Dada dadi ki kahani : एक अमीर व्यक्ति का एक बेटा था-सोहन। उसने सोहन को पढ़ाई के लिए विदेश भेजा। वह चाहता था कि सोहन पढ़-लिखकर एक योग्य युवक बन जाए। जब सोहन जा रहा था तो उसके पिता ने उससे कहा, ‘बेटा विदेश जा रहे हो। ख़र्चे की चिंता मत करना और जितनी हो सके उतनी भाषाएँ सीखने की कोशिश करना।’
सोहन जब कुछ वर्षों के बाद वापिस लौटा तो उसके स्वागत की खूब तैयारियाँ की गईं। अमीर व्यक्ति उतावला था, यह जानने के लिए कि सोहन कौन-कौन-सी भाषाएँ सीखकर आया है। लेकिन उसे बेहद आश्चर्य और दुःख हुआ यह जानकर कि सोहन बस एक ही भाषा सीखकर आया था और वह थी-कुत्तों की भाषा। सोहन के पिता को बहुत क्रोध आया। इतना पैसा खर्च करके उसके बेटे ने सीखी भी तो कुत्तों की भाषा? उसने गुस्से में सोहन को घर से निकल जाने को कहा। सोहन ने अपने पिता को समझाना चाहा, ‘पिताजी, अगर मैं जर्मन, फ्रैंच या चीनी भाषा सीखता तो आप खुश होते न! लेकिन इन भाषाओं का उपयोग किस तरह करता। कोई भी भाषा बोलने के लिए कम-से-कम दो लोग तो चाहिए ही न!’ लेकिन उसके पिता ने उसकी एक भी बात पर ध्यान नहीं दिया।
सोहन घर से निकलकर चल पड़ा। चलते-चलते वह एक गाँव में पहुँच गया। उस गाँव के लोग कुत्तों से बहुत परेशान थे। उन्होंने सोहन को बताया, ‘कुछ भयानक कुत्ते जंगल से निकलकर आते हैं और फिर हमें डराकर खाना छीनते हैं और चले जाते हैं।’ सोहन ने कहा कि वह जंगल में जाकर देखेगा कि कुत्ते कहाँ से आते हैं? गाँववालों ने उसे मना भी किया कि वह कुत्तों के पास न जाए। बहुत बड़े-बड़े और भयानक कुत्ते हैं यहाँ। लेकिन सोहन अगले दिन सुबह-सुबह जंगल के अंदर चला गया। दो घंटों तक वह वहीं रहा। गाँववाले जंगल के बाहर खड़े होकर सोहन का इंतज़ार कर रहे थे। उन्हें सोहन की बहुत चिंता हो रही थी। आखिर सोहन वापिस लौटा, वह भी बिना किसी चोट-खरोंच के। गाँववाले खुश भी थे और आश्चर्यचकित भी।
फिर सोहन के पीछे-पीछे छ: कुत्ते बाहर आए। यह वही डरावने कुत्ते थे, जो गाँववालों को परेशान किया करते थे। लेकिन इस बार ये अपनी पूँछ हिलाते हुए बाहर आए और गाँववालों से प्यार जताने लगे।
गाँववालों ने सोहन से पूछा कि तुमने ये कैसे किया। तब वह बोला, ‘मैं कुत्तों की भाषा जानता हूँ। मैंने जब इन कुत्तों से बात की तो मुझे उनकी मजबूरी पता चली। जहाँ ये रहते हैं, वहाँ ज़मीन में एक ख़ज़ाना छिपा हुआ था। एक जादूगरनी ने इन छः कुत्तों पर जादू कर दिया था। ये कुत्ते उस ख़ज़ाने की रक्षा करते थे। वहाँ से ये कहीं भी जा नहीं सकते थे। इसलिए हर दिन दो-दो कुत्ते खाना छीनने गाँव में पहुँच जाते थे। मैंने वह ख़ज़ाना ज़मीन से निकाल लिया है। यह लीजिए। अब जब वहाँ ख़ज़ाना ही नहीं है तो ये कुत्ते आज़ाद हैं। अब ये आपको परेशान नहीं करेंगे।’ ऐसा कहकर सोहन ने ख़ज़ाना गाँववालों को दे दिया। गाँववाले उसकी मदद से बहुत खुश थे। वे बोले, ‘भाई, इस ख़ज़ाने पर सिर्फ तुम्हारा हक़ है। तुमने हमारी बहुत मदद की है। इसलिए हम भी तुम्हें कुछ उपहार देना चाहते हैं।’
तभी वहाँ ज़ोर से बर्फ गिरने लगी। अगली सुबह जब सोहन सोकर उठा तो चारों ओर सफ़ेद बर्फ थी। कुत्ते भी वहीं थे। सोहन ने एक स्लेज में कुत्तों को बाँधा और सारा ख़ज़ाना और उपहार उसमें रखे। फिर वह स्लेज में बैठकर एक राजा की तरह अपने घर पहुँचा। उसके पिता फिर कभी उससे नाराज़ नहीं हुए। वे समझ गए थे कि यदि हम चाहें तो अपनी किसी भी योग्यता का सही उपयोग कर सकते हैं।
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