Hum Kisi Se Kam Nahi
Hum Kisi Se Kam Nahi

Celebrity Courage: कुछ लोग उम्र की सीमा और उसके बंधनों से मुक्त होते हैं। उनके संघर्ष की कहानी दूसरों से भिन्न और अधिक चुनौतीपूर्ण होती है। वे केवल मां, बेटी, बहन, सास और बहू नहीं होतीं बल्कि दूसरों के लिए एक नायिका बनकर उभरती हैं। आज इस अंक में ऐसी ही नायिकाओं के बारे में जानिए-

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साड़ी वाली पॉप सिंगर

Celebrity Courage
Usha Uthup (Pop Singer)

अगर हम एक पॉप गायिका की कल्पना करें तो हमारे दिमाग में एक ऐसी गायक की छवि आती है जो अपने अतरंगी अंदाज से स्टेज पर श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दे। लेकिन इन सभी के बीच में उषा उत्थुप अपने अंदाज में कुछ अलग ही जादू सा बिखेरती सी नजर आती हैं। यह जादू केवल उनकी आवाज में नहीं बल्कि उनकी वेशभूषा और उनके व्यक्तित्व में भी है। साउथ सिल्क की साड़ी और पैरों में स्पोर्ट्स शूज पहने उषा जब पॉप गाती हैं तो हर कोई उनके इस अंदाज को सराहता रह जाता है। उषा 1960 के दशक से इंडियन पॉप, जैज और फिल्मी गाने गा रही हैं। इसी के चलते भारत सरकार की ओर से साल 2024 में उन्हें पद्मभूषण मिला है।

8 नवंबर 1947 को मुंबई में एक ब्राह्मïण अय्यर परिवार में पैदा होने वाली उषा की रुचि बचपन से ही संगीत में अपने माता-पिता की वजह से थी। वे वेस्टन क्लासिकल कनार्टक और हिंदुस्तानी क्लासिकल को सुना करते थे। अपनी इसी पृष्टभूमि की वजह से उन्होंने लोगों के बीच अपनी एक पहचान बनाई। हिंदी और संगीत सीखा और संगीत की दुनिया में खुद को एक अलग ब्रांड के तौर पर स्थापित करने में कामयाब रहीं। वो कोलकाता में क्लब्स में गाया करती थीं। ऐसे में उन्हें पहनने के लिए अच्छे कपड़े चाहिए होते थे। उनकी मां के पास साड़ियों का एक अच्छा संग्रह था। उनकी मानें तो हर भारतीय स्त्री के पास साड़ियों का अपना एक अच्छा कलेक्शन होता है, विशेषकर दक्षिण की महिलाओं की साड़ी की बात ही अलग है। वहीं जूते उन्होंने साड़ी के नीचे जूते इसलिए पहनने शुरू किए थे क्यों उनको स्टेज पर परफॉर्म करना होता था और घंटों खड़े रहना पड़ता था। जूते पहनने से उन्हें पैरों में आराम रहता था। यही चीज धीरे-धीरे उनकी पहचान बन गई।

उनकी आवाज और उनका अंदाज दोनों ही बहुत अलग है। माथे पर सजी बड़ी सी बिंदी में जब वो पॉप छेड़ती हैं तो स्टेज पर जादू सा कर देती हैं। फिलहाल वो कोलकाता में रहती हैं। उनके पति जानी चाको उत्थप हैं। उनकी एक बेटी अंजलि और बेटा सनी है। वो एक प्रतिभाशाली महिला हैं, उन्होंने अभिनय में भी खुद को आजमाया है। साल 2006 में वो एक मलयालम मूवी में भी नजर आ चुकी हैं। उनकी सफलता बताती है कि अगर आपके मन में चाह होती है तो आपको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। उनकी आवाज मोटी है लेकिन जिस जोनर में वो गाती हैं, उसके लिए वह फिट हैं।

पुराने जमाने की युवा सास

गोवा में रहने वाली मंझरी वर्दी एक बेहतरीन कलाकार हैं लेकिन उससे भी जरूरी कि वो एक बेहतरीन इंसान हैं। वो एक्रेलिक, ऑयल और वॉटर कलर के जरिए अपनी पेंटिंग्स में कल्पना के रंग भरती हैं। सबसे बड़ी बात है कि उनकी पेंटिंग केवल दीवारों को सजाने तक सीमित नहीं है। उनका कला की प्रमुख विशेषता उनका वियरेबल आर्ट है। 1955 में मुंबई में पैदा हुई मंझरी बचपन से ही अपनी विचारधारा के मामले में बहुत खुली सोच रखती थीं। उन्हें पेंटिंग में रुचि थी ऐसे में उन्होंने सोफिया पोलटेक्नीक से कर्मिशअल आर्ट में पढ़ाई की। वे एक कलाकार होने के साथ-साथ एक व्लॉगर भी हैं।

उनकी वर्तमान जिंदगी को देखकर लग रहा है कि वो एक बहुत आसान और वैभवशाली जीवन गुजार रही हैं तो एक बार उनके अतीत के पन्नों को पलटना जरूरी है। वह एक स्थापित पेंटर नहीं थी उनकी शादी कॉलेज खत्म होते ही हो गई थी लेकिन इस शादी में शुरुआती सालों में ही कुछ परेशानी आने लगी और उनका तलाक हो गया। वह आर्थिक रूप से इतनी मजबूत नहीं थी कि अपने बच्चों को रख पातीं। ऐसे में अपने बच्चों से कुछ साल अलग रहीं। अपने आपको समेटकर एक कलाकार के तौर पर स्थापित किया। वे कहती हैं जिस दिन मेरी पेंटिंग बिकी थी उस दिन में बहुत रोई थी। मैं अपने बच्चों को भी वापस अपने पास ला पाई।

सोशल मीडिया पर वो सेक्सी सास के तौर पर मशहूर हैं। वो एक्टर समीरा रेड्डी की सास हैं। कोविड के दौरान उनके और समीरा के मैसी मम्मा सैसी सासू वीडियो बहुत हिट हुए थे। वो कहती हैं भारतीय परिवेश में सास बहू का रिश्ता अक्सर खींचा तानी वाला होता है लेकिन मैं किस्मत वाली हूं कि मुझे सास भी अच्छी मिली थीं और मेरी बहू समीरा बहुत अच्छी है। हम दोनों के बीच में मतभेद नहीं होते क्योंकि हम एक-दूसरे पर कभी हावी होने की कोशिश नहीं करते। वैसे भी जीवन बहुत अनमोल चीज है। अगर आप किसी पर हावी नहीं होते तो दूसरा व्यक्ति सहज ही आपको अपना बनाता है।

पिता की संभाली विरासत

कौन कहता है कि बिजनेस की विरासत को केवल बेटे ही आगे बढ़ा सकते हैं। अगर मौका दिया जाए तो बेटियां न केवल उस विरासत को संभाल सकती हैं बल्कि उसका विस्तार भी कर सकती हैं। कुछ ऐसा ही काम कर रही हैं अपोलो अस्तपाल की मैनेजिंग डायरेक्टर सुनीता रेड्डी। काम के प्रति सुनीता की लगन ने साबित कर दिया है कि किसी भी इंसान के जीवन में असंभव नाम का कोई शब्द नहीं होता। सुनीता अपोलो अस्पताल के संस्थापक परिवार से जुड़ी हैं। वो अपने पिता सी. रेड्डी को अपना आदर्श मानती हैं। यह जुनून और सेवा की भावना उन्हें अपने पिता से विरासत में मिली है। उनके पिता सी. रेड्डी ने 1983 में इस अस्पताल की स्थापना की थी। यह उनके पिता का ही निर्णय था कि उनकी बेटियां मेडिकल क्षेत्र में न जाकर हेल्थ केयर मैनेजमेंट में आगे आएं और अस्पताल प्रबंधन में अपनी सेवाएं दें। अपोलो के नाम की बात करें तो इस अस्पताल का नाम सुश्रुता होना था लेकिन यह सुनीता का ही विचार था कि नाम इतना सरल होना चाहिए कि एक बीमार मरीज की जुबान पर भी सहजता के साथ यह नाम आ सके। उन्होंने अंग्रेजी का एल्फाबेट सोचा था और इस तरह इसका नाम अपोलो हुआ।

सुनीता की पढ़ाई की बात करें तो चेन्नई के स्टेला मैरिस कॉलेज से उन्होंने आर्ट में ग्रेजुएशन किया है। वहीं हॉर्वर्ड के मैनेजमेंट प्रोग्राम का भी वो हिस्सा रही हैं। फिलहाल वह हावर्ड बिजनस इंडिया की बोर्ड सदस्य भी हैं। अगर इसे देखें तो यह अपने आप में किसी बड़ी उपब्धि से कम नहीं। 1989 से वह अपोलो अपनी सेवाएं दे रही हैं। उस समय वह अपने कॉलेज के आखिरी साल में थीं। वे कहती हैं उस समय ही हम समझ पा रहे थे कि भारत में आने वाले समय में कॉरपोरेट अस्पतालों का कॉन्सेप्ट शुरू होगा। ऐसा हुआ भी हमारे अस्पताल की स्थापना के पांच साल के अंदर ही 3 और अस्पताल शुरू हो गए थे। इस समय अपोलो की 5000 से ज्यादा फॉर्मसी, 3000 से ज्यादा क्लिनिक हैं।

समीरा की मैनेजमेंट स्किल का परिणाम है कि वो इंटरनेशनल इक्विटी बाजार में अपोलो की मौजूदगी दर्ज करवाने में कामयाब रही हैं। लेकिन उनका मानना है कि बेहतरीन मेडिकल सुविधाएं प्रदान करना हमारा पहला ध्येय है। इनका मानना है कि अस्पताल में एक मरीज बहुत विश्वास के साथ आता है। ऐसे में सही और बेहतरीन ईलाज मिलना एक मरीज का अधिकार है। अस्पताल प्रबंधन एक बिजनेस नहीं एक सेवा है। यही वजह है कि पैसे के हिसाब-किताब से कहीं ऊपर सेवा सर्वोपरि है।