geet paree, dada dadi ki kahani
geet paree, dada dadi ki kahani

Dada dadi ki kahani : बहुत पुरानी बात है। एक थी गीत-परी। उसे बहुत-बहुत-बहुत सारे गीत आते थे। उसके गीत बहुत मीठे और सुरीले होते थे।

एक रात उसने सभी पक्षियों को नदी के किनारे बुलाया। उसने पक्षियों से कहा, ‘रात को ठीक बारह बजे आप सभी मेरे पास आ जाइए। मैं आपको सुबह होने तक बहुत से गीत सुनाऊँगी।’

ज़्यादातर पक्षियों ने सोचा कि कौन सारी रात जगकर गीत-परी के गीत सुनेगा। इसलिए वे अपने-अपने घोंसलों में सो गए। लेकिन मैना को संगीत बहुत अच्छा लगता था। वह ठीक बारह बजे वहाँ पहुँच गई। कोयल भी वहाँ आई। मैना और कोयल के आते ही गीत-परी ने गाना शुरू किया। मैना ने सारी रात जागकर, बड़े ध्यान से उसके एक-एक गीत को सुना। लेकिन कोयल बहुत थकी हुई थी, उसने बस एक ही गीत सुना और वहीं सो गई।

सुबह होने वाली थी, तभी कौए की नींद खुली। उसने सोचा कि गीत-परी नाराज़ न हो जाए। इसलिए एक बार का वहाँ हो आया जाए। लेकिन जब तक वह वहाँ पहुँचा गीत-परी के गीत ख़त्म हो चुके थे। वहाँ नदी के किनारे मेढक टर्र-टर्र कर रहे थे। कौए ने सोचा कि शायद यही गीत परी का गीत है। उसने वह गीत याद कर लिया और उसी तरह बोलने की कोशिश करने लगा।

यही कारण है कि मैना सभी पक्षियों में सबसे मीठा गाती है। कोयल की आवाज़ भी मीठी है, लेकिन उसे बस एक ही तरह बोलना आता है-कू ऽ ऽ ऽ कू ऽ ऽ और कौआ? उसकी आवाज़ कैसी कर्कश है ये तो हम सभी जानते हैं। मेढक की तरह टर्राने की कोशिश करने में उसकी काँव-काँव भी बेसुरी लगती है।

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