papi devta by Ranu shran Hindi Novel | Grehlakshmi

सुधा की आंखों का आपरेशन हो गया। डाक्टर ने आंखों पर पट्टी बांध दी और बताया कि अब यह पट्टी पन्द्रह दिन बाद खुलेगी। तब तक सुधा को अस्पताल में ही रहना पड़ेगा। आनन्द ने सुधा के लिए एक ‘प्राइवेट वार्ड’ का प्रबन्ध पहले ही कर दिया था जहां बाबा भगतराम नन्हे राजा को लेकर जब चाहें आयें, ठहरें और जा सकते थे। आनन्द ने हर बात का पूरा-पूरा ध्यान रखा था जिसे सुधा ने अच्छी तरह महसूस किया।

पापी देवता नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- भाग-1

बाबा को आनन्द ने दो बक्स दे दिये थे। एक बक्स में उन तीनों के कपड़े थे तथा दूसरे में नन्हे राजा के खिलौने। इतने दिनों के अन्दर उसके पास इतने अधिक खिलौने हो गये थे कि उन्हें रखने के लिए एक बक्स की आवश्यकता पड़ गई थी।

आनन्द ने उन्हें वह बिस्तर भी दे दिया था जिसे बंगले में वे अपने उपयोग में लाते थे। बाबा न चाहते हुए भी आनन्द के व्यवहार से प्रभावित होकर यह वस्तुएं लेने पर विवश हो गये थे। वैसे भी इस ठण्ड में उन्हें अस्पताल में रहने के लिए इन वस्तुओं की सख्त आवश्यकता थी। आनन्द के दिल से वह परिचित थे यदि सुधा यहां से चले जाने की धमकी नहीं देती तो वह आनन्द को उसकी आंखों के आपरेशन का सुझाव कभी नहीं देते। आनन्द स्वयं भी यही चाहता था। वह चाहता था कि पहले सुधा का मन जीत ले फिर उसकी आंखों का आपरेशन कराये और जब सुधा उसे पहचान कर उसके त्याग को याद करे तो अपने प्यार के लिए उसे क्षमा कर दे। परन्तु अब वह विवश था जब अपनी वास्तविकता बताए बिना वह सुधा का मन नहीं जीत सका तो वास्तविकता बताकर किस प्रकार जीत सकता था-वह वास्तविकता जिससे सुधा को घृणा थी ?

उसने बाबा को समझा दिया था कि जब सुधा की आंखों की पट्टी खुल जाए तो वह उसे सीधे मेरठ ले जाएं। यदि रस्मी तौर पर सुधा उससे मिलकर धन्यवाद देना चाहे तो वह कह दें कि वह बाहर चला गया है। जो श्रद्धा एक देवता के रूप में उसने प्राप्त की थी उसे वह खोना नहीं चाहता था। नफरत से मुहब्बत इतनी ऊंची है कि मानव किसी को धोखा देकर भी इस भेद पर सदा ही परदा पड़ा रह सकेगा और इसीलिए उनका दिल कांप उठता था कि उस समय क्या होगा जब सुधा को ज्ञात होगा कि इस भेद को छिपाने में उसके बाबा का हाथ है ? फिर भी सुधा की प्रसन्नता के लिए आनन्द की वास्तविकता को भेद में रखने का प्रयत्न करना उनका कर्तव्य था और उन्होंने ऐसा ही किया।

अस्पताल में सुधा के साथ नन्हे राजा को भी रहना पड़ा। परन्तु जब दूसरे दिन अस्पताल के घुटे-घुटे वातावरण से उसका मन उकता गया तो उसकी जिद्द पर बाबा उसे आनन्द के पास छोड़ आए। फिर दिन भर बैठे-बैठे आनन्द की महानता पर ही विचार करते रहे। एकान्त में डाक्टर से पूछने पर उन्हें ज्ञात हो गया था कि वह आनन्द का मित्र नहीं है। उसने आंखों के आपरेशन के लिए पूरे पांच हजार रुपये लिये हैं। परन्तु यह बात उन्होंने सुधा को नहीं बताई। सुधा आरम्भ से ही किसी से भीख के तौर पर कुछ भी लेने को तैयार नहीं थी। यदि बता देते तो अब वह एक उलझन में पड़ जाती कि क्यों उसने आनन्द बाबू का इतना बड़ा अहसान लेे लिया जिस हाल कि वह उसे प्यार करते थे और वह उनसे दूर भाग जाना चाहती है।

आनन्द की प्रतीक्षा के विचार से सुधा का दिल हल्के-हल्के कांप रहा था-आनन्द बाबू उसके बेटे को पहुंचाने के बहाने यहां अवश्य आयेंगे। शाम होते-होते यह धड़कनें और तेज हो गईं। परन्तु जब और समय ढल गया और आनन्द तब भी राजा को लेकर नहीं आया तो सुधा का दिल घबराने लगा। पति की एक ही जीती-जागती निशानी, उसी के भविष्य के लिए तो वह सब कुछ कर रही थी-ऐसे व्यक्ति का अहसान ले रही थी जिसके विचार से ही उसकी पतिभक्ति पर आंच आ जाती थी। अपने लड़के को लाने के लिए उसने बाबा को भेज दिया। बाबा चले गये तो वह फिर सोचने पर विवश हो गई कि कहीं आनन्द बाबू साथ न चले आयें। अस्पताल में आने के बाद आनन्द से दूर रहने का उसे सुनहरा अवसर मिल गया था। कुछ देर बाद जब उसने अपने कमरे में पगों की चाप सुनी तो वह अपने पलंग पर पैर नीचे लटकाते हुए सतर्क होकर बैठ गई। कहीं आनन्द बाबू न आये हों। उसका लाड़ला बाबा के साथ उसके कमरे में दाखिल हो चुका था, परन्तु आनन्द की उपस्थिति के भय से वह अपने लाड़ले के स्वागत में मुस्करा भी न सकी। नन्हा राजा लपककर उसके घुटनों से लिपट गया। आज उसके हाथ में एक नया खिलौना था। सुधा राजा के बालों पर प्यार से अंगुली फेरने लगी।

‘‘मां।’’ राजा ने कहा, ‘‘आज अंकल ने मुझे यह चाभी वाला ढोल बजाता जोकर लेकर दिया है।’’

सुधा ने खिलौना अपने हाथ में नहीं लिया, उसी प्रकार उसके सिर पर हाथ फेरते हुए यूं गंभीर थी जैसे किसी बात की प्रतीक्षा कर रही हो। उसके बाबा ने भी अभी तक कोई शब्द नहीं निकाला था। उनके पगों की चाप उसे मिल चुकी थी। पलंग चरमराया तो वह समझ गई कि बाबा सामने बैठ चुके हैं। परन्तु आनन्द बाबू कहां खड़े हैं, वह कोई अनुमान नहीं लगा सकी। फिर भी उसकी समीपता के भय से उसका दिल धड़क रहा था।

‘‘मां।’’ नन्हें राजा ने फिर कहा, ‘‘मैंने अंकल से आने को कहा था। वह नहीं आए। क्यों नहीं आए

मां ?’’

सुधा ने चैन की एक सांस ली। वह मानो चहककर बोली, ‘‘मुझे क्या पता ?’’ राजा के हाथ से उसने खिलौना ले लिया।

‘‘मां।’’ नन्हे राजा ने बहुत उदास होकर कहा, ‘‘आज अंकल बहुत उदास थे। बिलकुल भी नहीं हंसे।’’

सुधा के दिल में एक चुभन उठी। न चाहते हुए भी उसने ऐसा ही महसूस किया। परन्तु अपने होंठों से एक भी शब्द नहीं निकाला।

सामने बैठकर भगतराम ने भी उसे आनन्द की अवस्था बतानी चाही-आज आनन्द सचमुच बहुत उदास था-एक हारा हुआ जुआरी-परन्तु फिर वह खामोश रह गये। उसने सुधा की अवस्था के बारे में भी पूछा था, बहुत भीगे स्वर में, परन्तु वह यह बात भी छिपा गये। अब सुधा के मन में आनन्द के प्रति किसी भी प्रकार की रुचि उत्पन्न करना हितकर नहीं सिद्ध होता। ऐसा न हो कि ज्योति आ जाने के बाद सुधा आनन्द से मिलने की इच्छा कर बैठे। आनन्द की वास्तविकता को अब उन्हें हर अवस्था में भेद में रखना था। वह तो यह भी नहीं चाहते थे कि अब नन्हे राजा का आनन्द से मिलना-जुलना बढ़े। ऐसा न हो कि ज्योति आने के बाद किसी दिन ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाए जब अपने लाड़ले की खुशी के लिये उसे आनन्द से मिलना आवश्यक हो जाए। तब सुधा को आनन्द का पता लगाते कोई देर नहीं लगेगी। भेद खुल गया तो सुधा उन्हें फिर कभी क्षमा नहीं करेगी। साथ ही वह अपनी आंखें भी फोड़ डालेगी। उस व्यक्ति का अहसान किस प्रकार लेना स्वीकार करेगी जिसके कारण आज बरबादी के इस गड्ढे में पहुंची है ? परन्तु जब नन्हे राजा को आनन्द के पास भेजने में सुधा को कोई आपत्ति नहीं थी तो उन्होंने भी मना करना उचित नहीं समझा। मना करने से सुधा कारण पूछ सकती है।

दिन बीतने लगे। जब नन्हे राजा का दिल अस्पताल के वातावरण से उकता जाता तो बाबा उसकी जिद्द पर न चाहते हुए भी उसे आनन्द के पास छोड़ आते। दिन के समय बाबा सुधा के सामने आनन्द की एक बात भी नहीं करते। सुधा समझती कि बाबा उसके दिल को न दुखाने के लिए ही आनन्द बाबू की बातें नहीं करते हैं। बाबा को उसका कितना अधिक विचार है ! वह भी आनन्द के बारे में कुछ नहीं पूछती। परन्तु उस समय उसे अपने दिल पर पत्थर रखकर सब कुछ सुनना पड़ता जब नन्हा राजा वापस आने के बाद आनन्द की बातें किए बिना नहीं रहता। यदि उसका लाड़ला आनन्द के पास जाने के लिए रो-रोकर जिद्द नहीं करता तो वह उसे कभी नहीं भेजती। अपने लाड़ले का रोता स्वर सुनकर उसका दिल छलनी हो जाता था।

‘‘आज अंकल ने मुझे खूब अच्छा वाला कपड़ा पहनाया।’’ एक दिन नन्हे राजा ने आनन्द के पास से लौटकर आने के बाद कहा।

सामने बैठे भगतराम ने देखा। उन्हें उसके कपड़ों में कोई अन्तर नहीं मिला।

‘‘अच्छा।’’ अपने लाड़ले की प्रसन्नता के लिए वह उसकी बात में रुचि लेने पर विवश थी। वह उसका वस्त्रा टटोलने लगी। ‘‘यही है वह कपड़ा ?’’

‘‘वह कपड़ा तो अंकल ने उतारकर अपने पास रख लिया।’’ नन्हेे राजा ने कहा।

‘‘अरे !’’ सुधा ने आश्चर्य प्रकट किया। आनन्द ने पहली बार कोई वस्तु राजा को देकर वापस ले ली थी।

‘‘हां।’’ राजा ने पुष्टि की, ‘‘खूब अच्छा वाला-मैला वाला कपड़ा था वह।’’

‘‘मैला वाला ?’’ सुधा ने आश्चर्य से पूछा। अच्छा भी और मैला भी !

सुधा कुछ समझी नहीं !

‘‘हां।’’ राजा ने कहा, ‘‘उसमें बड़े वाले बटन थे। छोटी वाली बंदूक भी थी।’’ सुधा कुछ समझी नहीं।

‘‘एक अच्छी वाली टोपी भी थी।’’ नन्हें राजा ने याद करके कहा।

सुधा तब भी नहीं समझी। ऊंह ! होगा कुछ। आजकल तो एक से एक बढ़कर जोकरों समान रंगीले कपड़े चल रहे हैं। परन्तु मैला कपड़ा ? शायद सिलवाने में गन्दा हो गया हो और आनन्द बाबू अब उसे धुलवाने के बाद ही उसे देना चाहते हों। आनन्द के विचार से उसे घृणा नहीं थी। उसके मन में अब भी उसके प्रति वही श्रद्धा थी जो पहले थी। आनन्द बाबू देवता हैं। वह उसे प्यार अवश्य करते हैं परन्तु उसका प्यार निःस्वार्थ है। वह चाहते तो उस रात क्या नहीं कर सकते थे जब वह एकान्त में उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। आनन्द की दूरी ने उसे अपने धर्म पर स्थिर रहने की शक्ति दी-और उसे इसकी प्रसन्नता हुई।

दस दिन बीत गये। आनन्द उससे एक बार भी मिलने नहीं आया और सुधा ने उसकी जरा भी परवाह नहीं की। परन्तु एक शाम जब नन्हे राजा ने वापस आकर उसे बताया कि आज अंकल की तबियत खराब थी तो सुधा के मन की चुभन अपने आप ही टीस में परिवर्तित हो गई। जाने क्यों उसके मन के अन्दर इच्छा हुई कि वह उसके बारे में और भी कुछ पूछे। उन्हें क्या हो गया है ? कौन उनकी देखभाल करता है ? हरिया अकेले किस प्रकार उनका विचार रखता है ? वह दिल से यही चाहती थी कि उसके बारे में जरा भी चिन्तित न हो, परन्तु जाने कौन-सा ऐसा दबाव था जो बार-बार उसके मस्तिष्क को आनन्द के बारे में सोचने पर विवश कर रहा था।

उस दिन बहुत रात बीत जाने के पश्चात् उसे नींद नहीं आई। दिल के अन्दर एक बेचैनी समा गई थी। आनन्द के लिए चिन्तित न होते हुए भी वह उसके विचारों में डूबती चली गई और तब अचानक उसने महसूस किया कि उसके दिल में समाई स्वर्गवासी पति की छवि धुंधली पड़ रही है। उसकी पतिभक्ति की तपस्या भंग हो रही है। उसकी याद दूर चली जा रही है और तब उसने मन झटक कर इस याद की डोर को बहुत मजबूती के साथ पकड़ लिया। धुंध मिटाकर दिल की छवि को उजागर कर लिया। उसने प्रण कर लिया, कल से वह अपने बेटे को आनन्द बाबू के पास बिलकुल नहीं भेजेगी, चाहे वह कितनी ही जिद्द करे। न वह वापस आकर आनन्द बाबू के बारे में उसे कुछ बतायेगा और न अकारण ही वह उनके प्रति चिन्तित होगी। उसे अपने पति की याद को छाती से लगाकर सारा जीवन व्यतीत करना है-हर अवस्था में तभी उसकी भक्ति सार्थक है।

दूसरे दिन वह पलंग पर नीचे पैर लटकाकर बैठी हुई थी तो सदा के समान अस्पताल के घुटे-घुटे वातावरण से उकताकर नन्हा राजा फिर समीप चला आया। उसके घुटनों पर हाथ रखकर प्यार से बोला, ‘‘मां, आज मैं अंकल से बोलूंगा कि मुझे लकड़ी वाला घोड़ा दिला दें।’’

‘‘तुम अब उनके पास कभी नहीं जाओगे।’’ सुधा ने एक ही बार में साफ-साफ कह दिया।

नन्हा राजा इसके लिए तैयार नहीं था। आश्चर्य से अपनी मां को देखने लगा।

भगतराम सामने बैठे भगवदगीता का अध्ययन कर रहे थे। उन्होंने आश्चर्य से सुधा को देखा। सुधा ने उनके मन की बात कह दी थी। परन्तु कुछ बोले नहीं।

‘मैं जाऊंगा-मैं जाऊंगा-अंकल के पास जाऊंगा।’’ नन्हा राजा जिद्द करने लगा।

सुधा को ऐसा लगा जैसे नन्हा राजा उसे उसके पथ पर से हटा देना चाहता है। वह झुंझला गई। उसने उसके नन्हे-नन्हे कन्धों को अपने दोनों हाथों से पकड़कर झिंझोड़ दिया और क्रोध से चीख पड़ी, ‘‘नहीं।’’

‘‘मैं जाऊंगा-मैं जाऊंगा-मैं तुम्हारे पास नहीं रहूंगा।’’ नन्हा राजा चीखकर रोते हुए और भी जिद्द करने लगा।

सुधा बरदाश्त नहीं कर सकी। नन्हे राजा के गाल पर उसने एक थप्पड़ मारा। नन्हे राजा को थप्पड़ के दर्द का पहली बार अहसास हुआ था। तड़पकर रोता हुआ वह बाबा भगतराम के पास भाग गया। उन्होंने उसे अपनी गोद में बिठा लिया। राजा सिसकता हुआ उनकी छाती से लिपट गया। उन्होंने दूरदर्शिता से काम लिया। राजा के आंसू पोंछते हुए प्यार से बोले, ‘‘तुम्हारे अंकल आज सुबह छुक-छुक गाड़ी से बाहर चले गए हैं। बहुत दिन तक बाहर रहेंगे। जब वापस आएंगे तो हम तुम्हें उनके पास छोड़ आएंगे, अच्छा ?’’

नन्हा राजा एक पल सोचता रहा। फिर इस प्रकार खामोश हो गया मानो बाबा की बात समझ में आ गई है। उसकी छोटी-सी बुद्धि यह नहीं समझ सकी कि जब उसके अंकल की तबियत खराब है तो बाहर कैसे जाएंगे।

सुधा जानती थी कि बाबा ने ऐसी बात क्यों कही है-राजा को आनन्द बाबू से मिलने से रोकने के लिए। परन्तु जब थोड़ी देर बाद राजा बरामदे में खेलने चला गया तो बाबा ने उसे बताया कि आनन्द बाबू बिलकुल स्वस्थ है। पिछली शाम केवल सिर में हल्का-हल्का दर्द था। आज सुबह वह वास्तव में बाहर चले गए हैं। सुधा को विश्वास ही नहीं हुआ, बल्कि उसे ऐसा महसूस हुआ मानो दिल के अन्दर छिपी कोई अज्ञात चिन्ता दूर हो गई हो। यद्यपि आनन्द की तबियत पिछली शाम वास्तव में कुछ ठीक नहीं थी, फिर भी भगतराम ऐसा कहने पर विवश थे। यदि सुधा ज्योति आने के बाद आनन्द की कृपा से प्रभावित होकर उसे धन्यवाद कहने की इच्छा प्रकट कर बैठती और तब एकदम से वह कहते कि आनन्द बाहर गया हुआ है तो उचित नहीं होता। फलस्वरूप वह भी आनन्द से मिलने नहीं जा सके। सुधा अन्धी थी और नन्हा राजा चंचल। कभी भी वह अस्पताल के बाहर भाग सकता था। अपनी आंखों की पट्टी खुलने की प्रतीक्षा में वह दिन गिनने लगी-बहुत बेचैनी के साथ। ज्योति आने पर वह सबसे पहले अपने राजा को देखना चाहती थी। मानो एक युग हो गया था उसे देखे हुए। अब तो उसका रंग- रूप और निखर आया होगा।

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