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कल रात-गृहलक्ष्मी की कहानियां

कल रात- आज शाम से ही ना जाने क्यों….? बारिश थमने का नाम नहीं ले रही है। स्वाति भी बेचैनी से इधर उधर टहल रही है। कभी वह खिड़की के पास जा कर खड़ी  हो जाती, तो कभी गैलरी में, बचपन से ही स्वाति को बारिश की फुहारें पसंद है। बारिश की फुहारों से चेहरे […]

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अकेले हैं तो क्या ग़म है—गृहलक्ष्मी की कहानियां

गृहलक्ष्मी की कहानियां-पिछले एक महीने से सविता के व्यवहार में आए परिवर्तन से सतीश जी काफी परेशान थे। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर बात क्या है..?,सारा दिन चहकने व होंठों पर मुस्कान लिए घर के कामों में व्यस्त रहने वाली सविता अचानक से शांत कैसे हो ग‌ई है। सविता का ईश्वर […]

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पहल – गृहलक्ष्मी कहानियां

आज जैसे ही मैं कालेज से घर पहुंची, पूरे घर पर सन्नाटा पसरा हुआ था.रोज इस वक्त मां दादी के पैर दबा रही होती हैं, बड़ी भाभी बच्चों को होम वर्क और छोटी भाभी खाने पर मेरा इंतजार कर रही होती है, परन्तु आज का दृश्य कुछ और ही था. मैं समझ गई आज फिर छोटी भाभी को लेकर अवश्य कोई विवाद उत्पन्न हुआ होगा.

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विदाई का वक्त – गृहलक्ष्मी कहानियां

तिवारी जी के घर पर दो दिन पहले से ही चहल-पहल होने लगी थी। नाते-रिश्तेदारों का आना भी शुरू हो गया था।घर का हर कोना पारंपरिक एवं अनोखे अंदाज में सजाया गया था। पूरा घर विभिन्न प्रकार के फूलों जैसे चंपा,चमेली,गेंदा,जूही,गुलाब से सुशोभित था।

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गृहलक्ष्मी की कहानियां : संक्रांति मुबारक हो…

गृहलक्ष्मी की कहानियां: वैसे तो अपर्णा इस घर में अपने पति आबिद की पसंद से ब्याह कर आई थी परन्तु आज वह इस घर के हर सदस्य की चहेती बन गई थी। अपर्णा और आबिद का केवल अंतरजातीय नहीं वरन अन्तरधर्म विवाह हुआ था ।  इस वजह से कभी-कभार खान-पान, रहन-सहन, रीति-रिवाज और पहनावे को लेकर […]

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वहम- गृहलक्ष्मी की कहानियां

“उठो बच्चों देखो स्कूल जाने का वक्त हो गया है। जल्दी उठो वरना बस निकल जाएगी”। रमा दोनों बच्चों की रज़ाई हटाते हुए बोली”। “नहीं हमें नहीं जाना” पिंकी दोबारा रज़ाई ओढ़ती हुई बोली। बंटी भी रज़ाई में घुसता हुआ बोला,” हां मम्मा हम स्कूल नहीं जाएंगे”। “अरे ऐसे कैसे नहीं जाओगे। चलो-चलो, गेट रेडी […]

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एक दिन पति का (व्यंग्य)- गृहलक्ष्मी की कहानियां

गृहलक्ष्मी की कहानियां: आज सुबह—सुबह जैसे ही सूरज की सुनहरी किरणों ने धरा पर अपने डेरे का विस्तार किया, विनय जी की आंखें खुली। हर रोज की तरह आज उन्हें अपनी धर्मपत्नी नम्रता से चाय के लिए किसी भी प्रकार की कोई विनती या आग्रह करने की आवश्यकता नहीं पड़ी। उनकी धर्मपत्नी फौरन बड़ी विनम्रता […]

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सैंडविच- गृहलक्ष्मी की कहानियां

गृहलक्ष्मी की कहानियां- डोरबेल बजते ही रुचिका दीवार पर लगे घड़ी की तरफ देख, गुस्से से पैर पटकती दरवाजे की ओर बढ़ी और दरवाजा खोलते ही सामने खड़े सारांश को देखे, बिना कुछ कहे ही मुंह फुलाए सोफे पर जा बैठी। सारांश भी चुपचाप अंदर आ गया और निढाल हो रिलैक्स की मुद्रा में अपनी […]

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ये क्या हुआ – गृहलक्ष्मी कहानियां

रविवार का दिन यानी छुट्टी का दिन।देर तक बिस्तर पर पड़े रहने में जो मज़ा है, वह रोज के भागा-दौडी़ में कहाँ? पड़े रहिए जब तक आप का मन करे ।आपका अपना दिन है जैसे चाहे गुजारिए, कोई कुछ कहने वाला नही,लेकिन एक बात का ध्यान रखिए पैर पसारे पड़े रहने के लिए केवल रविवार या छुट्टी का दिन होना ही अनिवार्य नहीं है, इसके लिए एक और बात का होना बहुत जरूरी है और वह है आप का स्टेटस सिंगल होना,यदि ये नहीं है तो आप चाह कर भी ऐसा कुछ नहीं कर सकते।

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कल रात – गृहलक्ष्मी कहानियां

आज शाम से ही ना जाने क्यों….? बारिश थमने का नाम नहीं ले रही है। स्वाति भी बेचैनी से इधर उधर टहल रही है। कभी वह खिड़की के पास जा कर खड़ी हो जाती, तो कभी गैलरी में, बचपन से ही स्वाति को बारिश की फुहारें पसंद है। बारिश की फुहारों से चेहरे को भिगोना और बारिश की बूंदों को हथेलियों पर ले कर खेलना उसे अच्छा लगता है किन्तु आज ना जाने क्यों बारिश की ये फुहारें स्वाति को वो खुशी नहीं दे रही है और ना ही उसे बारिश की बूंदों को अपनी हथेलियों पर लेने का मन कर रहा है।

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