मसाले से बने भोज्य वस्तुओं और चाय-कॉफी का हरगिज सेवन नहीं करना चाहिए। घमौरियों के इलाज में आम की गुठली कारगर दवा है। यदि आम गुठली के चूर्ण को जल में मिलाकर पूरी काया पर लगाकर 15 मिनट बाद स्नान कर लिया जाए, तो घमौरियों के चुभने से आराम मिलता है। गर्मियों में प्रचुर मात्रा में शीतलता युक्त फलों तथा उनसे तैयार ठंडे पेय पदार्थों के इस्तेमाल से उक्त बीमारी को शीघ्र खत्म किया जा सकता है।

पेट विकार

Stomach
Stomach Home Remedies in Summer

ज्यादातर व्यक्ति जायकेदार भोजन करते वक्त यह भूल जाते हैं कि पेट खाली है कि नहीं। फलस्वरूप आंतों में भार बढ़ता जाता है जबकि जठराग्नि धीमी होने लगती है और अफारा, पेट दर्द, उल्टी, डकारें, पतले दस्त सरीखी परेशानियां बढ़ जाती हैं। आमाशय के भीतर अम्ल की मात्रा का आवश्यकता से अधिक होना ही अम्लपित्त का कारण है। पेट दर्द से मुक्ति पाने के लिए सुबह जल्दी उठकर, बिना मुंह धोए, बिना ब्रश किए हुए जल पीने को ‘उषापान’ कहते हैं। इससे कब्जियत, अपचन, गैस की समस्या, अर्थ, रक्तचाप आदि हानिकारक व्याधियों से छुटकारा मिल जाता है। जल हरदम कागासन में ही बैठकर पीना चाहिए। जिन्हें ज्यादा समय से कब्ज की परेशानी है, उन्हें रात को तांबे के पात्र में रखा हुआ जल पीना चाहिए। यदि हो सके तो पानी पीने के बाद ताड़ासन भी किया जा सकता है। दोनों हाथों को ऊपर करके पंजों के बल लगभग 20 कदम चलें। इसे ताड़ासन कहते हैं। इस प्रक्रिया से जल बड़ी आंतों में प्रवेश कर जाता है एवं शौच करते वक्त मल का निष्कासन नैसर्गिक रूप से होता है। पेट दर्द की परेशानी होने पर तुलसी के रस में गुड़़ मिलाकर लेने से आराम मिलता है। कब्ज, गैस्ट्रिक एवं अर्श में पपीता हितकारी फल है।

नकसीर

ग्रीष्म ऋतु में कई बार नाक से अकस्मात् रक्त निकलना प्रारंभ हो जाता है। इसे नकसीर फूटना कहते हैं। जिन्हें बार-बार नकसीर फूटती हो, उन्हें विटामिन ‘सी’ वाले भोज्य पदार्थों का प्रचुर मात्रा में सेवन करना चाहिए, क्योंकि यह रोग विटामिन ‘सी’ की कमी की वजह से होता है। इसलिए ऐसे व्यक्तियों को रसदार मीठे फल यथा- अनार, अंगूर आदि का सेवन करते रहना चाहिए।

लू लगना

Loo
Loo

गर्मी के मौसम में सूर्य के प्रबल ताप के साथ गर्म व तीव्र हवाओं के झोंके चलते हैं, जिन्हें सामान्य बोलचाल की भाषा में ‘लू चलना’ कहते हैं। इसे आयुर्वेदिक ग्रंथों में अंशुघात बुखार और वर्तमान चिकित्सा शास्त्र में इसे सन स्ट्रोक या हीट स्ट्रोक कहते हैं। कभी-कभी तो लू का असर जानलेवा तक साबित होता है। सूरज को रश्मियों की चपेट से काया के जलीयांश में कमी हो जाना ही लू लगना कहा जाता है। लू लगने पर व्यक्ति का तापमान एकाएक गिर जाता है तथा इसका असर मस्तिष्क तथा खून पर पड़ता है। खून के परिसंचरण की गति धीमी पड़ जाती है, जिससे मांसपेशियों में ऐठन होने लगती है। जहां तक हो सके, प्रचंड गर्मी में घर से बाहर न निकलें। जरूरी कार्यवश बाहर जाने से पूर्व तन के उन भागों को जो धूप के सीधे प्रभाव में आते हैं, यथा- मुख, नेत्र, गला, पीठ, गर्दन, हाथ व पैर पर सन स्क्रीन युक्त लोशन या क्रीम की हल्की परत लगा लेनी चाहिए। लू लगने पर हथेली व तलवों पर चंदन घिसकर लगाने से तथा चंदन का शर्बत पुदीने के रस के साथ पिलाने से लू का असर खत्म होता है।

वमन

ग्रीष्मकाल में होने वाली व्याधियों में उल्टी एक खास व्याधि है। हालांकि यह किसी भी ऋतु में हो सकती है, किंतु गर्मी के दिनों में जठराग्नि की कमजोरी तथा बेहद गर्मी की वजह से भी व्यक्ति बगैर सोचे-विचारे ठूंस-ठूंसकर खाते रहते हैं, जिससे अजीर्ण हो जाता है तथा उल्टी होने लगती है। इसलिए लगातार हो रही उल्टी को काबू में करने के लिए तुलसी के बीज को पीसकर दूध के साथ लेने से बढ़ती उल्टी या वमन को शीघ्र ही रोका जा सकता है।

अपचन

अपचन की स्थिति में या पेट में वायु से बेचैनी हो, तो तुलसी का रस, काली मिर्च और शुद्ध घी के साथ मिश्रण करके लेने से कब्ज और बदहजमी की शिकायत समाप्त हो जाती है।