Government Job and Youth Struggle
Government Job and Youth Struggle

Government Job and Struggle: जीवन में कुछ भी हासिल कर लेना तभी संभव है जब जीवन संभव है। ऐसा किसी भी हाल में मुमकिन नहीं कि जीवन से बड़ा कुछ हो सकता है क्योंकि आपके खूबसूरत सपने को भी आप तभी भोग पाएंगे जब जीवन रहेगा। कहा भी गया है कि जान है तो जहान है। ऐसे में सपने के आड़े आने वाली चुनौतियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

जीवन में हम सभी का कोई न कोई सपना होता है सपना यानी हमारा लक्ष्य जिसकी वजह से हमारे जीवन में कोई उत्सुकता होती है। अगर व्यक्ति के जीवन में कोई लक्ष्य न हो तो उसका जीवन नीरस हो जाता है। यही कारण है कि व्यक्ति अपने जीवन के उद्देश्य को पहचानकर अपने लक्ष्य को पूरा करता है। जीवन में कोई उद्देश्य होने से ही जीवन सार्थक लगता है। लेकिन क्या कभी आपने ये सोचा है कि कितना बुरा होगा जब आप अपने लक्ष्य में सफल ही न हो पाएं, ऐसे में आप तलाश करते हैं एक और मौके की जिसमें शायद आप बेहतर कर पाएं। लेकिन तब क्या हो जब आप सफल या असफल होने के विकल्प तक भी न पहुंच पाएं। जी हां, ऐसा भी हो सकता है। हाल ही में दिल्ली में हुए उस हादसे की तरफ ध्यान जाता है जिसने न केवल दिल्ली बल्कि देश की रातों की नींद उड़ा दी थी। ऐसा होना भी लाजमी था ऐसे हालात में शायद ही कोई सुकून से सो सके। बारिश के पानी में डूब कर मरे ये बच्चे न केवल अपने संस्थानों से सवाल करते हैं बल्कि अपने सिस्टम से भी ये सवाल करते हैं कि उनकी जान की कीमत क्या है। इन बच्चों की जान का जाना कई तरह के सवाल मन में खड़े करता है। इस घटना पर कई लोगों ने सोशल मीडिया पर अपने सवाल खड़े किए हैं। इनमें आम जनता से लेकर नामचीन लोग शामिल हैं। कोई विद्यार्थियों की मौत पर प्रशासन को जिम्मेदार ठहराता है तो कोई बच्चों को सलाह दे रहा है कि सरकारी नौकरी के अलावा कुछ और करें।

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जिम्मेदारी किसी की नहीं होती

Government Job and Struggle
no one is responsible

एक शब्द है ‘जिम्मेदारी जो कि अपने अर्थ में बहुत बलवान है और इसे निभाने वाला शख्स अपने आप में बहुत बड़ी हस्ती के समान है। इसे न निभाने वाले व्यक्ति पर आप विश्वास नहीं कर पाते हैं। आपका दोष नहीं हम बचपन से सुनते आएं हैं कि ‘अरे यार फलाने की बात न करो वो जिम्मेदार व्यक्ति नहीं हैं, इस तरह हम अपने व्यव्हार में भी जिम्मेदारी न लेने वाले व्यक्ति का सम्मान नहीं करते। सोचिये ऐसे समाज में तीन विद्यार्थियों की मौत हो गयी है और अभी तक किसी ने जिम्मेदारी नहीं ली है, न प्रशासन ने, न कोचिंग सेंटर ने। जिम्मेदारी की ये गेंद एक-दूसरे की गोद में उछाली जा रही है। ये भयानक है कि विद्यार्थी अपना पैसा लगाकर दूर शहर में पढ़ने जाते हैं और अपनी जान गंवा बैठते हैं। ऐसे में उनके सहपाठी भी यही सोचते हैं कि जिम्मेदारी क्यों नहीं ली जाती है। राजधानी में प्रदर्शन जारी है लेकिन क्या आगे चलकर ऐसा होने से रुक जाएगा या नहीं, ये सवाल चिंतित करता है। ऐसे में इस तरह के सुझाव भी आए कि बच्चे सरकारी नौकरी करना क्यों चाहते हैं, आखिर उन्हें इससे मिलेगा क्या? तो चलिए इस प्रश्न का उत्तर भी जान लिया जाए।

सरकारी नौकरी ही क्यों

ये सवाल कई बार दोहराया जाता है। जिसका सामना विद्यार्थियों को अक्सर करना पड़ता है कि सरकारी नौकरी ही क्यों करना चाहते हो! भविष्य बनाने के लिए और भी कई बढ़िया कोर्स हैं तो ऐसे में सिर्फ सरकारी नौकरी को ही क्यों चुनना है। इस तरह के कई सवाल कभी विद्यार्थियों से रिश्तेदार पूछते हैं तो कभी खुद के यार-दोस्त। ऐसे में विद्यार्थियों को सरकारी नौकरी में उज्ज्वल और सुरक्षित भविष्य की उम्मीद नजर आती है, इस कारण वे इसे चुनते हैं। जब आप अपने जीवन में अपनी योग्यता से अपने लिए सुरक्षित भविष्य नहीं चुन सकेंगे तो ऐसे में आप अपने आप को कितना सुरक्षित महसूस करेंगे। हमारी शिक्षा की पहली जरूरत यही है कि हम अपनी जीविका चला सकें। देश में कितने ही बच्चे अपने घर के हालात को सुधारने के लिए सरकारी नौकरी का चयन करते हैं। ये सवाल उन्हें विचलित तो करता है। जब उनसे कोई पूछता है कि सरकारी नौकरी ही क्यों, कुछ और भी तो किया जा सकता है? तो ऐसे में उनके मन में ये तो रहता है कि इससे उनके घर के हालात सुधर जाएंगे। वहीं प्रश्न ये भी आता है कि समय की मांग क्या है। आप जीवन का कितना समय सरकारी नौकरी को दे सकते हैं। क्योंकि जहां ये सत्य है कि सरकारी नौकरी पा लेने के बाद हालात बेहतर हो जाते हैं वहीं ये भी सत्य है कि इस पर निर्भर बने रहना भी खुद के साथ अन्याय करना है। ऐसे में अपने पास एक विकल्प रखना जरूरी है। इसके साथ ही उसमें कुशल होना भी जरूरी है। ऐसे में आप अपने समय का सदुपयोग कर सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि मेहनत करें लेकिन ये अंतिम विकल्प नहीं है।

क्या कहते हैं गुरुजन

हम सोशल मीडिया पर बहुत से मोटिवेटर्स को सुनते हैं जिनकी कुछ सेकंड की रील मन में उत्साह भर देती है कि हम यकीनन जो ठान लें कर बैठेंगे। इन मोटिवेटर्स में से बहुत से अध्यापक होते हैं जो कि विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं और उन्हें प्रोत्साहित करते रहते हैं। विद्यार्थियों की शिकायत इन अध्यापकों से भी है जो कि उन्हें प्रोत्साहित कर पढ़ाते तो हैं लेकिन उनके साथ खड़े नहीं हुए। उनके विरोध के चलते हमने ये भी देखा कि किस तरह अध्यापकों ने अपनी-अपनी सफाई सबके सामने सोशल मीडिया के जरिये रखी। ऐसे में किसी ने माफी मांगी तो किसी के अवैध लाइब्रेरी को सील करना पड़ गया। लेकिन इस सब के बीच क्या हम ये सोचते हैं कि किसी के यकीन की क्या अहमियत है या विश्वास सिर्फ एक जज्बात भर रह गया है इसकी कोई मान्यता नहीं है। विद्यार्थियों का अपने गुरुओं पर विश्वास कि वो उनके संकट में उनके साथ होंगे या फिर विद्यार्थियों का उनके प्रशासन पर विश्वास कि उनकी जान पढ़ने के कारण तो नहीं जाएगी ये सब उस वक्त खोखला लगता है जब आपके सहपाठी इस तरह के कष्ट भोग रहे होते हैं। ये माना जा सकता है कि सिर्फ सरकारी नौकरी ही विकल्प नहीं इसके अलावा भी और कुछ चुना जाना चाहिए, कहीं बुरी व्यवस्था में रहकर अपने आप को कष्ट देना एकदम सही नहीं है लेकिन इस पर ध्यान देना भी जरूरी है कि किसी भी सूरत में व्यवस्था को नजरअंदाज करना ठीक नहीं है। ऐसी किसी जगह कुछ नहीं होना चाहिए जहां जान का खतरा हो फिर वो कोचिंग सेंटर हो या स्कूल हो या कोई और संस्थान।

सृष्टि मिश्रा, फीचर राइटर हैं , यूं तो लगभग हर विषय पर लिखती हैं लेकिन बॉलीवुड फीचर लेखन उनका प्रिय विषय है। सृष्टि का जन्म उनके ननिहाल फैज़ाबाद में हुआ, पढ़ाई लिखाई दिल्ली में हुई। हिंदी और बांग्ला कहानी और उपन्यास में ख़ास रुचि रखती...