तमाम अध्ययनो में यह पाया गया है कि वायु प्रदूषण और अस्थमा एवम अन्य सांस  संबंधी समस्याओं के बीच गहरा संबंध है। साथ ही रिसर्चर्स ने अब वायु प्रदूषण और गर्भस्थ भ्रूण के विकास के बीच के संबंध पर से भी पर्दा उठाना शुरू कर दिया है।मदरहुड हॉस्पिटल,नोयडा के कंसल्टेंट,ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गायनेकॉलजी,डॉ.संदीप चड्ढा,कहते हैं  कि रिसर्चरस ने पाया है कि प्रदूषित हवामें सांस लेने और जेस्टेशनल पीरियड,जन्म के समय बच्चे के वजन और जन्म के बाद उसके फेफड़ों की सेहत के बीच सीधा संबंध है। इससे भी अधिक परेशान करने वाली बात यह है कि 5साल की छोटी सी उम्र के बच्चे भी आज सांस की समस्या से जूझ रहे हैं,यह एक बड़ी समस्या है क्योंकि यह उन्हें आगे जीवन भर परेशान करने वाली है। कुछ अध्ययन तो यह भी बताते हैं कि लगातार प्रदूषण के संपर्क  में रहने से गर्भ में पल रहे बच्चे को जीवन में आगे चलकर बिहेवियरल समस्याएं और स्लीप डिसॉर्डर हो सकता है। हालांकि मेडिकल कम्युनिटी आज भी इसके लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है क्योंकि कोरिलेशनल स्टडीज वायु प्रदूषण और भ्रूण के विकास के मध्य सीधे संबंध को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। 

वायु प्रदूषण कैसे पहुंचता है अजन्मे बच्चे को नुकसान?

चूंकि कोरिलेशनल अध्ययन के जरिए उस मकेनिज्म की उपयुक्त व्याख्या नहीं की जा सकती है वायु प्रदूषण का संपर्क  किस प्रकार से मां के जरिए उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को प्रभावित करता है,ऐसे में इस विषय में और अधिक जानकारी हासिल करने के लिए पिछले कुछ वर्षों के दौरान रिसर्चर्स ने जानवरों  पर प्रयोग करना शुरू किया। 
टेक्सस ए एंड एम यूनिवर्सिटी में किए गए एक प्रयोग में रिसर्चर्स ने गर्भवती चूहों  को अल्टृआफाइन अमोनियम सल्फेट के  संपर्क में लाया,जिसका संबंध समय से पहले जन्म,जन्म के समय बच्चे के कम वजनऔर स्टिलबर्थ से होता है। इंसानों के अध्ययन में रिसर्चर्स को किसी खास तत्व के प्रभाव के बारे में पता लगाना मुश्किल होता है,यहां तक कि जब अमोनियम सल्फेट मिक्स्चर का एक हिस्सा होता है। हालांकि,कुछ वैज्ञानिकों  का मानना है कि कम्पाउंड का केमिकल मेकअप इसके आकारक के जितना महत्वपूर्ण नहीं है। छोटे कण,बडे कणों के मुकाबले अधिक गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं। अल्ट्राफाइन पर्टिकल्स,जोकि डायामीटर में 0.1माइक्रोमीटर से भी छोटे होते हैं,सेल मेम्बरेन के भीतर प्रवेश कर सकते हैं और यहां  तक कि फेफड़ों की कोशिकाओं की लाइनिंग में भी पाए जाते हैं। इनके सबसे छोटे कण सिस्टम के जरिए अपने लिए प्लेसेंटा तक पहुंचने का भी रास्ता बना सकते हैं। ये प्रदूषक सेल मेम्बरेन के प्रोटीन और लिपिड के साथ रिएक्शन भी करते हुए देखे गए हैं,जिसके चलते इंफ्लेमेटरी स्थितियां सामने आती हैं। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि ये इंफ्लेमेटरी रिस्पॉन्सेज उस परिस्थिति के लिए रास्ता बना सकते हैं,जिससे लेबर की शुरुआत होती है। 
एक अन्य अध्ययन यह बताता है कि वायु प्रदूषण अजन्मे बच्चे के सिर्फ मेटाबोलिज्म को ही प्रभावित नहीं करता है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के वैज्ञानिकों ने न्युरोइंफ्लेमेशन के लक्षण भी पाए हैं। अगर भ्रूण के ब्रेन में इंफ्लेमेशन हुआ तो इसका असर जन्म के बाद उसके दिमागी विकास पर पड़ सकता है,हालांकि इस तथ्य को पूर्णतः साबित करने के लिए हमें  और आवश्यकता है। मामला कोई भी हो,पशुओं पर की गई इन प्राथमिक और एपिडेमियोलॉजिकल अध्ययन   में पाया गया है कि वायु प्रदूषण के असर का परिणाम समय पूर्व बच्चे के जन्म,जन्म के समय वजन आदि से भी कही अधिक सामने आ सकता है,जिसका प्रभाव व्यक्ति के ऊपर जीवनभर रह सकता है। खतरे के दायरे में आने वाले लोगों  की पहचान कर रिसर्चर्स के लिए इस क्षेत्र में रिसर्च हेतु फोकस करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। 

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