jojo uncle ka doggy nanhi
jojo uncle ka doggy nanhi

फिर एक बार की बात है, इतवार का दिन था और गोगो अपने काले वाले डाॅगी पोपू से खेल रही थी। साथ ही उसका प्यारा दोस्त पीलू पूँछ उठाए इधर-उधर घूम रहा था। और टिनटिन चिड़िया कभी गोगो के कंधे पर बैठ जाती तो कभी सिर पर। एक बार तो टिनटिन चिड़िया ने उसके बालों में बँधे फीते को अपनी चोंच में दबाकर इस तरह खींचा कि गोगो का फीता झट से खुल गया और उसके बाल पूरे चेहरे पर बिखर गए। टिनटिन चिड़िया की इस शैतानी पर गोगो को बड़े जोरों की हँसी आई।

फिर पोपू और भूरा वाला नटखट पिल्ला पीलू भी ऐसे-ऐसे कमाल के खेल दिखा रहे थे कि गोगो बार-बार खिलखिला पड़ती।

गोगो अपने इसी खेल में डूबी थी कि जाने कब पड़ोस के जोजो अंकल आ गए। गोगो को तब पता चला, जब पोपू जोर-जोर से भौंकने लगा और पीलू भी। टिनटिन चिड़िया हैरानी से कभी पोपू, कभी पीलू तो कभी गोगो को देख रही थी।

गोगो ने बुरी तरह मुँह बनाकर पोपू की ओर देखा और बोली, “पोपू, स्वीट डाॅगी…!” तब पोपू अचकचाकर चुप हो गया, जैसे उसने कोई बेवकूफी का काम किया हो। और पोपू के चुप होते ही पीलू भी टाँगों में पूँछ दबाए एक ओर खड़ा हो गया।

इतने में गोगो को जोजो अंकल और उनका डाॅगी नजर आ गया। अब उसे माजरा समझ में आ गया था कि पोपू और भूरा पिल्ला भला किसलिए भौंक रहे थे।

नन्ही गोगो बोली, “सॉरी अंकल, पोपू और पीलू को पता नहीं था कि आप मेरे प्यारे जोजो अंकल हैं। नहीं तो वे कभी ये गुस्ताखी न करते। अब बैठिए, आराम से बैठिए। आपके लिए अंदर से कुर्सी लाऊँ?”

तब तक गोगो के मम्मी-पापा भी बाहर निकलकर आ गए थे। बोले, “आइए जोजो साहब, आइए! बड़े दिनों बाद चक्कर लगा आपका?”

जोजो अंकल हँसकर बोले, “असल में तो आनंद साहब, सच्ची बात तो यह है कि मैं आपसे नहीं, गोगो बिटिया से मिलने आया हूँ आज। आहा-हा, क्या प्यारी बच्ची है आपकी! उस दिन गधे पर जो जुलूस निकला, उसने सारे मोहल्ले को हँसा दिया। और वह गधा भी जिस पर गोगो बैठी थी, इतना सीधा और आज्ञाकारी लग रहा था कि आपकी बेटी के एक-एक इशारे को पहचानता था। ये कहे कि रुक जा तो रुक गया, ये कहे कि चल पड़ तो चल पड़ता। ये कहे तेज चल तो तेज चल पड़ता। साहब, हमने तो अपनी जिंदगी में पहली बार यह तमाशा देखा। और पहली बार ऐसा समझदार गधा भी देखा।”

कुछ देर बाद जोजो अंकल बोले, “उस जुलूस के चारों ओर बच्चों का ऐसा प्यारा हुजूम था कि क्या कहूँ? बच्चे नाच रहे थे, हँस भी रहे थे। देख-देखकर सारे लोग हँस रहे थे। पर मैं तो साहब, इसी बात पर गौर कर रहा था कि गधा इतना बुरा जानवर तो नहीं कि उस पर हँसा जाए। क्यों मि. आनंद, क्या खयाल है आपका?”

गोगो के पापा कुछ जवाब देते, इससे पहले ही गोगो बोली, “नहीं जोजो अंकल, गधा बेवकूफ हरगिज नहीं है, लोग कहें चाहे जो भी। वह सीधा है, पर है समझदार।”

गोगो की बात सुनकर जोजो अंकल मुसकराए। बोले, “वाह बेटी, मुझे तो कई बार हैरानी होती है कि इस उम्र में तुम इतनी समझदार कैसे हो गईं? जरूर आनंद साहब और तुम्हारी मम्मी ने बचपन से ही तुम्हें ज्ञान की घुट्टी पिलाई होगी।”

सुनकर गोगो के मम्मी और पापा मुसकराए। फिर गोगो के पापा बोले, “आइए जोजो साहब, भीतर आइए। बैठते हैं कुछ देर, थोड़ी गपशप हो जाए।”

उसके बाद जोजो अंकल देर तक गोगो के मम्मी-पापा के पास बैठ, दुनिया-जहान की और बीच-बीच में मोहल्ले की ऊँच-नीच की तमाम बातें करते रहे।

उधर जोजो अंकल का बड़े-बड़े बालों वाला भूरा डाॅगी टाॅमी गोगो के पास बैठ, उसके खेल में शरीक हो गया था। गोगो ने पोपू, पीलू और टिनटिन चिड़िया से उसकी खूब अच्छी दोस्ती करवा दी थी।

गोगो अपनी नीली गेंद भी उठा लाई थी। जब वह गेंद दूर फेंकती तो पोपू, पीलू और जोजो अंकल के भूरे डाॅगी में बड़ी जबरदस्त होड़ शुरू हो जाती। तीनों एक साथ भागते कि भला कौन गोगो की गेंद को मुँह में पकड़कर पहले वापस आता है और गोगो को सौंपता है। इसमें कभी पोपू बाजी मार ले जाता, कभी पीलू, तो कभी जोजो अंकल का टाॅमी। लेकिन वे खेल का पूरा मजा ले रहे थे। लड़ बिल्कुल नहीं रहे थे।

फिर उसके बाद गोगो ने उन्हें पास बैठाकर मजे में कहानी सुनानी शुरू की तो ऐसा लगा कि जैसे सभी कहानी सुन रहे हैं और उसका खूब मजा ले रहे हैं।

बीच-बीच में गोगो कोई हुक्म देती तो उसको मानने की होड़ लग जाती कि कौन सबसे पहले वह काम करे। गोगो ने जोजो अंकल के डाॅगी के सिर पर हाथ फेरकर खूब प्यार किया और कहा, “टाॅमी-टाॅमी, अब तुम हमारे घर जरूर आया करोगे, समझ गए न? नहीं आओगे तो मैं रूठ जाऊँगी।”

इस पर जोजो अंकल के डाॅगी ने बड़े प्यार से गरदन हिलाई, जैसे गोगो की सारी बात समझ गया हो।

कुछ देर बाद जोजो अंकल जाने लगे तो उन्होंने टाॅमी को पुचकारकर कहा, “चलो टाॅमी, देर हो गई। अब घर चलते हैं।”

पर टाॅमी को तो खेल में इतना आनंद आ रहा था कि वह उठना ही नहीं चाहता था।

टाॅमी को चुपचाप बैठे देख, जोजो अंकल ने फिर आदेश देते हुए कहा, “टाॅमी…!” इस पर टाॅमी ने बड़ी अनिच्छा से जोजो अंकल की ओर देखा, जैसे उसका उठने का बिल्कुल मन न हो, फिर भी उसे उठाया जा रहा था।

“टाॅमी!” तीसरी बार जोजो अंकल ने थोड़े गुस्से में कहा तो टाॅमी उठा और जोजो अंकल के पीछे-पीछे चल दिया। पर वह इतनी अनिच्छा से चल रहा था कि उसका एक कदम आगे तो दो कदम पीछे लौट रहे थे।

टाॅमी की यह हालत जोजो अंकल से छिपी न रही। उन्होंने हँसते हुए कहा, “अच्छा टाॅमी, नहीं चलते तो रहने दो। आज तुम यहीं रहो। गोगो के साथ खेलने का मन है न! गोगो है ही इतनी अच्छी लड़की कि उसके साथ खेलने का सबका मन होता है। तो ठीक है, आज तुम यहीं रहो। बाद में मैं तुम्हें ले जाऊँगा।”

और टाॅमी वापस आया गोगो और उसके दोस्तों के पास तो वह इतना खुश था, इतना खुश कि उसकी आँखें एकदम बिजली के लट्टुओं की तरह चमक रही थीं। वह खुशी के मारे बड़ी देर तक उछलता-कूदता और नाचता रहा। गोगो ने पोपू, पीलू और टिनटिन चिड़िया के साथ जोजो अंकल के डाॅगी को भी प्यार से खाना खिलाया।

शाम के समय जोजो अंकल टाॅमी को लेने के लिए आए, पर टाॅमी का अब भी मन नहीं भरा था। बार-बार वह गोगो की ओर देखकर कूँ-कूँ करता और उसके पैरों से लिपट पड़ता।

इस पर गोगो के मम्मी-पापा ने कहा, “गोगो, यह अच्छी बात नहीं है। तुम कहो न, ताकि जोजो अंकल का टाॅमी उनके साथ जाए।”

इस पर गोगो ने कहा, “जाओ टाॅमी, जाओ अंकल के साथ। फिर आना।”

इस पर टाॅमी जोजो अंकल के साथ गया तो इस तरह पीछे देखते हुए जा रहा था, जैसे गोगो से कह रहा हो, “गोगो, मुझे अफसोस है कि मुझे जाना पड़ रहा है। अभी तो मेरा तुमसे और तुम्हारे दोस्तों के साथ खेलने का बड़ा मन था।”

यह देखकर गोगो मुसकराई, मानो हँसकर टाॅमी को दिलासा दे रही हो, कि यह घर तो तुम्हारा ही है, जब चाहो, तब फिर आ जाना।

और सचमुच गोगो और गोगो के मम्मी-पापा हैरान रह गए, जब कोई पंद्रह मिनट के भीतर जोजो अंकल का डाॅगी उछलता-कूदता और सरपट भागता हुआ गोगो के पास आ गया। वह इस तरह कूँ-कूँ-कूँ करता हुआ गोगो के चारों ओर चक्कर काट रहा था और पूँछ हिला रहा था कि गोगो ही नहीं, उनके दोस्तों पोपू, पीलू और टिनटिन चिड़िया को भी हैरानी हुई।

गोगो के मम्मी-पापा समझ ही नहीं पा रहे थे कि जोजो अंकल के टाॅमी पर गोगो का यह क्या जादू चल गया कि वह अपने घर जाना ही नहीं चाहता।

थोड़ी देर बाद जोजो अंकल का फोन आया। उन्होंने गोगो से कहा, “अरे बिटिया, तुम्हारे पास से आकर टाॅमी इतना उदास था, इतना ज्यादा उदास कि मुझसे देखा नहीं गया। तो मैंने ही कहा—गोगो के पास जाना चाहते हो न, तो ठीक है, जाओ। रात को आकर मैं तुम्हें ले जाऊँगा।”

और टाॅमी फिर से गोगो और गोगो के दोस्तों के साथ खेलकूद में इस कदर लीन हो गया, जैसे उसे यहीं धरती का स्वर्ग मिल गया हो। कुछ देर बाद गोगो पोपू और पीलू को साथ लेकर पार्क में घुमाने गई तो टाॅमी भी उछलता-कूदता साथ गया। और पार्क में तीनों दोस्तों ने खूब मजे किए। खासकर टाॅमी ने वहाँ उछल-कूद के ऐसे-ऐसे करतब और तमाशे दिखाए कि पोपू और पीलू ने ही नहीं, गोगो ने भी उसकी ओर खूब प्रशंसा भरी नजरों से देखा।

गोगो ने इतने प्यार से उसकी पीठ को सहलाया कि जोजो अंकल के डाॅगी को लगा, आज पहली बार मेरी कला की किसी ने सच्ची तारीफ की है!

फिर रात को जोजो अंकल आए और टाॅमी उनके साथ गया, तो गोगो ने उसकी आँखों में बड़ी याचना देखी। मानो टाॅमी कह रहा हो, ‘जैसे मैं तुम्हारे घर आया हूँ, तुम भी तो मेरे घर आ सकती हो गोगो। वहाँ जोजो अंकल के साथ बातें करना और मेरे साथ खेलना।’

उसके कुछ रोज बाद गोगो जोजो अंकल के घर गई तो टाॅमी इतना खुश हुआ कि जोर-जोर से गोगो की कई परिक्रमाएँ कर डालीं। वह इस कदर जोर-जोर से उछल रहा था और कूँ-कूँ-कूँ करके अपना प्यार जता रहा था कि गोगो ने बड़ी देर तक उसके सिर और पीठ पर हाथ फिराया। उसके बाद टाॅमी शांत हो गया और इतनी प्यार भरी मासूम नजरों से गोगो को देखने लगा, जैसे कह रहा हो, ‘गोगो मेरे पास जबान नहीं है, तुम्हारी तरह भाषा नहीं है। मैं तुम्हें अपने दिल की बहुत सारी बातें बताना चाहता हूँ। पर कैसे कहूँ? हाँ, समझ सको तो खुद ही समझ लो।’

और छुट्टी के दिन तो यह तय ही था कि टाॅमी गोगो के पास ही रहेगा और उसका पूरा दिन पोपू, पीलू और टिनटिन चिड़िया के साथ खेलते ही बीतता। पता नहीं कैसे उसे पता चल जाता कि आज इतवार है, गोगो के स्कूल की छुट्टी है। और वह झटपट दौड़ता-कूदता, उछलता और नाचता हुआ गोगो के घर की ओर दौड़ पड़ता था।

शाम को जोजो अंकल अपने डाॅगी को लेने आते तो यह कहे बगैर न रहते, “गोगो, अब मैं जान गया है कि तुम जरूर कोई जादू जानती हो। तभी तो मेरे टाॅमी को ऐसे अपना दोस्त बना लिया कि वह अब मेरी बात तो मानता ही नहीं।”

इसी तरह हँसकर गोगो के मम्मी-पापा से भी वह कहते, “बड़ी भोली और प्यारी लड़की है आपकी, आनंद साहब। ऐसी प्यारी लड़की का सब पर जादू चल जाता है, आदमी से लेकर जानवरों तक। और तो और टिनटिन चिड़िया भी इसके जादू से ऐसे बँधी है कि जब देखो, तब गोगो के ही चारों ओर चक्कर काटती रहती है।”

इस पर गोगो खुश होकर तालियाँ बजाने लगती। फिर हँसकर कहती, “जोजो अंकल, मैं बताऊँ आपको राज की बात? असल में मैं जानवरों की भाषा जानती हूँ। उनकी आँखों में किसी को देखकर जो प्यार उमड़ता है, उसे पढ़ो तो वे बहुत खुश होते हैं। उनके साथ हँसो तो वे हँसते हैं, उनके साथ खेलो तो वे खेलते हैं। उनके साथ झूमो-नाचो तो वे झूमते-नाचते और खुशियाँ मनाते हैं।”

गोगो की बात इतनी प्यारी थी कि सुनकर जोजो अंकल अवाक् रह गए। गोगो के मम्मी-पापा ने मुसकराकर कहा, “अजी साहब, किस सोच में पड़ गए! हमारी यह पगली बेटी तो यों ही कुछ न कुछ कहती रहती है।”

पर जोजो अंकल गंभीरता से सिर हिलाते हुए बोले, “नहीं-नहीं आनंद साहब, आपकी बेटी लाखों में एक है, हीरा है हीरा! मैंने ऐसी मासूम और प्यारी बच्ची कोई और नहीं देखी, जिसकी बातों में इतनी मिठास हो।”

इसके बाद जोजो अंकल ने गोगो के सिर पर बार-बार हाथ फेरा और जाते हुए बोले, “अरी प्यारी बिटिया, आज तो लग रहा है, तुमने जोजो अंकल के डाॅगी पर ही नहीं, खुद जोजो अंकल पर भी जादू कर दिया।”

सुनकर गोगो और उसके मम्मी-पापा तो हँसे ही, साथ ही जोजो अंकल भी अपनी बात पर जोरों से ठहाका लगाकर हँस पड़े।

ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंBachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)