अभी नहीं मां-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Abhi Nahi Maa

Mother Story: ‘पर मेरे और मेरे घरवालों की जल्दबाजी और लालच में मेरे परिवार की आशाओं और सपनों पर पानी फिर गया।
‘बेटा रविवार को जल्दी घर आ जाना, मां ने फोन पर सार्थक को कहा।
‘क्या हुआ मां? सब ठीक तो है न, डॉ. सार्थक ने चिंतित स्वर में पूछा।
‘कल लड़की वाले तुझे देखने आ रहे हैं। बहुत बड़ा पैसे वाला घर है। लड़की के पिता सरकारी ठेकेदार हैं। सुना है लड़की भी खूब पढ़ी-लिखी व सुंदर हैं, मां ने अपनी और बेटे दोनों की पसंद बता दी। हमेशा की तरह मां के स्वर में उद्विग्नता व उत्साह दोनों ही थे और खुशी तो हद के पार थी।
‘अभी नहीं मां, मैं इस रविवार को नहीं आ सकता। एक बहुत जरूरी ऑपरेशन है, डॉ. सार्थक की आवाज में टालने का अंदाज था।
‘पर बेटा, मैं उन्हें आने के लिए हां कह चुकी हूं कि तुम रविवार को आ रहे हो, मां के चेहरे पर हताशा और गुस्सा दोनों थे।
‘मां उन्हें पता है कि मैं डॉक्टर हूं और डॉ. को कभी भी इमरजेंसी आ सकती है, डॉ. सार्थक ने मां को मनाने की कोशिश की। मां सब समझ गई कि उसका बेटा फिर टालने की कोशिश कर रहा है, क्योंकि डॉ. सार्थक पहले भी ऐसा कई बार कर चुका था, जब भी उसका रिश्ता आने वाला होता है। हालांकि तब की बात अलग थी क्योंकि वह चिकित्सक की पढ़ाई कर रहा था। अब तो उसकी पढ़ाई खत्म हो चुकी है अब क्यों नाटक कर रहा है?
‘आने दो इस बार उसको। क्या उसके जीवन में कोई और लड़की है? पता नहीं कौन और कैसी होगी? इस बार तो उसे पूरी तरह देख लूंगी, मां गुस्से से बड़बड़ा उठी। तो पास बैठकर टीवी देख रही सार्थक की बहन सरला बोल पड़ी, ‘मेरी बहुत इच्छा है कि मेरी भाभी आए और मैं उससे ढ़ेर सारी बातें करूं, साथ में घूमने जाऊं।
कितना बहुत कुछ दे रहे हैं राजीव बाबू, अपनी बेटी को। वो राधा मासी कह रही थी कि वो बहुत बड़ा दीवार पर टांगने वाला एक मीटर लंबा टीवी दे रहे हैं, उसने दोनों हाथों को चौड़ा करके कहा। मेरी सहेली कह रही थी कि उस पर टीवी देखकर ऐसा लगता है कि जैसे सिनेमाघर में बैठ कर फिल्म देख रहे हैं। मैं तो यह पुराना ब्लैक एंड व्हाइट टीवी देखकर थक चुकी हूं, सार्थक की बहन ने सपने देखते हुए अफसोसजनक स्वर में कहा।
‘मेरा किचन भी पूरा का पूरा नया और लग्जरी सामान से भर जाता और घर में फ्रीज और एसी सब आ जाते, मां गहरी सांस लेते हुए पसीना पोंछ कर दुखी स्वर में बोली।
‘पता नहीं क्या है उसके मन में, बिल्कुल भी हमारी चिंता नहीं है, मां कहते हुए रोने लगी।
‘मां एक काम करते हैं, वो निलय भैया हैं न, भैया के खास दोस्त। निलय भैया ही, सार्थक भैया को शादी के लिए समझा सकते हैं, छोटे राघव ने मां-पिता को रास्ता बताया।
‘सही कहा छोटू तुमने। निलय को सार्थक अपना सब सुख-दुख बांटता है और कई बार सलाह भी लेता है। छोटू तुम सुबह ही निलय को घर पर बुलाना, उसे कहूंगी कि वह सार्थक को शादी के लिए समझाए, मां को एक रास्ता नजर आया।
अगले रविवार सार्थक घर आया। घरवालों के मुंह नाराजगी के कारण फूले हुए थे। किसी ने भी इस बार सार्थक से शादी की बात नहीं की। सार्थक को आश्चर्य हुआ। घर पर पांव रखते ही मां व पिता और सभी शादी की रट लगाते थे। आए हुए रिश्तों का विवरण और लड़की की फोटो सामने रख देते थे। जिसे वो हां-हूं कहकर बात को टालने की कोशिश करता था। इस कारण रिश्तेदार सार्थक को घमंडी व तुनकमिजाज कहते थे।
अगले रविवार को सार्थक खाने के बाद हमेशा की तरह अपने मित्र निलय से मिलने कॉलेज के मैदान पर मिलने गया, जहां दोनों खाली पेवेलियन में बैठकर घंटो बातें करते। क्योंकि वहां कोई दोनों को डिस्टर्ब नहीं करता। थोड़ी देर औपचारिक बातचीत के बाद निलय ने अपनी कसम देकर उसे शादी के बारें में पूछा, ‘क्यों शादी करने में आनाकानी कर रहा है? जबकि पढ़ाई पूरी करके डॉक्टर बन चुका है।
‘ओह घर वालों ने इस बार जासूस भेजा है, सार्थक ने हंस कर कहा।
‘यही समझ लो। पर बात को कहीं और घुमाकर मत ले जा, आज निलय को दोस्त की मुस्कराहट का कोई असर नहीं पड़ा। उसे भी सार्थक के घरवालों की तरह आश्चर्य होता था कि वह अभी तक शादी क्यों नहीं कर रहा है।
‘निलय मैं क्या हूं? अचानक सार्थक ने निलय की ओर देखते हुए कहा।
‘तू डॉक्टर है भाई, निलय को ऐसे समय सार्थक का प्रश्न अटपटा लगा।
‘निलय भले ही आज मैं डॉक्टर बन गया हूं, जो समाज का सबसे आदर का पात्र होता है और शादी के लिए समाज में सबसे योग्य व आदर्श युवक होता है, सिर्फ उसकी डॉ. की डिग्री ही समाज में सबसे सुंदर, गुणवान, पढ़ी-लिखी व धनवान पिता की बेटी से शादी के लिए पर्याप्त होती है। वह पैसे वाला व्यक्ति नहीं होता है। उसके पिता की आॢथक हैसियत व बैकग्राउंड का कोई मतलब नहीं होता है।
पर यह भी हकीकत है कि मैं डॉ. के साथ निम्न मध्यमवर्गीय परिवार का सदस्य भी हूं, जिसमें उसका छोटा भाई व कुंवारी छोटी बहन भी है। तुम्हें पता है कि मेरे पिता प्राइवेट स्कूल में छोटे से क्लर्क हैं, जिन्हें मामूली सी तनख्वाह मिलती है, जिससे मुश्किल से ही घर चल पाता है। यदि हमारा घर पैतृक संपति में नहीं मिलता तो हम आज झोपड़ी में ही रहते, क्योंकि पिता की छोटी तनख्वाह में हम भाड़े का घर भी एफोर्ड नहीं कर सकते। मुझे सरकारी स्कूल में पढऩे व प्रथम आने के कारण साइकिल व छात्रवृति मिली, जो अब तक मेडिकल कॉलेज के अंतिम वर्ष तक मिल रही थी क्योंकि वहां भी मैं अच्छी रैंक से पास हुआ, उसी छात्रवृति से मैं पढ़ रहा था और कभी भी पिता पर बोझ नहीं बना, अपनी सच्चाई स्वीकारते हुए सार्थक ने कहा।
‘जानता हूं दोस्त। मुझे तुम्हारे पर गर्व है, सार्थक के कंधे पर हाथ रखकर निलय ने सहानुभूतीपूर्वक कहा।
‘यह मैं तुम्हें आज इसलिए बता रहा हूं कि कुछ समय पहले मुझे मेरे से वरिष्ठ छात्र जो मेरे से दो वर्ष आगे थे मिले थे उनसे मिलने के बाद ही मेरे शादी के बारें में विचार बदल गए।
‘मेरे होस्टल में मेरे रूम के सामने ही मेरे से वरिष्ठ छात्र डॉ. आशीष बोस जो मेरे से दो क्लास आगे थे, जब मैंने एमबीबीएस में प्रवेश लिया था तब वे अंतिम साल में थे। वे बहुत ही अच्छे इंसान थे और रैंकर भी थे पर उनकी आर्थिक स्थिति मेरे जैसे ही थी और वे भी छात्रवृति पर पढ़ रहे थे। उन्हें पता था कि निम्न मध्यमवर्गीय छात्रों को मेडिकल कॉलेज में क्या-क्या मुश्किलें आती हैं, कैसे वो दूसरों को साधन-संपन्न देखकर मानसिक अवसादिता का शिकार होते हैं। उस बारे में मुझे बताया और कैसे उनका सामना करना है और बचना है वो भी समझाया। उन्होंने मुझे हमेशा उचित सलाह दी भले वो पढ़ाई की हो या फिर व्यक्तिगत। उनकी पढ़ाई पूरी होने के बाद वे हॉस्टल से चले गए और सरकारी हॉस्पिटल में काम कर रहे थे। मुझे उनकी हमेशा कमी महसूस होती थी।
एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी होते ही तुरंत दूसरे दिन ही सरकारी नौकरी मिल गई क्योंकि सरकारी अस्पतालों में चिकित्सक की भारी कमी थी और अगले महीने ही आशीष बोस शादी कर रहे थे। हम बहुत से कॉलेज के छात्र जो उनके खास थे, शादी में गए थे। अति भव्य शादी थी। ऐसी शादियां मैंने सिर्फ फिल्मों में ही देखी थी और अखबार में पढ़ी थी क्योंकि उनके ससुर बहुत बड़े बिल्डर थे, उनकी इतने पैसे वाले घर में शादी का एकमात्र कारण सिर्फ और सिर्फ उनका डॉक्टर होना ही था जो समाज का सबसे बड़ा प्रतिष्ठित पद था। उन्हें शादी में वह सबकुछ मिला जो उनके घर में नहीं था, पर जिसकी इच्छा हर मेरे जैसा व्यक्ति का परिवार करता है। उनके घरवाले बहुत खुश थे, यह सबकुछ लग्जरी पा कर। उसके बाद लंबे समय पश्चात लगभग दो साल बाद आशीष बोस मुझे मेडिकल कॉलेज में दो महीने पहले मिले, जब वे सरकारी मीटींग में आए थे। मैं और वे हम दोनों बहुत खुश थे इतने समय बाद मिलकर। मैं बहुत उत्साहित था उन्हें देखकर पर उनके चेहरे पर वो मुस्कान और हंसमुखता नहीं थी जो उनके कॉलेज समय में थी। मैंने बातों ही बातों में यह बात व उसका कारण उनसे पूछी तो वे बोले, ‘चलो हमारी लाइब्रेरी के सामने बैठते हैं जहां हम कॉलेज समय में खाली पीरीयड में बैठते थे।
‘सार्थक, मैंने डॉक्टर की पढ़ाई पूरी होते ही तुरंत अमीर लड़की से शादी करके बहुत बड़ी गलती कर बैठा, जैसे वो अपनी घुटन को मेरे सामने निकालना चाहते हैं।
‘क्या मतलब बोस? मैं समझा नहीं।
‘मेरे व उसके परिवार की आर्थिक हालत में रात-दिन का अंतर था। जमीन-आसमान का अंतर था। पर मैं और मेरा परिवार उनकी दौलत के आगे झुक गए थे। सच बताऊं, जैसे उन्होंने मेरे से शादी डॉक्टर होने के कारण की थी वैसे ही हमने उनके यहां शादी दौलत के कारण ही की।
‘तो इसमें गलत क्या हुआ बोस? मुझे अभी तक बात समझ में नहीं आई।
‘मेरे से शादी के बाद उसके साथ बहुत सारा कीमती सामान भले ही मेरे घर आ गया हो, पर हम यह भूल गए थे कि यह सब कुछ उन्होंने मेरे परिवार को नहीं अपनी बेटी को दिया है। इस कारण उसका कीमती सामान उसके सिवाय कोई और उपयोग करे यह मेरी पत्नी को पसंद व गवारा नहीं था। वह बड़ी घमंडी है। दूसरा हमारी आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वो हमें इस कारण से हीन भावना से देखती थी जैसे आमतौर पर समृद्ध भारतीय, आर्थिक रूप से कमजोर भारतीयों से करते हैं।
और वह बड़ी मुंहफट थी मेरे घरवालों की अवहेलना के साथ बात-बात पर ताने मारती थी कि यह सारा सामान उसके पापा ने दिया है। मेरे घर में तनाव का वातावरण रहने लगा। यहां तक कि उसे मेरे तनख्वाह भी घरवालों पर खर्च करना गवारा नहीं था। उसके शौक बड़े थे और शादी के बाद वह शौक मेरे पैसे से ही पूरे करती थी। अपनी उदासी का कारण मेरे सामने रखा तो मैं स्तब्ध था।
‘आपने कुछ नहीं कहा? मैंने पूछा।
‘मेरे कुछ भी कहने के कारण हम दोनों के बीच झगड़े होने लगे। उसके पापा की जान-पहचान बहुत बड़ी थी और मेरी बदली घर से दूर दूसरे कस्बे में करा दी। मैं भी मान गया, क्योंकि मैं रोज की किचकिच से तंग आ गया था। मैं शांति से रहना चाहता था। मेरे घरवाले मेरे डॉक्टरी में चयन के बाद इंतजार कर रहे थे कि मैं डॉक्टर बनते ही कमाऊंगा और घरवालों की इच्छाएं पूरी करूंगा। घर को व्यवस्थित करूंगा और बहन की शादी अच्छे घर में करूंगा। पर मेरे और मेरे घरवालों की जल्दबाजी और लालच में मेरे परिवार की आशाओं और सपनों पर पानी फिर गया कहते-कहते आशीष बोस की आंखों में आंसु गिरने लगे। मैं सकते में था यह सब सुनकर। आंसु पोंछते हुए वे बोले, ‘सार्थक मैं तुम्हें सलाह देना चाहता हूं कि मैंने जो गलती की वह गलती तुम मत करना। तुम शादी के लिए बिल्कुल जल्दबाजी मत करना। भले ही तुम्हारे घर वाले कितना ही दबाव बनाएं। हो सके तो तुम सबसे पहले अपने घरवालों की इच्छाएं व सपने पूरे करने की कोशिश करना। बाकि जिंदगी तो तुम्हें तुम्हारे पत्नि व बच्चों का ध्यान रखना ही है’, मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए आशिष बोस ने समझाते हुए कहा।
मैंने आशीष बोस की कहानी सुनकर उसी समय प्रण कर लिया कि मैं कम-से-कम तीन साल तक शादी नहीं करूंगा और अपने घरवालों के सपने पूरे करूंगा।
‘तो क्या करोगे आगे दोस्त? सार्थक के मुंह से पूरी बात सुनकर निलय ने पूछा।
‘मैं अभी कम-से-कम तीन साल तक शादी नहीं करूंगा, जब तक छोटा भाई नौकरी में नहीं लग जाता और बहन की शादी नहीं हो जाती। सरकार ने मुझे दूसरे कस्बे के सरकारी अस्पताल में नौकरी का नियुक्ती पत्र दिया है और मेरे परिवार के हिसाब से बहुत ही अच्छी सैलरी है और रहने के लिए हॉस्पिटल में क्वार्टर भी दिया है। मैं हॉस्पिटल समय के बाद घर पर भी मरीजों को देखने की प्राइवेट प्रेक्टिस करके अतिरिक्त कमाई कर सकता हूं। इन दोनों आय के कारण मैं दो-तीन साल में इतना कमा सकता हूं कि घर के लिए भौतिक सुविधाएं जिसके लिए मेरे घर वाले तरस रहे हैं और मेरे शादी के गिफ्ट में आने की राह देख रहे हैं वो लेकर दूंगा। इसके बाद दोनों भाई-बहन की पढ़ाई पर भी खर्च करना चाहता हूं जिससे भाई को अच्छी नौकरी और बहन की अच्छे घर शादी हो जाए।Ó सार्थक ने अपने घरवालों के प्रति सच्चा प्यार व दुनियां की व्यावहारिकता बताई।
‘तब तक घर वाले और समाज वाले शांति से बैठने देंगे क्या? कुछ दिन पहले मुझे तुम्हारे घरवालों ने इसिलिए बुलाया था कि मैं तुम्हें शादी के लिए समझा सकूं, निलय ने बड़ा प्रश्न उठाया।
‘इसके लिए तुम मेरी मदद करोगे।
‘वो कैसे? हैरानी से निलय ने पूछा।
‘तुम मेरे घरवालों को और मेरी पहचान वालों में यह बात कहना कि मैं मेरे साथ पढऩे वाली लड़की से प्यार करता हूं और वो लड़की आगे स्त्री-विशेषज्ञ बनने के लिए तीन साल और पढ़ रही है। इसलिए सार्थक तीन साल बाद उससे शादी करेगा, मुस्कराते हुए सार्थक ने निलय से आगे कहा, ‘इस कारण मुझे सब कोसेंगे व बुरा-भला कहेंगे, पर धीरे-धीरे सब भूल जाएंगे और मेरी शादी के लिए माथा खाना भूल जाएंगे।
‘वाह क्या तोड़ निकाला है तुमने, निलय ने प्यार से उसकी पीठ पर धौल मारते हुए कहा।
‘क्या यह बात सच तो नहीं है न? निलय ने उसकी आंखों में आंखें डालकर पूछा।
‘देख, तू भी लंगोटिया यार होने के बाद भी बहकावे में आ गया न, सार्थक ने उठते हुए मुस्कराकर कहा। निलय ने सार्थक के परिवार वालों को सार्थक की प्रेयसी वाली बात बताई और वे लोग तीन साल शादी नहीं करने वाले।
मां इस बात पर सार्थक से खूब लड़ी व झगड़ी थी और यहां तक कि भूख हड़ताल की भी धमकी तक भी दी। पर सार्थक ने परिवार के लंबे हितों के लिए परिवार व समाज के सारे आरोपों व तानों को बहुत समय तक धैर्य से सुना। पर पहले महीने जब सार्थक को पगार मिली तो उसने मां के लिए तीन बर्नर वाला गैस का चूल्हा व मिक्सर खरीदा। मां इस कारण खूब खुश थी। फिर सार्थक ने हर महीने कुछ-न-कुछ भौतिक साधन परिवार के लिए खरीदे।
सार्थक का चिकित्सीय ज्ञान बहुत था और ऊपर से आसपास दस गांवो में कोई डॉक्टर नहीं था। रात को दो बजे भी मरीज आ जाए तो भी वह किसी मरीज को मना नहीं करता था। उसके मन में परिवार की चिंता और मरीजों के लिए सेवा भावना थी। इस बीच घर का मरम्मत कार्य चालू ही था और घर के ऊपर दूसरी मंजिल जिसमें दो मास्टर बेडरूम भी बना दिए।
सार्थक ने कुछ ही समय में घरवालों को वह सुविधाएं दे दी जो सपने घरवालों ने उसके डॉक्टरी में नंबर आने पर देखे थे। पिता जिस स्कूल में नौकरी करते थे, उसके सामने ही उन्हें स्टेशनरी की दुकान खुलवा दी।
भाई को अच्छे कॉलेज में कंप्यूटर का कोर्स करा दिया जिसके कारण उसे मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी मिल गई। अंत में सबसे बड़ी जवाबदारी बहन की शादी खाते-पीते घर में कर दी, क्योंकि सार्थक का नया घर और डॉक्टर की डिग्री के कारण अब सार्थक के परिवार की गिनती समाज में समृद्ध और प्रतिष्ठित लोगो में होने लगी थी। आज उसकी बहन की शादी थी जो उसके लिए सबसे बड़ी और परिवार के प्रति बड़ी अंतिम जवाबदारी थी।
शादी के बाद सब परिवार के लोग घेरा डालकर बैठे थे आराम से बातें कर रहे थे क्योंकि सभी दस-बीस दिनों से काम करते-करते थक गए थे।
‘मां अब मेरे लिए भी लड़की ढूंढ़ो, अचानक सार्थक ने अपनी मां से कहा तो वह हतप्रभ रह गई।
‘पर तेरी वह जो पढ़ रही थी न। वो कहां गई? बरसों अंदर की कुंठा दबाए बैठी मां व्यंग्य से बोल पड़ी।
‘आंटी, उस लड़की का नाम जवाबदारी था और आज वह जवाबदारी चली गई। सार्थक की जगह निलय ने हंसते हुए रहस्यमयी मुस्कराहट के साथ जवाब दिया तो घरवाले समझे नहीं।
‘क्या मतलब? सब एकसाथ बोल पड़े।
फिर निलय ने सबको अब तक सार्थक ने शादी क्यों नहीं की और प्रेमिका की काल्पनिकता वाली पूरी बात बताई तो घरवालों के साथ-साथ शादी में आए रिश्तेदार भी दंग रह गए कि सार्थक ने ताने व तकलीफों के बाद भी जिंदगी में व्यावहारिक सोच रख कर पहले घरवालों के लिए अपनी जिम्मेदारियां पूरी की।

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