Bronchitis Prevention: सर्दियों का मौसम दस्तक दे रहा है। गिरते तापमान और प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण खांसी-जुकाम की समस्या देखने को मिलती है। अकसर हम इसे मामूली बीमारी समझकर ओवर-द-काउंटर दवाइयों का सेवन कर लेते हैं हैं। जबकि कई बार छोटी-सी लगने वाली खांसी आगे चलकर ब्रोंकाइटिस का रूप ले लेती है।
वास्तव में ब्रोंकाइटिस सर्दियों में होने वाली एक श्वसन तंत्र संबंधी समस्या है। इसमें कई कारणों से व्यक्ति के फेफड़ों तक ऑक्सीजन पहुंचाने वाली ब्रोंकाई ट्यूब में इंफेक्शन हो जाता है। इंफेक्शन होने पर ब्रोंकाई ट्यूब में सूजन आ जाती है और जलन होती है यानी ऑक्सीजन का मार्ग यानी श्वसन तंत्र सिकुड़ जाता है। फेफड़ों तक ऑक्सीजन समुचित मात्रा में न पहुंच पाने पर फेफड़ों के टिशूज में लचीलापन कम होने लगता है और व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत होती है।
ब्रोंकाइटिस के कारण

जो लोग धूम्रपान ज्यादा करते हैं या फिर अस्थमा के मरीज हैं, उन्हें श्वसन-तंत्र संबंधी संक्रमण बार-बार होते रहते हैं। वातावरण में मौजूद प्रदूषक तत्वों की वजह से एलर्जी होना। सर्दी के बदलते मौसम में बैक्टीरियल या वायरल इंफेक्शन ज्यादा होते हैं। जब व्यक्ति वातावरण में मौजूद श्वसन तंत्र को संक्रमित करने वाले बैक्टीरिया या वायरस के संपर्क में आता है, तो उसे भी एक्यूट ब्रोंकाइटिस या खांसी-जुकाम हो जाता है। इनमें इंफ्लूएंजा ए और बी, पैरा- इंफ्लूएंजा, कोरोनावायरस, राइनोवायरस, रेस्पिरेटरी सिंकाइटियल वायरस, ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस जैसे वायरस प्रमुख हैं। एक्यूट ब्रोंकाइटिस के लिए काली खांसी के बोर्डेटेला पर्टुसिस, निमोनिया के माइकोप्लाज्मा और क्लैमाइडिया बैक्टीरिया भी जिम्मेदार होते हैं।
जब व्यक्ति बीड़ी-सिगरेट पीने, चिमनी, चूल्हे से निकलने वाली हानिकारक गैसों, प्रदूषित हवा, धूल-मिट्टी के कणों के संपर्क में आता है या ऐसे वातावरण में लंबे समय तक काम करता है। ये प्रदूषक तत्व उसके श्वसन तंत्र यानी ब्रोन्कियल ट्यूब को संक्रमित कर सकते हैं। जिससे उसके फेफड़ों तक ऑक्सीजन
नहीं पहुंच पाती और उसे सांस लेने में दिक्कत होती है।
इसके अलावा किसी ब्रोंकाइटिस के मरीज के संपर्क में ज्यादा रहने से दूसरा व्यक्ति भी संक्रमित हो सकता है, जिससे सांस लेने की समस्याएं बढ़ जाती हैं। ब्रोंकाइटिस के वायरस या बैक्टीरिया संक्रमित व्यक्ति के खांसने-छींकने पर निकलने वाले ड्रॉपलेट्स के माध्यम से दूसरे व्यक्ति में फैलते हैं।
ब्रोंकाइटिस के प्रकार

एक्यूट या अल्पकालिक ब्रोंकाइटिस: एक्यूट ब्रोंकाइटिस के 95 प्रतिशत मामले वायरस और बैक्टीरिया के इंफेक्शन की वजह से होते हैं। हालांकि, यह ब्रोंकाइटिस जल्द (2-3 सप्ताह) ठीक हो जाता है, लेकिन इंफेक्शन के बाद भी मरीज को तकरीबन 6 सप्ताह तक खांसी की समस्या रह सकती है।
क्रोनिक या दीर्घकालिक ब्रोंकाइटिस: हानिकारक एयरबोर्न पार्टिकल्स के संपर्क में लंबे समय तक रहने पर क्रोनिक ब्रोंकाइटिस होता है। इसमें मरीज को खांसी के साथ स्पुटम आने की समस्या रहती है। क्रोनिक संक्रमण फेफड़ों से संबंधित समस्या है, जो 3 सप्ताह से ज्यादा समय तक बना रहता है। समुचित उपचार न किया जाए तो इससे ठीक होने में 3-5 महीने तक लग सकते हैं। मरीज को ब्रोंकियल अस्थमा, क्रोनिक ओब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), जीईआरडी या एसिडिटी, फेफड़ों में क्लॉट्स, पोस्ट नेजल ड्रिप के बाद साइनस इंफेक्शन होने जैसी समस्याएं होने की आशंका रहती हैं।
ब्रोंकाइटिस के लक्षण
इंफेक्शन होने पर ब्रोंकाइटिस के मरीजों में ये लक्षण देखने को मिलते हैं-
- लगातार खांसी होना, खांसी में ज्यादा बलगम बनना।
- सिर दर्द।
- हल्का बुखार, थोड़ी बहुत ठंड लगना।
- गले में खराश, घरघराहट होना और दर्द होना।
- छाती में जकड़न-दर्द होना।
- नाक बंद होना या नाक बहना।
- सांस लेने में तकलीफ होना, सांस लेते समय सीटी जैसी आवाज आना।
- सिर दर्द, बदन दर्द होना, थकावट होना।
- बलगम ज्यादा बनना, खांसने पर सफेद, पीले या हरे रंग का बलगम आना।
- खांसी के साथ खून या उल्टी आना।
डॉक्टर को कब दिखाएं

जब खांसी में खून आ रहा हो, अगर बुखार बहुत ज्यादा हो, सांस लेने में तकलीफ हो रही हो, बीमारी 3 सप्ताह से ज्यादा चल रही हो।
डायग्नोज कैसे किया जाए
डॉक्टर सबसे पहले मरीज की केस हिस्ट्री का पता लगाते हैं। लक्षणों के आधार पर मरीज का पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट, स्पुटम की जांच की जाती है, जिससे उसके श्वसन तंत्र में इंफेक्शन का पता चलता है। फेफड़ों में इंफेक्शन चैक करने के लिए चेस्ट एक्स रे, चेस्ट सीटी स्कैन किया जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य कई तरीके हैं जिनके माध्यम से ब्रोंकाइटिस के बारे में पता लगाया जा सकता है।
ब्रोंकाइटिस की गंभीरता का पता लगाने के लिए ऑक्सीजन सेचुरेशन, 6 मिनट वॉक टेस्ट, पल्स रेट और रेस्पेरेटरी रेट की जांच की जाती है। ब्लड काउंट टेस्ट भी किया जाता है।
कैसे होता है उपचार

- मरीज की स्थिति के हिसाब से उपचार किया जाता है। अगर मरीज का सांस फूल रहा हो तो डॉक्टर उसे ब्रोंकोडायलेटर या इनहेलर लेने की सलाह देते हैं। इनहेलर में बहुत कम मात्रा में कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स दवाई होती है जो सीधे फेफड़ों तक जाती है और इसका असर तुरंत और लंबे समय तक रहता है।
- अगर स्पुटम की जांच में कोई बैक्टीरियल इंफेक्शन मिलता है तभी डॉक्टर मरीज को जरूरी एंटीबायोटिक दवाइयां देते हैं। कफ को कम करने के लिए नॉन-कोडीन कफ सिरप दिए जाते हैं। खांसी या एलर्जी ज्यादा होने पर एंटीटसिव्स और एंटी एलर्जी दवाइयां दी जाती हैं। बुखार कम करने के लिए एंटी वायरल दवाइयां दी जाती हैं।
- कफ को डायल्यूट करने के लिए नेबुलाइजेशन लेने की सलाह भी दी जाती है। जरूरत हो तो कफ बाहर निकालने के लिए पॉश्च्युरल ड्रेनेज, चेस्ट परक्यूजन, चेस्ट वाइब्रेशन, टॄनग जैसी थेरेपी भी दी जाती है। इससे मरीज को सांस लेने में होने वाली दिक्कत से राहत मिलती है।
ब्रोंकाइटिस में आराम पहुंचाए घरेलू उपाय

कुछ घरेलू उपाय ब्रोंकाइटिस की समस्याओं से राहत पाने में कारगर होते हैं-
- रात में सोने से पहले चुटकी भर हल्दी मिला गर्म दूध पिएं। हल्दी के एंटी इंफ्लीमेटरी गुणों के कारण ब्रोन्कियल ट्यूब की सूजन दूर होती है।
- लहसुन को बारीक काटकर शहद मिलाकर निगलने से भी सूजन दूर होती है। लहसुन में मौजूद एलिसिन एंटी बैक्टीरियल गुण बीमारी को दूर करने में मदद करता है।
- लैवेंडर, जैतून, दालचीनी, अजवायन का तेल अच्छी तरह मिलाकर गर्म कर लें। इस तेल से रोजाना सोने से पहले छाती और पीठ की मालिश करें।
- सरसों के तेल को थोड़ा गर्म करके सीने की मालिश करें। इससे फेफड़ों में जमा बलगम निकल जाता है।
- एक चम्मच शहद और अदरक का रस मिलाकर दिन में दो बार लें।
- अदरक-तुलसी मिलाकर दिन में कम से कम दो बार चाय पिएं।
- सौंठ, काली मिर्च और पीपली के पाउडर को अच्छी तरह मिला लें। एक छोटे चम्मच पाउडर में शहद मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करें।
- फेफड़ों की जकड़न दूर करने के लिए एसेंशियल ऑयल मिले पानी से भाप लेना फायदेमंद है। श्वसन तंत्र को आराम पहुंचाने के लिए नमक मिले गुनगुने पानी से गरारे करें।
- दही और ठंडे खाद्य पदार्थों के सेवन से बचें। अगर आपको खटाई, इमली जैसी चीजों से एलर्जी है तो उनसे दूर रहें।
- आहार में एंटी ऑक्सीडेंट तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों को ज्यादा से ज्यादा शामिल करें, जैसे- हरी सब्जियां, मौसमी फल, ड्राई फ्रूट्स। इनके नियमित सेवन से शरीर में इंफ्लेमेशन और इंफेक्शन का खतरा कम होता है।
- जहां तक संभव हो गुनगुना पानी पिएं।
ब्रोंकाइटिस से बचाव

फेफड़ों को मजबूती करने के लिए लंग्स एक्सरसाइज रेगुलर करने के लिए कहा जाता है, जिससे फेफड़ों को मजबूती मिलती है। गले की खराश से राहत पाने के लिए मरीज को गर्म पेय जैसे- चाय, शहद, अदरक को आहार में ज्यादा से ज्यादा शामिल करने की हिदायत दी जाती है। बदलते मौसम में इंफ्लूएंजा, निमोकोकल, काली खांसी, वैक्सीन लगाई जाती है। स्मोकिंग को पूरी तरह छोड़ने के लिए कहा जाता है। ब्रोंकाइटिस की समस्या से बचने के लिए मरीज को जीवन शैली में बदलाव लाना जरूरी है।
आइए जानते हैं कि इसके लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए-
- स्मोकिंग, कैमिकल्स और प्रदूषित हवा से जितना हो सके, बचने की कोशिश करें। प्रदूषण से बचने के लिए बाहर जाते समय मास्क पहनें।
- फेफड़ों को मजबूत करने के लिए लंग्स एक्सरसाइज रेगुलर करने के लिए कहा जाता है, जिससे श्वसन तंत्र और फेफड़ों को मजबूती मिलती है।
- फिजियोथेरेपिस्ट डॉक्टर मरीज को कई एक्सरसाइज कराते हैं, जैसे- स्पायरोमेट्री, ब्रीदिंग साइकल, सांस रोकना, डीप ब्रीदिंग।
- अगर घर में या आसपास किसी को ब्रोनकाइटिस है तो कफ हाइजीन प्रेक्टिस करना बहुत जरूरी है। उनसे समुचित दूरी बनाकर रखें। बार-बार साबुन से हाथ जरूर धोएं। खांसने-छींकने वाले को भी हाइजीन के लिहाज से नाक-मुंह ढक कर रखें ताकि उसके ड्रॉपलेट से संपर्क में आने वाले दूसरे व्यक्ति भी संक्रमित न हो जाएं।
- हाई रिस्क कैटेगरी में आने वाले लोगों को ब्रोंकाइटिस से बचने के लिए अस्थमा के रोगी, डायबिटीज से पीड़ित, कमजोर इम्यूनिटी वाले छोटे बच्चे और बुजुर्ग लोग (18 से 65 साल) को अक्तूबर-नवंबर माह में इंफ्लूएंजा फ्लू वैक्सीन और 65 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को न्यूमोकोकल वैक्सीन जरूर लगवानी चाहिए। इसके अलावा काली खांसी और कोविड वैक्सीन लगवाना भी फायदेमंद रहता है।
- अपने आसपास की हवा की गुणवत्ता साफ रखें। घर में एयर क्वालिटी खराब हो तो एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें।
- सर्दी के मौसम में सुबह बहुत जल्दी या देर शाम को न निकलें। धूप निकलने पर ही बाहर जाएं।
- अपनी दवाइयां समय पर और बराबर लेते रहें। डॉक्टर को कंसल्ट करने के बाद ही इनमें कटौती या बढ़ोतरी करें।
- सैर के लिए बहुत सुबह और देर शाम को न जाएं। इस समय हवा ठंडी और ज्यादा होने के कारण प्रदूषण का स्तर धरती पर बढ़ जाता है और बाहर व्यक्ति आसानी से इसकी गिरफ्त में आ सकते हैं।
साभार :
डॉ. गुरमीत सिंह छाबड़ा
(डायरेक्टर पल्मोनोलॉजी,
मारेंगो क्यूआरजी अस्पताल, फरीदाबाद)
डॉ. संजना शर्मा
(संतुलन आयुर्वेदिक क्लीनिक, रमेश नगर, दिल्ली)