nanhi gogo aur tintin chidiya
nanhi gogo aur tintin chidiya

इधर नन्ही गोगो की दोस्ती टिनटिन चिड़िया से हो गई थी।

गोगो की आदत है कि रोज सुबह घर के आँगन में थोड़े चावल के दाने रख देती है। पास ही एक छोटे-से मिट्टी के बरतन में पानी भर देती है। उसे लगता है, बेचारी चिड़ियाँ धूप में कितनी परेशान होती हैं। अगर उन्हें छाया में रखा ठंडा-ठंडा पानी मिल जाए, खाने को दाने मिल जाएँ, तो भला उन्हें कितना अच्छा लगेगा!

बड़े दिनों तक नन्ही गोगो इंतजार करती रही। आए कोई चिड़िया और वह उसे दाना चुगते और पानी पीते देखे। तब उसे कितनी खुशी होगी।

वह देखती, रोज शाम तक उसके रखे हुए चावल के दाने गायब हो जाते हैं। मिट्टी के बरतन में रखा पानी भी खत्म हो जाता है। मगर कोई चिड़िया तो उसे नजर नहीं आती। भला कब आती है चिड़िया, कब दाने खाकर, पानी पीकर फुर्र हो जाती है।

एक दिन गोगो अपने कमरे की खिड़की से बैठे-बैठे झाँक रही थी। तभी उसे दिखाई दी एक छोटी-सी, सुंदर गौरैया। इधर-उधर चौकन्नी नजरों से देखते, झिझकते हुए वह पास आई। फिर उसने चावल के कुछ दाने खाए, पानी पिया। थोड़ी देर इधर-उधर उड़ी, फिर आकर तसल्ली से चावल के दाने चुगने लगी।

नन्ही गोगो को गौरैया का ऐसी चौकन्नी नजरों से इधर-उधर देखते हुए दाना चुगना बड़ा अच्छा लगा। सोचने लगी, ‘यह तो बड़ी चुस्त-फुर्तीली चिड़िया है। जरूर यही रोज-रोज आकर मेरे दाने खा जाती होगी, पानी पी जाती होगी। आज पहली बार दिखाई पड़ी है।’

“देखो, कितनी प्यारी चिड़िया है—एकदम भोली-भाली। कितना झिझक रही थी यहाँ आने में! इसे चुपचाप खाते देखना तो बड़ा ही अच्छा लग रहा है।” नन्ही गोगो अपने आपसे बोली। फिर सोचने लगी, ‘इसका कोई बढ़िया-सा नाम रखना चाहिए।’

एकाएक उसके होंठों पर आया, टिनटिन। “अरे वाह, कितना प्यारा नाम है! मैं तो इसे टिनटिन कहकर ही पुकारूँगी।” नन्ही गोगो अपने आपसे बोली।

“चलो, इसे थोड़ा प्यार करते हैं…!” पुच्च-पुच्च करते हुए नन्ही गोगो आगे बढ़ी। मगर वह टिनटिन के पास गई ही थी कि उसने चौकन्नी नजरों से गोगो को देखा और झट से उड़ गई।

अब तो नन्ही गोगो बड़ी पछताई कि क्यों बेचारी टिनटिन को उड़ा दिया? ‘तो अब मैं क्या करूँ?…क्या टिनटिन अब मेरे पास कभी नहीं आएगी?’ नन्ही गोगो परेशान होकर सोच रही थी।

गोगो की मम्मी ने देखा कि गोगो उदास है। उन्होंने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा, “बेटी गोगो, क्या कोई खास बात है?” और जब गोगो ने मम्मी को टिनटिन चिड़िया की पूरी कहानी सुनाई तो मम्मी ने बड़े प्यार से समझाया, “गोगो, यही तो तू गड़बड़ करती है। अभी कुछ दिनों के बाद इसके पास जाना, तो यह नहीं उड़ेगी। पहले थोड़ा इसे प्यार करो। चिड़ियाँ प्यार की भाषा बहुत अच्छी तरह से समझती है। तुम दिल जीतो न इसका!”

गोगो कुछ समझी, कुछ नहीं। पर इतना जरूर समझ गई कि टिनटिन चिड़िया उससे नाराज नहीं है। बस, उसके दिल में थोड़ा डर है, उसे निकालना होगा।

अब नन्ही गोगो जब-जब टिनटिन को दाना देती, तो वह दूर से ही प्यार भरी नजरों से उसे देखती रहती और पुचकारती। और सचमुच टिनटिन चिड़िया का डर दूर हो गया। सोचने लगी—गोगो तो भली और प्यारी लड़की है। फिर भला मैं उसे क्यों पसंद नहीं करूँगी?

कुछ दिनों के बाद नन्ही गोगो और टिनटिन की दोस्ती एकदम पक्की हो गई। अब तो टिनटिन कमरे में आकर कभी गोगो के कंधे या हथेली पर आकर बैठ जाती और ऐसे फुदक-फुदक चलती और नाचती कि नन्ही गोगो की बरबस हँसी छूट जाती। कई बार गोगो अपनी हथेली पर चावल के दाने रख लेती और टिनटिन से कहती, “खा ले टिनटिन, खा ले!” और टिनटिन चिड़िया बड़े मजे से गोगो की हथेली पर रखे चावल के दाने चुगने लगती।

पहले टिनटिन दिन में एक या दो बार आती थी, पर अब तो गोगो से उसकी ऐसी दोस्ती हो गई थी कि दिन में उसके कई-कई चक्कर लगने लगे।

शुरू-शुरू में गोगो के लाड़ले पिल्लू पोपू को टिनटिन को देखकर बड़ा गुस्सा आता था। वह उसे देखते ही गुस्से में भौंकने लगता था। उसे लगता, गोगो की दोस्ती तो मुझसे है, यह टिनटिन चिड़िया कहाँ से आ गई? जब से टिनटिन आई है, गोगो ने मेरी ओर ध्यान देना कम कर दिया है।

गोगो ने यह देखा तो एक दिन हँसते हुए पोपू को प्यार से चपतियाया। बोली, “ओ रे ओ पोपू, यह टिनटिन भी तो अपनी दोस्त है। तो फिर इसमें चिढ़ने की क्या बात है! क्या हम मिलकर नहीं रह सकते?”

और सच्ची-मुच्ची टिनटिन पर पोपू का गुस्सा बड़ी तेजी से कम होता गया। और फिर पोपू और टिनटिन की ऐसी पक्की दोस्ती हो गई कि टिनटिन चावल चुगने आती तो पोपू इस कदर प्यार से उसकी निगरानी करने बैठ जाता, कि खबरदार, अगर किसी ने टिनटिन को जरा भी नुकसान पहुँचाया तो!

फिर एक बार की बात, एक भूरी बिल्ली चुपके से आई। वह टिनटिन पर झपट्टा मारना ही चाहती थी कि पोपू ने उसे ऐसा हड़काया कि बेचारी ने फिर इधर झाँकने की जुर्रत ही न की। और टिनटिन इस बात से इतनी खुश हुई कि देर तक पोपू की पीठ पर बैठी, अपना प्यार जताती रही।

अब तो सचमुच जब टिनटिन और गोगो बातें करते हैं तो पोपू भी वहीं आकर पूँछ हिलाते हुए अपना प्यार जाता है। मानो वह भी टिनटिन और गोगो की बातों में शामिल हो।

ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंBachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)