Apologize Story: शिवांगी को मैंने सिर्फ इतना कहा कि यह घर मेरा है। तुम्हें यहां मेरे हिसाब से रहना होगा।’’ यह बात उसके दिल में चुभ गयी। अगले दिन अपना बोरिया बिस्तर बांध कर मायके चली गयी। मैंने लाख रोका मगर वह नहीं रूकी। सुबकते हुये कहती रही,‘‘मेरा घर तेा है नहीं। तो रहो अकेले। मैं हमेशा—हमेशा के लिए मायके जा रही हूं। संभालो अपने घर को।’’
उसके जाने के बाद मुझे अपने आप पर बेहद अफसोस होने लगा। आवेश में मैंने ये क्या कह दिया?पति—पत्नी में नेाकझोंक तो हेाते ही रहते है। यह जरूरी नहीं कि हर मामले में दोनों की एक राय हो? सामंजस्य तो बिठाना पड़ता है। आज जेा कुछ मैनें कहा वह नहीं कहना चाहिए था। मैं कुछ और तरीके से अपना गुस्सा निकाल सकता था। मगर इस घर पर सिर्फ खुद के अधिकार केा नहीं जताना चाहिए था। क्या इस घर पर शिवांगी का केाई अधिकार नहीं है।
माना कि मैंने खुद की कमाई से इस घर को बनवाया। तमाम सुख सुविधाओं को जुटाया। इसका मतलब यह नहीं कि शिवांगी का कोई योगदान ही नहीं है?घर को संवारने सजाने को काम शिवांगी ही तो करती थी। दो साल के बेटे को संभालते हुए। जो आसान काम नहीं था। हम पुरुषों को पत्निओं के काम की कोई अहमियत नहीं होती।
मगर आज शिवांगी के जाने के बाद समझ में आ रहा था कि उसके बगैर कितना सूना—सूना सा लग रहा था।
दो माह गुजर गये। शिवांगी ने एक बार भी मुझे फोन नहीं किया। जबकि मैंने कई बार फोन करना चाहा। मगर वह हर बार फोन काट देती। मैंने अपनी सास को फोन लगाकर बात करना चाहा। जैसे ही सास उसके पास फोन ले जाती वह साफ मना कर देती। इस तरह छ माह गुजर गये। आखिरकार मुझे ही पहल करनी पड़ी। सेाचा शिवांगी नादानी कर रही है तो क्या मैं भी करूं। एक बार तो करके भुगत रहा हूं।
सोफे पर शिवांगी का इंतजार करता रहा मगर वह आने का नाम ही नहीं ले रही थी। मैंने अपनी सास से कहा उसे एकबार मुझसे मिलने के लिए कह दीजिए। बाद में जो भी फैसला वह लेना चाहे ले मैं कुछ नहीं कहूंगा। सास बेचारी बार— बार शिवांगी केा समझाने का प्रयास करती मगर वह टस से मस नहीं हो रही थी। अंतत मेरे ससुर जी ने शिवांगी केा डांटा तब वह मानी। कमरे में हमारे सिवाय तीसरा कोई नहीं था।
‘‘शिवांगी, माना कि मैंने आवेष में आकर गलत बोल गया। उसकी क्या इतनी बडी सजा देागी?’’मेरे कंठ अवरूद्व हेा गये।
‘‘आप अपने घर में खुश है न?’’शिवांगी ने तंज कसा।
‘‘घर तो पत्नी से बनता है। न कि ईट पत्थर से।‘‘
‘‘इसका एहसास अब हुआ है?’’शिवांगी के तेवर बरकरार थे।
‘‘हां जब से तुम घर छोडकर चली गयी हो। मेरा किसी काम में दिल नहीं लगता। घर काट खाने केा दौडता है। प्लीज वापस चलो। मुझे अपने किये पर अफसोस है।’’ ऐसा लगा मैं रो दूंगा। शिवांगी पर मेरी बातों का असर हो रहा था। आखिरकार वह एक स्त्री है। स्त्री का मन बहुत कोमल होता है। वह बहुत देर तक अपनों से नाराज नहीं रह सकती। मैंने बिना देर किये शिवांगी को अपनी बांहों में भर लिया। उसकी आंखों से बहते अविरल अश्रुधार ने हमदोनों के सारे गिल शिकवे मिटा दिये।
