सोशल मीडिया से मिली पहचान, हम किसी से कम नहीं: Successful Influencer
Successful Influencer

Successful Influencer: इस अंक में आपके साथ ऐसी तीन महिलाओं की सफलता की कहानी साझा कर रहे हैं जिन्होंने अपने शौक को अपना जुनून बना लिया। आज यह तीनों महिलाएं अपने निजी जीवन और अपने करियर दोनों में ही सफल और संतुष्ट हैं।

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नजमा आपी बनने का सफर

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Saloni Gaur (Uttar Pradesh)

इंटरनेट का एक चरित्र कैसे इतना हावी हो सकता है यह बात हम सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर सलौनी गौड़ से सीख सकते हैं। कोरोना के दौरान सोशल मीडिया में एक चरित्र लोगों को खासा पसंद आ रहा था और वो था नजमा आपी। सलोनी ने यह वीडियो होस्टल में रहकर बनाया था और इंस्टाग्राम में इस वीडियो को डालते समय उन्हें जरा भी अंदाजा नहीं था की यह इतना वायरल हो जाएगा। सम सामयिक मुद्दों पर अपनी पैनी नजर रखने वाली सलोनी आज सोशल मीडिया पर सफलता के उस शिखर पर जा पहुंची है, जिसकी कल्पना भी शायद उन्होंने कभी की न हो। वो अपने हर किरदार को ऐसे जीती हैं मानों कि सलोनी नहीं कोई और हो। इनकी कहानी या इनके व्लॉग देखकर आपको लगता होगा कि बहुत आसान है। वह जो भी कंटेंट सोशल मीडिया पर डालती हैं वो वायरल होता है। जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है इसके पीछे उनके दो साल की मेहनत छिपी है। वह कहती हैं, ‘नजमा आपी से पहले भी मेरे दो किरदार थे- कुसुम बहन जी और सरला बहन जी। इनका पहला वायरल वीडियो दिल्ली के वायु प्रदूषण पर था जहां नजमा आपी ने कैटरीना कैफ के गाने पर तीखा कटाक्ष मारा था। गाना था- ‘सांस में जब तेरी सांस मिली तो मुझे सांस आई, मुझे सांस आई… उन्होंने व्लॉग बनाते हुए कहा था, ‘भई पता नहीं इन्हें कैसे सांस आ रही है, हमें तो नहीं आ रही।

वे कहती हैं, ‘मैं स्कूल के समय से ही मिमिक्री करती आई हूं लेकिन उस वक्त मेरे पास मोबाइल नहीं था। अपने शहर बुलंदशहर से जब दिल्ली पढ़ने आई तो घरवालों ने मोबाइल भी दिया। अपने मोबाइल से विडियो रिकॉर्ड करने लगी। मेरे वीडियो जब बहुत वायरल होने लगे थे उसके बाद तक मेरे पास रिकॉर्ड करने के लिए बहुत इक्यूपमेंट्स नहीं थे। मैं हाथ में लेकर ही इन्हें बनाया करती थी।
वह अब सलोनी नाम से भी वीडियो बनाती हैं जिसमें अक्सर उनकी मम्मी और दादी दिखाई दे जाते हैं। इन वीडियोज को काफी पसंद किया जाता है। वे कहती हैं, ‘जैसी सलोनी की मम्मी है ऐसी ही तो मध्यमर्गीय परिवारों की मम्मियां होती हैं, जो अक्सर अपने बच्चों को डांट-डपटकर ही काबू में रखती हैं। बुलंदशहर से ताल्लुक रखने वाली सलौनी हाल ही में विवाह के बंधन में भी बंधी हैं। उन्होंने पत्रकार रजत सेन के साथ शादी की है। लेकिन शादी की जानकारी देने का तरीका उनकी ही तरह निराला है। इसका कैप्शन देते हुए उन्होंने लिखा है- पेरेंट्स ने कहा- ‘हां, और दादी ने कहा, ‘करनी तो तुझे अपने मन की है।

जोखिम सफलता की पहली सीढ़ी

मास्टरशेफ ऑफ इंडिया में सिर्फ प्रतियोगी ही नहीं उसके जजेज भी दर्शकों का ध्यान खींचने में कामयाब रहते हैं। पिछली बार इस शो में महिला शेफ के तौर पर गरिमा अरोड़ा ने हिस्सा लिया था वहीं इस बार पेस्ट्री शेफ पूजा ढींगरा अपने बेबाक अंदाज के साथ नजर आ रही हैं। पूजा की बात करें तो पाक कला में उन्हें रुचि विरासत में मिली है। उनके पिता और भाई इस क्षेत्र में ही कार्यरत हैं लेकिन उन्होंने बेकिंग करने का हुनर उनकी चाची ने सिखाया है। पूजा ने बचपन से ही सोच लिया था कि वो बड़ी होकर इसी क्षेत्र में अपना नाम कमाएंगी। हालांकि मुंबई में पहले उन्होंने लॉ स्कूल में एडमिशन लिया इसके बाद वे स्विटजरलैंड में पाक कला से संबंधित कोर्स करने पहुंचीं इसके बाद इन्होंने पेरिस के ले कॉर्डन ब्लू में अपनी ट्रेनिंग शुरू की। हालांकि इनके पास विदेश में काम करने की कमी नहीं थी लेकिन पेरिस के व्यंजनों को वह भारत में भी विस्तार देना चाहती थी।

इसी संदर्भ में वह वापस लौटीं और यहां साल 2010 में अपने स्टोर की स्थापना की। मुंबई में साल 2016 में इन्होंने एक रेस्टोरेंट खोला। महज दो लोगों के साथ अपने काम की शुरुआत करने वाली पूजा न केवल एक शेफ बल्कि एक व्यवसायी के तौर पर भी स्थापित हैं। यह फ्रैंच कुजींस के लिए जानी जाती हैं। साल 2014 में फोर्ब्स ने उन्हें 30 अंडर 30 महिलाओं की सूची में शामिल किया है। वह न केवल एक शेफ के तौर पर स्थापित हैं बल्कि दूसरी महिलाओं के लिए एक प्रेरणा हैं। वे सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर के तौर पर भी सक्रिय हैं। उनकी पाक कला से संबंधित दो किताबें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। इतना कुछ कैसे कर पाती हैं उसके जवाब में वो सिर्फ इतना कहती हैं की, ‘मैं कभी यह नहीं सोचती कि दूसरे क्या सोच रहे हैं, जो मुझे करना होता है मैं वो करती हूं। आप कुछ भी नया करते हो उसमें जोखिम तो होता है लेकिन इस प्रक्रिया में जीत-हार से परे एक अनुभव हासिल करते हो। मुझे देख लें मैं शेफ बनना चाहती थी लेकिन सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर मैं बस बनती चली गई। इस पूरी प्रक्रिया में मैंने लोगों के साथ जुड़ना सीखा और आज समय के इस नए रंग में अपनी पहचान स्थापित कर चुकी हूं।

पहली बार उन्होंने पेरिस में मैकरॉन का स्वाद चखा था तो इस बात को जानती थी कि भारत के लिए यह नई चीज होगी। वह मैकरॉन क्वीन के नाम से भी जानी जाती हैं क्योंकि उन्होंने ही भारत में मैकरॉन स्टोर खोला था। जाहिर है कि एक नई चीज थी लेकिन सोशल मीडिया पर उन्होंने इसे प्रमोट किया और आज भारतीयों के लिए यह फ्रैंच डिश कोई नई चीज नहीं रह गई है। वे कहती हैं, ‘सिर्फ मुंबई नहीं मैं देशभर में अपने रेस्टोरेंट का विस्तार करना चाहती हूं।

लोक रंग को अपने गीतों में उतारा

Sharda Sinha (Begusarai)
Sharda Sinha (Begusarai)

हम सब इस बात से भली-भांति परिचित हैं कि हमारे लोककलाएं, लोकथाएं और गायकी में हमारे संस्कृति के असली रंग छिपे हैं। हम हिंदुस्तानी लोग जीवन के हर मौके को जीवंत करने वाले लोग होते हैं। राजसी काल में जब राजा जीत कर आते थे तो हम वीरगीत गाते थे तो जब बिटिया का लगन अगले गांव तय होता था उस समय भी महिलाएं गीत गाकर इस शुभ समाचार का स्वागत करती थी। सबसे बड़ी बात है कि इन गीतों को कहीं लिखा नहीं गया बस एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी यह हस्तांतरित होते चले गए। यह समय का एक फेर है कि अब लोकरंग के रंग फीके हो चले हैं लेकिन कुछ कलाकार हैं जो अपनी कला के जरिए इन्हें सहेजने और आगे बढ़ाने में प्रयासरत हैं। इन्हीं में से एक लोकरंग की हस्ताक्षर शारदा सिन्हा हैं। इनकी गायिकी में लोकरंग और पुरानी बातें जीवित हैं। उनके छठी मैया के गीत हों या विवाह के लोकरंग में महकता उनका गीतों का संसार बहुत खूबसूरत है। इन्होंने सूरज बड़जात्या की फिल्म ‘मैंने प्यार किया फिल्म में एक गीत था- ‘कहे तोसे सजना… को अपनी मीठी आवाज से सजाया है। वहीं ‘हम आपके हैं कौन का गाना, ‘बाबुल जो तुमसे पाया, जो तुमने सिखाया सजन घर ले चली… यह भी इन्हीं का है। 1 अक्टूबर 1952 को बिहार के एक गांव हुलास में इनका जन्म हुआ। फिलहाल यह बेगूसराय में रहती हैं। संगीत को दी गई अपनी सेवा के चलते इन्हें पद्मश्री पद्मविभूषण जैसे सम्मान मिल चुके हैं।

बिहार के एक संभ्रांत परिवार में पैदा हुई शारदा की रूचि बचपन से ही गीत-संगीत में थी। स्कूल में उनके संगीत के शिक्षक ने उनकी प्रतिभा को पहचाना। बाद में परिवार के सहयोग से उन्होंने अपनी इस कला को और निखारा और इसे एक करिअर के तौर पर चुना। उन्होंने मैथिली, भोजपुरी, हिंदी भाषाओं में गायन किया है। संगीत के अलावा वह नृत्य का शौक रखती हैं। वे मणिपुरी नृत्य में पारंगत हैं। उनके व्यवसायिक जीवन की तरह निजी जीवन भी बहुत सफल है। वो अपने पति डॉ. ब्रज किशोर सिन्हा और अपने बच्चों अंशुमन और वंदना के साथ एक सुखमय जीवन जी रही हैं। उनकी बेटी ने उनके नक्शे कदम पर चलकर गायिकी को अपनाया है। कह सकते हैं कि इन लोककला ने न केवल इस कला को संरक्षित किया बल्कि अपनी प्रतिभा की धरोहर को अपनी बेटी को देने में भी कामयाब रहीं।