Successful Women: सरकारी कार्यालय हो या फिर कोई कॉर्पोरेट कंपनी अक्सर यहां आपको महिला अधिकारी, निदेशक या फिर महिला मैनेजर बहुत कम नजर आएंगी। इसकी सबसे बड़ी वजह हमारे यहां लैंगिक असमानता का होना है इसलिए आज इस अंक में हम उन तीन महिलाओं के बारे में बात करेंगे जिन्होंने इन सारे चुनौतियों का सामना कर अपनी पहचान बनाई।
रेलवे की पहली महिला अधिकारी

रेलवे बोर्ड की अध्यक्ष और सीईओ का कार्यभार संभाल कर इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा चुकी जया वर्मा सिन्हा का व्यक्तित्व बहुत ही आभा और गरिमा को खुद में समेटे हैं। इस पद को पाकर उन्होंने इतिहास रच दिया है। 106 साल में यह पहला मौका है जब रेलवे में यह जिम्मेदारी किसी महिला को दी गई है। वे 1988 में भारतीय रेलवे प्रबंधन सेवा से जुड़ी हैं। ओडिशा के बालासोर में हुए कोरोमंडल एक्सप्रेस हादसे के समय यह काफी सक्रिय रहीं थीं। उस समय उनके डिजास्टर मैनेजमेंट ने साबित कर दिया कि सिर्फ अच्छी बातों पर श्रेय लेना काफी नहीं होता। अगर कुछ बुरा होता है तो न केवल आपको उसकी जिम्मेदारी लेनी होती है बल्कि उस हादसे से हुए नुकसान को कम-से-कम करना होता है। जया वर्मा ने उस मौके पर ऐसा किया भी। इस घटना को लेकर इन्होंने पीएमओ में प्रजेंटेशन दिया था। जहां उनकी सक्रियता और कार्यशैली की तारीफ हुई थी। इनकी इसी सक्रियता को देखते हुए रेलवे बोर्ड ने चेयरमैन पद के लिए इनके नाम की मुहर लगाई है।
इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी की है। इससे पहले उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा एक स्थानीय विद्यालय से पूरी की है। जया 31 अगस्त 2024 तक इस पद पर रहेंगी। दिल्ली में जन्म लेने वाली जया को रेलवे के साथ काम करने का 35 साल का अनुभव है। बांग्लादेश में भारत के उच्चायोग में रेलवे सलाहकार के रूप में भी जया वर्मा सिन्हा ने काम किया है। वे यहां 4 साल के लिए पदस्थ थीं। इसके साथ ही वे सेंटर फॉर रेलवे इलेक्ट्रिफिकेशन में भी काम कर चुकी हैं। वे पूर्व रेलवे के सियालदाह डिवीजन की मंडल रेल प्रबंधक भी रह चुकी हैं। इसी दौरान कोलकाता से ढाका तक मैत्री एक्सप्रेस शुरू की गई थी। इनके पति नीरज सिन्हा एक आईएएस अधिकारी हैं। इनकी एक प्यारी सी बेटी है जो अभी पढ़ाई कर रही है। जया एक सादा जीवन जीती हैं। वह मानती हैं कि लड़कियों की जिंदगी में बदलाव पढ़कर ही आ सकता है। जब आप पढ़ते हैं तो ही आपके अंदर वो समझ विकसित हो पाती है जो आपको सम्मान से रहने का हुनर सिखाती है।
सादगी के साथ जीवन को जीती हैं अक्षता

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की पत्नी इंफोसिस के ओनर नारायण मूर्ति की इकलौती लाड़ली बेटी अक्षता के पास पैसा, शोहरत, शक्ति सभी कुछ है लेकिन एक सबसे बड़ी चीज जो उन्होंने अपने माता-पिता से सीखी है सरलता। इन सभी के इतर वे खुद एक सफल बिजनेसवुमन हैं। बिजनेस उनके खून में है, इसी खूबी के तहत उन्हें भारत की बिल गेट्स भी कहा जाता है। हुगली में 1980 में जन्म लेने वाली अक्षता फिलहाल ब्रिटेन में रहती हैं और एक फैशन डिजाइनर हैं। जब वे जी-20 समिट में अपने पति के साथ आई थीं तो उनकी सभी पोशाक ने भारतीयों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था। इनके पश्चिमी और भारतीय पोशाक दोनों ही लाजवाब थे। इसे जिस तरह से वो कैरी कर रही थीं वो भी बहुत अच्छा था लेकिन ब्रिटेन की इस फर्स्ट लेडी ने अपने आउटफिट को दोहराने में भी कोई संकोच नहीं किया। वो स्कर्ट पहनकर आई थीं यह वहीं स्कर्ट था जो उन्होंने तब पहना था जब सुधा मूर्ति को पद्मश्री मिल रहा था। वहीं जब वो ब्रिटेन वापिस जा रही थी और उन्होंने जो साड़ी पहनी थी उसकी कीमत मात्र 28,000 रुपये थी। फैशन इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन एंड मर्चंडाइस लॉस एंजिलस से अपनी फैशन डिग्री और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से एमबीए किया है। एमबीए के दौरान ही उनकी मुलाकात अपने पति ऋषि सुनक से हुई थी। इसके बाद इन्होंने साल 2009 में इनसे शादी और अब उनकी दो बेटियां हैं।
अक्षता जब छोटी थीं तो अपने दादा-दादी के साथ रहती थीं क्योंकि उस समय इंफोसिस आकार ले रहा था और उनके माता-पिता इंफोसिस को स्थापित करने में लगे थे। उन्हें बेहद मध्यमवर्गीय अंदाज से पाला-पोसा गया है। यहां तक कि न तो उन्हें पॉकेट मनी मिलती थी और न ही उनके जन्मदिन पर कोई पार्टी आयोजित की जाती थी। स्कूल के बाद वो विदेश पढ़ने गईं लेकिन अपने साथ भारत के संस्कारों को भी लेकर गईं। यह संस्कार तो उनमें आज भी नजर आते हैं। इस देश को छोड़े हुए उन्हें भले ही कितने साल बीत गए लेकिन उन्हें भारत और अपनी भारतीय नागरिकता बहुत पसंद है। ब्रिटेन में इतने साल रहने के बावजूद भी उन्होंने अपनी नागरिकता नहीं बदली है। सबसे बड़ी बात है पिछले साल उनकी आय ब्रिटेन में चर्चा का केंद्र बनी थी। उस वक्त यह भी चर्चा हुई थी कि नॉन रेजिडेंशिअल इंडियन होने की वजह से उन्हें ब्रिटेन में कर नहीं देना पड़ता। उन्होंने अपना स्टेट्स तो नहीं बदला लेकिन स्वेच्छा से वह ब्रिटेन सरकार को कर देने लगीं। उन्होंने साल 2007 में अपना फैशन ब्रांड भी स्थापित किया। उनके व्यक्तित्व की विशेषता उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण है। उनकी मां सुधा मूर्ति ने कहा था कि मैंने अपने पति को बिजनेस मैन बनाया और मेरी बेटी ने अपने पति को प्रधानमंत्री।
हर बच्चा अच्छे शिक्षक का हकदार है

हम सभी के मन में अक्सर यह बात होती है कि सरकारी स्कूलों में प्राइवेट स्कूलों की भांति प्रयोग नहीं किए जाते हैं लेकिन दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाली मनु गुलाटी एक अलग ही तरह की छवि भारत के शिक्षकों के लिए प्रस्तुत कर रही हैं। मनु उस वक्त चर्चा में आई थी जब उनका बच्चों के साथ डांस करने वाला वीडियो वायरल हुआ था। उन्होंने लोगों की नजर में सरकारी स्कूल के शिक्षकों का नजरिया बदल दिया है। 2004 से एक टीचर के तौर पर अपनी सेवाएं देने वाली मनु फिलहाल दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में अंग्रेजी की अध्यापिका हैं। मनु अपने पढ़ाने के दौरान जितने प्रयोग करती हैं वो कमाल है। मनु एक बेहतरीन इंसान भी हैं अपने इस अंदाज का श्रेय भी वो अपने खाते में नहीं रखतीं। वे कहती हैं मेरे अभिभावक शिक्षक थे और उनको देखकर ही मैंने इस क्षेत्र का चुनाव किया। मेरे माता-पिता शिक्षण को एक काम की तरह नहीं बल्कि एक सेवा की तरह लेते थे। अक्सर खाने की मेज पर शिक्षण व्यवस्था को बेहतर बनाने की बातें हुआ करती थीं। मैं अपने पिता के वो शब्द नहीं भूल सकती जब मेरे निजी स्कूल से सरकारी स्कूल में स्थानांतरण होने पर उन्होंने कहा था कि सभी बच्चे अच्छे शिक्षकों के लायक हैं। मैं अपनी तरफ से अपना सबसे श्रेष्ठ देने की कोशिश करती हूं। मैं बच्चों को प्रोत्साहित करती हूं कि मेरी कक्षा में वो अंग्रेजी में ही बात करें। 18 साल के इस शिक्षण के दौरान वो बहुत कुछ नया कर चुकी हैं और आने वाले समय में भी वह बहुत से प्रयोग करना चाहती हैं। वे मानती हैं कि अगर बच्चे सफल हो गए तो शिक्षक के तौर पर यह उनकी भी एक सफलता है। एक बार वह अपने एक विद्यार्थी की शादी में गई थीं तब उनके विद्यार्थी ने अपनी पत्नी से यह कहकर मिलवाया कि यह वो टीचर हैं जिनकी वजह से मुझे नौकरी मिली है। इससे ज्यादा एक शिक्षक को कुछ चाहिए भी नहीं होता कि उसका पढ़ाया हुआ विद्यार्थी सफल हो।
मनु को शिक्षण क्षेत्र में योगदान के लिए कई पुरस्कार मिल चुके हैं। इसमें मार्था फैरेल अवॉर्ड और राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार अवॉर्ड भी शामिल है। वे फिलहाल जामिया मिलिया इस्लामिया से सरकारी स्कूलों में बच्चों के अंग्रेजी बोलने के कौशल को बढ़ाने पर पीएचडी कर रही हैं। इनका लक्ष्य समाज में वंचित वर्गों के विद्याॢथयों में कम्यूनिकेशन स्किल्स और आत्मविश्वास को बढ़ाना है। सच है कि हमारे देश को मनु गुलाटी जैसे शिक्षकों की जरूरत है।
