pyara popu zindabad
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न जाने कब से नन्ही गोगो और पोपू की दोस्ती चली आ रही थी। पोपू था भी निराला। काला-काला, प्यारा-प्यारा, सुंदर-सा। उसका नाम भी गोगो ने ही रखा था—पोपू।

नन्ही गोगो को पोपू इतना पसंद आ गया कि अब तो गोगो और पोपू हर वक्त साथ-साथ रहते। जहाँ कहीं गोगो जाती, पीछे-पीछे तेजी से पूँछ हिलाता पोपू भी पहुँच जाता और फिर इतने प्यार से उसकी आँखों में देखने लगता, मानो गोगो उसके इस कारनामे के लिए बड़े प्यार से उसे पुचकारकर शाबाशी देगी।

पोपू की शरारतें देख-देखकर गोगो की बरबस हँसी छूट जाती और वह उसे गोद में लेकर प्यार से पुचकारती हुई, सिर पर हाथ फेरने लगती। उसे लगता, पोपू से ज्यादा उसे कोई नहीं समझता। पोपू से अच्छा उसका दोस्त और कोई नहीं है।

वह पोपू से खूब मीठी-मीठी बातें करती। मन में जो कुछ आता, सब भालू को बताती। यहाँ तक कि ज्यादा लाड़ आ जाता, तो मम्मी से सुनी हुई अजब-गजब परीकथाएँ भी उसे सुनाने लगती। फिर सुनाने के बाद पूछती, “क्यों पोपू, तुम्हें अच्छा लगा न! तुम्हें भी परी वाली कहानी सुनना अच्छा लगता है पोपू? मेरी मम्मी के पास तो ऐसी एक से एक ढेरों कहानियाँ हैं। तुम कहोगे तो मैं तुम्हें रोज एक कहानी सुनाऊँगी।”

पोपू को पता नहीं, नन्ही गोगो की बातें समझ में आती थीं या नहीं? पर वह गोगो की बातें सुनकर बड़े प्यार से सिर हिलाता तो गोगो का दिल खुश हो जाता। वह लाड़ से भरकर कहती, “ठीक है न पोपू, तुम समझ गए न! इसका मतलब मैं बिल्कुल ठीक कह रही हूँ।”

न जाने कब से नन्ही गोगो और पोपू की दोस्ती चली आ रही थी। पोपू था भी निराला। काला-काला, प्यारा-प्यारा, सुंदर-सा। उसका नाम भी गोगो ने ही रखा था—पोपू।

नन्ही गोगो को पोपू इतना पसंद आ गया कि अब तो गोगो और पोपू हर वक्त साथ-साथ रहते। जहाँ कहीं गोगो जाती, पीछे-पीछे तेजी से पूँछ हिलाता पोपू भी पहुँच जाता और फिर इतने प्यार से उसकी आँखों में देखने लगता, मानो गोगो उसके इस कारनामे के लिए बड़े प्यार से उसे पुचकारकर शाबाशी देगी।

पोपू की शरारतें देख-देखकर गोगो की बरबस हँसी छूट जाती और वह उसे गोद में लेकर प्यार से पुचकारती हुई, सिर पर हाथ फेरने लगती। उसे लगता, पोपू से ज्यादा उसे कोई नहीं समझता। पोपू से अच्छा उसका दोस्त और कोई नहीं है।

वह पोपू से खूब मीठी-मीठी बातें करती। मन में जो कुछ आता, सब भालू को बताती। यहाँ तक कि ज्यादा लाड़ आ जाता, तो मम्मी से सुनी हुई अजब-गजब परीकथाएँ भी उसे सुनाने लगती। फिर सुनाने के बाद पूछती, “क्यों पोपू, तुम्हें अच्छा लगा न! तुम्हें भी परी वाली कहानी सुनना अच्छा लगता है पोपू? मेरी मम्मी के पास तो ऐसी एक से एक ढेरों कहानियाँ हैं। तुम क

एक दिन नन्ही गोगो गेंद से खेल रही थी। गेंद बार-बार टप्पा खाकर उछलती और दूर चली जाती। तब पोपू तेजी से दौड़कर जाता, गेंद मुँह में दबाकर ले आता। और गोगो के पास आते ही उसकी पूँछ तेज-तेज हिलने लगती।

पर खेलते-खेलते अचानक न जाने क्या हुआ कि गेंद जोरदार टप्पा खाने के बाद गायब हो गई। दिखाई ही नहीं पड़ रही थी।

गेंद कहाँ गई, किधर गई? गोगो परेशान होकर पूरे घर में उसे ढूँढ़ रही थी। उसने एक-एक कमरा देख लिया। आँगन का कोना-कोना छान मारा। वहाँ जो बड़ा-सा तख्त पड़ा था, उसके नीचे भी झाँककर देख लिया। मगर गेंद कहीं मिली ही नहीं।

गोगो हैरान, “अरे-अरे, गेंद कहाँ गई?” उसने मम्मी से पूछा तो मम्मी बोलीं, “अरे गोगो, होगी यहीं कहीं! कमरे की दीवारें तो उसे खा नहीं गईं।”

मगर गोगो अब उसे कहाँ ढूँढे? उसने एक बार फिर सभी कमरों के चक्कर लगा लिए। आँगन में देखा और स्टूल पर जहाँ पुराने अखबार पड़े थे, उनके पीछे भी एक बार झाँककर देख लिया। मगर गेंद थी कि मिलने का नाम ही नहीं ले रही थी।

“अरे, मेरी गेंद कहाँ गई?” सोच-सोचकर गोगो उदास थी। इतनी उदास कि उसके चेहरे से हँसी तो एकदम गायब ही हो गई।

गोगो को यों उदास बैठे देखा, तो पोपू भी उसके पास आकर बैठ गया। जैसे नन्ही गोगो की मुश्किल समझ रहा हो। पर उसे अफसोस था कि वह गोगो की कोई मदद नहीं कर पा रहा है।

“आहा, मेरी लाल रंग की गेंद थी। कितनी सुंदर!” सोचकर गोगो की आँखों में आँसू आ गए।

इतने में पोपू को जाने क्या हुआ कि वह उछला और अचानक दौड़ पड़ा। वह कमरे में तेजी से इधर-उधर चक्कर काट रहा था। गोगो को कुछ समझ में नहीं आया कि यह अचानक पोपू को हुआ क्या है।

तभी पोपू ने बड़ी तेजी से उछलना शुरू कर दिया। आगे के दो पैर उठाकर वह उस खूँटी के पास पहुँचने की कोशिश कर रहा था, जिस पर नन्ही गोगो का बस्ता पड़ा था।

पोपू के तेज-तेज उछलने और उसकी बेचैनी को देख, गोगो को यह समझते देर न लगी कि उसके बस्ते में कुछ है, जिसकी वजह से पोपू परेशान है। और जब गोगो ने अपना वह बस्ता उतारकर देखा तो उसे उसमें पड़ी वह लाल गेंद नजर आ गई।

गोगो हैरान! उसे बिल्कुल समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी गेंद बस्ते में कैसे चली गई?

फिर उसे समझ में आया कि उसके बस्ते का एक कोना खुला हुआ था। लिहाजा जब गेंद ने जोर का टप्पा खाया होगा तो वह झट उसी बस्ते में चली गई होगी।

अपनी प्यारी-सी लाल गेंद के मिलते ही नन्ही गोगो खुश होकर तालियाँ बजाने लगी। खुशी के मारे उसने पूरे कमरे में दौड़ लगानी शुरू कर दी। पीछे-पीछे पूँछ हिलाता उसका नन्हा पोपू भी दौड़ रहा था।

ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंBachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)