Dada dadi ki kahani : एक बहुत अमीर व्यक्ति था। उसका नाम था मुकुल। मुकुल का अभी तक विवाह नहीं हुआ था। उसके माता-पिता उसके लिए उचित कन्या की तलाश में थे। वे मुकुल के लिए एक ऐसी पत्नी चाहते थे, जो सुंदर हो, स्वभाव की अच्छी हो और घर का काम-काज भी अच्छी तरह जानती हो।
मुकुल के भी कुछ मित्र थे, जिनकी बहनें विवाह-योग्य थीं। वह अपने मित्रों के घर मिलने जाता था, यह पता लगाने के लिए कि उन लड़कियों का स्वभाव कैसा है? वह अपने वहाँ आने का उद्देश्य किसी को बताता नहीं था, क्योंकि यदि वह अपने आने का उद्देश्य बता देता तो उसे सच्चाई का पता नहीं चल पाता।
एक दिन मुकुल अपने एक मित्र के घर गया। वहाँ पर बहुत सारा सूत रखा हुआ था। सूत उस धागे को कहते हैं, जिससे कपड़ा बुना जाता है। उसने देखा कि वहाँ एक चरखा रखा था, जिससे ढेर सारा सूत काता गया था। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतना सारा सूत किसने काता है और अब इससे कपड़ा कौन बनेगा! उसने अपने मित्र की माँ से पूछा-
‘माँ जी ये सूत कौन कात रहा है? इतने सारे सूत का कपड़ा बुनने में तो निश्चित रूप से एक महीने से भी ज्यादा समय लग जाएगा।’
उसके मित्र की माँ को थोड़ा अनुमान हो गया था कि मुकुल ऐसा क्यों पूछ रहा है? उन्होंने सोचा कि मुकुल पर अच्छा प्रभाव पड़ना चाहिए। इसीलिए उन्होंने कहा, ‘बेटा, मेरी बेटी ये सूत कातती है और इतने सूत को बुनने में उसे 10-15 दिन से ज़्यादा नहीं लगेंगे!’
मुकुल को विश्वास नहीं हुआ। उसने उस समय कुछ नहीं कहा। जाते समय जब कोई उसे देख नहीं रहा था, उसने उन्हीं की अलमारी की चाबी सूत के गट्ठर के ठीक नीचे छिपा दी।
एक महीने के बाद वह फिर उसी मित्र के घर गया। तब उसके मित्र की माँ ने उसे एक अजीब किस्सा सुनाया। उन्होंने मुकुल से कहा कि पिछले एक महीने से उनकी अलमारी की चाबी नहीं मिल रही है। उन्होंने पूरे घर में ढूँढ लिया है। लेकिन चाबी का कुछ पता नहीं चला।
तब मुकुल उठा और उसने सूत का गट्ठर उठाया। चाबी ठीक उसी जगह रखी हुई थी, जहाँ एक महीना पहले उसने छोड़ी थी। ऐसा लगता था कि पिछले एक महीने में सूत को हिलाया तक नहीं गया था।
मुकुल ने चाबी अपने मित्र की माँ को दी और बोला, ‘आप कहती थीं न कि आपकी बेटी 10-15 दिन में ही यह सारा सूत बुन सकती है। हो सकता है कि आपकी बेटी जब काम करती हो तो काफ़ी जल्दी कपड़ा बुन लेती हो। लेकिन उसके लिए काम शुरू करना भी ज़रूरी है और मुझे लगता है कि उसे काम करना कुछ ख़ास पसंद नहीं है। देखिए, पिछले एक महीने से इस गट्ठर को किसी ने हिलाया तक नहीं है। चाबी वहीं-की-वहीं पड़ी हुई है।’
माँ कुछ नहीं बोली। मुकुल ने ठीक कहा था। काम आना ही काफ़ी नहीं, काम को करने की इच्छा होना भी तो ज़रूरी है।
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