Hindi Novel Kacche Dhage | Grehlakshmi
Kacche Dhage hindi novel by sameer

कार चल पड़ी तो विवेक ने माथे से पसीना पोंछकर कहा‒

“क्या साला नाटकबाजी में ‘टैम’ खराब करने का है। ये लोग जितना रुपया इस फंक्शन पर उड़ाएला है‒उससे कई गरीब लोगों की खोलियां बन जाने को सकती थी।”

“तुम्हें टी. वी. पर कवरेज मिल गया।”

कच्चे धागे नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- भाग-1

“अपन को साला कौन-सा हीरो बनकर आने का है टी. वी. पर?”

“पांच लाख रुपयों का क्या करोगे?”

“अरे यह पांच लाख सालों ने बिना वजह थमा दिए हैं…अपन ने तो कोई बहादुरी दिखाई नहीं…कोई तीर नहीं मारा…यह रकम अपन अपनी बस्ती वालों को देंगा। उधर बहुत सारी खोलियां ऐसी हैं जो बरसात में टपकेली हैं…नालियों में गंदगी बहेली है। उधर अपन साला कई फ्लश सिस्टम लैटरीन बनवाएंगा।”

कुछ देर बाद वे लोग बंगले पहुंच गए। रीमा देवी जाग रही थीं…वह ड्राइंगरूम में एक आराम कुर्सी पर बैठी टी.वी. देख रही थीं।

“अरे मां तूने अपने को टी. वी. पर देखा।” विवेक ने मां के पास आकर उत्साह से पूछा।

“हां बेटा…देखा भी और सुना भी…भगवान दुनिया की सारी मांओं को तेरे जैसा ही सपूत दे।”

“पहले यह बता मां…अपन कैसे दिखेला था?”

“मां को तो अपना लाल हर तरह से सुन्दर लगता है।”

विवेक मां से लिपट गया। देवयानी मुस्करा पड़ी।

विवेक को दूसरे ही दिन सिविल इंजीनियर की नौकरी का चार्ज मिल गया…देवयानी ने नए पैन्ट, कोट, सूट इत्यादि से उसका हुलिया बदलने में पूरी सहायता की…और जबान पर काबू पाने की ट्रेनिंग भी देने लगी। ऑफिस की ओर से एक कार भी मिल गई थी। बंगले की बजाए समुन्दर के किनारे एक कॉटेज का प्रबंध भी हो गया था जहां विवेक रीमा देवी को ले आया।

बंगले में अधेड़ आयु की एक नौकरानी रख ली गई जो रीमा देवी का सारा काम कर देती।

विवेक ने सबसे पहले इनाम में मिली रकम से अपनी बस्ती के सुधार का काम शुरू कर दिया जिसके लिए उन्होंने न कोई फंक्शन किया, न भाषण, न तारीफें…हां पूरी बस्ती वालों की दुआएं उसे जरूर मिलीं।

इस दौरान विवेक एक दिन भी अंजला को नहीं भूला था…एक दिन साइट से लौटते हुए उसे अंजला की बहुत याद आ रही थी…उसने रास्ते ही में मोबाइल अंजला का नम्बर मिलाया और कान से लगा लिया।

“हैलो!” अंजला की आवाज आई।

विवेक का दिल बहुत जोर से धड़क उठा।

“पहचानो तो कौन है?” विवेक ने कहा।

दूसरी ओर से एकाएक डिस्कनेक्ट हो गया। विवेक के मस्तिष्क को झटका-सा लगा। उसने फिर नम्बर मिलाया, लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला। विवेक को गुस्सा आ गया..उसने जल्दी से स्टेयरिंग घुमा दिया…पिछली दो कारें विवेक की कार से टकरा कर एक-दूसरे से टकरायीं…विवेक की कार का पिछला बम्पर टेढ़ा हो गया।

पिछला पूरा ट्रैफिक रुक गया…लोग गालियां देने लगे।

विवेक बिना किसी की परवाह किए कार दौड़ाता चला गया…उसकी कार के पीछे एक ट्रैफिक कान्स्टेबल और एक पुलिस इन्स्पेक्टर की मोटरसाइकिलें लग गई। विवेक हवा की तरह कार दौड़ाता हुआ अंजला के बंगले के फाटक पर रुका। दोनों मोटरसाइकिल वालों ने विवेक की कार को घेर लिया। विवेक ने शीशा उतार कर नथुने फुलाकर कहा‒”चालान करने का है तो करो यार पर बोर नहीं करने का।”

“अरे…मिस्टर विवेक, आप तो वही हैं जिसे मेयर ने इनाम दिया था।”

“तो क्या हो गया? तुम लोग अपना काम करने का है।”

“सारी…विवेक साहब!” और दोनों लौट गए।

“साला…यह ड्यूटी निभाएंगा…अपन को सिर्फ इनाम वाले देखकर ही अपने को छोड़ कर चला गया।”

चौकीदार ने फाटक खोल दिया…कार अंदर घुसकर पोर्च में रुक गई। विवेक सीधा अंदर घुसता चला गया…अंजला ऊपर जाने के लिए जल्दी-जल्दी सीढ़ियां चढ़ने लगी।

“ठहरो अंजला।” विवेक ने कहा।

अंजला के कदम रुक गए…होंठ भिंच गए।

“तुम क्यों अपन से भागेली हो?”

“विवेक तुम मेरा पीछा छोड़ दो।”

विवेक के मस्तिष्क में धमाका-सा हुआ उसने आश्चर्य से कहा‒”क्या बोली? अपन तेरा पीछा छोड़ दे?”

विवेक लम्बी छलांगों से सीढ़ियां चढ़कर उसके सामने पहुंच गया और उसकी दोनों बाहें पकड़कर गुर्राया‒”अबकी बोलने का है फिर से।”

“विवेक…”

“ऐ साली! क्या विवेक-विवेक बकेली है-मैं तुझसे प्यार किएला है-मजाक नहीं-साली अगर तेरे हाथ की लकीरों में विधवा होना न लिखा होता तो आज तू अपन की घरवाली होती…वह साला महेश मरने का था तभी तो अपन ने तेरा ब्याह उसके साथ कराएला था।”

“मगर अब वह नहीं मरेगा‒डॉक्टर हैमरसन ने चैकअप कर लिया है‒वह बच जाएगा।”

“बच जाएगा, साली, तो अपन उसको मार डालेंगा…अपन का विश्वास है कि ऊपर वाले ने आदमी का भाग्य उसके हाथ की लकीरों में लिख दिएला है…इस अनुसार महेश को मरना ही है।”

“तेरे को छोड़ने की बात छोड़ कर सब कुछ मानूंगा।”

“तुम्हारा विश्वास भाग्य रेखाओं पर ठीक है…लेकिन यह बात भी तुमने मानी है कि उपाय-से आई बला टल जाती है-और उपाय ही से तुम्हारे हाथ में तीसरी शादी की रेखा बन गई।”

“हां….फिर?”

“हो सकता है अनजाने में या जान-बूझकर महेश से ऐसा उपाय हो गया हो कि उसके हाथ की रेखा बदल गई हो। इसलिए यह फैसला भगवान पर छोड़ दो।”

“क्या मतलब?”

“अगर महेश ऑपरेशन से भला-चंगा हो गया तो तुम्हें अपने प्यार का त्याग करना होगा।”

“हरगिज नहीं…अपन महेश को मार डालेंगा।”

“तो क्या होगा? क्या मैं तुम्हें मिल जाऊंगी…मैं विधवा हो जाऊंगी…तुम फांसी पर चढ़ जाओगे…स्वयं तुम्हारी अंतर्रात्मा तुम्हें जीने नहीं देगी…वह कत्ल! नहीं…खून सिर चढ़कर बोलता है…तुम्हारी मां भी इस आघात को सहन नहीं कर पाएंगी।”

“विवेक का शरीर झन्ना गया।”

“विवेक, तुम्हें दुनिया में सब से ज्यादा प्यार मां से मिला है और तुम उन्हें सबसे बढ़कर प्यार करते हो…उनके लिए सब कुछ तुम ही हो…इसलिए फैसला कर लो…तुम्हें पत्नी की ज्यादा जरूरत है या मां जी की तुम्हारी ज्यादा जरूरत है?”

“नहीं…नहीं… अपन के लिए मां से बढ़कर दुनिया में कोई नहीं।”

“तो फिर अपनी जिद छोड़ दो…फैसला भगवान पर छोड़ दो।”

“क्या खेल करेला है भगवान अपन के साथ अंजू।”

“भगवान हर जन्म में आदमी की परीक्षा लेता है।”

“और कितनी परीक्षाएं लेगा?”

“विवेक, भगवान ने तुम्हें दुनिया की सबसे बड़ी नियामत दी है…और मां तो देवी हैं…साक्षात् देवी।”

“अंजू…!”

“बोलो क्या तुम मां के बदले मुझे मांग सकते हो?”

“तो फिर मान जाओ…एडजस्ट कर लो। हो सकता है भगवान ने देवयानी को मेरी जगह तुम्हारी पत्नी इसीलिए बनाया हो?”

“अंजू…।”

“देवयानी बहुत बुरी लड़की थी…मगर तुम ऐसे फरिश्ते हो विवेक जिसकी छाया से रहकर देवयानी शरीफ और वफादार पत्नी बन गई-उसने तुमसे इतना निःस्वार्थ प्यार किया-हर कदम पर तुम्हारी सहायता की-तुम्हें संभाला…तुम्हारी मां का मन जीता…तुम्हें नौकरी दिलवाई;..उससे बड़ा बलिदान तुम्हारे सुख और तुम्हारी कामयाबी के लिए शायद ही कोई लड़की कर सकती थी।”

विवेक कुछ नहीं बोला।

“मैं तुम्हें वचन देती हूं विवेक कि अगर महेश को कुछ हो गया तो मैं तुम्हारी हूं…मगर अभी पूरा समाज मुझे महेश की पत्नी के रूप में जानता है….प्यार करने वाले कभी किसी दूसरे का अनादर नहीं करते।”

“अपन क्या करे अंजू…बहुत संभालता हूं मन को…मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता…नहीं रह सकता…मन को मार भी लूं…साधु बन जाऊं-पर अपन का बच्चा! इस सत्य की कैसे उपेक्षा करूं?”

अंजू ने घबराकर इधर-उधर देखा और बोली‒”धीरे बोलो…नौकर भी न जान पाएं कि मैंने दो रातें तुम्हारे साथ भी बिताई हैं और मेरी कोख में तुम्हारा गर्भ है।”

“अंजू…!”

“तुम जाओ और भगवान के फैसले का इन्तजार करो।”

“बस एक बार..एक बार अपन को बोल दो कि तुम अपन से सच्चा प्यार करती हो।”

“विवेक मैं तुमसे सच्चा प्यार करती हूं…इसमें संदेह क्यों करते हो।”

“क्या शादी के बाद?”

“यह शादी नहीं…समझौता था…यह बात महेश भी जानता है।”

“तुम इस समझौते को चालू रखना चाहती हो।”

“इसलिए कि अगर महेश बचकर आ गया तो मैं क्या कहकर उससे तलाक लूंगी।”

विवेक ने कुछ न बोला…उसके होंठ सख्ती से भिंचे हुए थे।

अंजला ने फिर कहा‒”तुम बहुत अच्छे आदमी हो विवेक…मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूं, मुझे और बदनाम मत करो।”

कहते-कहते उसने हाथ जोड़ लिए…उसकी आंखें छलक पड़ीं।

विवेक तेजी से मुड़ा और तेज-तेज चलता हुआ नीचे उतर कर बाहर की ओर बढ़ गया।

विवेक कुछ घबराया-सा पाटिल के सामने पहुंचा तो पाटिल ने कुछ कड़ी दृष्टि से उसे देखते हुए कहा‒

“मिस्टर विवेक-आपके विरुद्ध बहुत शिकायतें सुनने में आ रही हैं।”

“नौकरी छोड़ दूं…कहिए तो।” विवेक मेज पर हाथ टेक कर गुर्राया।

“नहीं…नहीं…मेरा मतलब यह नहीं था…आप मजदूरों से अधिक घुल-मिल कर बातें न किया करें…मालिक और नौकर का जो अंतर है वह बना रहना चाहिए…नहीं तो कदम-कदम पर काम में रुकावटें पड़ेंगी।”

“मजदूर छूत की बीमारी नहीं है…सब इन्सान एक जैसे हैं…मैंने अपने जीवन के बीस बरस उनके बीच गुजारे हैं।”

“ठीक है…ठीक है-मगर हमारी वह खोलियों वाली स्कीम आपने मजदूरों और गरीबों के लिए, अपने सिर पर लेकर हमारे रेट बहुत गिरा दिए हैं…इससे बहुत कम प्रॉफिट मिलेगा।”

“मैं जानता हूं…वह इससे अधिक नहीं दे सकते..प्रॉफिट तो आप बड़े लोगों से करोड़ों में कमा लेते हैं।”

“अच्छा-अच्छा, ठीक है…ठीक है।”

इतने में विवेक का मोबाइल बोला….विवेक ने निकाल कर कान से लगाकर कर कहा‒”हां…बोलो देवयानी।”

तुम ऑफिस से कब निकल रहे हो?

“क्यों?”

“पहले…मेरे बंगले आना।”

थोड़ी देर बाद विवेक की गाड़ी देवयानी के बंगले की ओर जा रही थी..देवयानी बरामदे ही में खड़ी उसका इन्तजार कर रही थी। चेहरे पर कुछ अजीब-से भाव थे। विवेक को गाड़ी से निकलकर पहुंचते देखकर उसने अपने आपको काफी हद तक संभाल लिया था। दोनों ड्राइंग रूम में आ गए और काउंटर पर जा बैठे।

“क्या बात है देवयानी?”

“अभी अंजला का फोन आया था।”

विवेक के मस्तिष्क में झटका-सा लगा‒”क्या बोली थी वह?”

“महेश का ऑपरेशन सफल हो गया है…उसके डैडी वापस आ गए हैं…बेटे का खुशी भरा स्वागत करने के लिए। महेश मेरी मम्मी के साथ संडे को पहुंचेगा…मेरी मम्मी अचानक ही वहां उसको मिल गई थीं।”

विवेक के मस्तिष्क में अनेको छनाके गूंज उठे…उसने बोतल उठाकर मुंह से लगाई और आधी बोतल खाली कर दी, फिर देवयानी का हाथ पकड़ कर कहा-

“सब खलास…साला अपन का प्यार गएला…अपन का फैसला महेश के हक में कराएला…अब-अब अपन तेरे को ही अंजू समझने की कोशिश करेंगा।”

“विवेक!” देवयानी की आवाज कांप गई।

“हां देवयानी…तू बहुत अच्छी है…वह साली अपन को धोखा दे गई…अपन का दोस्त अपन को दगा दे गया…तूने अपन का साथ नहीं छोड़ा…अपन को कुछ से कुछ बना दियाएला है।”

“विवेक….!” और अचानक देवयानी विवेक के सीने से लगकर रो पड़ी।

“नहीं देवयानी। रोने का नहीं…आज से अपन तो हंस-हंस कर ‘लाइफ’ पास करेंगे। इसी बंगले में तूने अपन को पहली बार भरपूर प्यार दिया था…अब अपन दोनों इसी बंगले में ‘गोल्डन नाइट मनाएंगे।”

विवेक! अब बहुत देर हो गई…काश! यह फैसला तुमने चंद घंटे पहले कर लिया होता। मुझे मम्मी का फोन आया था कि महेश का ऑपरेशन सफल हो गया है…वह लौट कर आ रहा है…मैं समझ रही थी कि इस तरह तुम जैसे देवता का विश्वास भगवान पर से न उठ जाए…इसलिए मैंने सोचा कि तुम्हारी पत्नी को मर जाना चाहिए ताकि तुम्हारा विश्वास भगवान पर बना रहे।

“देवयानी!”

“हां विवेक…मैं बहुत बुरी थी…तुम्हारी छाया में अच्छी बन गई…मैं भगवान को मानती ही नहीं थी…मगर तुम्हारे रूप में मैंने धरती पर भगवान को देखा और उसे मानने लगी…आज मैं डर गई थी कि एक देवता कहीं राक्षस न बन जाए इसलिए तुम्हारा विश्वास बनाए रखने के लिए आत्महत्या करने के लिए जहर खा लिया है।”

“देवयानी…!”

“हां विवेक…वैसे भी मैं तुम्हारे योग्य नहीं थी…मेरा अतीत कोई अच्छा नहीं था…मैं बहुत खुश हूं कि..कि मरने से पहले…तुमने मुझे…स्वीकार कर लिया…मैं…मैं तुम्हारी बांहों में दम तोड़ रही हूं…अपने देवता…अपने भगवान…की…बांहों में।”

कहते-कहते देवयानी की गर्दन ढुलक गई…विवेक ने उसे झिंझोड़ा…फिर जल्दी से उसे उठाकर बाहर की ओर दौड़ा।

“मैं तुझे मरने नहीं दूंगा…मैं तुझे मरने नहीं दूंगा।”

लेकिन…जो दम तोड़ दे…उसे कौन रोक सकता है?

डॉक्टर ने नाड़ी टटोली….आंखें देखीं…और कहा‒”यह तो अब वापस नहीं लौट सकती।”

और विवेक देवयानी के सीने पर सिर रखकर फूट-फूट कर रो पड़ा।

Leave a comment