christmas festival
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क्रिसमस ईसाइयों का सबसे महत्त्वपूर्ण त्योहार है तथा भारत के राष्ट्रीय त्योहारों में से एक है। इस दिन प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्म दिवस मनाया जाता है। ईसा मसीह ‘ईश्वर के पुत्र’ कहलाते हैं, जो इस धरती पर मानव जाति की बुराई से रक्षा के लिए आए थे। वे मानव जाति के लिए सबसे बड़े मार्गदर्शक, उपदेशक व उपचारक थे। उन्होंने संसार को शांति, प्रेम व धैर्य का संदेश दिया।

ईसा के जन्म का यह उत्सव 336 ई- से मनाया जा रहा है। ‘क्रिसमस’ या ‘एक्स-मस’ शब्द ‘क्राइस्ट मास’ से लिया गया गया है।

ईसा मसीह धरती पर आए

ईसा मसीह का जन्म इज़रायल के बैथलहम में मदर मैरी के घर हुआ ।

इज़रायल में नाज़रेथ नामक छोटा-सा गांव था । वहां जोसफ नामक बढ़ई रहता था । उसका मैरी नामक युवती से विवाह होने वाला था ।

एक दिन देवदूत मैरी के पास आया और कहा, “ईश्वर ने अपने पुत्र को धरती पर भेजने का निर्णय ले लिया है उन्होंने तुम्हें अपने पुत्र की माता के रूप में चुना है ।”

देवदूत ने मैरी से यह भी कहा कि वह बालक का नाम ‘जीसस’ रखे । मैरी यह सुनकर प्रसन्न व रोमांचित हो उठी । वह अपने-आपको धन्य मान रही थी ।

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जोसफ विवाह से पूर्व ही मैरी के गर्भवती होने का समाचार सुनकर चौक गया । यहां तक कि उसने विवाह तोड़ने का भी फैसला ले लिया ।

देवदूत गैबरियाल ने उसके सपने में आकर कहा, “हे जोसफ! कृपया मैरी को छोड़ने का विचार मन में मत लाओ । वह पवित्र है, तभी ईश्वर ने उसे अपने पुत्र की माता बनने के लिए चुना है । मैरी को पत्नी के रूप में स्वीकार लो ।”

जोसफ ने देवदूत के आदेश को मानकर मैरी से विवाह कर लिया । कुछ माह बाद वहां के राजा ने आदेश दिया कि सभी लोगों को नई कर पद्धति के लिए अपना पंजीकरण कराना होगा । इसके लिए उन्हें अपने जन्मस्थान जाने का निर्देश दिया गया ।

जोसफ व मैरी नाज़रेथ से बैथलहम रवाना हुए । मैरी खच्चर पर थी और जोसफ पैदल चल रहा था । उन्होंने बैथलहम पहुंचने के लिए कई मील लंबी यात्रा की । जब वे वहां पहुंचे तो रात घिर आई । मैरी भी काफी थकी हुई थी । शिशु के जन्म का समय भी समीप ही था ।

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मैरी व जोसफ ने सराय में रहने के लिए स्थान खोजा, पर कोई जगह खाली न थी । जोसफ ने सराय वाले को मैरी की हालत के बारे में बताया । सराय के मालिक ने उन्हें तरस खाकर पहाड़ियों के पास खाली गुफाओं का रास्ता दिखा दिया । एक गुफा में अस्तबल भी था । जोसफ ने उसे ही साफ किया और रहने का प्रबंध कर लिया ।

अगली रात मैरी ने एक पुत्र को जन्म दिया । शिशु के चेहरे पर दिव्य आभा थी । देवदूत के कहे अनुसार, उसका नाम ‘जीसस’ रखा गया ।

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जैसे ही जीसस का जन्म हुआ, बैथलहम के आकाश में एक सितारा तीव्रता से चमकने लगा । एक देवदूत गड़रियों के झुंड के सामने प्रकट हुआ । उसने ईश्वर के पुत्र जीसस के जन्म की घोषणा की । माना जाता है कि तीन बुद्धिमान व्यक्तियों को दिव्य संदेश मिला था कि ईश्वर-पुत्र धरती पर आ चुका है । वे उस सितारे का पीछा करते-करते बैथलहम आ पहुंचे ताकि जीसस के दर्शन कर सकें ।

जल्द ही जीसस के जन्म का समाचार चारों ओर फैल गया । बड़े होकर ईश्वर के पुत्र ईसा ने शांति व प्रेम का संदेश दिया । उन्होंने मानव जाति के कल्याण के लिए पूरा जीवन समर्पित कर दिया ।

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क्रिसमस की तैयारियां कई सप्ताह पहले ही आरंभ हो जाती हैं । यह त्योहार 24 दिसंबर की शाम से नव वर्ष तक मनाया जाता है ।

घरों की साफ-सफाई व रंगाई-पुताई आदि करवाई जाती है । यह प्रेम व एकता का त्योहार है । लोग अपने पड़ोसियों, मित्रें व संबंधियों से मिलते हैं और परस्पर उपहारों का आदान-प्रदान होता है ।

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सुबह के समय लोग चर्च जाते हैं व ईसा का स्तुतिगान करते हैं । शाम को केक व कुकीज़ के अलावा कई तरह के स्वादिष्ट पकवान परोसे जाते हैं । लोग ‘मैरी क्रिसमस’ कहकर एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं । वे सारी रात नाचते-गाते और मस्ती करते हैं ।

क्रिसमस से एक माह पहले ही घरों, दुकानों, कार्यालयों, स्कूलों व शॉपिंग मॉलों में रंग-बिरंगे गुब्बारों, रिबनों व रोशनी से सजावट की जाती है । बाजार में इस त्योहार के लिए क्रिसमस के उपहार, कपड़े, केक, कुकीज़ व कई तरह के दूसरे सामान आ जाते हैं । हर जगह से खुशियों के गीत कैरोल की धुन सुनाई देते हैं ।

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इस त्योहार पर मित्रें, पड़ोसियों व रिश्तेदारों को ग्रीटिंग कार्ड देने की भी परंपरा है । इन कार्डों में जीसस, मदर मैरी व जोसफ आदि के चित्र खूबसूरती से दर्शाए जाते हैं ।

बच्चे स्कूल में अध्यापकों व मित्रें को देने के लिए स्वयं ग्रीटिंग कार्ड बनाते हैं ।

क्रिसमस से अगले दिन ‘बाक्सिंग डे’ होता है । इस दिन गिरजाघर अपने दान बॉक्स खोलते हैं ताकि त्योहार पर मिले उपहार व दान राशि को निकाल सकें । ये पैसा व उपहार गरीबों में बांट दिए जाते हैं । यह दिन दान देने के लिए होता है ।

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क्रिसमस ट्री एक पाइन या फर का पेड़ होता है, जिसे रोशनी, उपहारों, पैकेट, रिबन, घंटियों और रूई से बनी नकली बर्फ से सजाया जाता है ।

एक प्रसंग के अनुसार, एक अंग्रेज संत बोनीफेस जर्मनी की यात्र कर रहे थे । उन्होंने कुछ लोगों को देखा, जो छोटे बच्चे की बलि चढ़ा रहे थे । उन्होंने पेड़ को जोर से ठोकर मारी व बलि को रोक दिया । उस पेड़ के गिरते ही वहां फर का नन्हा-सा पौधा सामने आ गया । उन्होंने उसे ‘ट्री ऑफ क्राइस्ट’ का नाम दे दिया, तभी से क्रिसमस पर पाइन या फर ट्री सजावट की परंपरा चली आ रही है ।

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क्रिसमस का नाम आते ही सबसे पहले सांता क्लाज़ का नाम ध्यान में आता है । यह चरित्र बच्चों को बेहद लुभाता है । सांता क्लाज़ को एक प्यारे-से मोटे बूढ़े आदमी के रूप में दिखाया जाता है । जो लाल रंग के कपड़े, लंबी टोपी पहनता है । उसके चेहरे पर सफेद लंबी दाढ़ी होती है । उसकी पीठ पर झोले में बच्चों के लिए तोहफे होते हैं । वह अपनी स्लेज पर उत्तरी ध्रुव से आता है, जिसे रेंडियर खींचते हैं । उसके हाथ में एक घंटा होता है । बच्चों का मानना है कि सांता क्लाज़ क्रिसमस से एक दिन पहले उपहार देने आता है ।

सांता क्लाज़ या फादर क्रिसमस का यह प्यारा-सा रूप संत निकोलस पर आधारित है । वे मायरा (वर्तमान तुर्की) में ईसाई नेता थे । वे निर्धनों से बहुत स्नेह रखते थे तथा दयालु स्वभाव के थे । एक दिन वे एक गरीब लड़की की मदद करना चाहते थे । उन्होंने चुपके से धन की थैली, चिमनी के रास्ते उसके घर में फेंक दी । वह थैली चिमनी के नीचे पटाव में जा गिरी ।

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तभी से माना जाता है कि सांता क्लाज़ चिमनी के रास्ते घर में आते हैं व लंबी जुराबों में उपहार छिपा जाते हैं । बाद में संत निकोलस, फादर क्रिसमस के रूप में लोकप्रिय हो गए, जो बच्चों में उपहार बांटते थे । यहां तक कि आज भी इस परंपरा का पालन होता है व लोग मोटे सांता क्लाज़ का रूप लेकर बच्चों व बूढ़ों में उपहार बांटते हैं ।

पूरी दुनिया के बच्चे सांता क्लाज़ का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं । वे अपनी प्रार्थनाओं के दौरान अपनी इच्छाएं व मांगें प्रकट करते हैं व उम्मीद करते हैं कि सांता क्लाज़ उन्हें पूरा करेगा । सांता क्लाज़ का प्रिय गीत हैः

‘जिंगल बैल्स…जिंगल बैल्स, जिंगल ऑल द वे,

सैंटा क्लाज़ इज कमिंग अराउंड राइडिंग ऑन हिज़ स्लेज ।’

(घंटा बजाओ – घंटा बजाओ, सारे रास्ते में,

सेंटा क्लाज़ आता है लंबी गाड़ी में ।)

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क्रिसमस सही मायनों में ईसा मसीह का दिन है । यह उनके द्वारा दिए गए प्रेम, दया व शांति के संदेश को याद करने का दिन है । हमें सच्चे मन व श्रद्धा से उनकी प्रार्थना करनी चाहिए व उनके उपदेशों को जीवन में अपनाना चाहिए ।

सभी देशों में अब शांतिपूर्ण प्रार्थनाओं के बजाय महंगी खरीददारी, तोहफों, दावतों व मौज-मस्ती पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा है ।

मौज-मस्ती करना समारोह का अंग है, पर हमें इस दिन ईश्वर को स्मरण करना नहीं भूलना चाहिए । दावतों व तोहफों पर अधिक धन व्यय करने के बजाय हमें गरीबों व जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए ।

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पवित्र बाइबिल में ईसा मसीह की जीवनी व कथाएं दी गई हैं । हमें उनके जीवन से शिक्षा लेते हुए सदा दूसरों के प्रति दयालु रहना चाहिए । ईसा मसीह ने पूरे जगत को एक ही संदेश दिया था – शांति व प्रेम का प्रसार करना ।

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