AQI and Health: पिछले कुछ सालों से वातावरण में एक्यूआई इंडेक्स लेवल का बढ़ता स्तर एक बड़े संकट के रूप में सामने आया है। दीवाली के बाद सर्दी के आगमन और बदलते मौसम में कई राज्यों में प्रदूषण कहर बरपाता है। जिसकी वजह से हवा काफी जहरीली हो जाती है और यहां के निवासी न चाहते हुए भी स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं का सामना करते हैं। खासतौर पर देश की राजधानी दिल्ली दुनिया के 5 सबसे प्रदूषित शहरों में आती है।
क्या है एक्यूआई?
आपके आसपास की हवा आपके लिए कितनी खतरनाक या कितनी साफ हेै- इसका पता एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी एक्यूआई से लगाया जाता है जिसे गुणवत्ता सूचकांक कहा जाता है। इससे यह भी पता चलता है कि निकट भविष्य में शहर में प्रदूषण स्तर कितना होने वाला है। रिसर्च से साबित हुआ है कि वातावरण में बढ़ता एक्यूआई प्रदूषण लेवल सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है। किसी भी हाल में एक्यूआई का लेवल 150 तक होना चाहिए। अगर आप इससे ज्यादा में सांस ले रहे हैं, तो आपको तरह-तरह की बीमारियों हो सकती हैं। आंकड़ों के हिसाब से प्रदूषित हवा से हमारे देश में हर साल तकरीबन 50 लाख मौतें हो रही हैं। दिल्ली के करीब 40 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जिनके फेफड़े खराब हो चुके हैं।

भारत में इसे मिनिस्ट्री ऑफ एनवायरन्मेंट, फाॅरेस्ट और क्लाइमेट चेंज ने इसे एक संख्या, रंग और विवरण के आधर पर लांच किया था। द एन्वायरन्मेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी (ईपीए) 5 मुख्य वायु प्रदूषकों के आधार पर एयर क्वालिटी इंडेक्स को मापती है- ग्राउंड लेवल ओजोन, पार्टिकल पोल्यूशन और पार्टिकुलेट मैटर यानी पीएम 2.5 और पीएम 10, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फल डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड। इन कारकों के आधार पर पिछले 24 घंटे की हवा की गुणवत्ता को तय किया जाता है। हवा की गुणवत्ता की जानकारी के लिए शहर के अलग-अलग जगहों पर इसे लगाया जाता है। आम जनता भी अपने मोबाइल एप्स या वेबसाइट के जरिये इसका पता लगा सकती है।
क्या है एक्यूआई इंडेक्स पैमाना?

एक्यूआई को रीडिंग के आधार पर 6 कैटेगरी में बांटा गया है-
0-50 (हरा रंग) – इस लेवल को अच्छी श्रेणी या गुड कैटेगरी माना गया है। यानी यह साफ हवा है।
51-100 ( पीला)- इस लेवल की हवा में एआईक्यू लेवल संतोषजनक या सैटिसफैक्टरी है। इस लेवल पर सेंसेटिव लोगों को आउटडोर एक्टिविटी कम करने के लिए कहा जाता है।
101-200 ( ओरेंज)-इस लेवल को मध्यम या माॅडरेट कहा जाता है। इसमें सेंसेटिव लोग बीमार पड़ सकते हैं यानी अगर आपको किसी तरह की बीमारी है, तो यह आपके लिए अच्छा नहीं है।
201-300( पर्पल)- इस लेवल को खराब या पुअर कैटैगरी में रखा जाता है। यह आम लोगों को बीमार कर सकता है।
301-400( मैरून)- एक्यूआई इंडेक्स होने पर हवा को बहुत खराब या वेरी पुअर कैटेगरी में डाला जाता है। यानी यह स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक है। इसमें बाहर नहीं निकलने की सलाह दी जाती है।
401-500( मैरून)- यह लेवल अति गंभीर या सीवियर कैटेगरी में रखा जाता है। इसमें सभी लोग हाई रिस्क पर होते हैं। सभी को 2.5 पीएम क्वालिटी का मास्क पहनने की सलाह दी जाती है।
क्या होता है स्वास्थ्य पर असर?
प्रदूषक तत्व सांस के माध्यम से शरीर में पहुंच कर सेहत को नुकसान पहुंचाते है। एक्यूआई लेवल जब पीएम 2.5 से ज्यादा होता है, तो वो फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं। सांस की ब्रोन्कियल ट्यूब सिकुड़ जाती है और सूजन आ जाती है। फेफड़ों को क्षतिग्रस्त करते हैं। टिशूज में लचीलापन कम होने लगता है जिससे खांसी-जुकाम, गला खराब होना, बलगम ज्यादा होना, सांस लेने में दिक्कत होना, सीओपीडी, आईएलडी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसी रेस्पेरेटरी समस्याएं होती हैं।

सांस की नली में मौजूद प्रदूषक तत्व डिजाल्व होकर पीएम-2.5 से छोटे हो जाते हैं जो फेफड़ों में न जाकर ब्लड में पहुंच जाते हैं। ब्लड के साथ सर्कुलेट होकर शरीर के विभिन्न अंगों में को नुकसान पहुंचाते हैं। हार्ट आरटरीज में पहुंचकर कार्डियोवैस्कुलर या हार्ट और ब्रेन की नसों में बदलाव लाते हैं जिसकी वजह से हार्ट अटैक या स्ट्रोक होना, लकवा, कैंसर, डायबिटीज जैसी नॉन कम्यूनिकेबल डिजीज भी प्रदूषण से जुड़ी हुई हैं। ज्यादा एक्सपोज होने पर प्रदूषक तत्व साइटोकाइन हार्मोन या कैमिकल्स के साथ रिएक्ट कर जाते हैं। शरीर में इन्फ्लेमेशन बढ़ातेे हैं और लंबे समय में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों का कारण बनते हैं।
इनके अलावा प्रदूषक तत्व शरीर के बाहरी अंगों को भी नुकसान पहुंचाते हैं। खासतौर पर चेहरे और बालों पर इनका खासा असर देखा जा सकता है। जिनकी वजह से व्यक्ति को आंखों में इचिंग होना, पानी आना, लालिमा आना, साफ-सफाई रखने के बावजूद चेहरे की त्वचा बहुत ज्यादा ऑयली होना और मुहांसे निकलना, बाल रुखे-बेजान और समय से पहले सफेद होना या झड़ना जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
कैसे करें बचाव?

- एयर क्वालिटी इंडेक्स का ध्यान रखें जिसका पता गुगल एप से पता लगाएं और अपनी एक्टिविटीज को उसी के हिसाब से मॉडीफाई करें।
- अपनी सेहत का ध्यान रखें। किसी भी तरह की समस्या हो तो मेडिसिन अपने आप न लें। चिकित्सक को कंसल्ट करें और बताई गई मेडिसिन को नियमपूर्वक लें।
- सांस संबंधी बीमारियों से ग्रस्त मरीज और कमजोर इम्यूनिटी वाले लोेग इस मौसम में फ्लू, इंफ्लूएंजा की वैक्सीन जरूर लगवाएं।
- अस्थमा के मरीज इन्हेलर को हमेशा अपने पास रखें और किसी भी तरह की समस्या महसूस होने पर इसका प्रयोग जरूर करें। सांस लेने में दिक्कत होे तो स्टीमर या नेबुलाइजर का इस्तेमाल करें।
- सांस लेने में किसी तरह की समस्या होने, खांसी-जुकाम, सांस लेने में आवाज आने जैसी समस्या को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। ये ब्रोंकाइटिस, अस्थमा या सीओपीडी जैसी समस्या का कारण हो सकते हैं।
- इंडोर पोल्यूशन से बचने के लिए खाना बनाते समय निकलने वाले धुंए को निकालने के लिए चिमनी या एक्जास्ट जरूर चलाएं।
- घर में एयर-वेंटिलेशन का पूरा ध्यान रखें। अगर बाहर वातावरण में स्मॉग प्रदूषण न हो और सनलाइट आ रही हो, तो सुबह उठने पर खिड़की-दरवाजें थोड़ी देर के लिए खोल दें। वरना प्रदूषण से बचने के लिए केवल दिन के समय जब धूप हो, तभी दरवाजे खोलें।
- अगर घर ऐसी जगह हो जहां एयर पॉल्यूशन का लेवल बहुत ज्यादा है और घर में वेंटिलेशन की कमी है, तो एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- घर में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। नियमित रूप से डस्टिंग करें। यहां तक कि वैल्वेट की चादरें, रजाई, कंबल,पर्दों, पायदान , कालीन को भी नियत अंतराल के बाद बराबर धोते रहें या वैक्यूम क्लीनर से साफ करते रहें।
- प्रदूषण का स्तर ज्यादा हो, तो सुबह 11 बजे से पहले और शाम 6 बजे के बाद घर से बाहर कम निकलें। बाहर जाते समय मास्क जरूर पहनें। खासकर छोटे बच्चे, उम्रदराज लोग और गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोग बाहर न जाएं।
- पोषक तत्वों से भरपूर संतुलित आहार लें। हाई फैट या हाई कार्बोहाइड्रेट डाइट के बजाय एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन मिनरल, प्रोटीन कैल्शियम रिच डाइट लें।
- भरपूर मात्रा में पानी पिएं ताकि शरीर में जाने वाले प्रदूषक कण डायल्यूट होकर शरीर से बाहर निकल जाएं। संभव होे तो गुनगुना पानी पिएं।

- हैल्दी लाइफ स्टाइल फोलो करें, अगर आप अंदर से मजबूत होेंगे तभी आप प्रदूषक तत्वों से बच सकेंगे। दिनचर्या का विशेष ध्यान रखें। कम से कम 40 मिनट व्यायाम, योगासन, वॉक, जॉगिंग, ऐरोबिक जैसी एक्विटीज करें।
- घर और आसपास प्रदूषण प्रतिरोधी पौधे लगाएं- स्नैक प्लांट, पाम।
- घर में अगर पालतू जानवर हों, तो उनसे यथासंभव दूरी बनाकर रखें। उनके फर आपके श्वसन तंत्र में पहुंचकर सांस संबंधी समस्याएं ट्रिगर कर सकते हैं।
- स्मोकिंग करने या पेसिव स्मोकिंग की चपेट में आने से बचें।
(डॉ विनी कांतरू, सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट, इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, दिल्ली)