बॉबी एक ऐसा नाम था मेरी जिंदगी का जिसके साथ मैंने अपना बचपन खेला था ,दोस्ती के इस प्यारे रिस्ते की जब अहमियत तक का पता नहीं था । मुझे तब वो मेरे साथ थी । एक बहुत प्यारी दोस्त सी इतनी प्यारी की शायद शब्दो में समेट कर न लासकू उसे ।बात आज से कही साल पहले की है जब मैं बॉबी से पहली बार मिला । मेरा मिलना कोई खास नहीं था । और न ही फ़िल्मी बस यूही एक रोज उससे मुलाकात हो गई ।गर्मियों की छुट्टियों में मैं अपनी बुआ जी के घर गया हुआ था जहाँ पर मैं पहली बार बॉबी से मिला । जिंदगी की खुशियों को खुद में समेटे हुए उस बचपन में बहुत ही प्यार से अपने फैमली के साथ बुआ जी के घर के सामने वाले घर में रहती थी । आज की ही बात है शाम होने को थी की तभी मैं अपनी बुआ जी के साथ उनके घर पंहुचा । जहाँ बहार ही एक प्यारी सी मुस्कान के साथ के भोली सी सकल वाली लड़की खुद के खिलौनों में खेलते हुए इतनी खुश थी मनो दुनियां की सारी ख़ुशी उसकी गुलाम थी । कुछ अजीब था उसमें जहाँ सारे बच्चे एक साथ खेल रहे थे । वही वो उन खिलौनों को ही बच्चा बना कर खेल रही थी । वो उन खिलौनों को अपने खेल के सारे नियम बताती और फिर खुद तोड़ कर इतना खुश हो जाती की खुशियां उसके साथ साथ सबको हँसा जाती जो भी बॉबी के साथ या पास होता । आज मैं भी उसके किसी एक खिलौने की तरह उसकी जिंदगी का के हिस्सा बन चूका था । क्योंकि अब वो मुझे भी अपने उन खेलो में सामिल रखती थी । उन पलों में साथ उसके खेलते खेलते वो मेरी जिंदगी से कितना जुड़ती चली गई मुझे कभी अहसास नहीं हुआ । पर मैं अब उसके हर खेल में उसके एक सच्चे दोस्त का रोल अदा करता । वो कुछ भी करती थी मैं हमेशा उसमे सामिल रहता था । अब तो हाल ये था कि आँखे खुलती भी उसके साथ थी और बन्द भी ।
बचपन के उन खेलो को खेलते खेलते मैं और वो इतना डूब जाते थे खेलो में की वो खेल अब जिंदगी के पलों में बदलने लगे थे । बॉबी मेरे लिए वो सब करती थी जो वो उस टाइम तक कर सकती थी । अपने नन्हे नन्हे हाथो से कभी कभी मेरे कपड़े तक धूलाने लग जाती थी ।वो बात और थी कभी साफ धूल न पाई पर है उनको गिला कर के कोशिश हर रोज करती थी वो । ऐसे ही बचपन को खेलते हुए मेरी छुट्टियाँ कब ख़त्म हो गई पता ही नहीं चला । और मुझे घर वापस आना था । बचपन के वो सच्चे मुच्चे वाले दोस्ती के वादे किए और मैं वापस घर आ गया कुछ दिन तक तो कुछ भी कही भी अच्छा नहीं लगता फिर स्कूल और मेरे यहाँ के दोस्तों के साथ टाइम काटने लगा । ऐसे ही गर्मियों की हर छुट्टियों की एक कहानी सी बन गई । मैं हर बार बुआ जी के घर जाता और उसके साथ दोस्ती के कही सारे वादे करके वापस लौट आता । पर इस बार भी मैं जब बुआ जी के घर पहुँचा तो बॉबी नहीं दिखी । मुझे कही ! पता करने पर पता चला वो अपने गांव गई हुई थी । बचपन तो फिर बचपन ही होता है न इस बार मैं बॉबी से नाराज था । पर वो नाराजगी किसे दिखाता । इस लिए मैंने बॉबी से मन ही मन में खट्टी कर ली थी जिसमे कभी न बोलने वाली मेरी गुसा भी सामिल थी मेरी । बुआ जी के यहाँ मुझे इस बार ज्यादा अच्छा तो नहीं लगा । और न वो खिलौने हस्ते हुए जो उसके साथ हमेशा खुश रहते थे । मेरी सारी छुट्टियां निकल गई पर बॉबी नहीं आई इस बार और मैं आ गया अपनी दुनियां में वापस । जिंदगी की चाल इतनी तेज थी की मेरी दोस्ती के नन्हे नन्हे कदम उसके साथ दौड़ न सके और जिंदगी की रेस में मेरा बचपन कही खो सा गया । इस बार जब मैं बुआ जी के घर गया । तो वहाँ सब कुछ पहले जैसा ही था सिवाए मेरी बॉबी के बचपन के उस तराजू में भगवान ने गमो के पहाड़ों को तौलने के लिए रख दिया था । जिस बार जब मेरी नजरें बॉबी से मिली तो उसके नन्हे नन्हे हाथ रोटियां बनाने की वो झूठी कोशिश कर रहे थे । जो शायद पूरी नहीं कर पा रहे थे ।
पहले तो मुझे लगा खिलौने के उस लोकल गैस चूले को बदलकर बॉबी नए खिलौनों से खेल रही है । जिसमे मुझे भी शामिल होना था हर बार की तरह । दुनियां से अनजान मैं अपने बचपन में उसे खेलने की कोशिश करने लगा । उतनी ही कोशिश वो अपने कंधों पर जिम्मेदारी उठाने की कर रही थी शायद पर मेरी नजरें ये देख न सकी । कही कच्ची और कही जली सी टेढ़ी मेढी रोटी जब वो ताली में रख कर अपनी माँ की ओर बड़ी तब जाकर मेरी समझ में कुछ आया ।पर सच कितना और क्या मुझे अब तक पता नहीं चला था । आज बॉबी मेरे साथ होते हुए भी खुश नहीं थी । और न थी उसके चेहरे पर वो मुस्कान । जैसे मनो बचपन के उस दौर में भी वो कोई गमो का “सागर” या तो मुझसे छुपा रही थी या तो खुद से । बॉबी का घर अब वो बॉबी का घर नहीं था और न थी उसकी वो खुशियाँ और न वो बचपन जिसको जीने मैं हर बार उसके पास जाता था । पर अभी तक ये सारा सच मेरी आँखों को न ही दिखा था । और न ही उसने दिखाया । उस समय भी वो मुझे खुद से चुराकर पूरा समय देने की कोशिश बार बार कर रही थी । पर उसकी कोशिश हर बार बेकार ही चली जाती थी । जब मेरा छोटा सा दिमाग ये समझने में कामयाब न हो सका तो मैं उसको झूठ बोलकर बुआ जी के पास आ गया । और जब सच सुना तो पता नहीं दिल में धड़कन नहीं थी या जिंदगी में सासे ।बुआ जी से पता चला बॉबी की माँ बीमारी से पागल हो गई और उनके इलाज में उसका घर बिक चूका था । और अब वो अपने ही मकान में एक कमरे की किरायेदार थी।
